Yugantar

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श्री चन्द्रनाथ मिश्र 'अमर'

- ""अपनेकें लोक ' अमर ' जी किएक कहैत अछि ?""

इन्टरव्यूक लेल गम्भीर मुद्रामे चित्तकें स्थिर कए बैसल छलाह ..... से, एहि प्रश्न पर भभा क ' हँस' लगलाह .... "" साहित्यअकादेमीक ' मीट द आॅथर ' मे सी.एम. कॉलेजक अवकाशप्राप्त प्रिन्सिपल रमाकान्त बाबू सेहो पुछने छलाह- लोक अहाँकें ' अमर ' किएक कहैत अछि .... ?""

- ""जी, से किएक कहैत अछि ?""

- "" असलमे ... एक व्यक़ति आर रहथि चन्द्रनाथ मिश्र, तें कउखन काल समस्या भ ' जाइक- के चन्द्रनाथ ? ... हमर सीनियर रहथि- पनिचोभक कामेश्वर झा ' कुसुम ' ... कहलनि .... उपनाम पड़ल ' अमल ' - अर्थात् चन्द्रनाथ मिश्र ' अमल ' ""

- "" अमल माने ... ?""

- "" अमल माने ... अमल ... अमल माने निर्मल ... ओहि समयमे आठ टा गीतक संकलन- बबजिया भाषामे- भक्तिमूलक छपल- संकलनक नाम रहैक चन्द्रनाथ पदावली। ओहि पदावलीक रचयिताक रुपमे जे हमर नाम गेल छल .... से ... वैह ... उपनामबला ... चन्द्रनाथ मिश्र ' अमल ' ""

- ""जी, ' अमर ' लोक किएक कहैत अछि ?""

- "" एहि प्रसंग एकटा घटना अछि .... हमर पिता पं. मुक्तिनाथ मिश्र दरभंगा राजक रमेश्वरलता संस्कृत महाविद्यलयक प्रिन्सिपलक पदसँ अवकाश ग्रहण कएने रहथि ...... तकर बाद सरस्वती पूजा भेल रहैक । पं. त्रिलोकनाथ मिश्र प्रधानाचार्य भेल रहथि।सरस्वती पूजाक अवसर पर किछु अशोभनीय घटना भ गेल रहैक । राजमाता आ बड़ी महारानी साहिबा लोकनिकें प्रसाद पर्यन्त नहि भेटि सकल रहनि ...छात्रलोकनिमे गुटबंदी भ ' गेल रहैक । हम पूजाक बाद गाम चल आयल रही । ... एम्हर हमर गामक मुनिजीकें एक पत्र प्राप्त भेल रहनि जाहिमे छीतन बाबूक उक्तिक उल्लेख रहैक जे गुरुजी मुक्तिनाथ बाबूकें बज्राघात भेलनि ... चन्द्रनाथक देहान्त भ ' गेलनि । ... एम्हर हमर मृत्युक समाचार सगरो पसरि गेल .... एहिसँ पूर्व हमर दू गोट भाइक देहान्त भ ' गेल रहय । .... लालबागक शंकर मिश्रक पिता पद्मनाभ मिश्र अत्यन्त भाव-विह्वल होइत हमर समस्त प्रकाशित अप्रकाशित रचनावलीक प्रकाशनक हेतु व्यग्र भ ' उठलाह- हमरा जखन मुनिजीसँ पत्र भेटल तँ हम तुरत दरभंगा दिस विदा भेलहुँ । ... सकरी टीसन पर व्याकरणाचार्य विद्यावाचस्पति पं. उपेन्द्र झा अपन भातिज बच्चूक संग ट्रेन पर चढ़लाह - सामने बृगीमे हमरा एक कात बेसलदेखि बच्चू चीत्कार क ' उठलाह- चन्द्रनाथ ! चन्द्रनाथ !! गुरुजीक आँखिस अश्रुपात .... दहो-बहो ... माथ ठोकि आशीर्वाद देलनि ... हमरा जीवित देखि दुनू गोटेकें आश्चर्य आ फेर संतोष आ फेर आह्लाद भेलनि ... आठ बजे रातिमे ट्रेन दरभंगा टीसनकें छुबैत रहइक । रातिमे छीतन बाबू देखलनि तँ भरि पाँज पकड़ि लेलनि । ... लगले कटहलबाड़ी ' सुमन ' जीक पुरना वासा पर गेलहुँ- ' सुमन ' जी अत्यन्त उद्विग्न आ कातर भेल चन्द्रनाथ मिश्र ' अमल ' क शोक-श्रद्धांजलिक टटका गेली प्रूफ पढ़ैत रहथि ... हमरा साक्षात् देखितहि प्रूफ उठाक ' फेंकि देलथिन । स्नेह आ आह्लादसँ आशीर्वाद दैत कहलनि ' ' कें ' ' ' देल जाए, अर्थात् - अमलसँ अमर - अर्थात् चन्द्रनाथ मिश्र ' अमर ' अर्थात् ....""

हम पाँती जोड़ैत कहलियनि - "" अर्थात् कन्यादान फिल्मक लालकका ""   - सम्मिलित टहाकासँ वातावरण पुलकित- प्रमुदित भ ' उठल- हँसीक वेग रुकल तँ हम पुछलियनी- "" अपनेकें कन्यादान फिल्मक नायकक रोल किएक नहि भेटल ... ? हीरो ? ... ""

आदरणीय ' अमर ' जी संकुचित होइत कहलनि- ""हम ' रोल ' क हेतु कहाँ गेल रही  ?.... असलमे हमर शिष्य महन्थजी आ सी परमानन्द राजनगरमे ' ममता गाबए गीत ' क शुटिंगमे हमरासँ सहयोग प्राप्त कएने रहथि । पहिने ' ममता गाबए गीत ' क शीर्षक रहैक नैहर भेल मोरा ससुर ... मुहूर्त पटनाक हिन्दी साहित्य सम्मेलन भवनमे भेल रहैक .... नायिका रहइक अजरा आ नायक त्रिदिव कु. चौधरी । गर्मी छुट्टीमे ममता गाबए गीतक फिल्मांकन भेल रहइक राजनगरमे .... हम अपन प्रिय  शिष्य महंथजीक आग्रह पर मैथिलीक उच्चारण.. रिहर्सल आदि कार्यमे सहयोग कएने रहिऐक । एम्हर कन्यादान फिल्मक सूरसार होबए लगलैक । ... हमरा हरिमोहन बाबूक स्नेहपूर्ण पत्र प्राप्त भेल - कन्यादानमे अमूल्य समय दिआ । ... तें कहलहुँ ... ""

- "" जी की कहलहुँ ?"" यैह, जे हमरा रोल लेबाक नहि रहय ... एहन कोनो उद्देश्य नहि रहय ... हरिमोहन बाबू आ हीरा बाबूक आग्रह पर हम बम्बइ गेल रही । कन्यादान पटकथा लिखने रहथि- नवेन्धुघोष ... हिन्दीमे सहयोग कएने रहथिन- फणीश्वरनाथ रेणु आ निदेशक रहथि- फणिमजुमदार । ... एहि बीच एकटा रोचक घटना घटि गेल- लालककाक भूमिकामे रहथि रामायण तिवारी । हमरा हुनक उच्चारण शुद्ध करबाक हेतु भार देल गेल रहय ... एकटा कथोपकथन रहइक - की भेल ? कइएक चिरकइ छी ?

अद्भुत घटना भ जाइक । रिहर्सलक समयमे रामायण तिवारी पूर्ण मैथिलीक छवि- छटामे बाजथि- की भेल ? कइएक चिरकइ छी ? मुदा जखन कैमराक सामनेमे जाथि तँ बोलती बन्द ... थरथरा जाथि ... घिग्घी बँधि जाइन्ह । ठीक छै बादमे सूटिंग हैत ... कैमरामैन ... सब गेल ... स्टेज खाली । फेर रिहर्सल आरम्भ, हम रामायण तिवारीक उच्चारमदोष शुद्ध करबामे लागल- की भेल ? कइएक चिरकइ छी ? फेर कैमरा ... फेर लाइन मैन ... फेर रामायण तिवारी ... फेर तिवारीजीक बोलती बन्द। घिग्घी बँधि जाइन्ह ... एना जखन तीन बेरि भेलैक तँ रामायण तिवारी अपने कहलथिन्ह ... हमसे नहीं होगी । मुझे माफ कर दें फणिमजुमदारकें रंज भ ' गेलनि- पद्मादेवी, दुलारी बाइ बोल सकती है, आप बिहार के हैं, आप क्यों नहीं मैथिली बोल सकते हैं ? रामायण तिवारी साफ कहि देलथनि - बिहार का हूँ इसलिए मैथिली शुद्ध-शुद्ध बोल नहीं पाता हूँ। ... तकर बाद लोकक नजरि हमरा पर गेलैक । फणिमजुमदार ... हुनकर जीमक आन लोक आ सर्वोपरि रामायण तिवारी हमरा कहलनि - आपमे अभिनय कौशल है, हाव-भाव है । ... आप करें ।

फणिमजुमदारकें कहलियनि- हमरा मिथिलामे सिनेमामे भूमिका करब ... सिनेमामे भाग लेब एकरा नीक क ' ' नहि बूझल जाइत छैक ।

फणिदा ई सूनि आकुल भ ' उठलाह- पटकथाक कापी टेबुल परसँ नीचाँ फ्ैंकेत बजलाह- तब बन्द कीजिए । सब बन्द कीजिए । तभ मैथिलीमे फिल्म की क्या जरुरत है ... जब अच्छी नहीं देखी जाती है । ..... ""

- "" जी, तकर बाद .... ?""

