Yugantar

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डॉ. श्रीमती अणिमा सिंह

से, ओहि दिन प्रातःकाल कलकत्ताक लेक गार्डेन्सक एकटा गलीक मोड़ पर हम ठाढ़ रही - हमरा प्रोफेसर अणिमा सिंहक ओतए जएबाक रहए आ डेरा नहि भेटैत रहए। अन्तत एक जन बृद्ध बंगाली भद्रलोक कहलनि- "" बुबु के यहाँ ? अजय के यहाँ ? - बुबु कहो, अजय कहो मिल जाएगा"" - से ठीके भेटि गेल । बुबु अरथात् श्री उदय नारायण सिंह नचिकेता - अजय अर्थात् अजय कुमार सिंह- दुनू आदरणीया अणिमा सिंहक सुपुत्र - ठीके, बुबुक नाममे जादू देखलिऐक - डेरा भेटि गेल... ए-132, लेक गार्डेन्स, कलकत्ता- 45

सीढ़ी पर चढि दुमंजिला पर पहुँचलहुँ तँ एक जन महिला हमरा सबकें स्वागत कएलनि- हम नहि चिन्हैत रहिएनि -भेंट नहि, कहलिएनि- अपने भेलिऐक ... ओ किंचित आह्लादक संग कहलनि- नहि, हम हुनकर छोट बहिन स्मृति ... नहुँए-नहुँए श्रीमती अणिमा सिंह उपस्थित भेलीह तँ हम श्रद्धाक संग मिथिला जगतक एहि क्रांतिकारिणी महिलाक चरण-स्पर्श कए परितृप्तिक अनुभव कएल ... एकटा वेश पैघ आकारक कोठली ... कोठलीसँ लागल बॉलकोनी - अन्दाजेसँ बुझा पड़ल आदरणीय प्रोफेसर साहेब स्नान कए रहल छथि - परिचारिका, स्मृति.. अपने अणिमा सिंह- ठण्डा पानि- गरम पानि मिलाक' स्नान सौंसे कोठलीमे दवाइक एकटा पसरल चल अबैत सुगंधि। पक्षाघातसँ पीड़ित सहमौरा, पो.- शाहपुर बाजार, जिला- सहर्षाक निवासी- संस्कृत पालि, प्रकृत, अपभ्रंश, मैथिली, हिन्दी, बंगला, उर्दू, फारसी आ अंग्रेजीक सुविख्यात विद्वान - मिथिला आ मैथिलीक असिधारा व्रतमे सम्पूर्ण परिवारक अपंण... ज्ञात भेल प्रोफेसर डा. प्रबोध नारायण सिंह 21 जनवरी 1998 सँ पक्षाघातसँ पीड़ित छथि ।

हमरालोकनिक आगमनक सूचनासँ आह्लादित होइत बजलाह- हमरो... भेट... गप्प ...

बालकोनी आ कोठलीक दरबज्जाक बीचमे पैघ पर्दा- प्रोफेसर साहेबक आकुल स्वर मोनकें क्लान्त करइत रहए । बादमे प्रत्यक्ष अनुभव कएल ... परिवारक सिनेह, सहयोग आ परिचर्या साहेबक लुंज-पुंज अस्थिपंजर शरीरमे जिजीविषाक अनन्त सूर्यकें भास्वर कएने छनि ।

कलकत्ताक एकटा मैथिल परिवार ... 1956 सँ आस्ते-आस्ते बनैत लेक गार्डेन्सक एहि मकानमे मिथिला आ मैथिलीक एकटा समग्र संघर्षपूर्ण इतिहास जीवन्त अछि। कलकत्ताक असंख्य प्रवासी मैथिल ... मिथिला दर्शन ... मिथिलासंघ .... मिथिला राज्यक मांग ... साहित्य अकादमीमे मैथिलीक स्वीकृति ... शत-सहस्त्र कविता .. नाटक ... रंगमंच ... रिहर्सल ... सिंह प्रेस ... लोकगीत ... लोकदेवता ... भाषा-विज्ञान ...

आदरणीया अणिमा सिंह, अनुजा सुश्री स्मृति आ एक अन्य परिचारिका प्रोफेसर साहेबकें अंगवस्रसँ सुसज्जित क' रहल छलथिन्ह । कोठलीक दरबज्जा आ बालकोनीमे बड़का पर्दा लटकल ...

- ""हमरो ... के दरभंगा ... सँ .... गप्प ...""

प्रोफेसर साहेबक आत्मीयतापूर्ण स्वर-आलाप ... बालकोनीक पर्दा हँटलैक ... आस्ते-आस्ते पहियाबला कुर्सी पर बैसल मैथिलीक एकान्त साधक प्रोफेसर प्रबोधनारायण सिंह - स्मृति आ परिचारिकाक सहयोगसँ सुव्यवस्थित कएल गेलाह ... हम भाव-विह्वल होइत नमन कएलियनि - शून्य दिस तकैत अपन असहाय होइत शरीर दिस संकेत कएलनि आ किछु असम्बद्ध वाक्य-खण्ड ... खण्ड ... खण्डमे वाक्य- खण्डक उच्चारण ...

कोठलीक दरबज्जा लग पहियाबला कुर्सीपर प्रोफेसर साहेब, सामनेमे पलंग पर आदरणीया डा. अणिमा सिंह ... सामनेमे एक कुर्सी पर हम -

टेबुल ... दबाइ ... पाइप ... सिंरिज आदि ... परिचारिका आ छोट बहिन स्मृति।

हम अवसर पाबि साकांक्ष होइत कहलियनि - "" अपनेसँ हम मिथिला आ मैथिलीक प्रसंग ... अपनेक साधना ... साहित्य आ लोकगीतक प्रसंग गप्प करए चाहैत छी । ""

आँखिक कोर कनेक रक्ताभ भ ' उठलनि, आकुल होइत अणिमा सिंह कहलनि - ""से, हमरासँ किएक ? जनिक सबटा काज कएल छैन्हि तनिकासँ किएक नहिए ?"" - हम निर्द्वेन्द्व आ गम्भीर होइत कहलियनि - ""अपनेक सम्पूर्ण रक्त-अक्षरसँ मैथिलीक कलेजा परिपुष्ट भेल छइक ... अपनेसँ गप्प करब तँ अपनेक पात-पल्लो, फूल-फल-सभक प्रसंग गप्प करब ... नचिकेता जीक प्रसंग ..... प्रो. इलारानी सिंहक प्रसंग ... आदरणीय प्रबोध बाबूक प्रसंग - तें अपनेसँ गप्प करब ।""

हमर उत्तर सुनि अणिमाजी गह्वरित होइत कहलनि - ""1956 मे एहि मकानमे मात्र टीनक शेड लगाक हमसब आएल रहिऐक । ... सिंह प्रेसक स्थापना कएने रहिऐक .... पहिने कॉलेज स्ट्रीटमे- चोरबागान- नरेन्द्रसेन स्क्वायर-बादमे एहि मकानमे- सबटा टाइप .... कल-पुर्जा ल ' अनलिऐक, फेर मुस्कुराइत कहलनि .... एकटा बात बुझलिऐक ।.... ""

- ""जी, से की ?""

-अइ मकानक जे नक्शा बनलैक तँ नीचाँमे एकटा हॉल देलिऐक .... बड़का हॉल ..... मैथिलीक मिटिंग-सिटिंगमे काज अओतैक ... कतेक आन्दोलन, कतेक प्रकाशन ... कतेक लेखनक काज अइ मकानसँ भेलैक .....

- ""सिंह प्रेस .... आब प्रेसक व्यवस्था ?""

- ""नहि, आब बन्द क ' देल्ऐक .... टोटल लॉसक काज छलैक .... सबटा दरमाहा स्वाहा भ ' जाइत छल .... पति दिस संकेत करइत अणिमा जी कहलनि - ई तँ हंगामा सृष्टि क ' दैत छलाह - सबटा बोझ हमरा उठब पड़ैत छल । छपाइ सँ ल ' ' बन्हाइ तक - ट्रंकक ट्रंक किताब नीचाँक कोठलीमे लोहाक ट्रंक सबमे पड़ल छइक - अमूल्य मैथिलीक धरोहर .... की करबैक ? ..... ककरा देबैक ? राखू तँ कोना राखू ? कत ' राखू ?""

