Yugantar

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प्रोफेसर श्री आनन्द मिश्र

ग्रामरत्न सरिसव। अयाची भवनाथ मिश्रक सन्तान। अयाची मिश्रसँ चौदहम स्थानमे पड़ैत छथि प्रोफ्रेसर डा. आनन्द मिश्र-अवकाशप्राप्त अध्यक्ष, मैथिली, विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना।... कला, साहित्य, संगीत, अध्यापन आदि जीवनक विविध घात-प्रतिघातसँ तृप्प-परितृप्त छथि।

-" आब हम शान्तिसँ रहए चाहैत छी। आनन्द ... परमानन्द। कथुक लेल मोन विकल नहि, कोनो छटपटाहटि नहि ... साहित्य-संगीत मे डूबल-दू व्यक्तिती मात्र रहै छी (पुत्र दिस अभिमुख होइत) - ई यदा-कदा अबैत रहैत छथि-अस्थायी-देम्प्रेररी ..."

-"अपनेक राशिक नाम?"

-"मुनिझक"

-"अपनेक जन्म ?"

- "हमर जन्म ... अगहन कृष्ण द्वादशी-सन् १३३२ साल तदनुसार ७ दिसम्बर १९२४-अर्थात् आब हम लगभग ७६ वर्षक भ' गेल छी।"

- "अपनेक पिताक नाम ?"

- "पं. गंगाधर मिश्र प्रसिद्ध बंगटबाबूक हम प्रथम सन्तान। ...सोदरपुरिये सरिसवमूलक शाण्डिल्य गोत्रक श्रोत्रिय"

- "अपनेक शिक्षा ?"

- "लश्वामीश्वर एकेडमी सरिसवसँ १९३८ मे मिडिल ... १९४२ मे राजस्कूलसँ मएट्रिक ....१९४४ मे सी.एस. कालेज, दड़िभंगासँ आइ.ए., १९४६ मे सी.एम.कांलेजसँ बी.ए. ..."

-" आ एम.ए."

-" १९४९ मे पटना विश्वविद्यालयसँ अर्थशास्रमे एम. ए. ... १९५० मे मैथिली मे एम.ए. ...१९५१ मे हिन्दी मे एम. ए."

-" आ शोध-कार्य डी. लिट्-पी.एच.डी.आदि ?"
-" हँ, १९८० मे डी. लिट्-वर्णरत्नाकर पर प्राप्त भेल। एहिसँ पूर्व १५ गोट रिसर्च स्कालरकें हमर पर्यवेश्रणमे पी-एच.डी.उपाधि प्राप्त भेल रहनि।

-" आ परिषद्क साहित्य-रत्न ?"

-" हँ-हँ, मनेमोन पाड़लहुँ। १९४६ मे अ.भ. मैथिली साहित्य परिषद्क साहित्य-रत्न परीश्रामे सेहो बैसल रही आ उत्तीर्ण भेल रही।

-" वाल्यावस्थामे प्रेरणा .... आदर्श पुरुष ?"

-" अओ, से पुछैत छी तखन हम दुइ गोट व्यक्तिक नाम लेभ ... पहिल नवटोलक केशवनाथ झा।
मिडिल स्कूल, सरिसवक हेडमास्टर रहथि। हुनक आचरम, व्यवहार, शिश्रणकला आ छात्रक प्रति मात्सर्यसँ प्रभावित होइत रहलहुँ।"

-" जी, दोसर ..."

-" कविशेखर पण्डित बदरीनाथ झा - संस्कृतक निष्णात त्ज्ञाता - मैथिलीक महाकवि। हम कविशेखरजीसँ किछु दिन साहित्य-शास्रक अध्ययन कएल घ्वन्यालोक, साहित्यदपंम, रसगंगाधर आदि साहित्यक शास्रीय ज्ञान हम कविशेखरजीसँ प्राप्त कएल।" 

-" अपनेक पहिल जीविका ?"

-" ओना तँ हम सरिसबमे अघ्यापन कएल ... बी.ए. पास कए रमाकरजीक संग आर. के. कांलेज मधुबनीमे मैथिलीक प्राघ्यापकक हेतु इन्टरव्यूमे भाग लेने रही ... अर्थशास्रक अघ्यापनक हेतु हम राजेन्द्र कांलेज, छपरा आ सी. एम. कांलेज दरभंगामे जोगाड़ धरौने रही ... मुदा से सब नहि ... किछु दिन हम आकाशवाणी, पटनामे आकस्मिक कलाकारक रुपमे योगदान कएल... जून १९५२ मे हम आकाशवाणीसँ मुक्त भ' गेलहुँ।"

-" आकाशवाणी मे अपनेक उपलब्धि ?"

-" सबसँ पहिल तँ ई जे हम मैथिलीकें लोकप्रिय बनएबाक प्रयास कएल। कुमार गंगानन्द सिंहक जीवन-संघर्ष आ प्रोफेसर हरिमोहन झाक कथा आदिक रेडियो रुपान्तर प्रस्तुत कएल ?"

-"पहिल रेडियो रुपक ?"

-" से हमरे लीखल थीक - गुरुजी ... आ तकर बाद गोनू झा पर आधारित धारावाही सेहो किछु दिन आरम्भ कएने रही।"

से ओहि दिन रहइस चौठचन्द्र। दिन रहइस शनि। तारिख रहइस २. सितम्बर, २०००। पटनाक कंकड़बागक चित्रगुप्त नगर ... गीताप्रसाद सिंह हाइस्कूलक ठजस्ट अपोजिट' श्री नारायण झाक दूर्मजिला मकान ! उपरमे एक फ्लैटमे आनन्द बाबूक वासा। आगाँमे एकटा कोठली ... कोठलीमे पुरान टाइपक एकटा पलंग.... पलंग पर बिछौन... आलमीरा सबमे किताब, पत्रिका, फाइल आदि... पनवसना, सामनेमे चारि गोट कुर्सी... पलंग पर ओंगठल रहथि आनन्द बाबू... कातमे पलथा मारने श्री अधीत... कुर्सी पर एक कात आदरणीया श्रीमती सीता देवी ... घड़ीमे बजैत रहइक साढ़े आठ प्रातःकाल। वर्षा टिपिर ... टिपिर ...

-" अपने गामसँ पहिल खेप पटना कहिया आएल रहिऐक ?"

-" १९४७ ... अर्थशास्रसँ एम.ए. मे अध्ययन हेतु।"

-" मैथिलीमे एम.ए.करबाक की उद्देश्य ? की अभिप्राय ?"

-"देखू, १९५० मे पटना विश्वविद्यालयमे मैथिलीमे एम. ए. क. मान्यता भेटलैक। हमरा मैथिलीसँ सहज सिनेह ... आकर्षण ... कविता ... गीत .. नाटक ... एकटा रहस्यक बात कहै छी .. मैथिलीमे विद्यार्थी नहि होइत रहैक। एकटा मुख्य कारम सेहो भेलैक ... हमरा फस्र्ट क्लास भेटल।

-"पटना विश्वविद्यालयमे अपनेक प्रवेश ?"

-"के.एन. भाल छलाह पटना विश्वविद्यालयक भाइस चान्सलर ... छओ महिनाक हेतु हमर नियुक्ति अगस्त १९५२मे भेल।"

-"आ कमीशनशँ ?"

-"हँ, कमीशनसँ छओ महिनाक अभ्यन्तर सम्पुष्टि होएब आवश्यक ... कमीशनाक चेयरमैन रहथि प्रख्यात शिक्षाविद् डा. अमरनाथ झा।"

-"कमीशनक इन्टख्यूमे एक्सपर्ट के रहथि ?"