- "" तकर बाद तँ हम द्वन्द्वमे पड़ि गेलहुँ । आकुल . मोने नहि मानय । हमर गार्जियन राजपंडित बलदेव मिश्र... बलदेव मिश्रक आँखि ...आँखि सँ निकलैत तेज .... की कतलाह ... पद्मादेवी ... दुलारीबाइ ... लालकका... लालकाकी ... की कहताह ? रामायण तिवारी बोल-भरोस दैत कहलनि- क्या सोचते हो ? फिल्म नगरी में लोहे की दीवारें है । जल्दी किसी को प्रवेश नहीं मिलता है ... मौका मिला है .... कैमरे की चुनौती को झेलने का फिर अवसर नही मिलेगा । मोन मानि गेल । जे हेतै से हेतै । फेर लाइन मैन ... कैमरा मैन, सुटिंग शुरु ... लालककाक रोल ... वैह डाइलॉग ... की भेल ? ...  किएक चिरकइ छी ? ... कैमराक स्वीच क्लीक .. क्लीक ओ.के. ओ.के. पहिले खेपमे ओ.के.। सम्पूर्ण टीममे खुशी पसरि गेल । ... रसगुल्ला मंगाओल गेल । हमरआगाँ रसगुल्लाक ढेर । सब प्रसन्न । सब आनन्दित ।""

- "" साहित्य अकादेमी पुरस्कार अपने कत ' ग्रहण कएने रहिएक ?""

- "" दिल्ली मे । ""

- "" पुरस्कार ग्रहण करबा काल अपनेकें के सब मोन पड़लाह ?""

- "" पहिल व्यक्ति जे हमरा मोन पड़लाह अथवा ओहि समयमे जनिक स्मरण हम श्रद्धापूर्वक कएल से व्यक्ति छलाह परम आदरणीय प्रातःस्मरणीय राजपंडित बलदेव मिश्र ! ""

- ""से किऐक ?""

तकर कारण अछि । ... हम जखन कविता लीखब आरम्भ कएल ... एक आध कविता मिथिला मिहिरमे छपल तँ राजपंडित बलदेव मिश्र हमरा कहलनि-रजनी-सजनीमे लागि जाएब तँ पंडित नहि हैब । ""

- "" जी, गार्जियन जकाँ कहलनि .... ""

- "" गार्जियन जकाँ नहि ... असल गार्जियन वैह रहथि ।  .. वैह रहथि गार्जियन। एक खेप की भेलैक तँ मिथिला मिहिरमे प्रकाशनार्थ कविता देलियनि - बालकों से - ' सुमन ' जी कें ... ' सुमन ' जी सम्पादक रहथि आ सम्पादकजी नामे विख्यात । राजपंडित ' सुमन ' जी कें मना क ' देने रहथिन चन्द्रनाथ कविता नहि छपिअनु ... पथच्युत भ रहल छथि .... रजनी-सजनीमे लागल छथि ...। ""

- "" जी... बालकों से .... ?""

सात दिन धरि व्यग्र भेल प्रतिक्षा कएल ... मिथिला मिहिरमे नहि छपल ... ' सुमन ' जीकें पुछलियनि ... कविता नहि छपल ? बालकों से ? ... ' सुमन ' जी माध्यम मार्गी कहलनि ... हँ, आन-आन रचना छलै, अगिला अंकमे छपत .... खुलि क ' नहि कहलनि जे राजपंडित मना कएने छथि ... कथी ले, छपत ? एक अंक... दू अंक .. तीन अंक ...चारि अंक ... हम ' पुस्तक भंडार ' पहुँचलहुँ । बालक पत्रिका बहराइत रहैक । स्व. अच्युतानन्द दत्त सम्पादक... अपन रचना देलियनि - बालकों से । अगिला अंकमे छपल तुरत ... बॉक्समे ... तुरत ल ' ' ' सुमन ' जीकें देखय देलिएनि  ... तखन बात खूजल । बादमे ' सुमन ' जी राजपंडितकें बुझा-सुझा हमर कविता आदि छाप ' लगलाह - हमरा उत्साहित करैत रहलाह, तें साहित्य अकादमीसँ पुरस्कार ग्रहण करैत काल जाहि दोसर व्यक्तिक सहसा स्मरण भ' उठल - से छलाह पं. श्री सुरेन्द्र झा 'सुमन'

- "" जँ अपनेसँ आज्ञा होइक तँ एक प्रश्न पूछी । संकोचक गप्प छैक । ""

- "" नहि नहि कोनो संकोच नहि, अवश्य पुछू । अवश्य । ""

- "" अपने पुरस्कारक रुपैयाक की कएलिऐक ?""

प्रश्न सुनिक ' ' अमर ' जीकें हँसी लागि गेलैन्ह । बगलमे बैसल ' अमर ' जीक सुपुत्र श्री शम्भुनाथजी सेहो मुस्कुराय लगलाह आ नेबाड़क खाट पर पलथा मारने दूनू संस्कारी बच्चा छपड़ी पाड़ि-पाड़ि हँस लगलाह !

हँसैत बच्चा दिस इंगित करइत हम पुछलियनि- ""ई लोकिन के थिकाह ?""

- "" ई, थिकाह आदित्य आ विभूति .... हमर पौत्र ... सब देवतामे सूर्य प्रत्यक्ष-साक्षात् । हमरा सूर्यपर असीम आस्था- तें हम जेठ पौत्रक नाम राखल आदित्य ! ""

हम चकित होइत बजलहुँ -"" ओ आब बूझल, हिनके नाम पर आदित्य सदन ! अपन एहि मकानक नाम रखने छिऐक ... जी, कहल जाए पुरस्कारक रुपैयाक की कएलिऐक ?""

अमरजी पुलकित होइत कहलनि- "" देखू 1983 मे हम रिटायर कएने रही आ दिसम्बर 83 मे पुरस्कारक घोषणा भेल । .. हम जे परीक्षकक रुपमे पारिश्रमिक प्राप्त करी से खर्च नहि करी । बैंकमे जमा करी । ... रिटायर केलाक बाद पी.एफ. ग्रेच्युटी जे भेटल से फिक्स करा देलिऐक । हमरे बेरसँ साहित्य अकादेमीक पुरस्कार पाँच हजारसँ दस हजार भेल रहइक । हम एहि पुरस्कारक राशिकें फिक्स क ' देलिएक । .. हमरा एकटा इच्छ रहय जकर पूरिति नहि भेल छल । ""

-""जी कोन इच्छा ?""

 

खपड़लैक मकान रहय ... मुदा पक्का मकानक इच्छा... 1989 मे जखन एहि मकानके अवधारल तँ सबटा रुपैया एहिमे लगा देलिऐक ... एहि प्रकारें बूझल किने साहित्य अकादेमीसँ पुरस्कारक राशि छओ वर्षमे 20 हजार भ ' गेल - पाइ-पाइ मकानमे लगा देलिऐ । सदुपयोग भ ' गेल । ""

मैथिलीक लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार आ सेनानी पं. चन्द्रनाथ मिश्र ' अमर ' जन्म मधुबनी जिलाक बलिराजगढ़क समीप खोजपुर ग्राममे 1925 मे भेल रहनि । 1941 मे हीरा देवीक संग बाल-विवाह भेलनि । संस्कृतक अध्ययन ... पूजा आ पाठमे निमग्न बीतरागी श्री ' अमर ' जी 1945 मे व्याकरणाचार्या आ 1946 मे साहित्यशास्रीक परीक्षा उत्तीर्ण कएल। राजस्कूलक शिक्षक रुपमे अपन जीविकाक आरम्भ कएने रहथि - बादमे एम.एल.एकेडमी, लहेरियासरायमे संस्कृत आ मैथिलीक शिक्षकक रुप मे योगदान कएल । 1983 मे एहि विद्यालयसँ अवकाश ग्रहण कए मैथिली लेखन एवं सेवाध्यायमे समर्पित छथि ।

-""अपनेक दिनचर्या की अछि ?""

श्री अमरजी अभिमुख होइत कहलनि- प्रातःकाल चारि-साढ़े चारि बजे - ब्राह्ममुहुर्तमे जागरण- अमृतस्य पुत्रा: - उठू ! जागू ! अमृतक वर्षा भ रहल अछि - हम उठि जाइत छी !

बच्चा रही... तहियेसँ ई जागरण ... भोरमे हमरा फूल तोड़बाक अभ्यास ... बच्चामे पं. गिरीन्द्र मोहन मिश्रक राज दरभंगाक आवास पर जाइ ... मिसरजी प्रातःकाल उठि कैम्पसमे भ्रमण करैत एक दिन देखलनि, फेर दोसर दिन देखलनि, तेसर दिन गुरु गम्भीर स्वर मे कहलनि- बटुक ! किएक ठाढ़ छी ? हम सकपकाइत कहलियनि - फूल तोड़बै बबा ! कहलनि - बेश, एक-एक फूल सबमेसँ तोड़ि लिअ । बेशी तोड़बैक तँ माली पकड़िक ' पीटत । तहियासँ एक-एक फूल हुनक कैम्पससँ तोड़ल करी । ""

-""जी... अपनेक दिनचर्या ?""