- "" अपनेक पिताक नाम ?""

- ""हमर पिताक नाम ..... पिताक नाम सुरेशचन्द्र ...... श्रीयुत सुरेशचन्द्र धर - हमर पिताक पुश्तैनी घऽर रहनि मैमनसिंह जिलामे - आब बंगलादेशमे छइक । मिलिट्री एकाउन्ट्समे कार्यरत रहथि ..... हमर पिताजी आदिशक्ति महामाया माँ कालीक उपासक ... दुर्गासप्तशतीक पाठमे अहर्निश तन्मय ... या देवी सरवभूतेषु मातृरुपेण संस्थिता! हम पाँच भाइ-पाँच बहिन - पैघ परिवारक.... मायकें अवसर नहि भेटनि .... ओ पूजा -पाठ नहि क पाबाथि - घऽर-गृहस्थीमे लागल ।""

- "" अपनेक शिक्षा ?""

- ""हमर पिता मिलट्री एकाउन्ट्समे कार्यरत, तें तुरत-तुरत स्थानान्तरण भ ' जाइन्ह - हमरालोकनि कतहु स्थायी रुपें रहि नहि पाबी तें विभिन्न शहर आ परिवेशमे हम सब शिक्षा ग्रहण कएल । तें कोनो संकीर्णता नहि रहि गेल । बच्चेसँ जाति ... धर्म .... भूगोलक सीमासँ दूर - बहुत-दूर तक जएबाक मनोबल भ ' गेलैक ।...... हमर जन्म भेल रहय बम्बइमे ।

- "" जी, अपनेक शिक्षा ?""

अणिमाजी प्रश्न सुनिक उछलि-उछलि हँसए लगलीह- ""ठीके मोन पाड़लहुँ, हमर शिक्षा ....... हमर शिक्षा मेरठ, फैजाबाद, देहरादून, आगरा, पटना आ कलकत्तामे भेल। .... मेरठ, फैजाबाद, देहरादून आ आगरामे मएट्रिक धरिक शिक्षा भेल । आइ.ए.क पढ़ाइ ..... सेंट जॉन्स कॉलेज, आगरा तथा मेरठ कालेज, मेरठमे भेल । बी.ए. क पढ़ाइ वीमेन्स कॉलेज, पटनामे भेल । एम.ए. क पढ़ाइ ...... हिन्दीमे हम एम.ए. कएल कलकत्ता विश्वविद्यालयसँ ..... डी.फिल, क उपाधि हमरा कलकत्ता विश्वविद्यालय सँ प्राप्त भेल ।""

- "" अपने मूलतः बंगलाभाषी . हिन्दीक दिस अभिरुचि ?""

- ""देखू ! एकर एकटा कारण भेलैक - हमर पिताजीक रोज-रोज बदली होइत रहनि .... मेरठमे दुर्गाबाड़ी रहैक .... एकटा विद्यालय ... बंगला भाषामे पढ़ाइ होइत रहैक मुदा अन्यत्र से सुविधा प्राप्त नहि भेल ... लखनउ-देहरादूनमे हिन्दी लेबए पड़ल .... हिन्दीक माध्यमे पढ़ए पड़ल- पहिने अतिशय मोन आकुल भ ' गेल । रिजल्ट से खराप होबए लागल । मुदा बादमे सबटा ठीक भ ' गेल । मनोयोगपूर्वक पढ़ए लगलिऐक .... रिजल्ट बढियाँ होइत गेल ।

प्रोफेसर साहेबक चेहरा पर कम्पनक आभास .. संकेतसँ कहलनि ... अणिमाजीक लोकगीत पर काज छनि ।

फेर स्फुट शब्द .... लोकगीत ... सोहर समुदाउन आदि .....

हम अभिमुख होइत कहलियनि..... "" लोकगीत तँ चर्चाक मुख्य विषय छइ "" ... सारस्वत साधनाक तेजसँ प्रदीप्त प्रोफेसर साहेबक गौेरवर्ण मुखमण्डल कम्पित भ ' उठलनि। पक्षाघातसँ पीड़ित हाथकें उठएबाक प्रयास कर ' लगलाह- निरवलम्ब ! निस्सहाय !!

तावत अणिमाजी पुरनका किताब आ फाइल सब ताक ' लगलीह । हमर साकांक्ष होइत पुछलियनि - बचपनक कोनो स्मृति ?

- ""स्मृति तँ बहुत अछि मुदा मोनक पौतीमे एकटा स्मृतिकें हम नुकाक ' रखने छी ....... से हम अहाँकें किएक कहू ?""

हम आकुल होइत बजलहुँ - "" से, हमरा अहाँ किएक नहि कहब ?""

एहि बात पर अणिमाजी बच्चा जकाँ हँस ' लगलीहस कहलनि- "" हम जखन बच्चामे पढ़ैत रही तँ मैथमेटिकल स्पोट्र्समे भाग लैत रही - पाँच साल हम जितलिऐक - एम्हर खेल शुरु होइक- हमर हिसाब पूरा-कम्प्यूटर जकाँ ! एक बेरि की भेलैक तँ सेंट जॉन्स कॉलेज, आगरामे फस्र्ट इयरमे पढ़ैत रही - मैथमेटिक्स सेहो रहय- परीक्षा भेलैक  - हम मैथमेटिक्सक परीक्षाक दिन एक धण्टा पूरा भेलैक आ कॉपी जमा क ' देलिऐक ! हमर एकटा प्रोफेसर साहेब रहथि- आथर अली । ओ जाइत देखलनि तँ कहलनि - इम्तहान हो चुकि - हुनका आश्चर्य भेलनि, मात्सर्य भेलनि....... कहलियनि - जी, सर ! हो चुकी ! भैल्यू जीरो भ ' सकै छै  ... किछु तेहने-सन एकटा दू नम्बरक सबाल गलत भ गेल तथापि हमरा मैथमैचिक्सक ओहि पत्रमे 98 भेटल - आगरामे तकर बाद हमर नामे पड़ि गेल नइनटी अइट । मुदा हमर जीवनक एकटा टर्किंनग प्वाइन्ट अछि ।""

- "" से की ?""

- ""हमर मायक देहान्त ।.... हमर सभक परिवारक लेल ई बड़का टर्किंनग प्वाइन्ट भेल । हम कलकत्ता चल अबैत रहलहुँ - एत ' युनिवर्सीटीमे हिन्दीमे एडमीशन भेल आ सम्पूर्ण जीवन-चक्र बदलि गेल ।""

मेमनसिंह जिलाक पुश्तैनी निवासी-मिलिट्री एकॉउन्ट्समे कार्यरत श्रीयुत सुरेशचन्द्र धरक सुपुत्री बंगाली परिवारक अणिमाक विवाह सहमौरा, पो. शाहपुर बजार, जिला सहर्षाक कुलिन राजपूत परिवारक प्रबोधनारायण सिंहक संग सुसम्पन्न भेलनि ।

- "" प्रबोध बाबूक संग परिचय कोना भेल ?""

- ""क्लासमे भेल - एम.ए.मे हम हिन्दी रखने रही आ हिनको विषय हिन्दी रहनि - ई संस्कृतमे एम.ए. कर ' चाहैत रहथि आ हमर प्रिय विषय मैथमैटिक्स- मुदा दुनू गोटेकें एडमीशन भेल हिन्दीमे ।

- "" विवाहक निर्णय ?""

- "" निर्णय की ? परिचय भेल । गप्प- सप्प भेल । हेम-क्षेम भेल । वियाह भेल। आत्मविश्वास आ सोझराएल दृष्टि रहलासँ सबटा ठीक होइत छैक । .... अपनेसँ अपन जीवनक रास्ता आरम्भ कएल ।""

- "" आ परिवारक सहमति ?""

- ""हँ, हमर परिवारक सहमति रहए ।""

- "" आ प्रबोध बाबूक परिवारक ?""

- ""हँ, सहमति रहनि- सबटा विचारिक ' निर्णय लेने रहथिन । हिनक पिता आ परिवारक लोक- विवाहमे सब आएल रहथिन- बाबूजी, पंडितजी-भाइ-सभक सहमति रहनि ।""

- "" विवाहक बाद भाखाक संकट ?""

