Yugantar

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श्रीमती लिली

दार्जिलिंगक एकटा छोटछीन होटन ड्रीमलैण्डमे हम पड़ल छी । रुम नम्बर चारि। 19 अक्तूबर, सन् 2000 । घड़ीमे बाजि रहल अछि आठ-साँझ होइत-होइत अन्हार भ गेल छैक आ अन्हार होइत-होइत सउँसे दार्जिलिंग प्रकाशमे नहा गेल छैक । हम एखनहि सी.आर.दास रोडक मथुरा भवनसँ घूरल छी । मथुरा भवनमे रहैत छथि श्रीमती लिली रे -रंगीन परदाक कथा-लेखिका...मरीचिका... पटापेक्ष... उपसंहार... सामंतवाद... नक्सलवाद विवाहेतर यौन-सम्बन्ध... नारीवाद.. कामवर्जना.. झुकल चल अबैत पहाड़क तलहटीमे एकटा विशालकाय पुरनका डिजाइनक मकानक दोसर तलमे श्रीमती लिली रे रहैत छथि। पति रहैत छथिन । पति-पत्नी । पैघ मकान.. विशाल परिवेश.. दू प्राणी ।

अन्हार होइत रहैक.. झलफली जकाँ... घड़ीमे बजाल रहैक चारि । सी.आर.दास रोड पकड़ने हम चुपचाप बढ़ल जा रहल छी ।... मथुरा-भवनक पता चाही । एकटा विशाल अंग्रेज जमानक मकान.. मकान पर एकटा तख्ती लागल- एही मकानमे 16 जून 1925 कें दे शबन्धु चितरंजन दासक स्वर्गारोहण भेल रहनि ।... तें एहि रोडक नाम सी.आर.दास रोड... । स्वराज्य पार्टी... कांग्रेस पार्टी... गया कांग्रेसमे देशबन्धु.. बंगलाक अपराजेय उपन्यासकार शरतबाबूक राजनीतिक गुरु रहथिन..  सी.आर.दास रोड - हमरा मथुरा भवन चाही ।

एखन ड्रीमलैण्ड होटलक रुम न. चारिमे हम पड़ल छी । .... हमरा सोझाँ बीतल साँझक एक-एक चित्र रुपायित भ ' रहल अछि । हम मथुरा भवनक दरबाजा पर थाप देने रहिऐक... एक जन सज्जन केबाड़ी खोलिक ' हमरा दिस प्रश्न-चिह्नक मुद्रामे ठाढ़ भ ' जाइत छथि ...

- "" जी, हम दरभंगासँ आएल छी । ""

- "" कहा जाय ।... ""

- "" हमरा श्रीमती लिली रेसँ भेंट करबाक अ । ""

- "" अच्छा, तब नीचे के तल में चले जाइए । ""

फेर केबाड़ी बन्द क ' लैत छथि... केबाड़ी बन्द हेबाक आबाज होइत अछि । हम चुपचाप नीचाँक तल दिस बढ़ल जा रहल छी ।

नीचाँक तलमे दरबज्जापर डाक्टर साहेबक नेमप्लेट लागल... किछु काल बाहरमे हम चुपचाप ठाढ़ भ जाइत छी । विस्तीर्ण पहाड़... देवदारुक जंगल.. अरुहुल आ गेनाक फूल। गमला सबमे विभिन्न प्रकारक अंग्रेजी फूल । दार्जिलिंगक एहि नचैत पहाड़ आ जंगलमे वन ज्योत्स्ना जकाँ श्रीमती लिली रे 1981 सँ रहि रहल छथि ।

- "" कहियासँ दर्जिलिंगमे छिऐ ? ""

- "" ओना तँ हमर पिताकें दार्जिलिंग अतिशय नीक लगैक छलनि.. हमहूँ सब बच्चामे हुनका संग आबी । हमर पिताक देहान्त भ ' गेलनि... तकर बाद दार्जिलिंग छुटि जकाँ गेल रहए । जखन डाक्टर साहेब रिटायर कएलनि 1981 मे तँ हमरा लोकनिकें भेल जे कतहु पहाड़ पर जा कए समय बिताबी । सुरम्य स्थल रहइ... फूल-पात रहइ... कतेक ठाम पर विचार भेलै... मुदा बादमे भेल जे नहि.. अन्त ' कत रहब... दर्जिलिंगमे रहब । तें 1981 सँ दर्जिलिंगमे रहि रहल छी । ... ओना तँ आब दर्जिलिंग...

-जी, कहल जाए...

- "" की कहू ? आब दर्जिलिंग ओ दर्जिलिंग नहि रहलैक... गाछ सब कटि रहलैए... मकान सब बनल जाइत छैक... जनसंख्या से बढ़ल जा रहल छैक... मुदा तइयो जे शान्त आ सहज जीवन एतए उपलब्ध अछि से आन ठाम कहाँ बेटैत अछि ? ""

- "" एहि मकानक निर्माण कहिया केलिऐक ? ""

- "" हम ई मकान कहाँ बनौलिऐक ! ""

- "" बनले मकान कहिया खरीदलिऐ ? ""

- "" ई मकान कहाँ हम खरीदलिऐ.. ई मकान हमर नहि थिक "" ... उदास आ अतिशय अवसन्न मुद्रामे कहलनि 1981 सँ किरायामे रहि रहल छी .... असल मकानमालिक सब तँ मरि गेलाह । आब हुनक सखा-पात सब छथिन । ""

से आइ साँझमे, 19 अक्तूबरक साँझमे हम दार्जिलिगिंक मथुरा भवनक दोसर तलक दरबाजा लग चुपचाप ठाढ़ छी । सन 1981 सँ लिली रे दम्पति एतहि रहि रहल छथि । हम मन्द-मन्द गतिएँ थाप दैत छिऐ... 

पदचाप सुना पड़ै-ए... नेपथ्यमे ककरो चलबाक ध्वनि..

केबाड़ी खुजैत अछि । हम चरणस्पर्श करैत कहै छिऐनि... हम दरभंगासँ आएल छी ।

अभिजात्य-संस्कारसँ प्रदीप्त मुख-मण्डल... उपन्यासक लेखिका नहि, उपन्यासक पात्र जकाँ तत्काल बुझा पड़लीह श्रीमती लिलीरे ।

कहलनि- "" चलू.. चलू ने । ""

एकटा छोटछीन रुम.. तकर बाद एकटा पैघ रुम । रुममे पलंग, कुर्सी... छिड़िआएल कागत आ फाइल ।

हम बैसैत कहलियनि- "" एकटा विशेष अभिप्राय.. ""

- "" हँ-हँ, कहू.. "".

- "" हमरा अपनेसँ किछु गप्प-सप्प करबाक अछि... मैथिली, मैथिली साहित्य... अहाँक लेखन । ""

श्रीमती लिली रे कुर्सी पर सँ उठिक' ठाढ़ भ गेलीह- "" से किएक ? हमरासँ किएक ?