पहिल तँ म.म. डा. उमेश मिश्र आ दोसर डा. सुधाकर झा शास्री ... १९६९ सँ १९८६ धरि हम पटना विश्वविद्यालयमे विभागाध्यक्षक रुपमे कार्य सम्पादन कएल। १९८६-८८ मे हम लमेश्वर सिंह मैथिली चेयरमे रिसर्च प्रोफेसर रहलहुँ। सम्प्रति पटना विश्वविद्यालयक सांस्कृतिक परिषदक चेयरमैनक रुपमे छात्र-वर्ग सँ जुड़ल छी। सुखदा पाण्डेय सांस्कृतिक परिषदकें जीवन्त कएने छलीह। एम्हर सुखदा एम.एल.ए. भ' गोलीह अछि तें सांस्कृतिक परिषद् आब शिथिल भ' गेल छैक।

-"पटना विश्वविद्यालयमे मैथिली प्रवेशक सम्बन्ध मे एकटा विवाद छैक ..."

-"किछु गोटेक कहब छनि जे बाबू भोला लालदास, किरणजी आदिक आन्दोलनक कारणे पटना विश्वविद्यालयमे मैथिलीक प्रवेश भेलैक ...?"

आनन्द बाबूक मुखमुद्रा गम्भीर भ' उठलनि, - देखू, ई सब बात मनगढ़न्त थिका। बाबू भोलालाल दास आ किरणजी लोकनि मैथिलीसेवी रहथि ... मैथिली हेतु सभा-गोष्ठी .... पम्पलेट आदिमे लागल रहैत छलाह। मुदा एहि सबसँ पटना विश्वविद्यालयमे मैथिलीक प्रवेश सम्भव नहि छलैक।

-"जी, तखन ?"

-"तखन की ? महाराज कामेश्वर सिंहक निर्णायक बोगदान रहनि। सबटा श्रेय कामेश्वर सिंहक। ई हमरालोकनिक - सम्पूर्ण मैथिल समाजक कृतघ्नता होएत जँ एहि ऐतिहासिक यथार्थकें हमरालोकनि नहि स्वीकार करी।"

-"एहि प्रसंग अपनेक तर्क की अछि ? प्रमाण की अछि ?"

-"आनन्द बाबूक मुग्ध मधुर आभाणण्डल पर अभिरोधक रेखा उभरि गोलनि .. अहाँ पुछैत छी तर्क ?
अहाँ पुछैत छी प्रमाण ? हम लगभग छिहत्तरि वर्षक छी ... हमर सोझाँ सबटा घटना घटित भेल ।"

-"जी, से की ?"

-"सच्चिदानन्द सिन्हा मैथिलीक घोर विरोधी रहथि। एक जन मैथिल ब्राह्मण श्री जनार्दन मिश्रकें ओ मैथिलीक विरोधक हेतु तैयार कएने रहथि। मुदा महाराज कामेश्वर सिंह अपन उदार दानकोष, बुद्धिकौशल आ उत्कट मैथिली प्रेमसँ सच्चिदानन्द सिन्हाकें सम्मोहित क' लेलनि। ... अहाँकें बूझल अछि।..."

-"जी, से की ?"

-"महाराज साहेब पटना विश्वविद्यालयमे मैथिलीक विकास हेतु मिथिलेश रमेश्वरसिंह चेयर इन पटना युनिवर्सीटीक स्थापना कएल ...

-"जी, अपने एहि चेयरक पूर्ण विवरण द' सकै छी ?..."

-"हँ, हम एहि चेयरक पूर्म विवरण द' सकै छी ?..."

पलंग पर आनन्द बाबू ओंगठल छलाह, से उठिक' बैसि रहलाह, फेर ठाढ़ भ' गेलाह-" थम्हू, हम अहाँक सोझाँ सम्पूर्ण फाइले खोलि दैत छी।"

फाइलमे पुरान कागतपत्र... सन् १९३५ आ १९३६ क अधिसूचना ... अनुदानक राशि, संरचना आ उद्देश्य ... फाइलमेसँ अधिसूचनाक कापी देखबैत कहलनि -

देखू...देखू... अहाँ पुछलहुँ तर्क...अहाँ पुछलहुँ प्रमाण - ६० क एण्ड/३४१ क ५.१.१९३५ आ १८.१.१९३६ - दू गोट अधिसूचना ...

-"जी, कतेक रुपैयाक फिक्स्डडिपोजिट ?"

-"आनन्द बाबू भाव-विहृल होइत कहलनि - एकटा २ लाख २ हजार ९ सए आ दोसर एक हजार तीन सए अर्थात् कुल मिलाक २ लाख चरि हजार दू सए ..."

-"एहि चेयरक मुख्य उद्देश्य की रहइक ?"

-"चेयरक स्थापना, रिसर्च प्रोफेसर, छात्र-वृत्ति, योग्य व्यक्तिकें ट्रेनिंग आदि ... एहि चेयरक सौजन्यसँ सुधाकर झा शास्री विदेश गेल रहथि। ...जयदेव बाबू, सुभद बाबू रिसर्च प्रोफोसरक पदकें सुशोभित कएल - १९८६ सँ ८८ धरि हमहूँ रिसर्च प्रोफेसर रही।..."

-"आ मैथिली डेवलपमेन्ट फन्ड ?"

मुग्ध होइत आनन्द बाबू कहलनि - हँ, महाराज कामेश्वर सिंह कामेश्वर सिंह, पटना विश्वविद्यालयमे
ग्ठ्ठेत्द्यण्त्थ्थ्त् Deध्eथ्दृद्रथ्रeदःद्य ढ्द्वेदःड्डीक हेतु प्रचुर राशि जमा कएल। 

-"एहि फन्डक मुख्य उद्देश्य की ?"

-"एहि फन्डक मुख्य उद्देश्य व्याख्यानमाला एवं प्रकाशन अर्थात् समय-समय पर विद्वान लोकनिक व्यांख्यानक आयोजन एवं मैथिलीसँ सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण ग्रन्थक प्रकाशन ...."

-"जेना व्यांख्यानमाला ?"

-"व्यांख्यानमालामे विविध क्षेत्रक विद्वानक व्याख्यानक आयोजन भेल अछि। ... जेना पूर्व मे कविशेखर पं. बदरीनाथ झा, पं. यशोधर झा, डा. सुभद्र झा, प्रो. उमानाथ जा, डा. जयकान्त मिश्र ादि ... एम्हर प्रो. दामोदर ठाकुर, डा. चेतकर झा।

-"व्यांख्यानमालाक हेतु मानदेय ?"

-"हँ, पूर्वमे १०० रु. रहइक .. बादमे सुभद्र बाबू कहलनि १०० रु. बड्ड कम छैक - एखन सम्प्रति १००० रु. भ' गेल छैक।"

-"एहि व्याख्यानमालाक प्रकाशनक योजना ?"

-"हँ, प्रकाशनक योजना सेहो कएल गेल छैक ... मुदा विश्वविद्यालयक काज ... घोर शिथिलता ...."

-ठ मैथिली डेपलांपमेन्ट फन्ड' क प्रकाशन ...

आनन्द बाबू उत्साहित आह्मलादित होइत कहलनि - देखू - देखू, हमरा लोकनिकें महाराज कामेश्वर सिंहक प्रति कृतज्ञ हो#ेबाक चाही --- केहन महत्त्वपूर्ण पोथी सभक प्रकाशन भेलैक ...

-"जेना ...?"

-"जेना विद्यापतिक पुरुषपरीक्षा, कीर्तिलता .... मणिमंजरी नाटकक प्रकाशन भेलैक। पं. रमानाथ झ द्वारा सुसम्पादित पुरुषपरीक्षा ... केहन विलक्षण भूमिका लिखने छथि रमानाथ बाबू !"

-"अन्य प्रकाशन ...?"

-"हँ, अन्य प्रकाशनमे महाराज महेश ठाकुर कृत सर्वदेशवृत्तान्तसंग्रह, डा. सुभद्र झा द्वारा सम्पादित ... भाषागीतसंग्रह (नेपालसँ उपलब्ध संग्रह) पं. रमानाथ झा द्वारा सम्पादित अथच डा. सुधाकर झा शास्री द्वारा सम्पादित रागतरंगिणी..."