- ""हँ, किछु दिन चलल- ई हमरा जोर करथि मैथिली बाजू, मैथिली सीखू-बंगला आ मैथिलीमे सामीप्य तें विशेष संकट नहि भेल । दोसर, हमरा ओठ्हाँ आरम्भे सँ मैथिलक अड्डा... पढ़ल - बिन पढ़ल - सभक ताँता लागल- बाबू साहेब चौधरी, देवनारायण झा, सुभद्र झा, लक्ष्मण झा, जयकान्त बाबू ...... एक बेरि की भेल से कहै छी ....""

- ""जी, कहल जाए ....""

- ""जयकान्त बाबू हमरा ओतए अएलाह- हम भानसमे किछु तरुआ-चक्का छनैत रही- तावत हमर बुबुसात-आठ बरखक भ ' गेल रहए- जयकान्त बाबू बुबुकें अपना ल ' ग बैसौने पाठ पढ़बैत - मिथिलाक संस्कृति सीखू । अपन रहन-सहन सीखू .... आदि आदि । बुबुकें नहि रहल गेलनि .... जयकान्त बाबूसँ कहलकनि- पहिने अपने मिथिलाक संस्कृतिक सम्बन्धमे हमर प्रश्नक जवाब दिअ- बुबु रहए बच्चा... टटका अख्यासल...... उपनिषद् .... वेद-वेदाङ्ग... कोनो कठिन सबाल पुछलकनि - जयकान्त बाबू पसेने तऽर-बतर - उत्तर नहि भेलनि ।

हम भनसाघरसँ सब खेल चेखैत रही- खएबाकाल तरुआ देलियनि- पुछलियनि- केहन भेल तरुआ- कहलनि तरुआ तँ ठीक मुदा कुर-कुर बेशी भ ' गेल। ""

मैथिलीक कालजयी साधक आ भाषावैज्ञानिक डा. सुभद्र झा लिखैत छथि- डा. अणिमा सिंह द्वारा संकलित मैथिली लोकगीतक मुद्रण भए गेल;  ई मैथिली साहित्यक लेल परम उत्सवक अवसर थिक .... कनेक अनुमान करु- कन्वेण्टमे पढ़ने, सम्पूर्ण जीवन शहरमे बितऔने, मूलतः मैथिलीभाषी नहि, मिथिलामे जन्म नहि, तखन एहि प्रकारक संग्रह करबामे हुनका कतेक प्रयास करए पड़ल होएतन्हि तथा कते कष्टक सहन करए पड़ल होएतन्हि ।

16 सितम्बर सन् 2000 । कलकत्ताक लेक गार्डेन्स नयनामिराम तीन मंजिला मकानक दोसर मंजिल पर एटा पैघ कोठलीमे कुर्सीपर हम बैसल छी- दरबज्जा ल ' ग पहियाबला कुर्सी पर प्रबोध बाबू आ पलंग पर डा. अणिमा सिंह ....

हम अभिमुख होइत पुछलियनि - "" मैथिली लोकगीतक प्रति अपनेकें अभि रुचि कोना जागल ?"" 

- ""अपन वियाहक समय जे मैथिलीक लोकगीत सुनलिऐक तँ आह्लाद भेल । हर्ष भेल । सुमधुर लागल- मोनमे हिलकोर उठबैत रहल- वियाहक गीत .... कन्यादानक गीत .... कोहवरक गीक .....

घर पछुअरवामे केवला के गछिया

केवला फूलौ अधराति हे

ओहि फूल लुबधल दुल्हा से फल्लाँ दुल्हा

नै बूझे रौद बसात हे

एहन-एहन गीत सूनिकए हमरा मोनमे एकटा संकल्प लागल ' - हमरा कोनो तेहन पोथी नहि भेटए- हमरो सिखबाक इच्छा होअए- हिनकर (प्रबोध बाबू) प्रेरणा आ प्रोत्साहन, सहयोग आ सामीप्य सहायक भेल । ..... मुदा एकटा जे सहयोग भेटल से हम बिसि नहि सकइ छी । ""

-""से की ?""

-""हमर परिवारक चिरकालिक हितैषी इन्कमटैक्स कमिश्नर श्री रेवती रमण झा आ हुनक पत्नी श्रीमती कमलाक्षी झाक जे हमरा सहयोग भेटल से बिसरल नहि जा सकैत अछि । ओतेक पैघ लोक .... ओहेन प्रभुत्व । ...... यश - मुदा घमण्डक लेश नहि ... सहज-अति साधारण जकाँ सभक संग घुलि-मिलि जाएब ........""

-""जी, कमलाक्षी झा .....""

-""हँ, कमलाक्षी झाक संग सौंसे कलकत्ताक मैथिल परिवारक महिलासँ सम्पर्क कए लोकगीतक हम संकलन कएने रही । .... तकर बाद हम आ प्रोफेसर साहेब मिथिलाक अनेक गामक भ्रमण कएलिऐक .... जुनि पुछू .. कत कत नहि गेलिऐ । एकटा महिला रहथि हमर ननदि झालो-सन- हुनका मुँहजबानी सैकड़ो लोकगीत याद रहनि । हम टेपक उपयोग सेहो कएलिऐक .....""

-""एहि क्रममे अपनेक केहन अनुभव ?""

-""अहा ! से अनुभव अविस्मरणीय मिथिलाक आतिथ्य-परम्परा ...... गीत बादमे... लीखब बादमे .... टेप करब बादमे... पहिने तरुआ-चक्का ...... मखानक खीर ...... गोटा दूधक दही .... फूलक तरुआ ...... आउरक तरुआ ..... तीसी देल सजमनि .... खेड़हीक सन्ना .... घृतसँ छ्ँउकल राहड़िक दालि ...... आमिल ...... तेतरि - मिथिलाक महिला लोकनिक प्रति हम एखनहु नत-विनत छी - एहन सहयोग, एहन स्वागत- एतेक विशाल हृदय कतए पाबी ?""

-""लोकगीत पर अनुसन्धानक हेतु अपनेकें प्रेरित के कएलनि ...... ?""

-""असलमे, हमरा कलकत्ता विश्वविद्यालयक भाषाविज्ञान-विभागक अध्यक्ष आदरणीय डा. सुकुमार सेन कहलनि जे अहाँ मैथिली लोकगीत पर काज करु । सुकुमार सेनक स्नेहपूर्ण आत्मीयतासँ हम प्रभावित होइत रहलहुँ । ..... हुनक ई मान्यता रहनि जे पूर्वाञ्चलक भाषासाहित्य लोकगीतक क्षेत्रमे समृद्धिशाली अछि .... मुदा मैथिली तँ एहि क्षेत्रमे शीर्ष पर अछि । हुनक कहब रहनि - Eastern Indian Languages are very rich in folk verses and songs and among them .....""

-""जी, वाक्य पूरा क ' देल जाए .....""

-""हँ, ओ लिखित रुपमे कहने छथि, हमरे लोकगीतक शुभाशंसामे .....""

-""जी, की कहने छथि ?""

-""कहने छथि जे .... Among them Maithili perhaps tops the list .

एहि सम्बन्धमे डा. सुभद्र झाक सहयोग अविस्मरणीय अछि- एहन प्रतिभाशाली व्यक्ति देखल नहि । हुनक बहुमूल्य सुझाव आ परामर्श भेटैत रहल । ..... विशेष रुप सँ लोकगीतक वर्गीकरण आ स्रोतक सम्बन्धमे हुनक परामर्श उपयोगी सिद्ध भेल । एकटा रहथि डा. ब्रजकिशोर वर्मा - बहेड़ाक !

-""जी, मणिपद्मजी,""

""हँ, मणिपद्मजी नामे विख्यात । ..... लिखबाक ऊर्जा रहनि ... अक्षय ऊर्जा रहनि । राजा सलहेस आदि एतहिसँ छपलनि । लोक साहित्यक अनन्य प्रेमी । मणिपद्मजीक सहयोग सदिखन भेटल । अल्प अवस्थामे हुनक देहान्त भ गेलनि तकर दु:ख अछि । सुपौलक ' किसुन ' जी, दुलारपुरक बाबू साहेब चौधरी, सुन्दरपुरक पं. देवनारायण झा आ महिषीक राजकमल चौधरीक स्मरण होइत अछि तँ हम अपनाकें सौभाग्यशालिनी मानैत छी । ...""