एतेक लेखक छथि... हुनका सबसँ किएक नहि ? ""

हम विनम्रतापूर्वक कहलियनि- "" मुदा जे अहाँ लिखलिऐ- से अहीं लिखलिऐ... आन लेखक से कहाँ लिखलनि ? ""

हँस ' लगलीह... एकटा चमकैत भास्वर इजोतमे नहाएल हँसी.... राग-तालमे बान्हल हँसी ।

कहलनि- "" तखन.. थम्हू ""

फेर उठि क ' रुमसँ चल जाइत रहलीह । बीचबला रुममे सटल रुमसँ आबाज आबि रहल अछि...

- "" मालिक...मालिक । दरभंगासँ एक गोटे आएल छथि... इन्टरव्यू कहैत छथि लेताह.. की करियनि ?""

किछु अस्फुट स्वर... किछु विचार-विमर्श जकाँ ... फेर पुरुष-स्वर सुना पड़ल - "" जल्दी-जल्दी उत्तर द दिऔन... दू चारि प्रश्नक - व्यक्तिगत प्रश्नक कोनो उत्तर नहि। ""

दार्जिलिंगक पहाड़ आ जंगलमे रोशनी भ ' गेल छैक... रोशनी धधरा जकाँ लगैत छैक... पहाड़... जंगल आ आगि.. हमरा श्रीमती लिली रेक रचना चिनगारी जकाँ एहि धधारक सम्पूर्ण इजोत चाही । नेपथ्यमे पुनः पुरुष-स्वर- "" दू चारि प्रश्नक उत्तर द ' ' विदा क ' दिऔन । नहुँए-नहुँए श्रीमती लिलीरे पुनः हमरा समक्ष कुर्सी पर बैसि जाइत छथि ।

- "" हँ-हँ पुछू... जे पूछब । ""

- "" अहाँक पिता ?""

- "" पं. भीमनाथ मिश्र, वरिष्ठ पुलिस पदाधिकारी, रामनगर जिला पूर्णियाक निवासी । पुलिसक नौकरीमे रहथि तें पिताक स्थानान्तरण विभिन्न जिलामे होइत रहलनि । ""

- ""अहाँक माए ?""

- ""श्रीमती सुशीला देवी-नैहर लोहना । आर्यावर्तक पूर्व सम्पादक हीरानन्द झा शास्री हमर माम छथि ""

- "" अहाँ पर पिताक प्रभाव कि मायक ?""

- "" ओना तँ दुनूक प्रभाव... मुदा हमरा पर पिताक प्रभाव सर्वाधिक ... हमरा ओ बड़ स्नेह देने छथि .. प्रेरणा आ प्रोत्साहन .. ओ बहुत कम अवस्थामे अस्वस्थ भ ' गेल रहथि- यंत्रणाक कष्ट रहनि - एगारह साल अस्वस्थ रहलाह आ तकर बाद बहुत कम अवस्थामे हुनक असामयिक देहान्त भ ' गेलनि.... तकर मर्मान्तक हमरा दःु:ख अछि । पिताक मृत्युक दःु:ख हम विसरि नहि सकलहुँ.. ""

- "" अपनेकें बाल्य-कालमे केहन वातावरण भेटल ?""

- "" हमर सभक परिवार संयुक्त परिवार रहइक.... सब धीया-पूता संगे संग खेलाइत-धुपाइत रही । कहियो केयो आन नहि बुझा पड़ै .. पिता वरिष्ठ पुलिस पदाधिकारी - तकर ठाठ-बाट अलग.... जमीन्दार परिवार- बनैली स्टेटमे हमर पिताक शेयर । नोकर चाकर ... दाइ खबासनी.. देवानजी मोसाहेब- कुल मिलाकय हमरा सम्पूर्ण रुपमे बचपन जीबाक अवसर भेटल । हमरा बाल्यावस्थामे गीतसँ अतिशय रुचि रहए.. विद्यापतिक गीत, नचारी... सोहर... अधिक काल हम विद्यापतिक गीत गबैत रही- कखन हरब दुख मोर हे भोलानाथ । .. बादमे जखन हम कनेक पैघ भेलहुँ तँ स्वीमिंग, घोड़सबाड़ी करब सेहो शुरु कएलहुँ । बढियाँ अभ्याश रहए । ""

- ""आ खेलकूद ?""

एहि बीच डाक्टर साहेब सेहो चल अबैत छथि । प्रणाम-पाती होइत अछि । कात लागल कुर्सी पर बैसि जाइत छथि । यशस्वी फिजीशियन... गोमियो,... कलकत्ता.. कानपुर आदि विभिन्न क्षेत्रमे कम्पनी डाक्टरक रुपमे ख्याति अर्जित कएलनि । श्रीमती लिली रे पति दिस अभिमुख होइत बजलीह - "" ई पुछैत छथि खेलकूद । मोन अइ कि नहि... हमरा जन्मदिन पर एक बेरि अहाँ टेबुल टेनिस देने रही... हम टेबिल टेनिसक बैट टा छूलहुँ आ तकर बाद छोड़ि देलिऐक । हमरा खेलकूदमे कोनो रुचि नहि । ""

- "" अहाँक जन्मतिथि ?""

- ""26 जनवरी 1933 ""

पिता रहथिन वरिष्ठ पुलिस अधिकारी । ताहि समयमे नारी शिक्षाक प्रचार-प्रसार नहि। पं. भीमनाथ मिश्रक ई इच्छा नहि रहनि जे लिली अथवा हुनक बहिन लोकनि व्यवस्थित रुपमे स्कूल-कओलेजमे शिक्षा ग्रहण करथि ।

- "" अहाँ लेखन दिस कोना अग्रसर भेलिऐक ?""

प्रश्न सूनिक ' श्रीमती लिली रे गम्भीर भ ' गेलीह, कहलनि- लेखन... साहित्य... उपन्यास.... कथा - ई सब तँ हमर जीवनक साँस थिक... रक्त-स्पन्दन थिक । हम जखन मात्र बारह बरखक रही तँ हम लीखब आरम्भ कएने रही । मोनमे अनेक तरहक लहरि उठए... अनेक भाव आ हम छोट-छोट कथा-पिहानी गल्प आदि लीखब आरम्भ कएल । परिवार रहए पैघ.... संयुक्त परिवार.. हम सब अपनहि 9 भाइ-बहिन । पीसीमाँ, बहिनधी, जयधी कतेक तरहक लोक... तें पात्र हमरा सहज रुपें भेटि जाए ... कथा लीखि छलहुँ... घऽरमे एकटा हमर अलग पहिचान बनैत गेल ।""

- "" अहाँ अपन लेखनमे कोन-कोन लेखकसँ प्रेरणा ग्रहण कएने छी ?""