-"" प्रातःक्रियासँ निवृत्त भय घऽरेमे आसन बिछा दैत छिऐ । "" आसन पर बैसि जाइछी- गंगाजल छीटि लैत छी आ इष्ट आदिक जप पाठ करैत छी । ... तावत पौ फटैत छइ, तावत लोकक आबा-जाही बढ़ैत छैक ... हम बूथपरसँ दूध ल ' अबैत छी । ... पहिने एक गिलास दूध पिबैत छी ... तखन गरम-गरम एक गिलास चाह - तकर बाद रेडियो अथवा टेलीविजन पर समाचार सुनैत छी .. तकर बाद पेपर अबैत अछि - आर्यावर्त - बच्चेसँ आर्यावर्तसँ सिनेह - आर्यावर्त अपन पेपर लगै-ए ! ... ओना हिन्दुस्तान, आज आदि ऊपरसँ मंगाक पढि लैत छी ""

-"" आ पनपिआइ ?""

दिनचर्यामे पनपिआइ नहि अछि ... पेपर आदि पढ़लाक बाद स्नान-पूजा नित्य तपंण - तपंणमे गुरु-मित्र-बन्धु सबकें तपंण ... तकर बाद भोजन करैतछी । भोजनक बाद आर्यावर्तक फीचर लेख आदि पढ़ैत-पढ़ैत अलसा जाइ छी । रेडियोसँ समाचार सुनैत छी । तकर बाद लेखन स्वाध्याय आदि । एख लेख-कार्य अवरुद्ध अछि । ... हाथमे कनकनी... दुखाय लगैत अछि ... साढ़े पाँच बजे ' सुमन ' जीक वासा पर जाइ छी । ओहि ठाम होइत छैक साहित्य कला समाजक चर्चा । जे अपन नव रचना ल ' ' अबैत छथि से पढ़ैत छथि । ' सुमन ' जी सेहो अपन जँ कोनो नव रचना रहैत छनि तँ पढ़ैत छथि सुनौलाक बाद सबसँ पुछैत छथिन की पास क ' देलहुँ !

-"" सन्ध्याकाल सात-साबा सात बजे धरि अपन घऽर आपस भ ' जाइत छी । प्रादेशिक समाचार सुनैत छी विद्यार्थी लोकनि जे वासामे रहैत छथि से क्रमिक सहस्त्रपाक तेलसँ 25-30 मिनट शरीरक मालिस करैत छथि- नव जीवनक संचार होइए । पोने नौ बजे समाचार, नौ बजेमे भोजन । साढ़े नौ बजे सँ पुनः इष्टदेवक जप ध्यान .. पाठ, दस बजे शयन । ""

दरभंगाक अति पुरान महल्ला- मिश्रटोला- नागमन्दिर, हनुमानजीक स्थान आ तकर सम्मुख सड़कक छोर पर आदित्य सदन आ तकर बाद सड़क मुड़ि जाइत छैक । ... दुमंजिला आदित्य सदनक ग्रीलमे बन्द बराम्दा पर हम बैसछी ... सामनेमे कुर्सी पर छथि मैथिलीक प्रखर सेनानी श्री चन्द्रनाथ मिश्र ' अमर ' । हम साकांक्ष होइत पुछैत छियनि- ""अपनेक भोजन ? भोजनक मेनू ?""

' अमर ' जी निरासक्त होइत कहलनि- ""तकर बारह वर्ष भेलैक .. हमर मूल भोजन दूध आ रोटी ... मांस तँ पहिनहुँ नहि खाइ छलहुँ बजारक ... शाक्त छी तें भगवतीक प्रसादसँ तृप्त होइत रही .... आब माछ नहि खाइत छी ... मसालासँ परहेज .. बेशीसँ बेशी कदाच तरल माछ.. दिनक भोजनमे एक तरकारी आ भुजिया रहैत अछि ... मुदा हमर असल भोजन रोटी आ दूध भऽ गेल अछि ।""

 -""अपने गामसँ दरभंगा कहिया एलिऐ ?""

-"" मात्र अढ़ाइ वर्षक अवस्थामे हम गामसँ दरभंगा आयल रही ।... हमर वयस आब पचहत्तरिसँ अधिक अछि - छिहत्तरि चढ़ल ... मुदा हम गीममे पचहत्तरि मामसँ अधिक नहि रहल होएब । हमर पिता रमेश्वरलता संस्कृत महाविद्यलयक प्रिन्सिपल - राजदरभंगाक सेवामे जीविकापन्न - हुनकहि संग हम गामसँ आयल रही । ... हमर आरम्भिक जीवन आर्थिक विपन्नता आ संघर्षमे बीतल ... हमर पिताकें पाइक हिसाब-किताब नहि राखल होइन्ह ... खूजल हाथ ... जे मङ्लक तकरा द देलहुँ ... हुनक मृत्युक बाद चौबीस सय हमरा पर ॠण रहय । ओहि समयक चौबिस सय ... हमर जेठ भाइ भंगेर ... बचकुनक (मिहिर जी) पिता ... एक-एक पाइ हमरा चुकता कर पड़ल। - "" आ गामक अन्न-पानि ... जमीन ?""

हम अपन जेठ भाइकें कहि देने रहिऐन्हि - पिताक लक्ष्मी अहाँक हिस्सामे आ सरस्वती हमर हिस्सामे ! अहाँ अन्न-पानिक भोग-राग लगाउ । जँ हमरा कहियो अन्न - पानिक अभाव हैत... भोजन-वस्रक कष्ट हैत ... एहन अतिकाल- विपत्तिमे खोजपुरक हम खोज करब ... से तकर निर्वाह हम करैत रहलहुँ ।""

-"" गाम पर घऽर -आंगन-मकान ?""

-"" हँ से सब अछि, ऐल-फैल - घर-आंगन दलान खेती ... सब किछु आछि । ""

-"" नवरत्न गोष्ठी की थिक ?""

-"" पूर्वमे नवरत्न छात्रसंघक स्थापना कएने रही ... स्वतंत्रता आन्दोलनमे हमरालोकनि एहि संस्थाक तत्तवावधानमे भाग लैत रही । ""

-""स्वतंत्रता आन्दोलनक कोन साल ?""

-""वैह, बियालिसक मुभमेन्ट ... हमर अवस्थे की रहय ! मुदा लोकक देखादेखी हमरा सब पिकेटिंग आदिमे भाग ली ... भारतमाता की जय !""

हम अभिमुख होइत पुछलियनि -"" महात्मा गाँधीक नेतृत्वमे ?""

-""वैह, बियालिस ... बियालिसक मुभमेन्ट्मे ... छात्रावास अधीक्षक नवरत्न छात्रसंघ पर ... छात्रसंघक गतिविधि पर रंज भ ' गेल रहथिन ... हुनका ई सब अप्रिय लगनि । ओ सेवापन्न रहथि ... तें बादमे नवरत्न छात्रसंघ नवरत्न कमीटी भ ' गेल अन्ततः 1943 मे हम विधिवत् नवरत्न गोष्ठीक स्थापना कएल आ तकर हम संस्थापक सचिव रहलहुँ । .... एखनहुँ ई संस्था क्रियाशील अछि । ""

-""एहि संस्थाक गतिविधि ?""

-""हमर अधिकांश आरंभिक पुस्तक आ आनो किछु प्रकाशन नवरत्न गोष्ठीक तत्वाधानमे प्रकाशित भेल ... विचार ... चिन्तन ... संगोष्ठी... जनजागरण ... टैह एहि गोष्ठीक क्रिया-कलाप !""

-"" अ. भा. मैथिली साहित्य परिषदक संग अपनेक सम्बन्ध ?""

-"" परिषदक संग हमर पुरान सम्बन्ध अछि ... 1 945 मे हम आ शंकर मिश्र संयुक्त सचिव निर्वाचित भेल रही । ... एकर हमरा बड़का लाभ भेल । एम.एल. एकेडमीमे मैथिलीक शिक्षकक रुपमे जे हमर नियुक्ति भेल तकर एक प्रमुख कारण यैह ... परिषदक संयुक्त सचिव रही ... तें पं. गिरीन्द्र मोहन मिश्रक विचार भेलनि जे हिनक नियुक्तिसँ मैथिलीक पढ़ाड़ सुचारु रुपें होएत ... कक्षामे मैथिलीक छात्र से अधिक जूटत !""

-""सम्प्रति परिषदक क्रिया-कलापसँ अपने सन्तुष्ट छी ?""

मोन क्लान्त भ ' उठलनि ... आक्रोश आ अभिरोषक रेखा मुखमंडल पर अंकित भ ' उठलनि, कहलनि-"" से, जुनि पुछू ! .... ओहि समय आजीवन सदस्यता शुल्क 25/ - रु. रहइक... से देलिऐक आ आजीवन सदस्य भेल रही । 1 957 मे परिषदक महामंत्रीक पद पर निर्वाचित भेल रही । पहिने रहइक जे 100 / - रु. अथवा ओतबा मूल्यक पुस्तक आदि दए पोषक सदस्य भ सकैत छी ... हम 100 / - रु. मूल्यक पुस्तक दए पोषक सदस्य भेल रही । ""

-""कोन-कोन पुस्तक देने रहिऐक ?""

100 / - रु. मूल्यक गुदगुदी देने रहिऐक आ पोषक सदस्य भेल रही-बुझल किने ! आ तकर बाद भेलैक जे 1000 / - रु. देलासँ संरक्षक होएब ... हम सुकुत कमाइमेसँ एगारह सय एगारह टाका द ' परिषदक संरक्षक भेल रही ... सरिसव अधिवेशनमे हम जा नहि सकल रही, मुदा बादमे दिवंगत भवनाथ झा ' दीपक ' क आग्रहपर हम मैथिली साहित्य परिषद्क इतिहास लिखने रही - जे अधिवेशनक स्मारिकामे प्रकाशित भेल आ तकरा अलगसँ हम नवरत्न गोष्ठीसँ प्रकाशित कएल । ... आ तकर सभक की परिणाम... रिजल्ट से बूझल अछि ?""