-""अपनेक लोकगीतसँ पहिनहुँ मैथिली लोकगीत पर काज भेल रहैक ?""

-""हँ, काज तँ भेल रहैक .... नयूनाधिक काज भेल रहैक .. मुदा व्यवस्थित नहि ..... लघुकाय .... मिथिलाक वृदत्तर लोकगीतक स्वरुप ठाढ़ नहि भेल रहए ..... एहि सम्बन्धमे जार्ज ग्रियर्सनक नाम लेल जाए सकैत अछि । हुनक बिहारी फोक सांग्स, मैथिली केस्टोमैथी, नयका बनजारा, चू वर्सन्स आॅफ गोपीचन्द संग्रह आदि बड़ महत्त्वपूर्ण अछि । ..... मुदा जेना कहलहुँ, एहिमे गीतक संख्या अति अल्प अछि ।""

-""जी, तकर बाद  ?""

-""तकर बाद सम्बत् 1999 मे हिन्दी साहित्य सम्मेलनक दिससँ ' मैथिली लोकगीत ' नामक एक पुस्तक प्रकाशित भेल - लेखक आ संकलनकर्त्ता रहथि श्री रामइकवाल सिंह ' राकेश ' । एहि पुस्तकमे मात्र एक्कैस प्रकारक लोकगीत अछि जकर संख्या 313 छइक .... थम्हू, किताब देखिक ' कहैत छी -हँ .... हँ ...... 393 छइक तेजनारायण बाबूक योगदान ..... हुनक नाम नोच करु ... डा. तेजनारायण लाल सर्वप्रथम वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत कएल- विश्लेषण आ विवेचनक दृश्टिसँ हुनक ग्रन्थ उच्च कोटिक अछि- मुदा एहिमे संकलित लोकगीतक संख्या अतिअल्प अछि ! ....  मैथिली लोकगीत क्षेत्रमे अनेक उत्साही व्यक्तिकाज करैत रहलाह अछि ...""

-""जी, किछु महत्त्वपूर्ण नाम ... ""

-""एहिमे महत्त्वपूर्ण छथि ' मैथिली गीताजंलि ' क लेखक काली कुमार दास ..... मैथिली गीतरत्नावलीक संकलनकर्त्ता कविशेखर पं. बदरीनाथ झा .... मैथिली लोकगीतक प्रकाशिका जगदम्बा देवी, बिहुला-गीतक लेखक पं. ॠद्धिनाथ झा - बेशी तँ आब मोनो नहि पड़ैत अछि .... एम्हर दू सालसँ तेहन दबाइ- चौबास घंटाक डयूटी । सबटा लीखब-पढ़ब बन्द अछि । हँ, मोन पड़ल व्यवहार-विज्ञानक लेखक भेषनाथ झा, वैदेही-विवाह-संकीर्तनक संकलयित्री स्नेहलता आदिक योगदान मोन राखैबला छै ' ... तहिना ... ""

-""जी, तहिना .... ""

-""तहिना .... श्रीभोलाझा चारि भागमे मिथिला गीतसंग्रह आ बाबू रधुवरसिंह चारि भागमे तिरतहु-गीत-संग्रह प्रकाशित कएल ।""

-""बेरियर एलविनक कहब छनि जे भारतीय लोकगीत प्रतीकात्मक पद्धति पर आधारित अछि, अपनेक प्रतिक्रिया ?""

श्रीमती अणिमा सिंह गम्भीर होइत कहलनि - हम एलविनक विचारसँ पूर्ण रुपेण सहमत नहि छी । हम ई बात अपन मैथिली लोकगीतक आमुखमे सेहो कहने छिऐक । भारतीय लोकगीतक अनेक विशेषता सब अछि - विशिष्टता - एहिमे प्रतीककाव्यक योजना सेहो एक विशेषता अछि- मुदा सर्वत्र प्रतीकत्मक योजना नहि अछि। अधिकांश लोकगीत सहज आ सरल होइत अछि ।

-""प्रतीकात्मक योजना की भेल ?""

-""जे प्रतीक मे कहल जाए ......""

-""जेना ..... ?""

-""जेना मैथिली लोकगीतमे ' धर्मराज ' क गीत, ब्रह्मक गीत आ निर्गुण आदि मे प्रतीकात्मकता अछि । जेना एकटा गी दिखाऔ ...""

अणिमासिंह नहुँए-नहुँए गाबि-गाबि गुनबए लगलीह ...

पिया ऐला जे हमार, भेजल दोलिया कहार

अबते जेबै ससुरारि, सुनू हे सजनी ।।

एतए पियाक अर्थ ब्रह्म अथवा भगवान, दोलिया कहारक अर्थ ' अर्थी ' आ ससुरारिक अर्थ मोक्षधाम अझवा वैकुण्ठधाम थिक । एहि प्रकारें धर्मराजक गीतमे ' तीतर ' , हंस ' आ सुगवा ' क प्रयोग प्राण अथवा आत्मा लेल भेल अछि।

-""जी, मैथिली लोकगीतक मुख्य विशेषता कहल जाए ...""

-""मैथिली लोकगीतमे हृदयक उदारता, सहृदयता, सरलता आ स्वाभाविकता सहज रुपमे उपलब्धहोइत अछि । कोनो उत्कर्ष भेलै ... बेटाक जन्म भेलै ... सब किछु लुटा देबाक भाव ... जेना देखू .... एकटा सोहर ...

सेर जोखि सोनमा लुटाएब, पसेरी जोखि रुपा रे

सौंसे अयोध्या लुटाएब किछु नहि राखब रे

तहिना मैथिली लोकगीतमे मंगलकामना ... सौंसे संसारक मंगलकामना । .... जे छै हृदयसँ छै ! ""

-""लोकगीतक सम्बन्धमे अपनेक कोन-कोन पुस्तक प्रकाशित अठि .... ?""

- "" छोट-पैघ पुस्तक सब प्रकाशित छइक । मूलमे तँ मैथिली लोक गीत 1970 मे मैथिली आमुख सहित 500 आ हिन्दी आमुख सहित 500 छपल रहइक । .... ओना तकर बादो छोट-छोट पुस्तक सब बहरायल छइक ।""

-""जेना ......""

-""जेना .... सोहर आ खेलौना, कोहवर, समदाउन और उदासी एवं शिशुगीत और खेल आदिक प्रकाशन भेल रहैक । नीचाँ बला कोठलीमे हेतैक राखल किछु प्रति ... नीचाँ चलब तँ देखाएब, इलाक स्मृतिमे सेहो एकटा किताब बहरलैक अछि ... सेहो देखाएब।""

- ""कोन तरहक लोकगीत बेशी आकर्षित करै-ए ?""

- ""बेशी आकर्षित करै-ए हमर मोन-प्राणकें झुमा दै अछि । हमर अपन बच्चा सबकें रातिमे गाबि-गाबि क ' सुतएबाक आदति रहए - बुबु ... अजय .... इला - सुतै कालमे गीत सूनि क ' अलसाइत रहए । नहि सुनबिऐक तँ छटपटाइत रहए । एक राति की भेलैक तँ बुबु सुतैकालमे छटपटाय लागल - ' पवनी-रजनी ' बला गीत सुनाउ । हमरा मोने नहि पड़ए । पवनी-रजनीबला गीत की छिऐक ? कोन गीत पवनी-रजनी ?......""

एकटा पुरान स्मृतिक रेख मोनकें आह्लादित क ' देने रहनि । कोनो केलासिकल बंगला उपन्यासक क्रांतिकारिणी महिलापात्र जकाँ अणिमा सिंह अपन हृदयक एक-एक गोपन रहस्यकें खोलने जा रहल छथि ।

-""जी, पवनी-रजनी .......""

हँ-हँ ..... आब हमर मोन आकुल .... कोन बंगला गीत ...... कनेक कालक बाद हमरा मोन पड़ल .... ई तँ बच्चा बंगलाक एक टा प्रख्यात शिशुगीत सुन ' चाहै अछि।

मोन पड़ि गेल .... गीत रहए .......

खेलि छे विश्वलय

विराट शिशु

आने मने

प्रभु निरजने

प्रभु निरजने

भाव-विह्वल भेल अणिमाजी गाब ' लगलीह .....