- ""प्रेरणा कहब तँ ककरो नहि... हँ तखन आरम्भमे हम हरिमोहन बाबूक रचनासँ आह्लादित होइत रहलहुँ । हमर पिता साहित्यिक अभिरुचिक रहथि । नीक-नीक लेखकसँ सम्पर्क रहनि । रामनगरमे व्यक्तिगत लाइब्रेरीमे अंग्रेजी आ बंगलाक उपन्यास कथा, पत्र-पत्रिकाक संचयन कएने रहथि आ तकर बाद जखन हरिमोहनबाबूक कन्यादान-द्विरागमन आदि बहरएलन्हि तँ सम्भ्रान्त परिवारमे मैथिलीक धूम मचि गेल । हरिमोहनबाबूक कथा-उपनायसकें हम बेरि-बेरि पढ़ी । पढ़ी-पढिक ' लोककें सुनबैत रहिऐक... हरिमोहनबाबूक रचना । पढ़ैत-पढ़ैत हम स्वयं लीखए लगलहुँ... पहिने हास्य- रोचक शैलीमे आ तकर बाद अनेक कथा-उपन्यास ।""

- ""आन भाषा-साहित्यक प्रभाव ?""

- ""पूर्णिया जिलामे हमर नैहर- रामनगर । ओहि समयमे पूर्णिया जिलामे बंगला भाषा साहित्यक अतिशय प्रचलन रहइक । बंगलाक पत्र-पत्रिका अबैत रहैत छलैक । तें हम बाल्येवस्थासँ बंगलासँ प्रभावित होइत रहलहुँ । बंगलाक लेखक लोकनिमे रवीन्द्रनाथ टैगोर... हुनकर व्यक्तित्व, चिन्तनधारा... चित्रकला.... शान्ति-निकेतन आदिसँ अभिभूत भ ' गेल रही ।""

- ""अहाँ बंगलाभाषा मूल रुपमे पढ़ैत छी ?""

- ""हँ-हँ, बंगला पढ़ैत छी, लिखैत छी । एक तँ मैथिलीक तिरहुता लिपि आ बंगला लिपिमे कोनो विशेष अन्तर नहि... दोसर, डाक्टर साहेबक अनेक वर्ष कलकत्ता आ हुगली जिलामे बीतल रहनि... तेसर, बंगलाक प्रति हमर आन्तरिक आकर्षण .. ""

- ""बंगलाक अन्य लेखक लोकनिक प्रभाव ?""

- ""हँ, टैगोरक बाद हम जे प्रभावित भेलहुँ... से कहैत छी... बंगलाक अमर कथाशिल्पी शरतचन्द्र चट्टोपाध्यायसँ ... शरत बाबूक उपन्यास ... कथाक हमर जीवनमे ... लेखनमे ... एकान्तमे अतिशय महत्त्व रहल अछि । शरतबाबूक बाद जे हम प्रभावित भेलहुँ... से कहैत छी ।

- ""जी कहल जाए ।""

- ""बंकिम चन्दसँ... बंकिमबाबूक उपन्यास आदिमे एकटा मोनकें आप्लावित करएबला ' सहताज गुण छैक । देश...काल.. परिस्थितिक जीवन्त चित्रण ।

- ""आ विमल मित्र ?""

- ""तखन तँ अनेक... विमल मित्र, सुनिल गंगोपाध्याय, शंकर, समरेश बसु..... हिनका लोकनिक कथा-उपन्यास पढ़ैत रहलहुँ मुदा प्रभावित होएबाक बात नहि । हिनका लोकनिक हमर लेखन पर कोनो प्रभाव नहि । हमरा लेखनमे रमल रहबामे एक बंगला पत्रिकाक बड़ पैघ योगदान..""

- ""जी, कोन पत्रिका ?""

- ""देश.. बंगलाक देश पत्रिका... देश पत्रिकामे की रहैत छैक... पाँच-सात कथा.. यात्रा-वृत्तान्त, चरित-चर्चा, जीवन, आध्यात्मिक पुरुषक कथा... धारावाही उपन्यास.. एहन-एहन रचना रहैत छैक जे पाठकक छाक भरि जाइत छैक.. तृप्त-परितृप्त क दैत छैक । व्यक्तिगत चर्चामे हम मैथिलीक लेखक लोकनिकें अनेक बेर कहलियनि देश पत्रिका बहार करैत जाउ... देश पत्रिका-सन मैथिलीक पत्रिका होएत तँ मैथिलीमे पाठक बनत । लेखक लोकनिक लीखब सार्थक होएत... मुदा से भ ' नहिरहल छैक... मैथिलीक पत्रिकासँ लोकक छाक नहि भ रैत छैक ।

- ""अहाँक लेखनक मूल केन्द्रीय विषय की रहल?""हमर लेखनमे विविधता अछि... रोमान्टिक लेखन हम करैत रहलहुँ... सामन्तवाद... जमीन्दार.. ड्योढ़ी.. दरबार... हबेली.. अन्तःपुर- हमर बाल्यावस्था एहन परिवेशमे बीतल साँझ.. मुनहारि साँझमे, बितैत रातिमे अनेक कथा... उपकथा हमर बचपनमे आँखिक समक्ष घटल- हम तकरा विसरि नहि सकलहुँ... चुगली... वर्जित काम सम्बन्ध... कामाचार .. भोग... विलास.. टुटैत जमीन्दारी प्रथा... सामन्तवादक पतन.. नवयुग.. सबकें अनुभव कएने छी... आत्मसात कएने छी । यैह अनुभव, यैह स्पन्दन, यैह चित्र-चरित्र हम लेखन ऊर्जा थिक ।""

- ""सामन्तवादक प्रसंग अहाँक की प्रतिक्रिया ?""

- ""देखू, ओना तँ शास्रीय संगीत.... भोज-भात, कीर्तन-मंडली, कवि, कलाकार, नाच-गान आदिसँ सामन्तवाद एकटा कलात्मक छवि बनैत छैक । मुदा असलियत से नहि छैक... विशेष रुपसँ सामन्तवादमे नारी समाज पर अनेक तरहक जुलुम होइत छलैक.. पाबन्दी रहैक... निषेध रहैक ।""

- ""जेना ....""

- ""जेना पर्दाप्रथा... सिरकीक तऽरमे बहुआसीन लोकिन रहैत छलीह... शिक्षा नहि... अनमेल विवाह.. पुरुष लोकनिक बर्बर स्वच्छन्द जीवन... बहुविवाह, रखैल आदि अनेक तरहक बात छलैक तें जखन सामंती समाजक असलियत देखबैक तँ मोनमे विररो उठत... विद्रोह करबाक मोन होएत !...""

- ""जी, अहाणक लेखनक दोसर थीम ?""

- ""हँ, हम अपन लेखनमे रुचि-रस परिवर्तन करैत रहलहुँ । सामन्ती समाज पर लिखलहुँ आ ताही पर लिखैत चल गेलहुँ से उचित नहि । हम विषय.. थीम.. सब किछु बदलैत चल गेल ।""

- ""जेना.. ?""

- ""जेना नक्सलवाद पर हम उपन्यास लिखने छी...""जखन चारु मजुमदार आ कानू सान्याल नक्सलबाड़ीमे आन्दोलन आरम्भ कएलनि तँ हमर मोनमे वर्ष-वर्षसँ सुषुप्त विद्रोहक भावना जागि उठल... तोडू-तोडू.. ई महाकारागार थिक... सामन्ती मकड़जालकें तोडू.. आर्थिक विन्नता, वर्ग-विभेद... ई अन्तहीन शोषण... मनुक्खक सम्मानक रक्षाक संघर्ष.. स्वाभिमानक संघर्ष... बुर्जुआ... सर्वहारा... तखन हमर थीम बदलि गेल.. तखन हम नक्सलबाड़ी आन्दोलन पर लिखने रहिऐक उपन्यास ...""