-"एकटा विवाद आर छैक ... जँ आज्ञा हो तँ पूछी ..."

-"हँ-हँ किएक नहि ... कोनो बन्धन नहि ... चिर मुक्त हम ... चिरमुक्त हम- जे पुछबाक हो से पुछू ..."

-"किछु गोटेक कहव छनि जे दरभंगा राजक उचित सरंक्षण नहि भेटलाक कारणे मैथिलीक अधोगति भेलैक ..."

आनन्द बाबू गम्भीर होइत कहलनि - इ सब विवाद अज्ञानी व्यक्ति लोकनि उठबैत छथि। कुंठित व्यक्ति सभक ई प्रलाप थिक । एँ अओ ... महाराज मेहशठाकुर सँ बड़ी महारानी राजलक्ष्मी धरि मैथिलीक साहित्यसेवा होइत रहल ... दरभंगा राजप्रेस प्रकाशन लि. सँ मैथिलीक बहुमूल्य पुस्तकक प्रकाशन भेल। मिथिला मिहिर मे मैथिलीकें सम्मिलित कएल गेल। राज दड़िभंगासँ मैथिलीक गुणी विद्वान लोकनिकें परिपालन होइत रहल.. इण्डियन नेशन, आर्यावर्त मैथिलीक संघर्षक ध्वजाकें ऊँच कएने रहल ... पछाति स्वतंत्र रुपें मिथिला मिहिर साप्ताहिक केर प्रकाशन भेल। बादमे किछु दिन मिथिला मिहिर दैनिक रुपमे चलैत रहल .... हमर तँ विचार अछि जे ..."

-"जी, केहन विचार ?"

-"हमर विचार अछि जे कोनो सुयोग्य अनुसंधानकर्ता प्रामाणिक रुपमे परिश्रमपूर्वक अध्ययन कए थीसिस तैयार कए सकैत छथि।"

-"जी, कोन विषय पर ?"

-"खण्डवलाकुलक मैथिलीमे योगदान ... परिश्रमसाध्य छैक ... प्रामाणिक तथ्यक संयोजन कर' पड़तैक ! जे लोकनि आरोप लगबैत छथि जे दड़िभंगा राजक कारणे मैथिलीक अधोगति भेलैक तनिका अपन आत्म-मंथन करबाक चाहिएन्हि जे ओ लोकनि मैथिलीक लेल की क' रहल छथि !'

अधित बाबू टेबुल पर चाह राखि दैत छथि ... गरम चाह ... पटनाक चित्रगुप्त नगरक एकटा नवका कांलोनीमे कुर्सी पर बैसल हम चाह पीवि रहल छी । ग्राम रत्न सरिसव, आयाची मिश्रक सन्तान, मैथिलीक यशस्वी शिक्षक... मुग्ध-विमुग्ध आनन्द बाबू चाह पीबैत कहलनि-"लगैए, इन्टख्यू पैघ होएत - अहाँ लम्बा छनने छी ।"

-"जी, कविचूड़ामणि ठमुधप' जीक कहब रहनि जे मैथिलीक शिक्षक जीविकाक रुपमे मैथिलीकें ग्रहण कएने छथि - रोजी-रोटी बूझिक' तँ मैथिलीसेवा दिस विशेष ध्यान नहि जाइत छैन्हि।"

-"आ दोसर ?"

दोसर, घऽर-गृहस्थीक भार ... अभाव-अभियोग महगाइ ... सबमे ओतेक ऊर्जा नहि। ओना एकटा बात ध्यान देलासँ स्पष्ट होएत ...

-"जी, से की ?"

जनिकामे ऊर्जा छनि, उत्साह छनि से मैथिली लेखन आन्दोलनमे समर्पित छथि ... बहुत मैथिलीक शिक्षकक योगदान उल्लेखनीय अछि ... स्वर्ण अक्षरमे अंकित करबाक योग्य अछि !

-"शिक्षकक रुपमे अपनेक उपलब्धि ?"

आनन्द बाबू चाह शेष करैत कहलनि -"छात्र समुदायमे हमर लोकप्रियता ... पर्याप्त लोकप्रियता - ई हमर सबसँ पैध उपलब्धि ! जे सर-सम्बन्धी मित्र बन्धुसँ सहयोग नहि भेटल से छात्र समुदाय सँ भेटल। ... हम जे पटनामे छी - चित्रगुप्त नगरक एहि दु मंजिला मकानक फ्लैटमे तकर मूल कारण सैह। एतए एखनहुँ छात्र-समुदायक असीम स्नेह हमरा भेटैत अछि .. हमर ऊर्जा बढ़ैत अछि, हम भाव-विभोर भ' जाइत छी !"

मैथिलीक यशस्वी शिक्षक, चिरयुवा ... सुमधुर संगीतक स्वरत्नहरीमे डूबल आनन्द बाबूक मन-प्राण राघोपुर ड्योढीक बीतल चल जाइत स्मृतिमे रसल-बसल छनि। आनन्दपुरडेयोढ़ी ... हँ, आनन्दपुर ड्यौढ़ी सँ सिनेहक एकटा सूत्र जुड़ल रहलनि ...राजदरभंगासँ सम्बन्ध रहलनि ... लालसर चिड़इ, भुन्ना-रोहु, इन्दिरधनुषी किशोरवय, मांगन खवासक ख्याल आ दरवारी दासक गीतगोविन्द ...।

-"अपनेक सम्पोषण सामन्तवादक ... सामन्तवादी वातावरणमे भेल ... अपने सामन्त वादसँ कोना बँचलहुँ ?"
आनन्द बाबू पान खएलनि ... कतरा सुपारी ... सरिसवंक सरौता ... जर्दा आ तखन मुखमंडल आरक्त भ'उठलनि ...

-"की सामन्तवाद ... हम जन्मजात सामन्त छी ! बूझल किने ! सामन्तवाद की? हमरासँ सामन्तवाद बहरायल। हम छी सामन्त ! कोन सामन्त ? केहन सामन्त ?" 

-"जी, कहल जाय कोन सामन्त ? केहन सामन्त ?"

-"पोखरि खुनाक' यज्ञ करब ..... रामचतुर मल्लिकक ध्रुपद धमार आ उमाकान्तक नाटकक आयोजन करब ........ विन्यासपूर्वक भोज-भात करब ... सारंगी, सरोज, सितार, वीणाक झंकार मे स्वरसाधना करब - दोशाला आ शुभ्र अंग-वस्रमे रहब .. नीक खाएब आ नीक पहिरब ! एहिमे कोन अनर्थ ? एहन सामाजिक संरचनाक कोन निन्दा ... मिथिलामे के भेल जालिम सिंह ... कत' अछि अपना समाजमे नादिरशाह ? ई सब मैथिलीक किछु हूसल साहित्यकारक प्रलाप थिक ... कुँठा थिक, बुद्धिक विपर्यय थिक। हीनता थिक - आनन्देन इमानिभूतानि जायन्ते - ईट, ड्रींक एण्ड वी मेरी ... सुन्दर अति सुन्दर ... मैथिलीमे कौआके दल अछि - हाँजक हाँज काँउ-काँउ ... ईशनाथ बाबू अपन सुमधुर स्वरलहरीमे गाबि क' किएक श्रेताक हृदय-सिंहासन पर राज करैत छथि ? मायानन्द एतेक सुन्दर सुललित मंच पर उद्घोषणा किएक करैत छथि ? .... जहाँ कोनो नीक देखलहुँ कि काँव-काँव .... कौआक दल .."

-"आदरणीय किरणजीक कहब छलनि जे ठभुवन' जी सामन्तवादी छलाह !"