खेलि छे विश्वलय

विराट शिशु

बगल भनसा घऽरमे स्मृति काज करैत रहथिन .... छोट बहिन ...... आजन्म अविवाहित ...... समीप आबि ओहो गाब ' लगलीह....

आने मने

प्रभु निरजने प्रभु निरजने

अणिमाजी कातर होइत कहलनि - "" जनै छी, गीतमे अतिशय अमृत रहइत छैक ... हमरा अपन जीवनक सुख-दुखमे गीतक लय एकटा दोसर दुनियाँमे ल ' जाइत अछि ।... माँ मृत्यु .... हिनकर पक्षाघात .. इलारानीक मृत्यु .... हम सब दुखकें गीत गाबि-गाबि लय-विलय करैत रहलहुँ ।"" फेर गाब ' लगलीह ....

खेलि छे विश्वलय

विराट शिशु

केदार काननक एकटा लेख पढ़ने रही - धेमुराञ्चलमे पल्लवित मैथिली साहित्य - चकित भ ' गेल रही । ग्राम- सहमौरा, पो. शाहपुर बाजार, जिला सहर्षाक प्रोफेसर प्रबोध नारायण सिंहक सम्पूर्ण परिवार अर्थात डा. अणिमा सिंह उदयनारायण सिंह नचिकेता ..... डा इलारानी सिंह ..... सब मैथिलीक महासंघर्षमे अर्पित .....

कलकत्ताक लेक गार्डेन्स-A-132 वासामे चहल-पहल बढि गेलैक । एक जन डाक्टर अबैत छथि । समय एगारह बजैत रहैक । दिन रहइक शनि, तारीख रहैक 17 सितम्बर  2000 । ... परिचारिका... स्मृति ... अणिमाजी .... सब क्यो व्यस्त । आब एक्युप्रेसर .... मालिश आदिसँ प्रबोध बाबूक उपचार कएल जएतैनि । .... पक्षाघातमे परिवारक सिनेह आ मनोबलसँ रोगीकें जीवनदान भेटैत छैक । रेगिस्तान बनल चल जाइत मानवीय सम्बन्धक बीचमे स्नेहक अमृत-गंगा देखि आह्लादित भ ' उठल । हम कुर्सी पर सँ उठि जाइत छी । ...... आब मालिश ....... उपचार ...... आदरणीय प्रबोध बाबू संकेत सँ अपन विवशता कहि रहल छथि । ........

अणिमाजी कहलनि- "" आब चलू नीचाँ ..... जतए हमर सभक मैथिलीक संसार छिड़िआएल अछि । ""

नहुँए-नहुँए अणिमाजी बढ़ैत छथि । संग लागल हम ..... सीढ़ीसँ उतरि नीचाँक कोठली सबमे प्रवेश करैत छी । ..... एकटा पैघ हॉल ..... हॉल देखाय अणिमाजी विह्वल भ उठलीह - "" एतहि रहए प्रेस .... पहिने एक टीनक शेड बनाक ' हमरा सब 1956 मे एतय आएल रही। ""

हॉल मे एकटा पैघ टेबुल ..... टेबुल सब पर ट्रंक, ट्रंकमे भरल किताब ...... आलमीरामे साहित्य, संस्कृति, कलाक बहुमूल्य पुस्तक । तावत टेबुल पर राखल एकटा किताब पर नजरि पड़ैत अछि - कवि मुक्तबोध- लेखिका इलारानी सिंह- हम किताब हाथमे ल ' लैत छी ... किताबक बैक पृष्ठपर इलारानीक भव्य फोटो- प्रखर बौद्धिक चेतनासँ सम्पन्न । हमरा अपना दःुख होइत अछि ... एतेक विलम्बसँ हम मैथिलीक एहि तीर्थस्थलमे किएक अएलहुँ ... पहिने आयल रहतिहुँ तँ इलारानी सिंहसँ भेंट होइत ... आकुल छटपटाहटिसँ हमर आकृति कातर भ ' उठल ... हमर हाथमे अछि किताब .... किताबक बैकपृष्ठ पर छनि इलारानीक तस्वीर ... चश्मा पहिरने ... दहिना हाथ पर गाल टिकल ... हाथमे घड़ीक बैल्ट ... भावपूर्ण मुद्रा ...  ... हिन्दी साहित्यक अपराजेय कवि ... लेखिका - इलारानी सिंह ... हम किताबक पन्ना उनटबैत छी । पृष्ठ 183 पर मुक्तिबोधक कविताक एक अंश उद्धृत ... हमरा आकर्शित करैए ... हम नोट क ' लैत छी ...

मेरे हाथमें हैं क्षुब्ध सदियों के

विविध-भाषी विविध-देशी

अनेकों ग्रन्थ-पुस्तक-पत्र

सब अखबार जिनमें मगन होकर मैं

जगत - संवेदनों से आगमिष्यत् के

सही नक्शे बनाता हूँ।

अणिमाजी ट्रंक सब खोलैत छथि ... एक-एक पुस्तक हमर हाथ पर रखने जाइत छथि - हे देखू, ई थिक विन्दन्ती ... 1972 ई. मे प्रकाशित स्वरचित मिथिला कविता-संकलन ... ई थिक रयि - 1973 ई. मे प्रकाशित इलाक स्वरचित हिन्दी कविता-संकलन - ई थिक ' फूटते हैं अंकुर ' ... 1989 मे प्रकाशित भेल रहनि स्वरचित हिन्दी कविता-संग्रह .. 1984 मे बहरएलनि वात्या ... अनेक अनुवाद.....सलोमा-आस्कर वाइल्ड द्वारा फ्रुेंच भाषामे लिखित सालोम कमैशिली रुपान्तर, बंकिमचन्द चट्टोपाध्याय- कृत बंगला उपन्यासक मैथिली अनुवाद विषवृक्ष.... ट्रंकसँ ताकिक ' एकटा आर किताब अणिमाजी अनलनि - राउलवेल समीक्षा- इलाक लीखल - समीक्षात्मक ग्रन्थ ... अंजन सेनक 'तीन विश्वे दिनरात्रि' काव्य-संकलनक अनुवाद । ट्रंक आलमीरासँ किछु ताक' लगलीह ... थम्हू ... एकटा किताब दै छी - इलाक स्मृतिमे छपल छनि ।

हम अभिमुख होइत पुछलियनि - ""इलारानीजीक धीया-पूता ?""

-""हँ, सब तेजस्वी ... प्रखर ... आत्म-निर्भर - दूटा बेटा- सोनू दिल्लीमे, सुमन्त छथिन पूना मे आ बेटी ॠचा ... कम्प्यूटर दिस रुचि .. सब अपन-अपन रास्ता पर !""

-""जी, सब अपनेक संरक्षणमे ?""

-""हँ-हँ ... फेर अणिमाजी ट्रंक सब खोलिकए किताब सब ताक ' लगलीह-थम्हू-एकटा किताब दै ' छी  - इलाक स्मृतिमे बहराएल छइक ... ई ट्रंक ... भाव विह्वल होइत कहलनि - हम अहाँकें कहियो पठा देब - लगै-ए इला जकाँ इलाक स्मृतिबला ... किताब सेहो कतहु हेरा गेल ।...""

आँखिक कोर छलछला उठलनि .... हम प्रसंगकें बदलि देब ' चाहै छी । प्रसंग कें बदलैत हम पुछलियनि - कलकत्ता विश्वविद्यालयसँ जे मैथिलीक निष्कासन भेल तकर की कारण ?

अणिमाजी गम्भीर होइत कहलनि - कलकत्ता विश्वविद्यालयसँ जे मैथिलीक निष्कासन भेल से एकटा दःु:खद घटना थिक ! एहि प्रसंग डा. लक्ष्मण झा मिथिला दर्शन मे एकटा लेखमे लिखने रहथि ...

-""की लिखने रहथि ?""

-""डा. लक्ष्मण झा मिथिलाक विभूति छलाह .... ओ लिखने रहथिन जे मिथिलाक कैक लाख टाका दरभंगा महाराज देल । ताहिसँ कलकत्ता युनिवर्सीटिक महानिवास ' दरभंगा विर्जिंग ' बनल । सूदि ओ किरायाक हिसाब हो तँ एखन धरि एहि मकानसँ प्राय कोटि टाकाक लाभ कलकत्ता युनिवर्सीटिकें भेल । आशुतोष मुखर्जी वाइसचान्सलर छलाह तँ एही लाभें मिथिलाक प्रति कृतज्ञ भ ' एकर भाषा मैथिलीकें पढञाइक स्थान देल । किन्तु मैथिलीक से स्थान आब छीनि लेल गेल । ""

हम साकांक्ष होइत कहलियनि- ""ई तँ अत्यन्त अपमानजनक घटना भेल .... तकर विरोधमे कलकत्ताक मैथिल ?"" .....