- ""नक्सलबाड़ी आन्दोलनसँ अहाँकें साश्रात सम्पर्क रहए ?""

- ""हँ, रहए... हम ओहि समय पत्र-पत्रिका, जुलूस... आन्दोलन आदिक जानकारी रखैत रही ... नक्सलबाड़ी आन्दोलनक विचारधारामे अभिरुचि रहए ।""

डाक्टर साहेब कुर्सी परसँ उठिक नहुँए-नहुँए जाए लगलाह... फेर रुकि गेलाह... कहलनि- ""पर्सनल क्वेश्चन्स नहि पुछियौन... साहित्य पर चर्चा करु... साहित्य पर...""

हम कहलियनि- ""जी, मूल उद्देश्य सैह अछि ""

डाक्टर साहेब बेडरुम दिस चल जाइत रहलाह ।.. 19 अक्तूबर 2000 सन् । दार्जिलिंगक एकटा साँझ । अन्हार आ रोशनीक बीचमे महासंग्राम करैत सी.आर. दास रोड... पहाड़क बक्र होइत उतार-चढ़ावक बीचमे कम्पित होइत मथुरा-भवन ।

- ""अहाँक लेखनक मूल उद्देश्य की थिक ?""

- ""हमर लेखनक मूल उद्देश्य थिक पाठकक मनोरंजन... पाठककें पकड़ि लैक... दू मिनट सोचैले ' विवश करै... काज विसरि जाइक... सूतब-उठब विसरि जाइक ।... कथा लिखलहुँ आ पाठककें सम्मोहित नहि क ' सकलहुँ... तखन ओहन कथा लिखबाक को प्रयोजन? बड़का-बड़का बात... माक्र्सवाद... मार्कसिज्म... धप्प द ' विचारक एकटा पाथर खसा देलिऐक आ बूझ ' लगलहुँ जे बड़का कथाकार भ ' गेल छी- से नहि होइत छैक । कथाकार वैह जीबैत अछि जे पाठकक हृदयमे जीबैत अछि । कथाक अपन व्याकरण छैक... सुर आ ताल छैक... लहरि उठाउ-लहरि खसाउ... पाठकक मोनमे जुआरि उठबैत रहू.. तखन भेल कथा ।""

- ""जुआरि कोना उठाउ ?""

- ""आब ई के कहए ई तँ कथाकार अप्पन साधना आ पर्तिभासँ उठा सकै छथि । ... जेना ओ कहलनि, ओ सोचलनि, ओकरा भेलै.. ओ एलै - एहि तरहक लेखनमे की जुआरि उठतैक.. की भाटा उठतैक? जुआरि कोना उठैत छैक से कहैत छी...

- ""जी...""

- ""जुआरि उठै छै झॉलर लगौलासँ- लेस-आँचर लगौलासँ ""

- ""भोगल यथार्थक प्रसंग अहाँक मन्तव्य ?""

- ""हम एहन-एहन भरिगर बात ने बजै छी... ने एहन-एहन बातसँ उधिआइत छी । लेखनक क्रममे विविध प्रकारक पात्र... जीवन... परिस्थिति आ दृश्यखण्डक सृजन कर ' पड़ैत छैक... खंडित जीवन... खंडित व्यक्तित्व... वर्जित कामाचार... विद्रोह... सब पर लिख ' पड़ैत छैक... चोर उचक्का... बदमाश .. विभिन्न तरहक पात्रक वर्णन करए पड़ैत छैक । आब एहन-एहन जीवन लेखक जीबए... भोगल यथार्थ.. तखन लीखए ई सम्भव नहि छैक ।

- ""तखन की सम्भव छैक ?""

- ""सम्भव छैक जे लेखक अथवा लेखिकाक दृष्टि सजग होइक ... संवेदनाक संसार पैघ होइक... छोट्-छो घटनाक वृत्तखण्ड बनएबाक सामर्थ्य होइक । हम जेबै छी, जाहि परिवेशमे जीबै छी, जाहि परिस्थितिक संग जीबै छी- सब अप्पन थीक । सबमे हम कतहु-ने-कतहु छी ।""

- ""मुदा एकटा शर्त छैक ।""

- ""जी, से की ?""

- ""दृष्टि धरि यथार्थवादी रहए, असली बात लिखी.... इमानदारीक संग लिखी ... असत्य नहि लिखी ।""

- ""की लेखनसँ व्यवस्था-परिवर्तन भ ' सकै छै ' ..?""

- ""देखू.. जेना हम कहलहुँ ... कथा-उपन्यासक पहिल गुण थिकैक जे ओ पाठककें अभिभूत करए... जँ से नहि भेल तँ सबटा व्यर्थ । जखन अहाँ पाठकें अभिभूत क ' सकैत ' छी तँ व्यवस्था-परिवर्तन सेहो क' सकै छी । कथा-उपन्यास तँ चिनगारी थिक ।... विचार आ चेतना जतेक सहज रुपमे कथा-उपन्यासक माध्यमे परसल जा सकै छै ततेके कोनो आन माध्यमे नहि ।

- ""रंगीन परदा की थिक ?""

- ""रंगीन परदा कि थिक... मूलतः कथा थिक.. वर्जित काम-सम्बन्ध... देहक इच्छा... जे होइत छैक... जे असली चेहरा छैक... जे जीवनक यथार्थ छैक से लोक लीखि नहि पबैत अछि । हम लिखलहुँ ।""

- ""मुदा रंगीन परदा पर परदा किएक देलिऐक ?""

प्रश्न सूनिक ' श्रीमती लिली रे हँस ' लगलीह, पुनः गम्भीर होइत कहलनि- ""देखू... हमर वयस ओहि समयमे थोड़ छल.. मैथिल समाजक अप्पन जड़ता... कन्जरवेटिज्म.. रंगीन परदाक यथार्थकें लोक सहन करत की नहि करत ? तकर भय... हमर घऽर-परिवार.. तें तखन कल्पनाशरणक नामे लिखलिऐक । मुदा किछु गोटएकें बूझल रहनि- विशेष रुपें राजकमल आ ललितकें ...""

- ""राजकमलक प्रसंग अहाँक मन्तव्य ?""

- ""राजकमल चौधरी हमर प्रिय लेखक छथि ।... ' ललका पाग ' पढ़लहुँ आ सम्मोहित भ ' गेलहुँ । एकटा हुनक कथा छनि ' साँझक गाछ ' ... साँझक गाछ ' शीर्षक थिकैक ने.... हँ, साँझक गाछ ... एहन-एहन कथा पढ़ैत काल मोन.. आत्मा आ प्राण एकाकार भ ' जाइत छैक । पता नहि अनका की होइत छैक ? हम तँ मुग्ध भ ' जाइत छी... तृप्त-परितृप्त भ ' जाइत छी । हमर जखन रंगीन परदा बहराएल तँ राजकमल आ ललित प्रसँसाक पत्र लिखने रहथि ।""

- ' ललित ' क कथाक प्रसंग अहाँक दृष्टिकोण ?""