-"हँ, एहि प्रसंग किरणजीसँ हमरा बहस भेल रहय। हमरे किताब ल ठक' बी.ए. पास कएने रहथि किरणजी ... जँ ठभुवन' जी सामन्तवादी तँ मैथिलीमे के यथार्थवादी ? के प्रगतिवादी ? के विद्रोही ? ...अहाँकें बूझल अछि ..."

-"जी कोन बात ?..."

-ठभुवन' जी साहित्यक वेदी पर अपन सर्वस्वान्त क' लेलनि ... अपन सम्पत्ति, स्वास्थ्य, घऽर-परिवार ... अपन जीवन ... चालीस-बियालीस वर्षक अवस्थामे देहान्त...भरल जवानीमे तिरोधान। मैथिलीक लेल जान-प्राम लगौलनि। अहन्रिश .. दिनराति-ओतेक पैघ परिवारक ... ओतेक पैघ खानदान ... विभूति...मैथिलीक केहन दिव्य आ भास्वर पत्रिका .. दुखद बात थिक -ठभुवन' जीक कवितासँ, लोकप्रियता सँ, हुनकर कालजयी साहित्यसँ किछु गोटेकें ईर्ष्या भ' गोल रहनि ... बूझल किने ... ईर्ष्या ... तकरे ई सब थिक प्रलाप ....

-"अपने ठसुमन' जीक समीप छी अथवा यात्रीजीक समीप ?"

-"केहन समीप्य ?"

-"जी, वैचारिक सामीप्य ..."

-"तखन नोट करु ... पूर्णत : यात्रीजीसँ वैचारिक सामीप्य रहल ... यात्रीक चिन्तन, वैश्विक दृष्टिकोण, उदारवादी स्वर, हिंसारहित जनवादी चेतना आ उत्कट मैथिली प्रेम-निश्चित रुपसँ हम यात्रीक समीप छी। ..."

आनन्द बाबूकें हंसी लागि गेलन्हि। आनन्द बाबू हँसितो छथि तँ राग-ताल मे। अभिमुख होइत कहलनि- "एकटा प्रसंग मोन पड़ि गोल, से हँसी लागि गेल !"

-"जी, केहन प्रसंग ?"

-"एक बेरि की भेलैक तँ हम परिक्षामे प्रश्न पूछि देलिऐक - आधुनिक कवि सुमनजीमे आधुनिकताक अभाव छैन्हि - विवेचन करु।

आब तं बुझू जे हमरा प्रलय भ' गेल। सुमनजी सब दिन एकटा दल ल ठक' चलैत रहलाह - असल राजनीतिज्ञ ... हमरा पर आक्रमण भ' गेल। ओहि समयक मैथिलीक जे पत्र-पत्रिका, पर्चा-पम्पलेट रहइक - संबमे हुनक दलक लोक लेख पत्र छपब' लागल 

- सुमनजीमे आधुनिकता छैन्हि - सुमनजी प्रगतिवादी छथि। सुमनजीमे नवीनता छैन्हि

- हम तं प्रश्न कएने रहिऐक विद्यार्थीक प्रतिभाक जाँच करबाक हेतु- आ भ' गेल शुरु गोलैसी ?

-"अपने की अनुभव करै छिऐक सुमनजीमे आधुनिकता छैन्हि ?"

-"देखू ... सुमनजीक प्रतिभा, पाण्डित्य, चमत्कार आ शास्रीय ज्ञानक हम प्रशंसक छी। मुदा ई कोना गछू जे सुमनजीमे आधुनिकता छैन्हि। कालिदास ... भवभूति परम्पराक कवि छथि ... सनातनी ... कोना गछू जे नागाबाबा (यात्री) जकाँ आधुनिक छथि, राजकमल चौधरी जकां युगक यथार्थ छन्हि ... भुवनजी जकाँ नवीनताक स्वर छैन्हि।"

-"आ ईशनाथबाबूमे आधुनिकता रहनि ?"

-"नहि, देखू .... हम ईशनाथ बाबूक प्रसंग सेहो स्पष्ट दृष्टिकोण रखैत छी... कोनो चोरा-छिपा क' नहि - साफ। हम ईशनाथ बाबूसं बड़े प्रभावित। हुनक सौम्य मुखमण्डल ... आभिजात्य जीवन .... सर्वापरि सुमधुर स्वर-संगीतसँ हम प्रभावित आ अनुप्राणित। .. हम क्लासमे ईशनाथ बाबूक हलधर कविताक पाँती पढ़बैत कहलिऐक।"

-"जी,पहिने पाँती कहल जाए।..."

-"हँ, एखनो मोन अछि ... सुनू ...


सीतासँ प्रमुदित भए सीता
करतीह सकल मनकाम सफल
नृप-आसन पर बैसब हलघर

-"जी, पाँती पढ़बैत की कहलिऐक ?..."

-"कहलिऐक जै कवि ईशनाथ बाबू स्वयं जमीन्दर परिवारक छथि ... पैघ लोक छथि
...तें किसान मजदूरकें बोल-भरोस दैत छथिन जे अहाँ सब राजाक आसन पर बैसब
...ई एक तरहक ठकब भेलैक !...से जे बोल-भरोस नहि द' प्रसन्न करितथि तँ हुनक हरबाह खेत पर जाक' कोना काज करतनि - ई बोल-भरोस, ई पोल्हाएव, ई ठकब भेल - शीर्षक द ठदेलिऐक' ठहलधर तें आधुनिक भ' गेल - से नहि ने ! बादमे ईशनाथबाबू गामने भेटलाह, कहलनि - की कहाँ क्लासमे पढ़ा दैत छहक ? ओना कतहु उल्टा व्याख्या भेलैए ... हम विनम्रतापूर्वक कहलियनि - विवेचन आ विस्लेषणक क्रममे आलोचना तँ होइतहिं छैक !"

-"मैथिलीमे नवीनता के अनलन्हि ?"

-"मैथिलीमे नवीनता अनलन्हि चन्दा झा, भुवनजे, नागाबाबा (यात्रीजी) आ राजकमल।"

-"मैथिलीमे राजकमल चौधरीक जे दुर्दशा कएल गेलन्हि, ताहि प्रसंग अपनेक प्रतिक्रिया ?"

-"ई मैथिलीक दुर्भाग्य थिक जे तथाकथित मैथिलीसेवीक एक दल द्वारा जन्मजात विद्रोही, यथार्थवादी, जीवन्त आ मैथिलीक माटि-पानिक कवि-कथाकार राजकमलक अपमान कएल गेल। असलमे राजकमल रहथि यथार्थवादी - हम माने हम - ककरहु पछलग्गू नहि ... विश्वस्तरक साहित्यसँ परिचय रहनि, मैथिलीकें नव क्षितिज देबाक स्पृहा रहनि ..... बन्द खिड़की-दरबाजाकें खोलि मैथिलीकें नव संसारमे ल' जएबाक उत्साह रहनि। एकटा बात आर ...

-"जी ...

-"देखू ... फुड आ सेक्स ... भोजन आ यौन-आकर्षण शाश्वत - जीवधारी प्राणीक मूलभूत आवश्यकता ... राजकमल पोगापंथी नहि छलाह ... चोरा-छिपाक' कोना काज नहि करैत छलाह। भूख ... आदम भूख ... सेक्सक ऊर्जा ... सृजन आदिकें नव आजाम देलनि। से पोंगापंथी सब बिगड़ि गेलनि - कहलहुँ ने ... मैथिलीमे छइक कौआक दल ... हाँजक हाँज .. काँव-काँव ...."

ग्रमरत्न सरिसवक प्रसिद्ध बंगटबाबूक ज्येष्ठ संतान मुनिधर आनन्दमिश्र १९४७ मे गामसँ चलि क' उच्च कक्षामे अध्ययनक हेतु पटना आएल रहथि। .. मैथिलिक विभागाध्यक्ष, रिसर्च प्रोफेसर ... शोध-अनुसंधान ... आश्चर्य होइत अछि जे मैथिलीमे अद्यावधि हुनक मौलिक पुस्तक प्रकाशित नहि भेल।

-"तकर की कारण ?"

