बुंदेलखंड संस्कृति

लक्ष्मीबाई रासो

वर्ण मुक्त वुत्त
छन्द कवि  विवरण

कवित्त

जोगीदास गुलाब किशुनेश श्रीधर प्रधान आनन्दसिंह, प्रधान कल्याणिंसह "मदनेश' भैरां लाल पृथीराज (घूस रायसा) 

 

(प्रत्येक चरण में ८, ८, ८, ७ की यति पर अथवा १६, १५ कुल ३१ वर्ण होते हैं।) 

यह छन्द पुराने कवियों द्वारा बहुत अपनाया गया है। जोगीदास ने दलपतिराव रासो में २३ कवित्त छन्द दिए हें। इनके इन छन्दों में वर्ण संख्या निश्चित नहीं रखी गई है। कुछ कवित्त छन्द शास्र की दृष्टि से ठीक हैं। एक स्थान पर सभी चरणों में ३२-३२ वर्ण रखे गए हैं। कुछ कवित्तों में वर्ण संख्या में पर्याप्त असावधानी से वर्ण रखे हैं। इसमें वर्ण क्रम ३२, ३०, ३२, ३१ तथा एक स्थान पर ३१, ३२, ३०, ३१ है। एक छन्द के अन्तिम चरण में १६अ१३उ२९ वर्ण, एक कवित्त के दूसरे व तीसरे चरण में ३०-३० वर्ण हैं एक स्थान पर कवित्त के दूसरे चरण में ३३ वर्ण, एक छन्द की प्रथम पंक्ति में ३५ वर्ण तथा एक के चौथे चरण में ३० वर्ण पाये जाते हैं।

दो कवित्तों में वर्ण वर्ण क्रम २३-२३ रखा गया है। इन्हीं में से एक के तीसरे चरण में २४ वर्ण पाये जाते हैं। यह कवित्त सवैया के जैसे ही हैं। जोगीदास के दो कवित्तों पर छन्द का क्रमांक ही नहीं डाला गया है।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि जोगीदास के द्वारा प्रयुक्त कवित्त विभिन्न प्रकार के हैं। इस छन्द द्वारा इन्होंने गणेश वन्दना राजा का यश, शौर्य, विभिन्न युद्धों में वीरों और सरदारों की वीरता, राजा की उदारता, मंहगाई के कारण उत्पन्न स्थिति, शत्रुओं की दीनता, नीति तथा परामर्श, युद्ध की भीषणता, आक्रमण तथा सेना प्रयाण के वर्णन किए हैं।

गुलाब कवि ने इस छन्द द्वारा सरस्वती और गणेश की वन्दना, अपने आश्रयदाता की प्रशंसा तथा आश्रयदाता के शौर्य आदि का ओजपूर्ण वर्णन किया है।

किशुनेश ने ९ स्थानों पर इस छन्द का प्रयोग किया है। इनके एक कवित्त के प्रथम चरण में १६अ११उ२७ वर्ण तथा एक के तृतीय चरण में १६अ१७उ३३ वर्ण पाये जाते हैं। एक कवित्त में वर्णों का क्रम २३, २३ रखा गया है, जो सवैया छन्द के निकट है। इन्होंने कवित्तों द्वारा आश्रयदाता के वंश का विस्तृत वर्णन किया है। इसक अतिरिक्त राजा के शौर्य, प्रशंसा, सैनिकों व सरदारों की वीरता का भी ओजपूर्ण वर्णन किया गया है।

श्रीधर ने इस छन्द द्वारा अपने आश्रयदाता की प्रशंसा एवं उसके शौर्य का वर्णन किया है। भूषण की तरह शत्रुओं की स्रियों की विपत्तिग्रस्त स्थिति का वर्णन भी किया गया है।

प्रधान आन्नद सिंह ने केवल दो कवित्तों का प्रयोग यिका है। एक में वर्णक्रम ३३२ ३२, ३२, ३५ तथा दूसरे में ३१, ३२, ३२, ३२ रखा गया है। इस छन्द के द्वारा इन्होंने पंचों द्वारा युद्ध के परामर्श, युद्ध सामग्री की तैयारी का वर्णन किया है।

प्रधान कल्याण सिंह ने झाँसी कौ राइसौ' में कुल १० कवित्त प्रयुक्त किये हें। इनमें से एक में वर्णक्रम ३३, ३२, ३२, ३३ है। एक स्थान पर ३२, ३१, ३१, ३२ वर्णक्रम है। इस छन्द द्वारा इन्होंने परामर्श, सैनिकों व सरदारों का शौर्य, युद्ध की घटनाओं , शत्रु पक्ष की शोक पूर्ण स्थिति, अंग्रेजों की शक्ति सम्पन्नता, दार्शनिक चिंतन, युद्ध स्थल में मारकाट, युद्ध सज, रानी लक्ष्मी बाई के स्वार्गारोहण आदि विषयों का प्रतिपादन किया है।