अणिमाजी ट्रंकसँ मिथिला दर्शनक एक प्रति बहार कएलनि - वर्ष-2 , संख्या-9 -हमर हाथ पर मिथिला दर्शन रखैत कहलनि - ""पढू की छपल छैक ?"" .....

एकटा प्रस्ताव पारित कएल गेल रहैक तकर विवरण प्रकाशिक - कलकत्ता विश्वविद्यलय अपन पाठ्यविषयसँ मैथिलीक वहिष्कार कए मिथिलाभाषाक जे तिरस्कार कएलक अछि ताहिसँ कलकत्ता निवासी मैथिल सभक ई सभा क्षुब्ध अछि ।

पुनः अणिमाजी अभिमुख होइत कहलनि- संगठित जनचेतनाक अभाव अपन भाखाक प्रति गौरब-बोध नहि ..... अपन भखाक लेखक - साहित्यकारक प्रति आदरभाव नहि - मैथिलीमे गप्प करब - मैथिलीमे बाजब - अपन मातृभाषामे बजैत लोककें लाज लगैत छनि । ... एक बेरि कलकत्तामे मैथिलीक एकटा समारोहमे पहुँचलहुँ । गेट पर अशर्फी झा ठाढ़ रहथि ..... देखलियनि - अशर्फी झा गेट पर ठाढ़ हिन्दी मे आगन्तुक सबसँ गप्प करैत - उधर जाइये - इधर मत जाइये । हमहूँ किछु पुछलियनि तँ हिन्दीमे जबाब देलनि । हमरासँ रहल नहि गेल, कहलियनि- अशर्फी बाबू, हिन्दी किएक बजैत छी ? मैथिली बाजू - मैथिली । ताहिपर अशर्फीबाबू, कहलनि- की करबैक - पैघ-पैघ लोक सब छैक एतए.. आन-आन सोसाइटीक - मैथिलीमे बजैत लाज लगैत अछि । .... आब कहू जे एहन परिस्थितिमे की संगठन होएत ? की आन्दोलन होएत ? ....... मुदा एकटा बात छइक । ""

-""जी, कोन बात ?""

-""मैथिलीमे अशर्फी झा-सन लोकक संख्या अधिक नहि छैक । गामक गाम आब जागल जा रहल छैक । पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन मैथिलीमे होइत रहलैक अछि .... तरुण विद्यार्थी वर्गकें जगब ' पड़त ..... मैथिलीक भविष्य उज्ज्वल छैक ।""

स्मृति एकटा रिकबीमे बंगाली पिरुकिया - खोआ आदि देल-विन्यस्त - हमरा समक्ष राखि देलनि - एक गिलास पानि .....

हमरा स्नेहपूर्ण आग्रह करैत कहलनि - "" ई घरक बनल थिक ...... कोनो संकोच नहि, ई घऽर देखै छिऐ ....एत ' कतेक चहल-पहल रहैत छलैक - डा. लक्षमण झा, सुभद्र झा, यात्रीजी, जयकान्त बाबू .... आ साधारण मैथिल ड्राइवर, कन्डक्टर, खलासी, दर्जी सब अबैत जइत रहै छलाह । हिनका (प्रबोध बाबूकें) नशा जकाँ - लोक सबकें बैसाने उपदेश द ' रहल छिऐ..... ककरहु नौकरी ककरहु दोकान खोलबाक... ककरो कोनो तँ ककरो कोनो ... कउखन मिथिला दर्शन .. कउखन मिथिला कविता ।""....

हम अभिमुख होइत पुछलियनि- ""मैथिली कविता की ?""

अणिमाजी उत्साहित होइत कहलनि- ""मैथिली कविताक प्रकाशन 1968 मे भेल रहैक । मैथिली कविता हमर जेठ बालक बुबु अर्थात् उदयनारायण सिंह ' नचिकेता ' क संकल्पस दृष्टि आ साहसक परिणाम रहए । .... मात्र कविता पर केन्द्रित त्रैमासिक मैथिली कविता । कतौक प्रौढ़ आ प्रतिष्ठित मैथिली कविक जन्म एही पत्रिकासँ भेल रहनि ।""

गोड़ पाँचेक मैथिली कविता क अंक ट्रंकमे सँ निकालि हमरा समक्ष राखि दैत छथि । ..... हम पिरुकिया शेष करैत बजलहुँ- एखन उदय बाबू कत ' रहैत छथि ? तकर उत्तर मे अणिमाजी एकटा भिजिटिंग कार्ड देलनि ... ओहि कार्ड पर लिखल रहैक प्रोफेसर उदयनारायण सिंह, डाइरेक्टर, स्टडी इण्डिया प्रोग्राम एण्ड प्रोफेसर आफ लिंग्विस्टिक्स एण्ड हेड- सेन्टर फॉर एप्लाइड लिंग्विस्टिक्स एण्ड ट्रांसलेशन स्टडीज ..... दूरभाष ..... फैक्स .... ई-मेल आदि । ज्ञात भेल श्री नचिकेताजीक अवदानसँ मैथिली साहित्य गौरवान्वित अछि ... ट्रंकमे .... टेबुलपर ..... आलमीरामे नचिकेताक लिखल अनेक पुस्तक .... कविता-संग्रह - कवयोवदन्ति, अमृतस्य पुत्रा:, अनुत्तरण एवं नाटक मे नायकक नाम जीवन, एक छल राजा, नाटकक लेल, प्रत्यावर्तन, आन्दोलन, रामलीला, जनक एवं अन्य एकांकी तथा प्रियंवदा ......

कहलनि, आब चलू ...... सबसँ ऊपर ....... तेसर मंजिल पर सीढ्कें पार करैत आगाँ अणिमा सिंह ..... अवस्थाक कोनो प्रभाव नहि, लेडी ब्रवोर्न कॉलेज सँ 89 मे हिन्दीक प्राध्यापिकाक रुपमे अवकाश ग्रहण कएल अछि । तीसरे मंजिलमे रुममे प्रवेश करैत छी - सुसज्जित शयन-कक्ष .... पलंग ...... टेबुल .... चादर सब सुरुचिपूर्ण .... पैघ आलमीरा - शीशा लागल - चूनल-चूनल साहित्य-संस्कृति..... कला आदिक विख्यात पुस्तक.... हम रुममे प्रवेश करैत पुछलियनि - ""एहिमे के रहैत छथि .... ?""

पहिने तँ हमहीं सब रहैत छलिऐक - ई कहिक ' उदास भ ' गेलीह । फेर अभिमुख होइत कहलनि- "" बगलबला रुम मे अजय रहैत छथि ।""

बगलबला ' रुम आधुनिक सुविधासँ युक्त .... सुरुचिपूर्ण ... आडम्बर रहित .. पलंग ... बिछान ....... चादर आदि - तकर बाद किछु दूर छत खाली ....... ऊपर दउगल चल जाइत सूर्यक चक्का ..... निरभ्र आकाश ... कलकत्ताक सम्ब्रान्त लोकक कॉलोनी लेक गार्डेन्सक एकटा भव्य मैथिलक मकानक छत पर ठाढ़ भेल परिवारक संघर्ष आ उत्कट मैथिली प्रेमसँ अभिभूत भ ' रहल छी ।

फेर अणिमाजी अभिमुख होइत कहलनि- "" पहिने टीनक शेट रहइक ... 1956 मे आएल रहिऐक ...... सिंहप्रेस ...... मिथिला दर्शन ..... मैथिली लोकगीत ....... अजयकें विवाह नहि भेल रहइक तँ इहो रुम छते रहैक ... बादमे एतय कोठली बनलैक .... पैघ छत रहैक अधिक काल एत ' नाटकक रिहर्सल होइक ..... एक आध बेर एही छत पर मंच बनाक ' नाटकक मंचन सेहो भेल रहैक ... हे, देखू ... ई जे कोठली छैक ... एतहि मंच रहइक आ ओ जे खाली जगह छैक तत ' श्रोता सब रहथि बैसल ।""

अजयजी ... अजयकुमार सिंह इन्कमटेक्समे संयुक्त कमिश्नरक पद पर दिल्लीमे पदस्थापित छथि । अणिमाजी कहलनि कहलनि .... "" अजयक विवाह भेलै अपने इलाकामे परसरमा ..... राजपूत परिवारमे ।""

-""आ नचिकेताजीक ?""