आनन्द बाबू प्रशन सूनिक ठआत्ममंथनमे लीन भ' गोलाह ... स्वप्नावस्थित जकाँ।

-"जी, कहल जाए किएक नहि अपनेक मौलिक पुस्तक बहरायल ?"

-"एहन बात नहि छैक जे पुस्तक नहि अछि ... दू गोट व्याकरणक पुस्तक अछि प्रकाशित। अनेक स्तरीय ग्रन्थक सम्पादनकार्यमे सहयोग कएल। अनेक पुस्तकक भूमिका लिखल। शोध-निबन्ध तँ कतेक लीखल। कतेक छपल। मैथिली अकादमीमे शोध-निबन्धक एकटा संकलन प्रकाशनार्थ देने रहिऐक। छपैत-छपैत नहि छपल ... कहैत गेलाह - पाइ सठि गेल। असलमे, हम बहुमुखी कार्यमे लागल रहलिऐक। संगीत, कला, साहित्य आ प्रशासकीय दायित्व - छात्रक समूह - तेना भ ठक' अवकाशे नहि भेटल - अपना बारेमे अपन लेखनक सम्बन्धमे सोचिते रहि गेलिऐक ... अपन सरिआओल नहि भेल ..."

-"अभियान' पत्रिकाक प्रसंग ..."

-"देखू, ओ सम्मिलित प्रयास छल। अभियान पत्रिकाक सम्पादन हम कएने रही। तहिया प्रभास कुमार चौधरी एम. ए. क विद्यार्थी रहथि ... संयोजन केने रहथि। स्व. गौरीनन्दन सिंहक सत्प्रयाससँ छपल रहइक।"

-"जी, प्रभास कुमार चौधरीक निधन....."

-"आनन्द बाबूक मुखमण्डल दु:ख आ शोकसँ कातर भ' उठलनि - प्रभासजीक देहान्त हमर व्यक्तिगत क्षति थिक। दु:खद आ असामयिक। छल-छद्म नहि रहनि। कोनहु प्रकारक छौ-पाँच नहि। 
असहमत होइतथि तँ सोझाँमे कहबाक साहस ! भावुक से अतिशय, मैथिलीप्रेम से उत्कट !"

-"अपने मैथिलिक कोन-कोन संस्थासँ जुड़ल रहलिऐक ?"

-"मैथिलिक अनेक संस्थासँ हमरा सम्बन्ध रहए। गाममे विद्यापति गोष्ठीसँ जुड़लहुँ। अखिल भारतीय मैथिली साहित्य परिषदक हम कर्मठ सदस्य रहलहुँ। चेतना समितिक उपाध्यश्क्ष रहलहुँ ... आजीवन सदस्य छी। सहयोग-सम्पर्क रहल। पटना कओलेजक मैथिली साहित्य परिषदक संस्थापक अध्यक्ष ... प्रबुद्ध समाजक क्रिया-कलापमे उत्सुकतापूर्ण सहभागिता रहल। तहिया लोक प्याज नहि खाइत रहय। मुदा प्रबुद्ध समाजक एक जन अति उपवादी सदस्य डा. लक्ष्मण झाकें प्याज खएबाक अतिशय झोंक रहनि तहिया - अबितहिं बाजथि - शचीनाथ ! हमर खाद्य-पदार्थ अछि की नहि ? नहि तँ हम रोड़ा बरसा देब। शचीनाथ कहथिन - हँ-हँ सब इन्तजाम अछि - गोल-गोल प्याजु सोहल-बेशी सँ बेशी आधा फाँक कएल - तकरा कड़कड़ाक ठडा. लक्ष्मण झा खाइत छलाह।......"

प्याजक गप्प चललइ तँ हमरा प्यास लागि गेल। कहलियनि - "एक गिलास पानि"

अधीत बाबू फ्रीजसँ एक बोतल सुशीतल जल आ एकटा गिलास टेबुल पर राखि देलनि। नहुँए-नहुँए आदरणीया श्रीमती सीतादेवी अएलीह आ रिकबीमे पिरुकिया पकवान सामनेमे राखि बजलीह - "छुच्छे पानि कत्तहु लोक पीलक -ए!"

हम आनन्द बाबू दिस अभिमुख होइत बजलहुँ - "अपनेकें भोजनमे की नीक लगै-ए ?"

आनन्द बाबूक मोन मुग्ध भ' उठलनि- "एहन कोनो वस्तु नहि छैक जे हमरा नीक नहि लगै-ए !"

श्रीमती सीतादेवी हड़बड़ा उठलीह- "से जुनि कहू, कदीमा नीक नहि लगैत छनि।"

आनन्द बाबू विहुँसैत कहलनि-"दत्तोरी के .... आब कदीमा के खाए ? ...हँ, तखन नीक लगै-ए कदीमा फूलक तरुआ, कदीमा पातक तरुआ ...ओना अगहनमे नवका चाउरक आँटाक घिवही सोहारी आ हींग-तेजपातसँ भूजल कदीमा नीक लगै-।..."

-"असलमे की नीक लगै-ए... ?"

आनन्द बाबू कहलनि-"माछ ... सबतरहक माछ - बोआरी-भोंरा छोड़िक' ... आब छोटका-छोटका माछ अधिक नीक लगै-ए। ओना, जलचिड़ै ... लालसर दिघौंच, पनिडुब्बीक स्वाद मोनकें तृप्त क' दैत अछि। परी परगना रहइक ... से ओत' सँ चिड़ै सब अबैक।"

हम पिरुकिआ शेष करैत बजलहुँ - "आ ओल आ अरिकोंच... ?"

आनन्द बाबू बजलाह - "एह ! जुनि पुछू ... सब सँ बढियाँ।"

-"आ गोरस ?"

-"गोरस माने दूध-दही ..."

श्रीमती सीतादेवी कहलनि- "दही बिना तँ ई रहि नहि सकैत छथि। ...आ दूध से गोटा दूध चाहियनि।"

हमरा दिस अभिमुख होइत आनन्द बाबू कहलनि- "बुझलहुँ कि ... एक जन मैथिल कवि कविता बनओलनि - हमरा तिलकोड़ाक तरुआ नीक लगै-ए। आब किछु गोटे हल्ला करताह - ई सामन्तवादी कविता भेल .......ई सामन्ती भेल। आब कहू तँ ई भोगल यथार्थ भेल कि नहि ... कुड़-कुड़ अरबा चाउरक पिठार देल तिलकोड़क तरुआ कविकें नीक लगैत छन्हि - ई हुनक भोगल स्वाद भेलनि, यथार्थ भेलनि ... कहू तँ मैथिल समाजक वर्णन बिना तरुआक सम्भव छैक ..."

ग्रमरत्न सरिसब, सोदरपुरिये सरिसव मूलक शण्डिल्य गोत्रक श्रोत्रिय पं. गंगाधर मिश्र प्रसिद्ध बंगट बाबूक ज्येष्ठ सन्तान मुनिधर आनन्द मिश्रक आत्मामे संगीत छनि-साक्षात् सरस्वतीक निवास- सुमधुर स्वर आलाप - केलिभवन नहि जाएब सजनी, हमर वयस अछि थोड़। लोकगीत, झूमर, कजरी, पराती आ सर्वोपरि कविकोकिल विद्यापतिक पदावली बारह-तेरह बरखक अवस्थासँ गबैत-गबैत भावविभोर होइत रहलाह अछि 

-"अपनेकें मांगन खवास सँ खूब परिचय रहय ... ?"