-""जी, कहल जाय ""

-"" आब परिषदक स्वयम्भू लोकनि कहैत जाइत छथि जे श्री चन्द्रनाथ मिश्र ' अमर ' प्रथमिक स्दस्य नहि छथि । हम स्दस्य नही, आजीवन सदस्य नहि, पोषाक नहि, संरक्षक नहि .... ई की थिक ? एना चलइत छैक ? संस्था एना होइत छैक ??""

-"" आ परिषद्क जमीन आ मकान ?""

श्री ' अमर ' जीक आकृति रक्ताभ भ ' उठलनि -""ओ तँ बाँचि गेलैक ... जमीन बिका जइतैक । रच्छ रहल । एना कतहु भेलैए ! ... धड़फड़ -धड़फड़ । तेहन मकान ठाढ़ भेल जे भूतक डेरा बनल अछि ... परिषदकें केना जमीन भेल रहइक ? केहन संघर्ष कर ' पड़ल रहैक ? साकांक्ष रह ' पड़त ... जमीन आ मकान कतहु बिका ने जाइ ... छइक की आब परिषदमे ... खाली मंत्री आ नेताक अभिनन्दन ""

-""मैथिलीक कोन संस्थासँ अपने सर्वाधिक आशान्वित छी ?""

-"" कोनो संस्थासँ नहि ... ककरोमे कोनो दम नहि । खाली चमक ... दमक.. ""

-"" आ चेतना समिति ?""

-"" हँ, चेतना समितिक अपन उपलब्धि छैक ... मुदा ओ धरती पर कहाँ अछि ... आसमानमे अछि । सर्वसाधारणमे कहाँ अछि .... अभिजन-वर्गमे अछि । जागरण कहाँ भ ' रहल छैक ? आन्दोलन ""

-"" तकर की कारण ?""

-"" तकर मुख्य कारण जे मैथिल समाज सुसंगठित नहि अछि .... धमनीमे खून अधिक काले गरम होइत छैक ""

-""किछु गोटाक आरोप छैन्हि जे मैथिलीक शिक्षक लोकनिक मैथिलीक प्रति जे दायित्व छैन्हि, से, तकर निर्वाह ओ सब नहि क ' रहल छथि । ... अपनेक प्रतिक्रिया ?""

श्री ' अमर ' जी विचलित होइत कहलैन्हि -""शत-प्रतिशत आरोप उचित ... ई आरोप तँ हमरो अछि । एँ औ मैथिलीक शिक्षकक तँ जीविकाक प्रश्न छैन्हि, रोजी-रोटीक प्रश्न छैन्हि, जाहि नाव पर सवार छथि से डूबि रहल छैक ... जाहि घऽर मे छथि से खासि रहल छैक ... आ कोनो सुगबुगाहटि नहि .... अहाँ कें बूझल अछि ... बूझल अछि ..... मैथिलीक जे विश्वविद्यालय मे विकास भेल रहइक तकर पाछाँ ककर योगदान ? चारि गोट मूलत स्कूली शिक्षकक योगदान ""

-""जी, नाम कहल जाय ""

-""पहिल रामकृष्ण झा ' किसुन ' (सुपौल), दोसर कविचूड़ामणि काशीकान्त मिश्र ' मधुप ' (बहेड़ा), तेर डॉ. काञ्चीनाथ झा ' किरण ' (सरिसव).... पछाति ओ मैथिलीक लेक्चरर भेल रहथि ... आ चारिम हम अर्थात् श्री चन्द्रनाथ मिश्र अमर (एम.एल.एकेडमी, लहेरियासराय)""

-"" विश्वविद्यालयमे जे मैथिलीक प्रवेश भेल रहइक ताहिमे मुख्य श्रेय बाबू भोलालाल दासकें देल जाय अथवा ड़. काञ्चीनाथ झा ' किरण ' कें ?""

-""देखू, एहि प्रसंग हम स्पष्ट आ सत्य बातक समर्थन करब ... भोलाबाबूक संग किरणजीक कोनो तुलना नहि । ....

भोलाबाबू असलमे मैथिलीक दधीचि रहथि .... नओ सालक वकालतमे जमीन मकान सबटा भ ' गेल रहनि- ओतेक चलइत ओकालत आ से तकरा लात मारि ओ मैथिली आन्दोलनक हेतु जीवन दान कएने रहथि... जखन विश्वविद्यालयमे मैथिलीक प्रवेश भ ' गेल रहइक तखन किरणजी बनारसँ आपस आयल रहथि- तें हमर स्पष्ट धारणा अछि...""

-"" जी, कोन धारणा ?""

-"" हमर स्पष्ट धारणा अछि जे मैथिली एक स्वतंत्र भाषा थिक- एहि तथ्यके स्थापित करबामे बाबू भोलालाल दासक सरवाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान । ""

तखन किरणजी सेहो जनजागरण कए गाम-गाममे मैथिलीक अलख जगबैत रहलाह ... तन्त्रनाथ बाबू सिनेट आ सिन्डिकेटक स्दस्य, तें विश्वविद्यालयमे मैथिली प्रवेशक युक्ति आ जोगाड़ लगबैत रहलाह ""

मधुबनी जिलाक बलिराजगढ़क समीप खोजपुर गामक स्व. मुक्तिनाथ मिश्रक पुत्र वत्सगोत्रीय व्याकरणाचार्य आ साहित्यशास्री श्री चन्द नाथ मिश्र ' अमर ' कट्टर हिन्दूत्वक पक्षपाती रहलाह अछि । धुर दक्षिणपंथी विचारधाराक समर्थक श्री ' अमर ' जी बाल्यकालेसँ राष्ट्रीय स्वयंसेवकसंघक कैडर रहलाह अछि । .... इयम् न मम् राष्ट्र देवाय... सदा वत्सले मातृभूमे.. केशव बलिराम हेडगेवार .... गुरु गोलवलकर .. बाला साहेब देवरस... रज्जूभैया ... कुप्पू.सी.सुदर्शन.... सब आदर्श पुरुष ... सब आदरणीय ...

-""राष्ट्रीय स्वयंसेवकसंघक संग अपनेक केहन सम्बन्ध !""

पं. श्री चन्द्र नाथ मिश्र ' अमर ' भाव-विह्मवल भ ' उठलाह ... एकटा सम्मोहनक जाल आकृति पर पसरि गेलनि, बजलाह हमरा ' संघ ' क संग बड्ड पुरान सम्बन्ध... 1940 मे हम ' संघ ' क शाखामे जाएब आरम्भ कएल .... पं. काशीनाथ मिश्रक सत्प्रेरणासँ हम संघक शाखामे भाग लेब  आरम्भ कएल, विशेषरुपसँ हाफपैन्ट पहिरने बच्चा सब शाखामे व्यायाम आदि करैत हमरा आकर्षित करय ... हमरो हाफपैन्ट पहिरबाक इच्छा रहय... आकर्षण रहय हाफपैन्टक प्रति ... से हमहूँ हॉफपैन्ट पहिरि शाखामे जाए लगलहुँ ... पछाति मिश्रटोलामे रहथि जगन्नाथ मिश्र- हुनका स्काउटसँ स्नेह रहनि... सोनपुर मेलामे शाखाक सदस्य लोकनिकें ओ विशेष रुपें सेवा-सफाइ आदि कार्यक हेतु ल ' जाथिन - हमहूँ कैक बेर संघक दिससँ सोनपुर मेला गेल रही । ... मुदा जखन हम जीविकापन्न भेलहुँ तँ संघक शाखामे जाएब बन्न भ ' गेल ""

-"" आब केहन सम्बन्ध ?""

-""संघमे छी । संघक विचारधा रामे छी । बौद्धिक आदिमे अपेक्षित रहैत छी तँ जाइत छी । संघक कतोक प्रचारक एवं अधिकारी लोकनिसँ पारिवारिक सम्पर्क एवं सौजन्य अछि । ""

-""आ गुरुदक्षिणा ?""

-""हँ, प्रतिवर्ष नियमित रुपें निष्ठापूर्वक !""

-""अपनेक लेखन पर संघक विचारधारक प्रभाव ?""

-""हम गछैत छी जे हमर लेखन पर संघक विचारधारक पूर्ण प्रभाव अछि ।हमरामे जे राष्ट्रवादी विचारधारा अछि... देशभक्ति अछि ... हिन्दुत्वक प्रति निष्ठा अछि.. हमरा लेखनमे जे अपन देश, अपन धरती आ भारतमाताक प्रति अनन्य निष्ठा अछि से ककर प्रभाव सँ ?""

-""ककर प्रभाव सँ ?""

-""राष्ट्रीय स्वयंसेवकसंघक प्रभावसँ ?""

-""अपनेकें चुनावमे लड़बाक कहियो अवसर भेटल ?""

श्री ' अमर ' जीक आकृति पर राजनीतिक मुस्कान पसरि गेलनि, रहस्य... कहू की नहि कहू - सन मुखमुद्रा... ' अमर ' जी अभिमुख होइत कहलनि- ""कहि दैत छी, जखन अहाँ पुछलहुँ तँ कहि दैत छी ... पहिल खेप 1962 मे ' सुमन ' जीकें जनसंघक टिकट भेटल रहनि से, पहिने हमरे भेटबाक गप्प छल ""

-"" किएक नहि भेटल ?""