- ' ललित ' तँ असलमे मैथिलीक अप्पन कथाकार छथि । दर्द आ छटपटाहटि.. सामाजिक यथार्थ आ विचारधारा... सबटा सहज रुपमे, स्वाभाविक रुपमे । पात्रक चयन, पात्रक अनुसार भाषा, वातावरणक निर्माण... असलमे कथा कहबाक कलामे माहिर छलाह । बादमे ओ की लिखलनि से पढ़बाक सुयोग नहि भेल ।""

- ""मरीचिका उपन्यास लिखबाक पाछाँ की कारण ?""

- "" हमरा की भेल तँ एक बेरि अनिद्राक रोग भ गेल । निन्दे नहि होइत छल । महाग विपत्ति । मोन अवसन्न । कमजोरी । तखन गोहरौलहुँ माँ हे, हे माँ सरस्वती ... आ लिखए लगलहुँ । बीच-बीचमे मोन विकल भ ' जाए... जगदम्बा हे ! पार लगबाह... विद्यापतिक गीत गाबी... जय-जय भैरवि.. पार लगबाह हे मइया... नइया पार लगाबह हे मइया... नइया पार लगबाह- नइया पार लागि गेल ।.. अनिद्राक उपचारो भ ' गेल आ उपन्यासो लिखा गेल ।... मरीचिका थिक  विशालकाय उपन्यास... एपिक नॉभेल । पूरे एक वर्ष लागल पूरा करबामे । दू-तीन हजार पन्नामे लिखने रही । काटि-छाँटिक ' वर्तमान स्वरुपमे प्रकाशित भेले । मैथिली अकादमीसँ बहराएल तँ दू फाँक भ' गेल । दू भागमे फाँटि देलथिन ।

- ""मरीचिका उपन्यासक मूल स्वर की थिक ?""

- ""मरीचिका पर बहुत लीखल गेल अछि... लोक सब लीखि रहल छथि.... ""जी अपने दृष्टिमे मरीचिकाक मूल स्वर?""

- ""जी अपने दृष्टिमे मरीचिकाक मूल स्वर ?""

- ""ओना तँ विविध घात-प्रतिघात स्वर छैक । मुदा मूलमे सामन्तवादसँ जे नव युग बहरएलैक तकरे इतिवृत्तान्त, संघर्ष, वासना, प्रेम..... जीवनक आरोह-अवरोह थिक मरीचिका ।""

- ""जखन अहाँ लिखैत रहिऐक तँ की अनुभव कएने रहिऐक जे साहित्य अकादमी पुरस्कार भेटत?""

पुनः डाक्टर साहेब आबिक कातमे राखल कुर्सी पर बैसि जाइत छथि । स्थिरचित्त, प्रसन्न...आह्मलादित- हमरा दिस साकांक्ष होइत कहलनि- की पुछलियनि ? हम मुग्ध होइत बजलहुँ- ""साहित्य अकादमी पुरस्कार पर चर्चा भ ' रहल छैक ।""

डाक्टर साहेब उत्फुल्ल भ ' उठलाह- ""हँ, एहि सब पर चर्चा करु ।... ई सब आनन्दक विषय भेल ।""

श्रीमती लिली रे साकांक्ष होइत कहलनि- ""जखन लिखैत रही तँ लिखैत रही... राजा सरकार आ हीराक कथा लिखैत रही ।... तखन पुरस्कारक कोनो सबाले नहि रहइक ।... हँ, तखन एक बात भेल...""

- ""जी...""

- ""जखन मैथिली अकादेमीसँ मरीचिकाक प्रकाशन भेल तँ गप्पक क्रममे मैथिलीक अनेक लेखक कहलनि जे ' मरीचिका ' पर साहित्य अकादमीक पुरस्कार भेटबाक चाही।""

- ""पुरस्कार भेटल तँ केहन लागल.... मीठ-मधुर....?""

- "" हँ, मीठो लागल- मधुरो लागल । खुशी आ आनन्दक मचकी पर दू चारि मास झुलैत रहलहुँ ।""

सम्पूर्ण आकृति आनन्दक अनुभूतिसँ झूमि उठलनि, कहलनि- सूचना भेटल... न्यूजमे समाचार एलैक.... पेपर सबमे बहरएलैक... पटनामे अएलहुँ तँ एकटा समारोहमे अभिनन्दन भेल... खूब जय-जयकार भेल ।.. हमरा पुरस्कारक सबटा प्रक्रिया बूझल नहि रहए.... ओतहि पटनामे भीमनाथ झा कहलनि जे परसू दिल्लली जाय पड़त ।.... पहिने सँ हमरा ई सब बूझल नहि रहए... हड़बड़ा गेलहुँ । हवाइ जहाजसँ गेलहुँ आ रेलसँ आपस अएलहुँ.... खर्चा सबटा अकादेमीसँ भेटल ।""

हम साकांक्ष होइत पुछलियनि- "" पुरस्कारक रुपैया कोना खर्च भेल ?""

- "" से जुनि पुछू ... ऐल पानि गेल पानि बाटे बिलायल पानि । 

- "" अहाँक लेखनमे डाक्टर साहेबक सहयोग आ प्रोत्साहन भेटैत रहल अछि... ""

कोनो एपिक नॉभेक चिरयुवा नायिका जकाँ अपन सम्पूर्ण आकृतिकें समाधिस्थ क ' लोलनि तखन एक-एक शब्द पर जोर दैत कहलनि- ""हमरा लोकनिक दाम्पत्य परस्पर सहमति आ विश्वास पर आधारित रहल अछि । कोनो हस्तक्षेप नहि । ने हम डाक्टर साहेबक काजमे हस्तक्षेप करैत छियनि ने डाक्टर साहेब । पूर्ण स्वाधीनता आ तहिना पूर्ण विश्वास । हम जखन लिखैत रही तँ डाक्टर साहेब अपन मरीजक उपचारमे व्यस्त रहैत छलाह.... अतिव्यस्त जीवन जीबैत रहलाह- पलभरि विश्राम नहि । परुकाँ साल मरणान्तक कष्ट रहनि दु:खित पड़ि गेल रहथि... हर्ट प्राब्लेम छनि... अन्य प्रकारक बीमारी सब.. परुकाँ तँ यन्त्रणाक कष्ट रहनि... खाएब-पीएब सबटा छोड़ि देने रहथि.... संयम आ दबाइ... हम स्वयं समय पर हिनका ले ' दूध, चाह. बिस्कुट, पथ्य-पानि सभक इन्तजाममे लागल रहै छी । पलभरि अवकाश नहि, कोना दिन बितैए, कोना राति बितैए, से बुझा नहि पड़ैए ।""

हम प्रसंगकें बदलैत पुछलियनि- ""भोजनमे की सब नीक लगैए ?""

प्रश्न सूनिक ' हँसय लगलीह- "" भोजन ! हम तँ भोजनरसिका छी... "" - आ फेर ठहाका मारिक' हँस' लगलीह । श्रीमती लिली रे हँसैत रहलीह- "" हमर उपन्यास.. कथा सबमे भोजन-विन्यासक चित्रण अछि... सिलौंगमे एकटा होटले खोलबा देलिऐक- मरीचिकाक दोसर भागमे .. "" फेर हँस लगलीह... हँसैत रहलीह ।... 