-"हँ .... हमरा मांगन खवाससँ खूब परिचय रहय ... सरिसवमे रथयात्राक आयोजनमे मांगन आबथि .. बटुक झा आबथि। हम जखन राजस्कूलमे पढ़ैत रही तँ दरभंगा राजक दिलखुशबागमे रहैत रही। ओतहि दरभंगामे बेतियाक गनी खाँ आ पचगछियाक मांगन खवासक स्वर-संगीत सुनलहुँ आ मुग्ध होइत रहलहुँ। हम रही मात्र बारह-तेरह बरखक ... प्रात:काल पोखरिमे स्नानक हेतु जाइत छलहुँ, पोखरिक मोहार पर गनी खाँ आ मांगन खवासक वासा छलनि ... प्रात:काल ओ सब रियाज करैत छलाह ... हम कन्हा पर धोती रखने चुपचाप बैसल बेतियाक गनीखाँ आ पचगथियाक मांगन खवासक स्वर-आलाप सुनैत छलहुँ। ... झुमैत छलहुँ .... सिखैत छलहुँ।......"


-"मंगन खवास कोन तरहक गीत गबैत छलाह ?"

-"शास्रीय-उपशास्रीय ....... शास्रीयमे ख्याल, ठुमरी आ विद्यापतिक गीत ... स्वर मधुर ... बंगलागढ़क रायसाहेवक मन्दिर पर झूलनमे गबैत छलाह।...

तहिया दरभंगाक प्रधान घाट मन्दिरमे वाग्मतीक तट पर काठक बालकोनी जकाँ बनल रहइक आ ताहि पर पनिचोभक रामचन्द्र झा झूलन आदि मे झूमि-झूमि गबैत छलाह-राति-राति भरि।..."

-"आ दरबारी दास ?"

-"दरबारी दास अद्वितीय प्रतिभासम्पन्न कलाकार ... संस्कृतक पंडित लोकनिक आश्रयमे रहि संस्कृतक शुद्ध-शुद्ध उच्चारण सीखि लेने छलाह ... विशेष रुपसँ गीतगोविन्द ... एक-एक पदक अर्थ बूझल 
आ ताहि पर ओ भावनृत्य करैत छलाह-जातिक दुसाध। सम्भ्रान्त समाजमे हुनक बड़े मान-सम्मान रहनि। ताहिना नेपाल दास ... आ तहिना उमाकान्त आ नन्दकुमारक नाटक।..."

-"उमाकान्त कोन तरहक नाटक करैत छलाह ?"

-"विशेष रुपसँ पारसी नाटक - जेना असीरे हिस्त्र, लैलामजनू, देश-विजय, भयंकर भूत, श्रीमती मंजरी, भक्त सूरदास। बादमे राधे#्याम कथावाचकक नाटकक धूम मचल ... वीर अभिमन्यु, ईस्वरभक्ति। राजदरभंगामे एकटा गायिका छलीह ... अरुहुल फूल-सन !"

-"की नाम रहनि ?"

-"नाम रहनि बेनजीर - से बास्तवमे बेनजीर छलीह। अवस्था अधिक भ' गेल छलनि मुदा लावण्य ओहिना - रुपगर्विता ! इन्द्रपूजामे सबसँ आगांक पंक्तिमे बैसैत छलीह। मात्र महाराज राजाबहादुरक आगमन पर मुगलशैलीमे उठि क' ठढि होइत छलीह। बैनजीरक उठब-बैसबमे एक प्रकारक लोच... एक प्रकारक रिद्मक हम अनुभव करैत छलहुँ। दरभंगामे एक-सँ-एक कलाकार गायक-गायिकाकत आगमन होइत छल।"

-"हम जैना ..."

-"जेना - सिध्देश्वरीदेवी, रसूलन बाइ (बनारस), श्यामा कुमारी, तारादेवी, पन्ना बाइ।"

-"संगीतक क्षेत्रमे अपनेक गुरु के ?"

आनन्दबाबू निर्द्वेन्द्व भावें कहलनि - "गुरु क्यो नहि ..."

हमरा आश्चर्य भेल। हम कहलियनि - "बिना गुरुए !"
आनन्दबाबू जोरसँ ठहाका लगबैत कहलनि - हँ, बिना गुरुए... गुरु क्यो नहि" -हँसीक वेग समपर अयलनि तँ कहलनि - "ईश्वरप्रदत्त स्वर रहय ... गायक लोकनिसँ सत्संगति भ' गेल ... पद्मश्री रामचतुर मल्लिक हमर पिताक संगी ... प्रोत्साहित करथि ... गबैत-गबैत हम गाबे लगलहुँ ... के पतिया लए जायत रे मोर प्रियतम पास ..."

-"संगीतक क्षेत्रमे अपनेकें मंच पर गएबाक अवसर कहिया भेटल ?"

-"बेशी काल भेटए .. अधिक काल भेटए।"

-"जी, संगीतक क्षेत्रमे ठब्रेक' कहिया भेटल ?"

-"ठब्रेक' शब्द पर हँस' लगलाह - "हँ, एखन फिल्म-संगीतक क्षेत्रमे एकर खूब चर्चा छैक। हमरा जे ठब्रेक' भेटल से १९४५ मे सी. एम. कांलेज मे संगीत-प्रतियोगिता रहइक। कलक्टर सिंह ठकेसरी' मुख्य निर्णायक रहथि ... हमरा प्रथम पुरस्कार भेटल - हे, थम्हू .. हम देखबैत छी ..."

आनन्द बाबू गायकीक मुद्रा मे बैसल छलाह से उठिक 'ठाढ़ भ' गेलाह, फेर पुरान आलमीरासँ एक अतिपुरान पुस्तक बहार क 'हमर तरहत्थी पर राखि देलनि -" हे देखू ... विद्यापतिक पदावली - बैनीपुरी सम्पादित - पुस्तक भंडारसँ प्रकाशित ... यैह हमरा पुरस्कारमे भेटल रहय।"

-"एच. एम. भी. हिज मास्टर्स भ्वाइससँ अपनेक गीतक रेकर्ड सेहो बहरायल छल ?"

-"हँ, ई गप्प थिक १९४८ अप्रीलक। १९४८ मे हमर गाओल दू, गोट गीतक प्रसारण दिल्ली सँ भेल छल। पहिल रहय - गौरा तोर अंगना ... आ दोसर रहय - योगी एक ठाढ़ अंगनमामे। एही बीच पटनामे हमरा आ विन्ध्यवासिनी देवीसँ एच. एम. भी. क एजेन्ट सम्पर्क कएलनि। स्वर-परीक्षाक बाद हमरालोकनि लखनु गेल रही - विन्ध्यवासिनी देवी ३० रु. प्रति गीत बेची देने रहथिन ... हम मुदा कहलियनि - गीत किएक बेचब ? रायल्टी लेब .. रायल्टी।"

श्रीमती सीता देवी भाव-विह्मवल होइत कहलनि -"हमरा लोकनिकें म्युजिकसँ अतिशय आमदनी होइत रहल अछि। एखनहुँ २२०० रु. प्राप्त भेल अछि-नगद। कतेक लोक अबै-ए-बजबै-ए ... आब ई कत' जेता ?"

आनन्द बाबू उत्फुल्ल होइत कहलनि - "लखनउमे एकटा रोचक घटना घटि गेल" ... आनन्द बाबूक आँखिक कोरमे माधुर्य छलकि उठलनि - "घटना कहि दैत छी ... मुदा आंफ द रेकर्ड ... लिखबैक नहि।"

-"जी, कहल जाए।"

-"एकटा गीत रहइक ड्वैट - पति-पत्नीक रुपमे ड्वैट - भोर भेलै हे पिया भिनसरवा भेलै हे। भोर भ' गेल छइ - पत्नी पतिकें उठा रहल छैक -स उठू। जागू। आ काज पर जाठ ... मिथिलामे ई गीत बड़े प्रचलित - भोऽर भेलै हे पियाऽऽ भिनसरबा भेलै हे। विन्ध्यवासिनी देवीक संग हुनक पति सेहो गेल रहथिन। जखन रिहर्सल शुरु भेलैक तँ हुनक पति कुपित भ' गेलाह। एकान्तमे ल' जाक' विन्ध्यवासिनी देवीकें भोजपुरीमे कहलथिन - मिसिरजी के मेहरारु बनके कैसे गायब .....विन्ध्यवासिनी देवी अपन भरिसक बुझएबाक प्रयास कएलनि। मुदा नहितँ नहि। आब की कएल जाए ? एच. एम. भी. बलासब परेशान। तखन लखनउमे भोजपुरी गायिका विमला माथुरक चयन भेल ... हम आ विमला माथुर गौने रही ... एच. एम. भी. रेकर्ड बनल रहैक।"

-"जी, कोन-कोन गीतक ?"