"मदनेश' को कवित्तों के प्रयोग में कुछ अच्छी सफलता प्राप्त हुई है। इन्होंने अधिकांश कवित्त छन्द शास्र के नियमों के अनुसार लिखे गये हैं। केवल दो स्थानों पर वर्ण क्रम में साधारण हेर फेर है। इन स्थलों पार कवित्तों के प्रथम चरण में १५अ११५उ३० तथा १६अ१७उ३३ वर्ण पाये जाते हैं। मदनेश जी ने झाँसी की कमानी नामक तोप के चलने का इस छन्द में अत्यन्त स्वाभाविक चित्रण किया है। इसके लिए कवि कने तीन छन्दों का एक झ्ला दिया है, जिसकी ध्रुव पंक्ति-""मुलक मैदान को पिदान फार डारा है'' तीनों कवित्तों के अन्तिम चरण में दुहराई गई है। इन्होंने इस छन्द द्वारा रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य, तोप के गोले चलने, तोपचियों की कुशलता, सरदारों की वरीता आदि का अच्छा वर्णन किया है। इन कवित्तों में ध्वनि अनुकरण मूलक शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है, जिससे रसात्मकता में भी वृद्धि हुई है।

भैंरो लाल के कवित्त दो रुपों में उपलब्ध होते हैं। इनके कछ कवित्तों में २३-२३ वण्र प्रत्येक चरण में होने से सवैया छन्द के ही अधिक निकट हैं। शैष कवित्तों में ३१ वर्ण क्रम पाया जाता है। इस छन्द द्वारा इन्होंने युद्ध के निमंत्रण भेजने, युद्ध के लिए वीरों के सजने, वीरों की दर्पोक्तियों, सैनिकों की भगदड़, क्रोधित होकर सैनिकों के युद्ध करने आदि का वर्णन किया है।

पृथीराज ने एक कवित्त में कासी नाम के एक व्यक्ति तथा घूस के हास्यात्मक युद्ध का वर्णन किया है।

घनाक्षरी

भैंरोलाल

भैंरोलाल की घनाक्षरी में १६+ १५= ३१ वर्ण तथा अन्त में गुरु वर्ण पाया जाता है। यह छन्द कवित्त के ही समान हो गया है। इन्होंने कुल आठ घनाक्षरी छन्द अपने भिलसांय कौ कटक में दिए हैं। एक छन्द में वर्ण क्रम दोषपूर्ण है, जो इस प्रकार है-
प्रथम चरण १६अ१५उ३१ वर्ण अन्त में दीर्घ
द्वितीय चरण १६अ१५७उ३४३ वर्ण अन्त में दीर्घ
तृतीय चरण १६अ१५उ३१ वर्ण अन्त में दीर्घ
चतुर्थ चरण १५अ१५उ३० वर्ण अनत में दीर्घ

यह छन्द निम्न प्रकार है-

""बबीर बलबीर रणधीर धर धीर और 
हीर परी मीर न शरीर सुध प्रान की
मार धर दौर संक शब्द सुन कान लख,
लख बान वरखन्त हरखन्त किरनवान की।
भनै भैंरोलाल घाल घाल कै तिपाल तीर,
भालन की मार मची घोर घमसान की।
धीरज कराये भटभीर बराये भट,
मीर जल जाये लख वीरता दिमान की।"" 

इस छन्द के द्वारा भैंरो लाल ने युद्ध क्षेत्र की मार काट, गोली, तलवार, बन्दूक आदि हथियारों का वण्रन किया है। एक स्थान पर दो घनाक्षरियों का एक झ्ला दिया गया है, जनमें एक ध्रु पंक्ति अन्तिम चरण में दुहराई गई है। इससे युद्ध की भयंकरता का स्वाभाविक वर्णन किया गया है।

किरवानं कवित्त किरवांन

जोगीदास किशुनेरश क्रवांन कृपाल प्रधान कल्याण सिंह मदनेश 

किरवांन में ८,८,८,८, की यति पर ३२ वर्ण होते है तथा अन्त में लघु होता है। यह छन्द अंत्यांनुप्रास की छटा से परिपूर्ण होता है। 

एक ध्रुव पंक्ति सभी किरवांनों के अन्तिम चरण में दुहराई जाती है। यह शस्र शौर्य, विशेष रुप से कृपाण की वीरता प्रदर्शित करने के लिए प्रयुक्त किया गया है। सम्भवतः कृपाल वीरता के लिए प्रयुक्त होने के कारण ही इसे कृपाण या किरवांन नाम मिला।