-"" किएक नहि भेटल, से गप्प नहि छल । हम स्कूलक जीविकामे रही । हम चुनावमे ठाढ़ होइतहुँ तँ हमरा नौकरीसँ त्यागपत्र देबए पड़ितय - ई महत्त्वपूर्ण बात रहइक । ... सी.एम. कॉलेजक तत्कालीन प्रधानाचार्य डा. लक्ष्मीकान्त मिश्रक ओत ' राति दस बजे निर्णायक मिटिंग भेल रहइक । हमर उम्मीदवारीमे भारी विपत्ति- नौकरीसँ त्यागपत्र - आ जँ हारि जइतहुँ तकन हमर भविष्य की ? बाल-बच्चा की ? घर-गृहस्थी की ?""

-""तखन की भेलैक ?""

-""तखन भेलैक जे प्रोफेसरकें तं त्यागपत्र देबाक काज नहि तें श्री ' सुमन ' जी चुनाव लड़थि ... तें ' सुमन ' जी 1962 मे जनसंघक उम्मीदवारक रुपमे पहिल खेप अपन राजनीतिक जीवनक आरम्भ कएने रहथि ।""

-""अपने उम्मीदवार नहि भेलहुं .. तकर आब दु:ख अछि ?""

-""कोनो दु:ख नहि ... सुख अछि .. बाँचि गेलहुँ ... साफ बाँचि गेलहुँ ... हम पारिवारिक लोक... हम तँ यैह कहब जे श्री ' सुमन ' जी जे राजनीतिमे गेलाह, से हुनकहु लेल अहितकर भेलनि । हुनक साहित्य-साधना, तपस्या, लेखन, घर-गृहस्थी सबमे विध्न भेलनि । राजनीति कतहुकें नहि रह ' दैत छैक - ने घऽर ने घाटके ।""

-"" जी, अपने तँ लिखनहुँ छ्ऐक -घरक निकलुआ राजनीति सागरमे बुड़कान दैत अछि । ""

पंक्ति सुनि श्री ' अमर ' जी बच्चा जकाँ उछलैत कहनलि - ""  तखन सुनू ....

विष्ठी लै दःँत-खिष्ठी जकरा

जोड़ा बड़द द्वारि पर

तकरा घरक निकलुआ राजनीति

सागरमे सब बुड़कान दैत अछि

हमर कथा क्यौ कान दैत अछि ?

मैथिली साहित्यक ख्यातनामा साहित्यकारक रुपमे श्री चन्द्रनाथ मिश्र ' अमर ' विविध विधामे रचना करइत रहलाह अछि । गुद्गुदी, युगचक्र, ॠतुप्रिया, उनटा पाल आ आशा-दिशामे कवि ' अमर ' जीक प्रतिभा भास्वर भेल अछि । ... मैथिली काव्य लेखन-क्षेत्रमे लोकप्रिय, च्रचित, विवादास्पद एवं मंचीय कविक रुपमे एखनहुँ छिहत्तरि वर्षक अवस्थामे जीवन्त छथि । विवादक केन्द्रमे राखि अपनाकें जीवन्त रखबामे माहिर श्री ' अमर ' जी स्वयं गछैत छथि- "" हमरामे ने कोनो अप्रतिम प्रतिभा अछि ने कोनो उत्तराधिकारमे प्राप्त वातावरण । हम अलंकारविहीन, आडम्बरहीन, सोझ शब्दावलीमे अपन अनुभूति ओ भावनाकें अभिव्यक्त करबाक अभ्यासी रहलहुँ अछि । "" ..... टेबुल पर गुदगुदी ... उनटा पाल, आषा-दिशा, विविध गीत, अमर संगीत (हिन्दी) आदि पुस्तक श्री सम्भुनाथ जी राखि दैत छथि । हम गुदगुदीक पन्ना उनटबैट पुछलियनि- "" अपनेकँ काव्य-लेखनक प्रेरणा ?""

- "" सहजात-स्वतः । हमरा तुक सँ तुक मिलयबाक अभ्यास रहय । आमक संग गाम, चानक संग भान, गीतक संग प्रीत ... पहिने हस्तलिखित पत्रिका सबमे हमर गीत-काव्य बहराय लागल । बादमे मिथिला मिहिर, बालक आदि हिन्दी मैथिलीक पत्र पत्रिकामे हमर काव्यरचना प्रकाशित होबए लागल । पहिने हम हिन्दीमे सेहो काव्यरचना करैत छलहुँ । ... 1977 मे हिन्दी काव्यरचनाक एक संकलन ' अमर संगीत ' क नामसँ प्रकाशित भेल ।""

- "" अपनेक पहिल काव्य- संकलन ?""

- "" हमर पहिल काव्यसंकलन गुदगुदीक प्रकाशन नवरत्न ग्रन्थमालाक प्रथम पुष्पक रुपमे भेल रहय । ... तहिया हम मात्र एकैस वर्षक रही । ... पाठ्यपुस्तकमे गुदगुदी नहि छल ... मुदा तथापि गुदगुदीक संशोधित संस्करण प्रकाशित भेल । एकटा बात आर । ""

- "" जी से की ?""

- "" गुदगुदीक संकलित रचनासब हमर प्रारंभिक रचना थिक मुदा से हमरा बड़ प्रिय अछि ... तकर की कारण से हम नहि कहि सकै छी । ""

- "" आ युगचक्र ... ?""

- "" हँ .. युगचक्रक प्रकाशन ' स्वदेश ' मे क्रमिक भेल । मासिक ' स्वदेश ' क प्रकाशन श्री सुमनजी कएने रहथि । छओ गोट स्वदेशक अंक प्रकाशित भेल जाहिमे युगचक्रक अन्तर्गत हमर पाँच गोट कविता प्रकाशित भेल रहए । एक अंकमे आरसी बाबूक कविता प्रकाशित भेल रहनि । बाद मे ' स्वदेश ' मे प्रकाशित कविता सभक संकलन युगचक्रक रुपमे 1952 मे भेल रहय ... मूलतः राजनीतिक व्यंग्य छैक ... बदलैत जीवन आ समाजक विद्रुप पर व्यंग्य कएने रहिऐक । ... रमानाथ बाबू युगचक्रक हमर कविकाकें ' मास्टरपीस ' कहने रहथिन । ""

- "" जी कत्त ?""

से, कविता-कुसुम ... ठीकसँ मोन नहि पड़ैत अछि । "" - टिपिर-टिपिर पानि पड़इत रहइक ... आइ फेर मेघ सगरे अमृत बरसा रहल छैक ... साओन-भादव ... हम साकांक्ष होइत पुछलियनि - ""आ ॠतुप्रिया ?""

- ""देखू.... हमरा फूल-पात, तरु-लता आदिसँ नैसर्गिक प्रेम । ... मुदा ॠतुप्रिया लिखबामे वर्षक वर्ष लागि गेल ... तकर कारण भेलैक जो जखन ... जाहि मास पर लिखने छियैक - से ओही मासमे जेना पूस मासमे पूस पर लिखलिऐक । जे मास छुटि गेल... आवेग नहि भेल ओहि मास ... छुटि गेल फलतः कय वरखे ई काव्य रचना सम्पन्न भेल । अन्ततः 1963 मे ॠतुप्रियाक प्रकाशन भेल । ""

- "" आ उनटा पाल ?""

- "" उनटा पाल असलमे युगचक्रक संशोधित संस्करण थिक । पूर्वमे भेल जे युगचक्र मे किछु आर कविता जोड़ि क ' प्रकाशित करी नव संस्करण ...मुदा ' सुमन ' जी कहलनि जे नव नाम द ' दिऔक तें नव नाम द देलिऐक - उनटा पाल ""

- "" आ आशा-दिशा ?""

- ""आशा-दिशाक प्रकाशन भेल 1975 मे  ... आशा-दिशाक प्रकाशनक पाछाँ एकटा घटना अछि ... हम 1973 जूनमे पूर्णिमाये विद्यापति जयन्तीमे सम्मलित भेल रही। रामेश्वर मिश्रक वासासँ हमर अटैची दिन-दिखार चोरी भ ' गेल । ओहिमे मूल सम्पत्ति छल सम्पूर्ण कापीक हेड़यबाक ई दोसर घटना छल हमरा जीवनमे। पहिल बेर तँ शतावधि हिन्दी कविता ओ शतावधि उर्दू शेर सेहो संकलित छल । ओहिमेसँ हाथ धोअ ' पड़ल । तें दोसर बेरक घटना बेशी चिन्तित क ' देलक । कतेक तकाहेरीक बाद अनेक कविता प्राप्त भ ' सकल । तें एहन उपलब्ध कविताक संकलन आशा-दिशाक रुपमे 1975 मे प्रकाशित भेल ।""

- "" अपनेक कविताक मूल स्वर की थिक ? केन्द्रीय विषय की अछि ?""

व्यंग्य पर गप्प यलल तँ हमरा एकटा बात मोन पड़ल - "" जी अपनेक आज्ञा होइक तँ एक प्रश्न पुछितिऐक । ""

- "" हँ-हँ कोनो संकोच न । ""

- "" जी, अपने आरोप अछि जे अपने हरिमोनद्ग्ध छी । ""

- "" तकर की अर्थ ?""