-"पहिल रहइक वैह ड्वैट गीत-भोर भेलै हे पिया भिनसरवा भेलै हे .... दोसर रहइक झूमर ... मुजफ्फरपुरक कातक गाम सबमे लोकप्रिय गीत रहैक ...

एक ओर विके रामा दही चूड़ा चीनियाँ
एक ओर विके रामा सोने के सिकरिया
तेसर गीत रहइक ...
केलि भवन नहि जाएब सजनी, हमर वयस अछि थोड़ आ चारिम गीत रहिक ...

हे हरि, हे हरि सुनिअ श्रवण भरि
अब न विलासक बेरा !

-"संगीतक क्षेत्र मे अपनेक विशिष्ट उपलब्धि की ?"

-"संगीतक क्षेत्रमे हम अपन उपलब्धि मानैत छी सैद्धान्तिक पक्षक ज्ञान। गवैया लोकनि अपन उस्तादसँ जे सिखने रहैत छथि तकरे शास्र छथि ... ब्रह्मवाक्य। उस्तादजी ने कहा है - तैं संगीतक शास्रीय ज्ञानक आवश्यकता छैक। हम एकर व्यापक अध्ययन कएल। संगीतशास्र पर हमर अनेक शोध-निबंध प्रकाशित भेल ... लोकप्रियता से प्रचुर हमरा प्राप्त भेल। सामाजमे विशिष्टताक बोध से होइत रहल। आ सार्बकालिक प्रसन्नताक हेतु गीत-संगीत हमर मन-प्रणमे रससंचार करैत रहल।"

पटनाक जन-अरण्य आ कोलाहलसँ दूर कंकड़बागक चित्रगुप्त नगरक श्रीनारायण झाक दु मंजिला मकानक एकटा फ्लैट मे मैथिलि भाखा आ संगीतशाश्त्रक लब्धप्रतिष्ठ विद्वान आनन्द बाबू अवकाशप्राप्त जीवन व्यतीत कए रहल छथि-वड़ सुख सार पाओल तुअतीरे - दुरु व्यक्ती-मखानक खीर, पिरुकिया, इलाहाबादक मसालेदार सिंघारा ... छोटका माछ ... तिलकोरक तरुआ ... आ तकर बाद ओंकारनाथ ठाकुर, फैयाज खाँ, मुस्ताफ हुसैन खाँ, निसार हुसैन खाँ, विनायक राव पटवर्द्धन, नारायण राव व्यास आ केसरबाइ-मन्द-मधुर आबाजमे शास्रीय संगीतक कैसेट अथवा एकान्तमे आत्ममुग्ध भेल गबैत रहैत छथि ... अवकाशप्राप्त जीवनक एक-एक क्षणकें सम्पूर्णतामे जीवाक अदम्य लालसा ... जिजीविषा .. हम मुग्ध भ' उठैत छी। आलमीरामे किताब ... फाइल ... पत्र-पत्रिका ... बीचमे पलंग ... पलंग पर आनन्दबाबू ... कातमे पलथा मारने क्श्री अधीत कुमार मिश्र आ बगल मे कुर्सी पर श्रीमती सीतादेवी ...

-"अपनेक विचारधारा की अछि .... आइडियोलांजी ..."
आनन्दबाबू गम्भीर होइत कहलनि -"विचार धाराक माने ?"

- "माने अस्तिक कि नास्तिक ? अपनेक दृष्टि ? अपनेक विचार-चिंतन ?"
-"गांधीवादी ... सर्वधर्मसमन्वयवादी" ....... आनन्द बाबू निर्द्धन्द्व भावें कहलनि 
-"आस्तिक छी आस्तिक ..."

-"पूर्णत: आस्तिक ?"

-"नहि, पूर्णत: आस्तिक नहि .... कोनो निषेध नहि। सर्वधर्मसमन्वयमे विश्वास करैत छी ... #्पन जनउ आ गायत्री बाँचल रहय .. एतबै .... स्वदेशी-बिलैंती मे हम बिलैंती रही - सभ जाति-धर्मक संग उठैत-बैसैत छी .... खाइपिबै छी ... जातिधर्मक गलत उपयोगक विरोधी छी - हँ, एकटा बात आर ..."

-"जी ..."

-"हम मनुवादी आ ब्राह्मणबादी नहि छी... ब्राह्मणग्रन्थक कोनो ज्ञान नहि सैह मनुवादी-ब्राह्मणवादीक हल्ला करैत रहैए !"

-"आत्मकथा लिखबाक योजना अछि की ?"

-"नहि, आत्मकथा की लीखब ... आब ओ सब की लीखब ? ... आत्मकथा लिखबाक कोनो योजना नहि अछि !

- मैथिली भाखाक विकासक हेतु अपनेक सुझाव ...

-"हँ, एखन मैथिलीभाखा पर अनेक संकट अछि। पढ़ल-लिखल लोकमे अपन भाखक प्रति गौरबबोध नहि छनि ... तथाकथित प्रबुद्ध वर्गमे अपन भाखाक विकासक भावना नहि छनि ... आम जनतामे .. सर्वसाधारम मे मैथिलिक प्रवेश नहि भ' रहल अछि ... एकटा आर संकट छैक ..."

-"जी, से कोन ?"

-"आन भाखाक इन्क्रौचमेन्टक संकट ! आब देखू ... जे हमर शब्द अछि तकर उपयोग करबामे कोन लाज ? भात कें चावल कहबाक की अर्थ ? हँ, अपना भाखामे अनकर शब्दकें पचा ली तँ नीक ... जेना टीसन, टीकस ... मुदा से भ' नहि रहल अछि - अपन साविकक भाखा लुप्त भ' रहल अछि ..."

अवसर पाबि श्रीमती सीतादेवी कहलनि - "हमर एकटा पड़ोसी मैथिल प्रोफेसर साहेबक बेटी आ जमाय हमरा ओतय आयल रहथि ... हमरा ओतए धोबिया आयल छल - हम कपड़ा लिखबैत रहिऐक - धोती-एक, कुर्ता-एक, उलौंच-दू। एतबेमे प्रोफेसर साहेबक बेटी कहलनि-उलौंच किएक कहै छिऐ... चादर कहियौक ...चादर ... बादमे ओ सबठाँ गप्प पसारलनि जे हमरा ओते खालीं लोक देहाती भाखा बजैत अछि ..... आब कहू, साविकक मैथिली देहाती भाखा भलैक ?"

आनन्द बाबू अभिमुख होइत कहलनि - "ठीके कहलनि-यैह भ' रहल छैक। पनपिआइ आब ठजलपान' आ ठनाश्ता' कहबैत अछि। एहि पर ध्यान देब आवश्यक। शुद्ध मैथिली .. घऽर-आंगनक मैथिली ... खेत-खरिहानक मैथिलिकें बँचाक' राखब आवश्यक। .... एकटा बात आर छइक।"

-"जी से की ?"

-"मैथिली भाखाक संघर्षमे इमानदार राजनीतिक नेतृत्वक अभाव रहलैक। जन-प्रतिनिधिलोकनि इमानदार नहि .. ई सब खतराक घंटी थिक। समय रहैत हमरालोकनिकँ सचेत भ' जएबाक चाही। एहिमे नेतृत्व चेतना समिति क' सकैत अछि .. चेतना समिति जागरण क' रहल अछि ..."