गप्पक सूत्र डाक्टर साहेब पकड़ि लेलनि - ""हिनका की नीक लगैत छनि से हम कहैत छी ... हिनका खाली मिठाइ नीक लगैत छनि ।... मीठ-मधुर ।""

श्रीमति लिली रे प्रतिरोध करैत कहलथिन- ""से किएक कहैत छिऐक .. हमरा माछ-मासु.. मुर्गी-अंडा सब नीक लगै-ए.. खुआउ... जतेक खुआएब... चनाचूड़ सेहो नीक लगैए ।""

- ""माछमे कोन माछ ? हिलसा, कबइ, भुन्ना, रो ?""

- ""नहि, हमरा चेंगरी माछ नीक लगैए... I love cold fish .... हमरा ठण्ढ़ा माछ नीक लगैए । हमरा ठण्ढ़ा माछ चाही ।""

- ""ठण्ढ़ा माछ की थिक ?""

- ""माछकें उसीन देल जाइ छै... तकर बाद बनाओल जाइत छैक... अंग्रेजी खाना भेलै कोल्ड फिश... ठण्ढ़ी मछली.. ठण्ढ़ा माछ... ""

तकर बाद, डाक्टर साहेब उठि क ' चल जाइत रहलाह । किछु काल दार्जिलिंग पर चर्चा होइत रहल । कहलनि- ""चलू ! हम अहाँकें अपन एकटा अलग संसार देखबै छी जाहिमे हम जीबै छी.. झुमै छी... गाबे छी ।""

हम श्रीमती लिली रेक संग उठिक ' .. विदा भ ' गेलहुँ ।

घरसँ दरबाजा खोलि विस्तीर्ण बराम्दा पर चल अबैत छी । बरम्दा पर अन्हार.... नीचाँ बक्र होइत पहाड़ी.... लय आ तालमे चित्रलिखित जकाँ दार्जिलिंग.....राति होइत-होइत दार्जिलिंगमे उन्माद पसरि जाइत छैक । तीन सेलक टॉर्चबत्तीक इजोत बारैत कहलनि- "" देखू, ई थीक कदीमाक लत्ती । गमलामे एकरा पोसने छिऐक । हमरा आ डाक्टर साहेबकें कदीमाक फूलक तरुआ नीक लगै-ए  जहाँ दूटा कदीमाक फूल फुलयलैक कि हम तोड़ि लबैत छी । आ डाइनिंग टेबुल पर डाक्टर साहेबकें सरप्राइज दैत छियनि- कदीमा फूलक तरुआ !! "" - हम कदीमाक क्रमिक विकसित होइत लत्ती कें देखैत बजलहुँ- "" हे, वैह अछि... कदीमाक फूल... "" - श्रीमती रे प्रतिरोध करैत कहलनि- "" नहि ओ फूल नहि थिक, ओ फड़ थीक... ओहिमे फड़ लागल छइक । ई फूल थिक.. एकर केहन दिव्य तरुआ हेतैक ! ""

फेर अपन सुसज्जित गमला... फूल... पात सबकें देखब ' लगलीह- "" एहिमे बड़ परिश्रम छइक । देखू । एत ' पहाड़ छइक । माटि थोड़ भेटैत छैक । माटि ताकि क ' आनू। गोबर दिऔक । रउद से अधिक काल नहि होइत छैक । एम्हर तीन चारि दिनसँ रउद भ ' रहल छैक । एखन आब फील-पातक समय उसरि रहल छैक ... जड़ पड़तैक... जाड़मे गाछ-पात सब कारी भ ' जाइत छैक... लगैत छैक जेना जरि गेल होइक... हे देखू.. ई केहन दिव्य फूल अछि... आब एकर समय नहि छैक ।.. ई देखू पहाड़ पर फुलाइत छैक फूल... ई गाछक सनगर लालित्य देखू । "" कतारमे राखल गमला... गमलामे अनेक गाछ... अनेक फूल.. फूलसँ गप्प करैत- पात-पल्लोक लय पर नृत्य करैत - झुमैत चिरयुवा श्रीमती लिली रे साक्षात् प्रकृतिकन्या जकाँ अपन एकटा अलग संसार देखा रहल छथि- "" बुझलहुँ किने ? आइ दुपहरियामे रउद रहइक- से की हमरा चैन रहय... गाछक जड़ि सबकें कोरिओलहुँ .. ओहि गमलाक माटिकें साफ कएलिऐक । ओम्हर ओहि लत्ती सभक काट-छाँट कएलहुँ.. जाड़मे मुदा हम एतय नहि रहैत छी । तीन मासक लेल हम दिल्ली चल जाइत छी । दिल्लीमे हमर दुनू बेटा रहैत छथि । ""

- ""जी, की करैत छथि ?""

- ""एक बालक डा. रवीन्द्र रे देलही स्कूल आॅफ इकॉनामिक्समे सोशियालॉजी विभागमे रीडर छथि- दिल्लीमे रहइत छथि । दोसर बालक आइ.ए.एस. छथि । पुतोहु सेहो छथि आइ.ए.एस. ... श्रीमती रीना रे ! दिल्लीमे दुनू व्यक्ती पद स्थापित तें जाड़मे दिल्ली बेटा सब लग चल जाइत छी । तीन महीना जाड़मे हम दिल्लीमे रहैत छी । एहि तीन महीनामे हम छटपटाइत रहैत छी.. औनाइत रहैत छी । गाछ-पात सब थिकै हमर बच्चा... नित दिन पालै-पोसै छी ।

दार्जिलिंग । सी.आर. दास रोडक मथुरा भवनमे ऊपर सँ दोसर तलमे रहैत छथि दुर्गागंज, सोनाली, जिला कटिहारक अवकाशप्राप्त डाक्टर साहेब आ मैथिलीक अपराजेय कथा-शिल्पी श्रीमती लिली रे । सामन्तवाद सँ नक्सलवादक संघर्षपूर्ण यात्राक नाम थिक लिली रे।

- "" सामन्तवादक बीचमे अहाँक जन्म आ लालन-पालन भेल.. तखन फेर विद्रोह ?""

- ""वर्जना आ निषेध हमरा मंजूर नहि भेल कहियो । हम अपन रास्ता ध ' ' चलैत रहलहुँ ।.... ई अवश्य जे हमर जन्म जमीनदार परिवारमे भेल । मुदा हम जमीन्दारी ठाठ-वाटसँ सामन्जस्यसँ नहि बैसा सकलहुँ... ई अवश्य जे हमर लालन-पालन सामंती परिवेशमे भेल मुदा हम सामन्तवादक चकाचौन्हमे भोतिआएब कहियो स्वीकार नहि कएल । ... हम लीकसँ हँटिक ' अपन रास्ता पर चलैत सुख-दुख भोगैत आइ उन्नैस वर्ष एहि पहाड़ आ जंगलक बीचमे रहैत छी । मुदा देल परिस्थितिसँ सामन्जस्य करब हमर स्वभावमे नहि अछि ।.. हमर डाक्टर साहेबक स्वभावमे नहि छनि । हमर बाल-बच्चा तँ आर प्रखर स्वाभिमानी अइ ।

- ""नक्सलवादक प्रसंग अहाँक की प्रतिक्रिया अइ?""