- "" तकर अर्थ जे अपने हरिमोहन बाबूक रचना काव्य आदिसँ प्रभावित भ हुनके अनुकरणमे हास्य-व्यंग्य लीखल । ""

श्री अमरजी गम्भीर होइत कहलनि - "" जाहि कालमे हम काव्य-लेखनक क्षेत्रमे प्रवेश कएने रही ताहि समयमे प्रोफेसर हरिमोहन झा लोकप्रियताक शीर्ष पर रहथि स्वाभाविक रुपें हुनक प्रभाव हमरो पर पड़ल - मुदा तें हम हुनक अनुकरण कएल से बात सत्य नहि, तर्कपूर्ण नहि । ""

- "" अपने यात्रीसँ प्रभवित भेलहुँ अथवा श्री ' सुमन 'जीसँ ?""

- "" हम अपन लेखनक आरम्भिक कालमे यात्रीसँ पूर्णतः प्रभावित रही । ई बात हम नि:संकोच गछैत छी । चेतना समितिक स्मारिका आ भारती मंडन पत्रिकामे प्रकाशित हमर यात्रीसँ सम्बन्धित संस्मरण पढ़लहुँ अछि ? हम स्पष्ट शब्दें स्वीकार कएने छिऐक - आरम्भिक कालमे यात्रीक प्रभाव हमरा पर रहय ... मुदा बादमे खिआइत चल गेल.. हमर ॠतुप्रिया ... हमर आशा-दिशा ... एहि सब पर यात्रीक कोनो प्रभाव नहि ""

- "" आ श्री ' सुमन 'जीक प्रभाव ?""

- "" नहि ... नहि ' सुमन ' जीक कोनो प्रभाव नहि - साहित्यिक प्रभाव नहि । श्री ' सुमन 'जीक लेखन शास्रीय पद्धति पर आधारित पाण्डित्यपूर्ण होइत छन्हि - हमर सहज सरल आडम्बरहीन भाषामे - तें कोनो प्रभाव नहि । एकटा बात बुझलहुँ । ""

-"" जी, से की ?""

-"" हमरा पर ककरो प्रभाव नहि ... हम माने हम - अमर माने अमर । हमर अपन अलग स्वरुप आ मौलिकता अछि । ""

-"" एम्हर अपनेक हिन्दीक लेखन शिथिल भ' गेल से किएक ?""

-""ई भावनासँ जुड़ल प्रश्न अछि । ठीके, हिन्दीमे लिखैत रही... प्रचुर लिखैत रही ... मुदा 1957 मे जखन हमर माइक परोक्ष भेल, हुनक देहान्त भेलनि तँ गाम सँ घुरलाक बाद निर्णय लेल जे आब हम मात्र मैथिलीमे लीखब - मातृभाषाक सेवा करब...तें स्वत हिन्दी लेखन समाप्त भ ' गेल । ""

- "" आ उपन्यास ?""

अमरजी व्यग्र होइत कहलनि - "" हँ-हँ, लगभग कोनो विधा नहि छूटल अछि। 1950 मे वीरकन्या आ 1963 मे विदागरी नामक उपन्यास प्रकाशित भेल । ""

- "" फेर तकर बाद उपन्यासक लेखन ?""

- "" नहि, तकर बाद उपन्यासक लेखन सम्भव नहि भ' सकल ... असलमे उपन्यासक लेखनक हेतु अधिक अवकाश प्रयोजन छैक ... तल्लीनता चाही ... से, तकर हमरा अभाव रहल तें हम बादमे उपन्यासक लेखन दिस प्रवृत्त नहि भ' सकलहुँ । ""

- "" आ कथा-संग्रह ?""

हँ, 1972 मे हमर नोट बीछल कथाक एक संकलन प्रकाशित भेल.... सतावन-अठावन गोट कथा प्रकाशित अछि ... ताहिसँ ऊपरे ... मुदा बादमे कोनो कथा संकलन प्रकाशित नहि भ ' सकल । ""

मैथिली अकादेमीक सथापना आ साहित्य अकादमीमे श्री ' अमर ' जीक प्रवेशक बद नवरत्न गोष्ठी शिथिल पड़ि गेल ... तकर बाद श्री ' अमर ' जीक प्रायः कोनो पुस्तक नवरत्न गोष्ठीसँ प्रकाशित नहि भेलनि । म.म. मुरलीधर झा, काशीकान्त मिश्र ' मधुप ' , दीनानाथ पाठक ' बन्धु ' मैथिली पत्रकारिताक इतिहास, स्वातंत्र्यस्वर, कथाकिसलय, परशुरामक बीछल-बेरायल कथा आदि पुस्तक-लेखन श्री ' अमर ' जी मैथिली अकादेमी अथवा साहित्य अकादेमीसँ एहि पुस्तक सभक प्रकाशन भेल छन्हि ।

' अमर ' जी सहज रुपें कहलनि- "" मैथिली अकादेमीक अध्यक्ष रहथि श्रीकान्त ठाकुर विद्यालंकार ..... हुनकासँ हमरा सम्पर्क रहय ... पूर्वमे हमर एक पुस्तक प्रकाशित भेल छल - मैथिली आन्दोलनः एक सर्वेक्षण ...दुष्प्राप्य भ ' गेल रहइक । हम विद्यालंकारजीसँ आग्रह कएलियनि जे एहि पुस्तकक पुनर्मुद्रण अकादेमीसँ कएल जाए । ओ कहलनि पहिने पुस्तक देखब तखन किछु कहब । हम पुस्तक देखय देलियनि... ताहि पर ओ कहलनि जे अहाँ स्वतंत्र रुपें पत्रकारिताक इतिहास.. मैथिली पत्रकारिताक इतिहास लिखू ... हुनके आदेश पर मैथिली पत्रकारिताक इतिहास लिखल ... 1983 मे साहित्य अकादेमीसँ पुरस्कृत भेल । ""

- "" मैथिली पत्रकारिताक इतिहासक लेखनक पाछाँ अपनेक की उद्देश्य ?""

शम्भुनाथजी एक गिलास चाह आ बिस्कुट सामनेमे राखि देलनि । हम कहलियनि - "" एक गिलास पानी । ""

वर्षाॠतुक मुनहारि साँझमे पातपल्लो झूमि रहल छलइक । .. ' अमर ' जीक पुरनका कैम्पस मोन पड़ल ... साढ़े सातक न्यूज । बचकुन (मिहिरजी) ... खपड़ैलक घर ...स्टोव पर चढ़ल चाहक केदली... सुच्चा देहाती वातावरण । शम्भुनाथ जी कहलनि-चाह सेरा रहल अछि । हम पानि पीबि चाहक गिलास उठबैत पुछलियनि - "" लोककें आश्चर्य होइत छैक जे अपनेकें मैथिली पत्रकारितो इतिहास पर अकादमी पुरस्कार किएक भेटल ?""

श्री ' अमर ' जी खिलखिला क ' हँस ' लगलाह । कहलनि- "" से तनिका आश्चर्य होइत छैन्हि जनिका पुरस्कारक नियमक अता-पता नहि छैन्हि । ओहि समयमे तीन सालक अभ्यन्तरमे प्रकाशित पुस्तक पर पुरस्कार देल जाइत छलैक ... दोसर एहि प्रश्नक जबाब हम की द ' सकैत छी ... निर्णायक लोकनि द ' सकैत छथि । ... ओना हम पुरस्कार ग्रहण करैत काल दिल्लीमे जे वक्तव्य देने रहिऐक ताहिमे सेहो एहि प्रसंगक उल्लेख कएने रहिऐक। ""

- "" जी, से कोन प्रसंग ?""

- "" हम कहने रहिऐक जे सम्भव थीक जे हमर रचित एहि गद्यग्रन्थ मैथिली पत्रकारिताक इतिहासकें पुरस्कृत होयबाक समाचार सुनि, हमर अधिकांश पाठक अद्भुत रससँ परिप्लावित भ उठति, परन्तु से अस्वाभाविक नहि, कारण जे पद्यसँ अधिक गद्यक रचना करितहुँ हमर छवि एक व्यंग्यकारक कविक रुपमे जनमानसमे अंकित रहल अछि। ""

- "" हम चाह शेष करैत पुछलियनि- अपने कोन-कोन पत्र-पत्रिकाक सम्पादन कएने छिऐक ?""

- "" हम अत्यन्त छोट अवस्थासँ सम्पादनकार्यमे योगदान करब आरम्भ कएल- वैदेही पहिने पात्रिक रहइक- तकर सम्पादन कएल । बादमे मासिक भ ' गेलैक आ हम बहुत दिन धरि वैदेहीक सम्पादन कार्यमे समर्पित रहलहुँ । ... निर्माण साप्ताहिक सम्पादन कएल । दैनिक स्वदेशमे संयुक्त सम्पादक रही ... स्वदेश तँ हमरा लोकनिक मीसन रहय ... अपने हाथें डेरे-डेरे घूमि बेचने रही । साहित्यिक पत्रिका ' इजोत ' क सम्पादन कएल । ... हम सब दिन समाजक अंग बूझि क ' काज करैत रहलहुँ, जखन जे अवसर भेटल ... हम लिखनहुँ छिऐक-

एक बात नहि बिसरक चाही

हमहूँ अंग समाजक छी

किछु नहि छी, तैयो सभ किछु छी

ई जुनि बुझी अकाजक छी

श्री ' अमर ' जीक परिचय प्रसंग ' सुमन ' जीक उक्ति अछि- कौलिकतें वैयाकरण, वृत्तियें शिक्षक, रुचिएँ कवि एवं साधने पत्रकार ओ परिमार्जित शैलीक लेखक अमरजीक परिचय एक वाक्यमे यैह देल जा सकैछ । आब पुनि ओहि मिथिला-मैथिलीक क्षितिज पर पूर्वोदित चन्द्रक कलाबंकिमा जखन आइ पूर्णिमाक प्रौढिमा प्राप्त कए चुकल अछि तखन एक नहि अनेकहु, वाक्य नहि महावाक्यहुमे परिचय अपूर्ण होएत।

साँझ खसल चल अबैत रहइक... ' अमर ' जीक वासा पर साँझक तैयारीक सूरसार आरम्भ भ ' गेल रहनि ... तरकारीक झोरी... लैम्पक शीशा .. छत्ता आगाँ राखल गेल । ...