-"चेतना समितिक की उपलब्धि ?"

आनन्द बाबू उत्साहित होइत कहलनि - "पाहिल उपलब्धि तँ ई जे पटनामे चेतना समितिक अपन दू गोट भव्य परिसर स्थापित आ व्यवस्थित भ' गेल छैक। दोसर, विद्यापतिभवनक अपन अलग सौरभ। चारि सए सँ ऊपर आजीवन सदस्य छैक। मुदा सबसँ महत्वपूर्ण उपलब्धि रहलैक मैथिली आलोचना आ नाटक-रंगमंचक विकासक दिशामे।"

-"से कोना ?"

-"देखू, मैथिलीमे स्तरीय आलोचनाक एखनहुँ अभाव छइक। चेतना समिति प्रति बर्ष विचारगोष्ठीक आयोजन करैत अछि। समग्र लेख-निबन्धक संकलन कए तकर प्रकाशन करैत अछि। एहिसँ मैथिलीक आलोचना विधा निश्चित रुपें बलित भेल अछि। चेतना समितिक हेतु नव नाटक लिखाओल जाइत अछि ... तकर मंचन होइत अछि । चेतना समितिक हेतु नव नाटक लिखाओल जाइत अछि ... तकर मंचन होइत अछि ... तकर प्रकाशन होइत अछि। चेतना समिति मैथिलीकें राजनीतिक शक्ति-संरचनासँ जोड़ि क' रखने अछि। एम्हर एकटा आर महत्त्वपूर्ण काज चेतना समिति क' रहल अछि ...

-"से की ?"

-"व्यवस्थित मैथिली पुस्तकालयक सुसंगठन ... डा. रमानन्द झा ठरमण' एखन आंफिसक बाद राति नओ बजे धरि एहि काजमे लागल रहैत छथि। हमहूँ अस्सी गोट दुलर्भ थेसिस एहि पुस्तकालयकें देलिऐक अछि। ..."

बांलकोनीकें टपि एक जन मैथिल कोठलीमे प्रत्यागत होइत छथि। आनन्द बाबू आह्मलाद्पूर्वक बैसबैत छथिन - "आउ ! आउ ! ! बटुक भाइ !"

आकाशावाणीक बटुक भाइ अ मैथिलिक व्यंग्यलेखक श्री छत्रानन्द ... काँट-कूस आ डोकहरक आँखिक लेखक ... हमरो संग प्रणाम-पाती होइत छनि...कुशल-समाचार !

हम पुन: सकांक्ष होइत पुछैत छियनि- "अपनेकँ कोन-कोन सम्मान प्राप्त भेल ?"

आनन्द बाबू किछु पल विलमि मोन पाड़लनि, तखन गम्भीर होइत कहलनि - "बंगला परिषद्क आजीवन सदस्यता, बजमे-अदवक आजीवन सदस्यताक मानद सम्मान ... चेतना समिति पटना, विद्यापति सेवा संस्थान दरभंगा, मैथिली सांस्कृतिक संगम प्रयाग आदि विभिन्न संस्था सभसँ समय-समय पर सम्मान, प्रशस्ति, अबिनन्दन, दोशाला आदि भेटैत रहल।"

श्रीमती सीतादेवी कहलनि-"पाँच छओटा दोशाला छै घऽमे .... सम्मानमे भेटलनि ... सबसँ छोट दरभंगामे भेटलनि .. कहू तँ हिनका-सन जवानकें ई छोटछनि दोशालासँ की हेतनि ?"

ठजवान' शब्द पर हमरालोकनि मुग्ध भ' उठलहुँ। छिहत्तरि बरखक जवान ... हंसीक लहरि उठैत-उठैत रुकि गेल ... मन्द -मधुर-स्मित हास्य .. हम मोने-मोने प्रार्थना कएल - जीवेम् शरद: शतम् !!

हम साकांक्ष होइत पुछलियनि - "साहित्य अकादमीक प्रतिनिधि ... परामर्शदातृ समितिक सदस्यता आदि ?"
आनन्द बाबू दीर्ध निस्वास लैत कहलनि- "नहि .... जखन रमानाथेबाबू नहि रखलनि तँ आन के राखत ? आब किएक राखत ? साधारणत: प्रतिनिधिलोकनि ओहिमे अपनासँ न्यून लोककें परामर्शदातृ समितिमे रखैत छथि .... क्यो टोकए नहि .... केओ रोकए नहि, केओ अशुद्ध नहि कहए ... मुदा तकर सभक कोन लेखा ? ने तकर लिलसा ने स्पृहा ... हम अपनहिमे, अपन संगीतमे डूबल रहै छी - अपन ठुमरी, अपन ख्याल - राग भैरव, झूमर-बटगमनी आ प्रभातीमे डूबल रहै छी - तें कहलहुँ, एहि सभक कोन 
लेखा ?"

-"अपनेक कोनो एहन इच्छा अछि जकर पूर्ति नहि भेल ?"

-"हँ, मकान नहि भेल । मकान भेल रहितय तँ पटनामे किएक रहितहुँ ?.... पटनामे मकान रहितय तँ किरायाक मकानमे किएक रहितहुँ ? से, पहिने क' नहि सकलहुँ आ आब हैब असम्भव।

-"की आब ताहि ले' छटपटाहटि अछि ... मोन बेकल ..."

-"नहि, छटपटाहटि नहि कोनो" .... आदरणीया श्रीमती सीते देवी कहलनि - "मोन नहि बेकल।"

-"नहि भेल तँ नहि भेल" - आनन्द बाबूक भाव आकृति निरासक्त जकाँ भ' उठलनि -"हम शान्तिसँ रहए चाहै छी। आनन्दसँ रहए चाहै छी। आसक्ति नहि कोनो ... तितीक्षा नहि कोनो ... बेटा पर छोड़ि देलियनि ... सामर्थ्य हेतनि, अवगति हेतनि तँ बना लेताह।"

कातमे पलंग पर पलथा मारने अधीत बाबूक आकृति निमिष मात्रक हेतु अप्रतिभ भ' उठलनि ... किछु बाज' चाहलाह ... मुदा किछु बजला नहि ......

तकर बाद ड्यौढ़ी दरबारक गप्प चलल ... इस्टर्न-वेस्टर्न फिलासफीमे डूबल एकटा नामी बाबू साहेबक चमत्कारक कथा कहलनि - ओहि ड्यौढ़ीक उपेन्द्र मास्टरक चर्चा चलल - बीतैत चल जाइत दिन, बितैत चल जाइत मास ... बितैत चल जाइत बर्ख। अचायी मिश्रक सन्तान आनन्द बाबू १९४७ मे पटना उच्च शिक्षाक हेतु आयल रहथि ... तकर कतेक वर्ष भेल !

आनन्द बाबू कहलनि - "आब हमरा कोन ? आब हमरा की ? आब हम शान्ति सँ जीव' चाहै' छी - आनन्द सँ जीव ठ चाहै' छी।"

से, तकर बाद कंकड़बागक चित्रगुप्त नगरक ओहि, दुमंजिला मकानक किरायाक फ्लैटमे अधीत बाबूक हाथक पान आ कतरा सुपारी खेने रही आ विदा भ' गेल रही। ....... गली ... दर... गली - महामाया भगवतीक मन्दिर ... उभड़-खाभड़ सड़क ... टिपिर-टिपिर पानि पड़ि रहल छैक।

हमरो भेल, सुनसान एकान्त भेटितए तँ हमहूँ झूमर उठा लितहुँ आ लोकगीतक राग-तालमे गबितहुँ-

एक ओर विके रामा दही चूड़ा चीनियाँ
एक ओर विके रामा सोनेके सिकरिया।

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© आशुतोष कुमार, राहुल रंजन  

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