- ""जे धधरा रहइक 1970 क समकालमे से आब नहि छैक।.. तहिया नक्सलवाद एकटा विचार रहैक... लोक आहुति दैक... व्यवस्था, जड़ता, परम्परा पर आक्रमक प्रहार कएल गेल रहइ । बारुदक ढ़ेरसँ तहिया नक्सलबाड़ी आन्दोलनक जन्म भेल रहइक । हमरो लेखनकें ... सृजनक तत्त्वकें ऊर्जा देने रहय ।... आब से नहि छैक । ""

- ""अहाँ अपन लेखनक माध्ममे की कह ' चाहै छिऐक ?""

किछु नहि.. हम उपदेशक नहि छी । हम पंडित नहि । पर उपदेश हमर काज नहि। हम अपन लेखनक माध्यमसँ लोककें असलियत देखा दै ' छिऐ... नकाव उतारि दै ' छिऐ.... आ हमर काज खतम भ ' जाइ अछि । सत्यमे ताकत होइत छैक, सामर्थ्य होइत छैक ""

- "" माने बारुदकें सुलगा दै ' छिऐ.. ?""

- "" हँ, सत्य आ यथार्थ बारुदोसँ प्रलयंकर...""

- "" एखन की लीखि रहलि छी ?""

- "" आब लीखल कहाँ होइत अछि ? लेखन लगभग बन्द अछि ।... कहियो कदाच कतहुसँ पत्र आएल तँ कथा पठा दैत छिऐ... सेहो आब लीखब पार नहि लगैत अछि । जहियासँ डाक्टर साहेब अवसन्न भेल छथि, रुग्ण भेल छथि... हर्ट प्रॉब्लेम छनि... परहेज... पथ्य... फुरसति नहि, कथूक फुरसति ।""

- ""अहाँक कोन-कोन उपन्यास अप्रकाशित रहि गेल ?""

- "" मरीचिका प्रकाशित भेल... तकर बाद लगभग अप्रकाशित । पटाक्षेप ' मिहिर ' मे छपल रहय... पुस्तककार प्रकाशित भेल । उपसंहार वैदेहीमे छपल रहय... तकरो पुस्तकक रुपमे प्रकाशन सम्भव नहि भेल । एकटा उपन्यास लिखने रहिऐक- जिजीविषा-योगाबाबू मांगिक ' ' गेला- मैथिली अकादमीसँ छपाएब । नहि छपल... फेर एक जन किछु वर्ष पूर्व सूचित कएने रहथि - ""अहाँक पाण्डुलिपि सुरक्षित अछि... छपएबाक व्यवस्था भ रहल अछि ।... मुदा सेहो कहाँ भेलैक ? कहाँ छपलैक ? मैथिलीमे एतेक संस्था, समिति, च्रस्ट... अकादेमी... आब अहाँ कहब जे...""

- "" जे अपने पाइ लगा क ' छपा लितहुँ ।.. मुदा राखब कत ' ? पाठकक हाथ धरि के पहुँचौतैक ? वितरण कोना होएत ? बेचत के ? अफसोस अछि तकर.. दःु:ख अछि तकर... मैथिलीमे एकटा देश पत्रिका नहि अछि । ... पाठकक पत्रिका... रोचक साहित्यसँ भरल... बड़ पैघ चुनौती छैक- एम्हर एक दू सालसँ दार्जिलिंगमे नियमित रुपें देश पत्रिका नहि भेटैत अछि ।... तइयो ताकि-ताकि क ' अनैत छी आ छाक भरि क ' पढ़ैत छी । ""

- "" अहाँकें ई इच्छा होइत अछि जे मरीचिका पर फिल्म बनय ?""

- "" हँ, किएक न "" ... मुग्ध होइत कहलनि- "" ई सेहन्ता बहुत दिनसँ अछि कोनो फिल्म निर्माता अबितय आ मरीचिका पर अथवा हमर कोनो आने कथा-उपन्यास पर फिल्म बनयबाक अनुमति मंतिगय.... मुदा एकटा बात... बहुत लेखक सभक ई आरोप रहलनि अछि जे फिल्म नगरीमे ल ' जाक ' नीक-नीक कथा-उपन्यासक थीमकें तोड़ि-मोड़िक ' बाजारु बना दैत छैक...से हमरा नहि चाही.. तेहन नहि चाहि... मुदा सुरुचिपूर्ण फिल्म बनय तँ कोन हर्ज ?""

- "" फिल्म देखैत छिऐक?""

- "" फिल्म पहिने देखैत रहिऐक... हमरासँ अधिक डाक्टर साहेबकें फिल्ममे रुचि ... आब तँ नहिए जकाँ देखइ छिऐक... पुरान फिल्ममे दिलीपकुमार ... अशोक कुमार हमरा बड़ पसिन्न । हमर पितिआइन आ मामीकें सेहो अशोक कुमार ' इम्प्रेस ' करैत रहनि ।""

- "" दीपामेहताक ' फायर ' ' वाटर ' ?""

- "" देखू, समाजमे जे भ ' रहल छैक जे यथार्थ छैक- तकरा अहाँ कतेक काल चोरएबैक... कतेक काल दबएबैक... सब युगक अपन-अपन संघर्ष छैक । अपन यथार्थ छैक । ' फायर ' सिनेमाक तँ सफल प्रस्तुति भेलैक । लेसवियन एक प्रकारक सेक्सकुण्ठा थिक । मुदा ' वाटर ' फिल्ममे दीपा मेहता चोरि कएने छथि ।""

- "" केहन चो ?""

- "" दीपा मेहता बंगलाक प्रसिद्ध उपन्यासकार सुनील गंगोपाध्यायक सेइ समय (बीतलकाल)सँ थीम उड़ा लेने छथिन आ अपना नामे ढोल पिटबा लेलनि । हमर थिक वाटर । ई एक प्रकारक अनर्थ थिक । मूल लेखकक श्रेय हड़पि लेब सर्वथा अनुचित । ""

- "" आ वाटरक थीम ? ओकर कथ्य ? ओकर हंगामा... ?""

- "" थीम ' पर हमरा कोनो आपत्ति नहि .. जे यथार्थ छैक-सत्य छैक... तकरा कतेक काल झँपबैक- धूआँसँ धधरा नीक ।""

- "" अहाँक दिनचर्या की अछि ?""