जोगीदास ने दलपति राव रासो में १३ किरवांन छन्द रखे हैं। १० छन्दों की ध्रुव पंक्ति एक ही है, फिर दो छन्दों की ध्रुव पंक्ति एक जैसी है तथा एक छन्द की ध्रुव पंक्ति अलग है। इनके द्वारा प्रयुक्त किरवांनों में तीन स्थानों पर ३१ वर्ण वाले चरण, एक स्थान पर ३८, दो स्थानों पर ३० वर्ण, एवं एक स्थान पर २८ वर्ण पाये जाते हैं। जोगीदास ने "किरवांन' को "कवित्त किरवांन' नाम दिया है। इस छन्द द्वारा उन्होंने आश्रयदाता का शौर्य, युद्ध की भीषणता तथा हथियारों की वीरता क अतिरंजित एवं ओजपूर्ण चित्रण किया है।

किशुनेश ने ३१ स्थानों पर किरवांन का प्रयोग किया है। एक किरवांन पर छन्द क्रमांक नहीं डाला गया है। छन्दों के पदों में वर्ण-संख्या निर्धारित रखने की ओर कवि की सावधानी दृष्टिगोचर होती है। केवल दो तीन छन्दों की कुल पंक्तियों में वर्ण संख्या कम या अधिक पाई गई है। एक छन्द के प्रथम चरण में ३१ तथा अन्यत्र एक दूसरे चरण में ३० वर्ण पाये जाते हैं। एक छन्द के तृतीय चरण में ३३ वर्ण हैं, एक छन्द के प्रथम चरण में ३१ वर्ण तथा एक छन्द के प्रथम पद में २९ वर्ण पाये जाते हें। प्रारम्भ में दो किरवांनों में शत्रुजीत सिंह की तलवार की प्रशंसा की गई है। फिर १२ करवांनों में- ""तहां राखी नरनाही सुभ साही अवगाही, सत्रजीत जीत सिंह तथा उनकी कृपाण के शैर्य का स्वाभाविक वर्णन किया गया है। पश्चात् १६ छन्दों में "तहां भारी भुज दण्डन सम्हारी अत्रधारी, सत्रजीत छत्र धारी भुककर तलवार झारने का ओजपूर्ण वर्णन है। अन्तिम किरवांन में शत्रुजीत सिंह के यशः शौर्य का वर्णन किया गया है।

श्रीधर ने इसका नाम क्रवांन लिखा है तथा इन्होंने भी इस छन्द में अपने आश्रयदाता महाराज पारीछत के शौर्य एवं उनकी कृपाण वीरता का वर्णन किया है।

प्रधान कल्याण सिंह ने इस छन्द का नाम कृपाण लिखा है। इन्होंने दो स्थानों पर कुल चार छन्दों का प्रयोग किया है, जिनमें एक ध्रुव पंक्ति ""तहां रानी मरदानी भुककर किरवांन'' दुहराई गई है। इस कवि ने इस छंद की वर्ण संख्या में असावधानी की है। दो छन्दों के प्रथम व द्वितीय चरणों में ३०-३० वर्ण रखे गये हें तथा इन्हीं छन्दों के शेष चरणों में ३१-३१ वर्ण हैं। अतः ये कवित्त के अधिक निकट हैं। दूसरे स्थान पर पहे छन्द के प्रथम चरण में २९, तृतीय चरण में ३३ तथा शेष चरणों में ३२ वर्ण हैं। आखिरी छन्द में प्रथम चरण में ३२, द्वितीय एवं तृतीय चरण में ३१ तथा चतुर्थ चरण में ३३ वर्ण संख्या पाई जाती है। इस छन्द द्वारा प्रधान कल्याणसिंह ने रानी लक्ष्मीबाई तथा उनकी कृपाण के शौर्य की प्रशंसा का वण्रन किया है।

६मदनेश' जी ने इस छंद का प्रयोग कुछ अधिक सफलतापूर्वक किया है। इन्होंने ३६ किरवांन छन्द लक्ष्मीबाई रासो में प्रयुक्त किए हैं। सभी छन्दों में वर्ण क्रम ८,८,८,८उ३२ प्रति चरण पाया जाता है। पहले २२ छन्दों में ध्रुव पंक्ति ""तहं तेज कौ तमार, कर कोप बेसुमार, वीर विचलौ जरैया, भुकझारी किरवांन।'' रखी गई है। इन छन्दों में रघुनाथसिंह जरैया की कृपाण वीरता तथा युद्ध की मारकाट का स्वाभाविक वर्णन किया गया है। बाद के १४ छन्दों की ध्रुव पंक्ति -""तहं तेज कौ तमार, कर कोप बेसुमार, वीर बाई की सवाई, भुकझरी किरवांन"" है। इनमें से ११ छन्दों में रानी लक्ष्मीबाई की तोपों की लड़ाई का वर्णन किया गया है तथा अन्तिम ३ में झाँसी के वीरों के द्वारा किए गए भीषण युद्ध एवं नत्थे खाँ द्वारा अपनी सेना को प्रोत्साहित किए जाने का वर्णन है।

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