हम साकांक्ष आ अभिमुख होइत कहलियनि - "" अपने पर किछु आरोप अछि ... मैथिलीक एक प्रबल धारा अछि जकर नजरिमे छियै। "" ' अमर ' जी निर्द्वेन्द्व भावें कहलनि- हँ आरोप अछि। सबसँ पैघ आरोप हमरापर रहनि वैद्यनाथ मिश्र यात्री !""

- "" हुनक की आरोप रहनि ?""

- "" नागार्जुन 1955 मे हिन्दीमे एक गोट कथा लिखलनि... कथाक शीर्षक रहैक - आसमान में चन्दा तैरे .. अमरजी फेर दोहरौलनि - आऽऽसमाऽऽन में चन्दाऽऽऽ तैरे .. हिन्दीक कोनो पत्रिकामे प्रकाशित भेल रहइक - आऽऽ समान में ... ""

- "" जी, कोन तरहक आरोप रहइक ?""

' अमर ' जी गुरुगम्भीर होइत कहलनि- "" विभिन्न समिति, संस्था- गोष्ठी- विद्यापति जयन्तीमे कवि-सम्मेलनक होइत रहइक ... भवानीपुर, मधुबनी, रहिका, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी... दक्षिण बिहारक अनेक शहर-कस्बामे -हमरासँ लोक सम्पर्क करैत छलाह- संयोजन क ' दिअ ! हम पाँच-सात कविकें ल ' ' कविसम्मेलनमे सम्मिलित होइत छलहुँ - जेना मायानन्द, सोमदेव, आर.के. रमण, मिहिर, विन्देश्वर .. आदि जे मंच पर श्रोताकें मुग्ध क ' सकथि, ताली बटोरि सकथि तनिका सबकें संग क मिथिला - मैथिलीक ध्वजाकें फहरबैत छलहुँ ""

- ""जी, यात्रीजीक आरोप की रहनि ?""

- ""यात्रीक आरोप की रहनि... यात्रीक आरोप रहनि जे हम संस्था - गोष्ठीसँ कवि सम्मेलनक नाम पर मोट पाइ उठा लै छिऐक आ गोल क ' दैत छियेक ! आन कवि सब कें सेबइ-बुनिया, रसगुल्ला-ताली, बोल-भरोस द ' ' विदा क ' दैत छिऐक । .. यैह हुनकर कथाक थीम रहनि ... आऽऽऽसमाऽऽऽन में चन्दाऽऽऽ तैरे ... ""

- ""ई तँ वित्तीय अनियमितताक आरोप भेल । एहि प्रसंग अपनेक की कहब अछि? अपनेक की प्रतिक्रिया ?""

एहिपर ' अमर ' जी निमिष मात्रक हेतु विचलित भ ' उठलाह, सहज होइत कहलनि- "" हम शिक्षक, निष्ठावान् मैथिलीक सेवक ... सदासँ पाइ-कौड़ीक गणितमे स्पष्ट । ककरो लग हाथ नहि पसारी ... मिथ्या आरोप ... सर्वथा मि ... मैथिली जगत मे केहन संघर्ष रहइक - अर्थसंकट रहइक से वैह जनैत अछि जे मात्र मैथिलीमे रहल । ""

- ""मैथीलीक नवीन पीढ़ीक कतोक साहित्यकार अपनेक खिलाफ लिखैत-बजैत रहलाह अछि तकर की कारण ?""

- ""ई बात सत्य नहि जे नवीन पीढ़ीक साहित्यकार सँ हमरा सामन्जस्य नहि । मुदा किछु साहित्यकार हमर लोकप्रियता आ क्रियाशीलतासँ आहत भ ' हमरा पर फुफकार काटय लगलाह । एहन नवतुरियाक प्रसंग हम लिखने रहिऐक ..

सावधन ! हमरा सँ हटले रहू

थिकहुँ हम सब नवतपरिया,

घोरि देब हम हवा-पानिमे

चुप्पेचाप जहर केर पुड़िया

अछि जिजीविषा, मुदा युयुत्सा

अन्तर्मनमे मारि करै - ए

कुण्ठा ओ सन्त्रास-ग्रस्त छी,

बुद्धि हमर बपहारि कटै-ए ।

हम साकांक्ष होइत पुछलियनि- "" अपने राजकमल चौधरीक किएक विरोध कएलियनि- हुनकर स्वरगन्धा...कथा... उपन्यास.... हुनक साहित्य पर आक्रमण ? .... ""

- "" देखू-देखू ""   -किंचित उत्तेजित होइत ' अमर ' जी कहलनि- "" हम राजकमल चौधरीक विरोधी छी आ रहब । व्यक्ति राजकमलसँ कोनो विरोध नहि ... वैचारिक विरोध । आधुनिकताक नाम पर उच्छ्ृंखलता ... साहित्यक नाम पर फूहड़ सेक्स हमरा अछि ... तथाकित प्रयोगवादीक प्रति । एहि कविताक रचना हम ' स्वरगन्धा ' क प्रकाशनकसँ पूर्व कएने रही । .... मुदा कविता प्रकाशित भेल ' स्वरगन्धा ' क प्रकाशनक बाद । पछाति ओ ' आशादिशा ' मे संकलित भेल रहय । "" ...

टेबुल पर सँ आशा दिशा उठा लेलन्हि । अमरजीतक चित्त आकुल भ ' उठल रहनि - "" एहिमे हमर कविता अछि - तथाकथित प्रयोगवादीक प्रति- सुनू हम पूरा कविता अहाँकें सुना दैत छी -

तें जँ समाजकें परसबाक किछु इच्छा हो

तँ अपना रुचि कें दाबि

अहाँ जन-रुचिसँ परिचय प्राप्त करु ।

जँ अछि नवीनता भूत माथ पर ठाढ़ भेल

तँ जे फुरैछ से लिखि लिअऽ

अनका नहि पलखति छैक एते जे पढि सकते,

जे जे फुरैछ से गाबि लिअऽ

अनका नहि छुट्टी छैक एते जे सुनि सकते।

एहि कविताकें पढि हमरा बादक पीढ़ीक आ नवतुरिया पीढ़ीक किछु अग्निजीवी साहित्यकार लोकनि हमरा पर आरोप पर आरोप लगबैत रहलाह ... हमरा तकर कोनो फिकिर नहि ... हम स्पष्ट रुपें राजकमल आ राजकमल-कुलक लेखकक विरोधी छी। राजकमलक विचारधारा आ उच्छ्ृंखलताक विरोधी छी । निम्नगामिनी आ अधोमुखी प्रवृत्तिक विरोधी छी । ""

हम साकांक्ष होइत पुछलियनि- ""कोन मापदंड अछि .. जाहि पर अपने निम्नगामिनी आ अधोमुखी प्रवृत्तिक जाँच करबैक ?""

' अमर ' जी आवेगमे आबि गेल रहथि... ""कोन मापदंड अछि.. ई हमर व्यक्तिगत रुचि थिक ... संस्कार थिक ... वातावरण थिक ... हम राजकमल चौधरीक साहित्यकें निम्नगामिनी मानैत छिऐन्हि । एँ औ ...... एकटा छथि विभारानी ।""

- ""हँ..हँ बम्बइमे रहै ' छथि .. बढियाँ लिखैत छथि ।""

- ""की बढियाँ लिखतीह ? ... एकटा लेखमे पढ़लहुँ जे कथाकारक वर्णनक क्रममे विभारानीक उल्लेख किएक नहि भेल । ... लेख पढि क ' आश्चर्य भेल ... के छथि विभारानीजी ? एम्हर एकटा पत्रिका भेटल ।""

- ""जी, कोन पत्रिका ?""

- ""शेखर ' जीक बालक शरदूजी .....""

- ""जी, पत्रिका ?""

- ""शरदूजी पत्रिका बहार करैत छथि आइ-काल्हि (समय-साल) । एही पत्रिकामे एकटा कथा पढ़लहुँ विभारानीक - पढ़लाक बाद भेल जे कोन पापें ई कथा पढ़लहुँ... मैथिली साहित्यक अपन मर्यादा रहलैक-ए... अश्लील । भ्रष्ट !! वीभत्स !!!""