- "" भोर उठैत छी.. चाह बनबैत छी । पानि गरम करैत छी । मूहँ-हाथ धोक ' पूजा-पाठ करैत छी । पाठ नियमित... तकर बाद पथ्य-पानिमे लागि जाइ छी । डाक्टर साहेबक दवाइ-जलखइक व्यवस्था करै छिऐन । पेपर अबैत अछि । टी.वी. आॅन क ' दैत छी । डाक्टर साहेब तैयार भ ' जाइत छथि । थोड़ेक काल टी.वी. देखैत छथि । फेर हम तैयार भ ' ' साढ़े नौ बजे घऽर सँ निकलि जाइत छी आ साढ़े बारह-एक बजे धरि घऽर घुमैत छी । ""

- "" सब दिन साढ़े नओ बजे घरसँ बाहर चल जाइत छिऐक ।""

- "" हँ लगभग सब दिन..."" - हमर आँखिमे सहस्त्र प्रश्न । साढ़े नओसँ साढ़े बारह बजे धरि ! हम सांकांक्ष होइत पुछैत छिएनि-""से किएक ?""

श्रीमती लिली रे थकमका जकाँ गेलीह-"" कहैत छी... तकर कारण कहैत छी । हम बाजारसँ सबटा सौदा अपनहि अनैत छी । एक बेरिमे सबटा सौदा नहि अनैत छी ।... जेना कहियो बहरएलहुँ तँ दबाइ ल ' अनलहुँ ... फेर सब दबाइ एक ठाम भेटितो नहि छैक... बाँकी दबाइ दोसर दिन अनलहुँ ।.. नव-नव तरकारी... माछ.. खगता ..बेगरता.. किरानाक समान...अपन समान ।.. खेपाखेपी सब दिन बहरा जाइत छी आ घऽरक सब समान ल ' अनैत छी । ""

- "" आइ की अनलहुँ ?...""

- "" आइ अनलहुँ तरकारी... फल आ छोट छोट समान... मुदा एना घुमाबाक पाछाँ एकटा आ उद्देश्य अछि ।""

- "" से की?""

- ""पहिने जखन डाक्टर साहेब स्वस्थ रहैत छलाह ओतेक फिकिर नहि रहैत छल तँ मीलक मील हम दार्जिलिंगमे बउआइत रहै छलिऐ- कोनो-कोनो दिन तँ 22-22 मील पयरे चल जाइत छलिऐ... तें हमरा एखनहुँ स्फूर्ति बनल अइ । घोड़ाक सबारी... स्वीमींग सबटा करैत रहिऐक- बैसि जएबैक तँ शरीर बेकहल भ ' जाएत तें कोनो व्याजें नित दिन घऽरसँ बहराइत छी, आ भरि छाक पयरे घुमि अबैत छी । ""

- "" आ डेढ़ बजेक बाद...""

- "" आ डेढ़ बजेक बाद भोजन करै छी... विश्राम करै छी... विश्राम करै छी.. डाक्टर साहेब आराम करै छथि.. हम तँ लगले उठि क ' फूल-पातक दुनियामे लागि जाइत छी ।.. तकर बाद साँझमे चाह बनबैत छी... हल्का-फुल्का जलखइ... फेर गरम पानि तैयार करै छी । फेर हिनकर सेवा-परिचर्या.. दबाइ... भोजन बनबै छी । किछु बनले रहै छै ' गरम क ' लैत छी... किछु बना लै छी । भोजन आ शयन...""

- ""कोनो एहन इच्छा अइ, जकर पूर्तिनहि भेल हो?""

- "" इच्छाक कोन कमी छैक... इच्छाक नदीमे हरदम पानि भरल रहैत छैक... मोन थिकै सूतक पोला । एक बेरी ओझरा गेतँ फँसले रहि जाइत छै ।...

- ""गाम पर घऽर ?""

- ""नहि गाम पर घऽर नहि अछि आब ।... सब खतम.. किछु कत्तहु नहि । गाम नहि जाइ छी ।.. एकर सभक कोन लेखा ?""

- ""अहाँक हॉबी...""

- ""हमर हॉबी अछि । चित्रकारिता... चित्र बनएबाक हॉबी.. कार्ड पेर्जिंन्टग...""

- ""चित्रकलामे अपनेक आदर्श...""

- "" क्यो नहि ... क्यो नहि आदर्श । सभक चित्र नीक लगै-ए... मुदा ककरो प्रभाव नहि... हम अपन आदर्श स्वयं छी ।..- "" चलू अहाँकें अपन ई डेराक रुम सबमे घुमा दै' छी... चलू पहिने सबसँ कातवला रुममे ल' चलैत छी... ई थिक बेडरुम... "" - पलंग... कुर्सी... देबाल पर हाथसँ बनाओल एकटा चित्र - "" ई थिक ड्राइंग रुम... जँ कहियो कदाच कोनो पेसेन्ट अबैत छन्हि तँ डाक्टर साहेब एतहि देखि लैत छथिन्ह । ई थिक रुम.. खाली-खाली .. एहि रुममे बैसि क' अपना सब गप्प कएलहुँ । पलंग जे दिखै' छिए से जँ हमर कोनो बच्चा एलाह तँ एही रुममे रहैथ छथि । चलू आब पुरान ढंगक एकटा पैघ डाइनिंग टेबुल देखा दैत छी । यैह थिक हमर सभक डाइनिंग टेबुल... आ ई भेल भनसाघर । हे, देखू, आइ तरकारी अनलिऐ... केरा.. केराक कोफ्ता बनतैक। "" - भनसाघरसँ बहरा क' फेर दोसर रुममे अबैत छी..

हे देखू.... ई चित्र.. हमर पैघ बच्चाक थिक जे रीडर छथि- अपनेसँ अपन हाथें अपन चित्र बनौने छथि..सब देबाल पर जे चित्र दिखै छिऐ से हिनके बनाओल छैनि । दरबज्जा पर डाक्टर साहेब भेटि गेलाह की भ' गेलैक दू चारि प्रश्नक बदलामे एतेक राशेक !... ""

मुग्ध भेल लिली रे बजलीह- "" डार्किंलग ! एकटा प्रश्न आर रहि गेलनि, पुछबाक लेल । ""

डाक्टर साहेब उद्विग्न भ' उठलाह- "" आब कोन प्रश्न ?""

हमहूँ उत्सुक होइत बजलहुँ- "" कोन प्रश्न ?""

श्रीमती रे गम्भीर मुद्रामे बजलीह- "" यैह प्रश्न जे हम कोन टूथब्रशसँ ब्रश करै छी ?""

डाक्टर साहेब सीमा आ संयमकें बिसरि क' भभा' - भभा'क' हँस' लगलाह । हमरालोकनिक सम्मिलित ठहाकासँ मथुरा भवन कम्पित भ' उठल ।...

तीन सेलक बैटरीक टॉर्चसँ श्रीमती रे अन्हारमे इजोत करैत रहलीह... आ हम पहाड़ पर चढ़ैत गेलहुँ .. चढ़ैत गेलहुँ ।

अलविदा दार्जिलिंग ! अलविदा श्रीमती लिली रे .. छोटका बस पहाड़क ढ़लान पर दउगल चल जा रहल अछि ।

अलविदा डाक्टर साहेब ! .... अ..ल..वि..दा.. !

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© आशुतोष कुमार, राहुल रंजन  

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प्रकाशक : प्रकाशक मैथिली रचना मंच, सोमनाथ निकेतन, शुभंकर, दरभंगा (बिहार) - ८४६००६  द्वारा प्रकाशित दूरभाष - २३००३

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