-""ओ प्रेमविवाह कएलनि ।""

-""कतऽ ? ""

-""एतहि, कलकत्ता मे .... ब्राह्मण लड़कीसँ -लड़कीक माम सब एतहि कलकत्तामे रहै छथिन । बुबुसँ क्लासमे जुनियर रहनि .... संस्कृत पढ़ैत रहइक !""

धेमुराञ्चलक एकटा गाम सहमौरा,पो. शाहपुर बाजार, जिला सहर्षासँ उच्चकक्षाक अध्ययनक हेतु टीनक बक्सा, किछु किताब, किछु आवश्यक सामानक संग श्री प्रबोध नारायण सिंह कलकत्ताक हाबड़ा स्ट्ेशन पर उतरल रहथि । पटना विश्वविद्यालयसँ संस्कृतमे प्रतिष्ठा आ कलकत्ता विश्वविद्यालय सँ हिन्दी, पालि, फारसी आ भाषा- विज्ञानमे एम.ए. मगध विश्वविद्यालयसँ हिन्दी खड़ीबोली और मानक मैथिलीक तुलनात्मक भाषा वैज्ञानिक अध्ययन शीर्षक ग्रन्थक लेल डी. लिट., कलकत्ता विश्वविद्यालय सँ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्यमे ' रस-सिद्धांत ' नामक लेल डी. लिट. .... मिथिला दर्शनाक सम्पादन... नाटक ... कविता ..... अनुवाद ....... शोध-निबन्ध आदि ... तेसर मंजिलक एहि सुसज्जित कक्षमे एक कुर्सी पर हम बैसल छी .... पलंग बैसल छथि मूलतः मेमनसिंह जिलाक बसिन्दा श्रीयुत सुरेशचन्द्र धरक सुपुत्री श्रीमती अणिमा सिंह । ज्ञात भेल, अणिमाजीकें बंगला साहित्यक गहन अध्ययन छनि ।

-""बंगलामे अपनेक प्रिय लेखक ?""

-"" आशापूर्णा देवी... आशापूर्णादेवीक उपन्यास ..... कथा ... कोनो वस्तु हमरा अभिभूत क ' दैत अछि । हमर कओलेजमे आशापूर्ण देवीक व्याख्यान भेल रहनि । मोनकें आप्लावित कएने रहथि दरभंगामे एक बेरि विभूतिभूषण मुखोपाध्यायक दर्शनक सुअवसर भेटल रहए-विभूति बाबूक सहज सरल व्यक्तित्व मोनकें अभिभूत कएने रहय। भागलपुरक रहथि बनफूल- एकबेरि पुरी गेल रहिऐक- जत' हमसब टीकल रहिऐक... ओतहि बनफूल सेहो ओही होटलमे रहथि ....... हुनकासँ भेंट भेल, सम्पर्क भेल ...... दःु:ख आ उदासीक समयमे विमल मित्रक उपन्यास दवाइक काज करैत अछि ... मोन निर्मल आ शान्त भ' जाएत .... ओना एकटा बात कहू ......

-""जी, अवश्य ...""

-""किशोरावस्थामे शरत बाबूक उपन्यास सब पढ़लहुँ से एखनहुँ आत्मामे अछि - तें शरत दा - सर्वश्रेष्ठ ...... हुनक तुलना नहि ।

स्मृति ..... चाह लक च ' ' आएल रहथि ..... हुनको आशापूर्णाक रचना आकर्षित करैत छनि ।

स्मृति चाह राखि बगलमे  बैसि गेलीह, पलंगपर ....

हम साकांक्ष होइत पुछलियनि ..... - ""अहाँकें ककरासँ ' चिढ़ ' अछि ?""

-""हमरा बुद्धिजीवीसँ ' चिढ़ ' अछि ... नकारात्मक सोच ... अपनाकें अलग बुझलहुँ ..... साधारणसँ अपनाकें अलग बुझलहुँ ।""

-""अपनेकें गाम नीक लगै-ए कि शहर ?""

-""हमरा जतए स्नेह भेटल, प्रेम भेटल, अनुराग भेटल .... ओतहि नीक लगैत अछि । वैह हमर दुनियाँ थीक, वैह हमर संसार ...... ओना, एकटा बात बुझलहुँ"" हम चाह पुछलियनि - ""कोन बात ? ""

-""यैह इन्टरनेट ..... ई-मेल .... डॉटकाम .... फैक्स ... कम्प्यूटर .... एकर सभक मकड़जील .... हमर मोन औना जाइत अछि .... कला, संगीत, राग-रागिमी, हारमुनियम .... तबला .... कत्तहु किछु नहि ।सभक टेबुल पर कम्प्यूटर ... इन्टरनेट ... हम अपस्याँत भ ' जाइत छी ।""

-""अपने अपन विराट अनुभवक आधार पर कहल जाए जे प्रेमविवाह नीक थिक की ' एरेन्ज्ड मैरेज ' ?""

-""देखू .... ई कहब बड़ कठिन जे कोन विवाह नीक थिक ..... कखनो माय-बापक करौल वियाह फेल क ' जाइत छइक तँ कखनहु प्रेम-विवाह ताशक पत्ता जकाँ छिड़िया जाइत छैक .... आपसी समझदारी, विश्वास, प्रेम ..... आत्मविश्वासक बिना विवाहक सफलता सम्भव नहि । प्रेम विवाह छै नीक ..... मुदा ओहिमे लड़कीकें सावधान रहबाक चाही ..... लड़काक की ' इन्टेशन ' छैक ..... ' ऊलजुलूल ' लड़का तँ नहि छैक .... ब्लैकमेल तँ नहि कर ' चाहै छै .... सब पर ध्यान रखबाक चाही ....""

-""बंग्ला फिल्मक कोन हीरो अपनेकें नीक लगैत छथि ?""

अणिमाजी कहलनि - उत्तम ......

स्मृति कहलनि - हमरो उत्तम ..... सौमित्र....

अणिमाजी गप्पक सूत्रकें पकड़ैत कहलनि - "" हँ, सौमित्र, रंजित मल्लिक - हीरोइन मे सुप्रिया पहिने बढियाँ नहि लगैत छल ... आब लगैत अछि बढियाँ एजेड पात्रक भूमिका मे । नायिकामे सुचित्रा सेन, सावित्री चटर्जी ... अपंणा सेनक अभिनय मोनकें मुग्ध करैत रहल अछि । ओना सत्यजीत रेक कोनो फिल्म हमरा नीक लगैत अछि ... छोट जासूसी फिल्म सेहो बढियाँ लगैत अछि । ""

-""एखन फिल्म आ सीरियलमे जे अश्लीलता बढि रहल छैक .... तकर प्रसंग अपनेक दृष्टिकोण ? ""

स्मृति कहलनि - बहुत रंज अइ ...

अणिमाजी कहलनि - "" कतबहु बात बनाबू .... नंगा नाचू ... लेखकक स्वतंत्रता पर बहस करु ... मुदा थिक ई अनुचित ... कलाक नाम पर व्यवसाय .... छ्ँउड़ा सब जे खराप भ ' रहल छैक ... अजीव-अजीव सीरियल ! ॠषिकेश दाक फिल्म देखू ...बॉक्स आॅफिस पर हिट होइत छैक आ कहाँ कतहु अश्लीलता ... उच्छ्ृंखलता ! हिन्दीक गुरुदत्त ... मीनाकुमारीक केहन उच्च कोटिक कलात्मक अभिनय ।... ""

-""अहाँकें गरीवक कहानी नीक लगै-ए कि अमीरक ? ""

-""हमरा कहानी नीक लगैए । गरीब-अमीरक झगड़ामे हम नहि पड़ैत छी ... क्यो गरीब छइक तें बदमाश छै, खराप छै, से हम नहि मानैत छी - तहिना क्यो अमीर छै तें बदमाश छै - खराप छै, से नहि मानै छी । कहानी कहानी होइ छै ... गरीब-अमीर की ? ओना हम दूटा कथा विसरि नहि सकलहुँ ...""