आब अन्हार हेतै आ बिजली बरतै.... बिजलीक प्रकाशमे नहाइत आदित्य सदन। पार्श्वमे टेलीभीजन.. कोनो सीरियल.. स्वर-आलाप...सड़क पर लोकक आबाजाही । ग्रीलमे बन्द बराम्दापर हम आ श्री अमर जी बसैल छी । ' अमर ' जी व्याकुल होइत कहलनि- दिल्लीसँ एकटा पत्रिका बहार भेलैक - अन्तिका - सब पत्र-पत्रिका किनैत पढ़ैत छी। अरे राम - अन्तिकामे हमरा आरोप । सुभाषचन्द्र यादव प्रर्भृत एगारह गोट मैथिलीक लेखकक हस्ताक्षरित आरोप की मनगढ़नत आरोप । हम साहित्य अकादमीसँ प्रचुर अर्थ लाभ उठा रहल छी । सबसँ बेशी काज बटोरि रहल छी - ओझाजी (डा. रामदेवझा) पर आरोप । .... एना आरोप सँ की हेतैक .... ई आरोप साहित्य अकादेमीक भसीन साहेब कें पठबैत गेनथिन... वैदेहीमे सेहो छपल - छप ' - जतेक छप ' - मुदा निराधार - कलुषित आरोप पढि आब दःु:ख आ ग्लानि होइत अछि ।""

अढ़ाइ वर्षक अवस्थामे मधुबनी जिलाक बलिराजगढ़ समीप खोजपुर गामसँ 1927-28 ई. मे दरभंगा आएल रहथि । ... 34 क भूकम्प जखन भेलैक तँ गाममे छलाह ... हरिनन्दन सिंह स्मारक ट्रस्ट पुरस्कार, साहित्य अकादेमीक पुरस्कार, साहित्य अकादेमीक अनुवाद पुरस्कार, चेतना समितिक ताम्रपत्र आ दोशाला, छोट पैघ मैथिली संस्थासँ अभिनन्दन ... सम्मान ... प्रशस्ति ।

- ""अपनेक जीवनक सफलताक रहस्य की थिक ?""

श्री ' अमर ' जी निर्द्वेन्द्व भावें कहलनि- ""क्षणमः कणमः चैव विद्यामर्थच चिन्तयेत् हम निरलस श्रममे विश्वास करैत छी । समय सबसँ मूल्यवान । समयक महत्त्व बुझलिऐक-पहिनहि कहलहुँ - हमर पिता वीरतागी रहथि- पाइ- कौड़ीक हिसाब नहि - जखन हुनकर मृत्यु भेलनि तँ माथ पर 2400/- रु.क कर्ज रहय ... उधार-पैंच ... तकर हमरा घोर प्रतिक्रिया भेल । हम निर्णय लेल, भूखे रहि जाएब - कर्ज नहि लेब ! ... एहि प्रतिज्ञाक पालन एखन धरि क ' रहल छी । ... शारीरिक श्रममे निष्ठा अछि .. एहू अवस्थामे हम कोनो काजक हेतुएँ अनका पर निर्भर नहि रहैत छी । ""

- ""जखन अपने किशोरवयमे रही तँ अपने की बन ' चाहैत रहिऐक ?""

- ""देखू, हमरा आरम्भिक जीवनमे घोर अर्थसंघर्ष रहय- अर्थ संकट तें तेहन काजकें जीविक बनब ' चाहैत रही जाहिसँ प्रचुर अर्थ लाभ हो ... जेना चित्र बनाबी- चित्रसँ आर्थिक लाभ होएत .. बैद्यक काज सीखब आरम्भ कएल.. दबाइक पुरिया बनाबी- अर्थकरी काजक संधानमे लागल रही । परिवारकें आर्थिक कष्टसँ कोना मुक्त करी तकरे चिन्ता रहय ।... ओना इच्छा रहय जे ...""

- "" जी कोन इच्छा ?""

- "" इच्छा रहय जे लाइब्रेरियन बनी - राजपंडित बलदेव मिश्र लाइब्रेरियन रहथि ... दरभंगा राजमे पंडितमे सबसँ अधिक ठाट-वाट हुनके देखयनि- श्री सौभाग्य ! तें मनमे हुअए जे लाइब्रेरियन बनब तँ हमरो ठाट-वा होएत - मुफ्तमे बैसि क ' पुस्तक पढ़ब से अलग ।""

- "" मैथिलीक विकासक लेल अपनेक सुझाव ?""

- "" मैथिलीक लेल अतिकाल बीत रहल छैक ... साहित्यकार सब मैथिलीकें बचाक ' रखने रहलाह ... एकनो सैह आशा अछि । .. मैथिलीक अस्तित्वक रक्षाक लेल अपन शब्दक रक्षा आवश्यक । चिनवार पर ' सब्जी ' बनै-ए तें हम लिखलिऐक -

बजौलहुँ विद्यापति केर ढ़ोल

मुदा उतरल नहि आँखिक खोल

- "" कोनो इच्छा जकर पूर्ति नहि भेल हो ?""-

- ""हँ एतेक गोष्ठी .. जयन्ती ... पत्रिका .... आन्दोलनक बादो मातृभाषा मैथिलीकें उचित सम्मान नहि प्राप्त भेल - यैह इच्छा अछि जे मैथिलीकें सम्पूर्ण न्यायोचित अधिकार प्राप्त हो !""

- ""व्यक्ति ' अमर ' क कोनो इच्छा जकर पूर्कित्त नहि भेल हो ?""

' अमर ' क आह्लाहित होइत कहलनि - "" हम जतेक सोचलहुँ से पूरा भेल .... पूर्णकाम छी ... आब कोनो इच्छा नहि !""

- ""आत्मकथा लिखबाक इच्छा ? योजना ?""

- ""बहुत गोटे ' आत्मकथा ' लिखबाक हेतु आग्रह करैत छथि । ' सुमन ' जीक देखलियनि- मन पड़ैत अछि- हमरो से इच्छा होइत अछि । ... मुदा की लीखब ? हाथमे दर्द उठि जाइत अछि । लीखल नहि होइत अछि - एहि साल परबरीमे हमर प्रिय शिष्य रमेशजी आयल छलाह- देना बैंकक चेयरमैन आ मैनेजिंग डाइरेक्टरक पदसँ हाले अवकाश प्रप्त कएल अछि । लेखनक प्रसंग पुछलनि तँ हाथक दर्दक गप्प कहलियनि। ओ बम्बइसँ  एक जन दूतक माध्यमे ' डेक्टाफोन ' पठा देलनि - छोटछीन टेपरेकर्डर ! बजने जाउ- रेकर्ड भेल जायत । रमेशजी पूरा ग्राफ बना क ' पठौने रहथि ... कोना स्वीच आॅन कएल जाए ... कोना चलाओल जाए ... कोना बन्द कएल जाए ... की कहै छी एखनधरि धन्यबादक दू पाँती पठा ' नहि सकलियनि- दूत कहने छलाह पता द ' जाएब - मुदा द ' नहि गेलाह- लोकक एहन स्नेह आ सौजन्यसँ मोन कउखन क ' विह्वल भ ' उठैत अछि आ तखन अशक्क हाथक अंगुरीमे आत्मकथा लिखबाक उत्तेजना बढ़ ' लगैत अछि । देखिऔ ! की होइत छैक ! आगाँ की होइत छैक ?""

- ""मैथिली साहित्यक क्षेत्रमे अपनेक नाम हो, यश हो एकर इच्छा को अवस्थामे भेल ?""

- नाम हो, यश हो एकर इच्छा नहि भेल - नाम करबाक लौल नहि भेल - मैथिलीमे सेना तैयार करबाक इच्छा भेल - मैथिलीक संगठन तैयार करबाक इच्छा रहय - से हम अपना संगे एक सेना तैयार कएल, तकर संतोष अछि ।""

- ""मैथिलीक तरुण पीढ़ीक नाम अपनेक संदेश ?""

- ""स्वाभिमान कें चिन्हथि ! अपन मान-सम्मानक रक्षा करथि- मानमेतत् संवर्धनम् ।""

- ""मिथिलाक नारी लोकनिक नाम अपनेक संदेश ?""

- ""मातृत्वकें चिन्हथि जे विसरल जा रहल छथि । प्रभासजीक कथादिशामे एकटा लिखने रहिऐक - त्रिकोण - जहिमे एहि समस्याकें हम उठौने रहिऐक ।""

- ""मिथिलाक शिक्षकक नाम अपनेक संदेश ?""

- ""जें भाखा तें हुनक जीविका, जें मैथिली तें हुनक रोजी-रोटी- तें कम-सँ-कम अपन जीविकाक सुरक्षाक हेतु... मैथिलीक हेतु सचेत भ ' जाएब आवश्यक।""

- ""आ जे आरोप लगबैत छथि, अपनेक विरोधी छथि, तनिकर नाम अपनेक संदेश ?""

- ""ओ की ? .. हुनकर अपन दृष्टि । अपन विवेक । हम पहिने लिखि देने छिऐक

जँ थीक महिंस अपने अहाँक

तँ कुड़हरिएसँ नाथि लिअऽ

जे मूर्ख होयत से टोक देत

बुझनुक तँ बूझत अहाँ स्वयं छी कलाकार

ब्रह्माक कृपें अन्तरक आँखिमे

जन्मेसँ लागल आयल अद्भुत चश्मा ।

से, ओहि दिन रहैक 6 सितम्बर, 2000 । दिन रहैक बुध । समय रहैक बीतल चल जाइत साँझ । पानिसँ भीजल दरभंगा नगरक मिश्रटोलाक आदित्य सदनमे तकर बाद हम ' अमर ' जीसँ आज्ञा लय विदा भ ' गेल रही । सिनेमा चौक पर ठाढ़ छी.... राज सत्तासँ मर्माहत मैथिली ....मुदा मैथिलीमे छैक बड़का-बड़का फाटक ...पाया ..... ई फाटक के खोलत ? ई पाया के तोड़त ??........????

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© आशुतोष कुमार, राहुल रंजन  

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