-""कोन-कोन ? ""

-""एकटा उणीश्वरनाथ रेणुक पंचलाइट - पेट्रोमेक्स -""

केहन दिव्य कथा छैक !

-""आ दोसर ? ""

-""सोमदेवक मैथिलीकथा - भात - केहन थर्थ छैक ! ""

-""भारतक कोन महापुरुष अपनेकें आकर्षित करै छथि ? ""

-""स्वामी विवेकानन्द ! रामकृष्ण परमहंसक शिष्य स्वामी विवेकानन्द ! ""

-""बेलूरमठ आ दक्षिणेश्वर ?""

-""अहाँकें विश्वास नहि होएत - बेलूर मठ एखनधरि हम नहि जा सकलहुँ - दक्षिणेश्वर तँ कैक बेर गेल छी .. बहुत बेर गलहुँ ! ""

-""पूजा-पाठ, कबुलापाती ?....""

-""हमर माय पूजापाठ नहि करथि ... अवकाशे नहि रहनि ... हमरो आडम्बरमे विश्वास नहि .... उच्चकोटि आध्यात्मिक साधनामे विश्वास अछि। एखन हिनका निमित्त दुर्गासप्तशतीक पाठ करैत रहैत छी । ....""

कालीघाटमे यदा-कदा ... दु:ख-सुखमे अबस्से कबुलापाती करैत रहलहुँ अछि.. ई कहिक ' अणिमाजी गाब ' लगलीह ...

जगदम्बहे, अवलम्ब तेरो जननी जय देवि कालिका

मुण्डमाला रुप जय-जय हाथ शोभनि मालिका

-""कोनो एहन इच्छा जकर पूर्ति नहि भेल हो ? ""

-""हजार-हजार इच्छा छै, तकर पूर्ति नहि भेल - कोनो इच्छे नहि .....""

-""तीर्थयात्रा ?""

-""तीर्थयात्राक अधिक अवसर नहि भेटल - ओना सेतुबन्धरामेश्वर, द्वारिकापुरी ... आदि प्रमुख तीर्थ सब गेल छी । कचोट रहि गेल - केदार - बदरी नहि जा सकलहुँ .... ई सब गेल रहथि .... माँ गेल रहथिन ... मुदा हम नहि जा सकलहुँ।""

-""नैहर बंग्ला-संस्कृति, सासुर मैथिल संस्कृति - कोनो संकट? ""

-""कोनो संकट न"" - भभा-भभाक ' अणिमा जी ' हँस लगलीह - बंगालमे सेहो माछ-भात आ मिथिलामे सेहो माछ-भात ... कोन संकट? असलमे हमर वियाह भेल आ तकर बाद बहुत दिन धरि हम परिवारकें ' सीरिअसली ' नहि लेलिऐ .... बुबुक दादी सब भार उठौने रहथिन ... हमरा तँ बस कॉलेज, पढ़ाइ, प्रेस, लोकगीत ... मिथिला दर्शन .... ई तँ हंगामा सृष्टि क ' दै छलखिन आ हमरा सबटा करए पड़ैत छल ।

-""गाममे के सब रहैत छथि ?""

-""हँ, गाम अछि .... खेत-पथार, मकान सब किछु । हमर छोट बच्चा अजय कें गामसँ बड्ड सिनेह .... गाममे मकान बनौने अछि ... हिनकर छोट भाइ बालो .... भातिज अभय प्रोफेसर ... अवसरपर हम सब जाइत रहैत छी ।""

-""आ नैहर ? ""

-""हँ, हमरा सब भाइ बहिनमे अतिशय स्नेह अछि ..... माँक मृत्यु भ ' गेलनि अल्प अवस्थामे ...पिता घोर कापालिक - एखनहु सालमे एक बेरि एकठाम हम सब एकत्रित होइत छी । समूहगान होइत छइक ... गीतनाद होइत छइक । भोजन - भाजन तँ होइतहिं छइक - दु:ख-सुख बाँटैछी ।""

- "" कोन ठाम ? कोन दिन ?

-""कलकत्तामे । सरस्वतीपूजा दिन । कलकत्ताक सार्टलेकमे हमर बहिन-बहिनौ रहै छथि । हमर बहिनौ भोलानाथ बनर्जीक मकान छनि शार्टलेक ... कलकत्तामे - ओ रेलवेसँ स्वेच्छया अवकाश ग्रहण क ' लेलनि । हमर बहिन सरस्वतीसँ हिनक विवाह । सरस्वती आ लक्ष्मी जुड़वाँ- जौआँ बहिन । ..... जौंआ बुझै छिऐ ने ....।""

-""जी ..""

-""सरस्वती आ लक्ष्मी जौंआ बहिन हमर .... सरस्वतीक वियाह भोलानाथ बनर्जीसँ - लक्ष्मी वियाह नहि केलखिन ... आजीवन अविवाहित ... सरस्वतीक संग रहि गेलखिन - दुनू बहिन एक्के ठाम ... स्मृतिक वियाह सेहो नहि भ ' सकलनि ... अविवाहित रहि गेलीह ...""

छत पर एसकरे स्मृति ठाढ़ रहथि ।...

-""स्मृति अहींक संगे रहै छथि ?...""

-""नहि, एखन हमर सहयोगक हेतु आयल छथि ... दम-दम पार्कमे हमर भाइ रहै छथि - हुनकहि संरक्षणमे स्मृति रहै छथि ।""

-""सरस्वती आ लक्ष्मी की करैत छथि ?""

-""लक्ष्मी तँ लाला लाजपतराय स्कूलमे शिक्षिका छथि- सरस्वतीक जीविका स्थायी -कोनो-कोनो स्कूलमे काज करै छथि -ट्यूशन आदि सँ जीवन-निर्वाह । ..... हमरालोकनि सब भाइ-बहिन सरस्वतीपूजा दिन कलकत्ताक सार्टलेकक भोलानाथ बनर्जीक मकानपर एकत्रित होइत छी आ गीत गबैत छी .....""

-""अलग-अलग नहि, समूहमे, प्रार्थना-गीत.... सबसँ पहिने सरस्वतीक वन्दना ....""

-""जी, सरस्वती-वन्दनाक ओ गीत हमरा सुना देल जाए .... ""

स्थिरचित्त होइत कहलनि - सबसँ पहिने कहैत छिऐक - ""ओम हरि ओम तत्सत्""

अणिमाजी गुन-गुनाक ' मोन पाड़ ' लगलीह, फेर किछु संचर जकाँ बुझा पड़लनि- स्मृति हे ! स्मृति... हाऽऽक पाड़लनि- स्मृति छत परसँ दउमल कोठलीमे अएलीह - अणिमाजी कहलथिन- मोन नहि पड़ै-ए .... सरस्वती-वन्दनामे को गीत गबै छिऐ ... सरस्वतीपूजा दिन सब भाइ-बहिन ...

स्मृति बजलीह- हँ-हँ, हमरा मोन अछि । फेर दुनू बहिन समूहगानक मुद्रामे ठाढि भ ' गेलीह ...

ओऽऽऽम् हरिओऽऽऽम तत्सत्

आ तकर बाद गबै छिऐ ' -

वन्दना करु शारदा सरस्वती

आदि माया तू

आदि भवानी

तू प्रतिपालक

सब जग जानी

वन्दना करु शारदा सरस्वती

दुनू बहिन-समूहगानक मुद्रामे स्वप्नावस्थित जकाँ गीत गबैत रहथि - अमल-धवल वेशा- मालती बद्धकेशा .... हमरा लागल अणिमाजी साक्षात् सरस्वती भ गेल छथि .... वीणा पुस्तक रंजित हस्ते ।

आदि माया तू आदि भवानी

हम चरणस्पर्श क ' विदा भ ' गेल रही... हाबड़ा स्टेशन पर ..... मिथिला एक्सप्रेसमे स्वर-झंकार गुंजैत रहल -

तू प्रतिपालक

सब जगजानी

वन्दना करु शारदा सरस्वती !

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© आशुतोष कुमार, राहुल रंजन  

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