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अमीर ख़ुसरो दहलवी



चंद साल बाद एक शाम सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ने जरा ख़फगी (नारजगी) से बड़ी बेगम मलिकाए जहाँ को बुला भेजा। बादशाह से बेगम ने कहा - "आपको बाहर की तो सब खबरें हैं। सियासी शतरंज से फुर्सत नहीं मिलता। कुछ अंदर की भी खबर है। "खिज्र खाँ बड़ा हो रहा है।" बादशाह बोले - हाँ हाँ। कँवल रानी आखिर कल तक गुजरात की रानी थी। मेरे बाद खिज्र खाँ ही तख्त पर बैठेगा। क्यों न वो लड़की, वो उस लड़की का क्या नाम है? हाँ देवल देवी, हाँ वो रानी बने, दोनों की शादी मुनासिब रहेगी।" इस पर बेगम ने कहा - मेरे बाई उलुग खाँ आपके सिपहसालार हैं। कल अगर खिज्र खाँ शाही तख्त पर बैठेगा तो उसे तलवारों की मदद भी चाहिए। मेरे भाई की एक खूबसूरत बेटी है। मैं बाप बेटी को पंजाब से बुलवाती हूँ। अगर ये रिश्ता हो जाए तो मेरा भाई कल अपने होने वाले दामाद की हिफाजत करेगा और उसकी ताकत भी बनेगा। सुलतान आप गुजरात से कर्नाटक तक तो खूब भली भाँति सोचते हैं लेकिन फिर आखिर में नाक के नीचे का नाटक मुझे ही करना पड़ता है।" बादशाह बेगम साहिबा के यह टोंट भरे अल्फाज सुनकर हँसते हुए बोले - जैसी मलिका जहाँ की मर्जी। सियासी दावपेंच में आपसे कोई जीत नहीं सकता।' अमीर खुसरो अपनी रुमानी (प्रेम कथा) मसनवी खिज्र खाँ व देवल रानी में अपने मित्र खिज्र खाँ की जुबानी लिखते हैं - "मलिक जहाँ अम्मा जान ने अपने सगे भाई और उसके खानदान के खास-खास लोगों को अपने खर्चे पर देहली बुलवा लिया और कई महिनों बहुत ही धूम-धाम से मेरी शादी की रस्में अदा की गई। मामू की बेटी से मेरी शादी कर दी गई। खूब उत्साह से मेरा जश्न मनाया गया, गाने, बजाने, नाच आदि हुए मगर खुशियों की इस आतिशबाजी ने मरे अरमानों की होली भी जला दी। देवल दी को मुझसे दूर अलग महल में रख दिया गया जब कि मेरा दिल उसके बगैर बेकरार रहता था। बीच में ये कैसी दीवार की आइन्दा मिलने न पाऐं।

 

अमीर खुसरो की प्रसिद्ध इशकिया फारसी मसनवी देवल रानी खिज्र खाँ से एक एक रंगीन चित्र। इसमें अमीर खुसरो ने अपने राजकुमार मित्र खिज्र खाँ और उसकी प्रियतमा देवल रानी के प्रेम कथा का मार्मिक चित्रण किया है। देवल रानी गुजरात के राजा कर्ण की बेटी है। दोनों की हत्या अलाउद्दीन खिलजी ने पहले उन्हें जेल में बंद करवा कर, करवा दी। अलाउद्दीन स्वयं देवल रानी से शादी करना चाहता था या उसे अपनी बांदी बना कर रखना चाहता था, क्योंकि उसने राजा कर्ण को युद्ध में परास्त कर दिया था।

खिज्र खाँ अपनी मामू की लड़की से शादी होने पर खुश नहीं था। उसका दिल देवल देवी में बसा था, गुजरात के राजा कर्ण की बेटी। अत: उसके वियोग में वह बहुत बिमार पड़ गया। शरीर कमजोर पड़ गया व हड्डियाँ निकल आईं। शाही हकीमों और वैद्यों ने उसका बहुत इलाज किया मगर सब व्यर्थ। कोई लाभ नहीं। इधर अपने प्रिय एवं लाडले पुत्र खिज्र खाँ राजकुमार को सख्त बिमार व दुखी देख कर बादशाह अलाउद्दीन खिलजी भी बिमार पड़ गए। अब उनका सारा समय शाही आरामगाह में बेतरतीब गुजरने लगा। एक रोज उन्होंने अपनी बेगम को बुलवाकर उनसे कहा कि तत्काल खिज्र खाँ देवल देवी का निकाह करवा दिया जाए। मलिका जहाँ बेगम ने बादशाह से इसका वायदा किया। लेकिन समय को कुछ और ही मंजूर था। शनशाहे हिन्द सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की बेपनाह हुकूमत खत्म हुई। खिज्र खाँ को किला-ए-ग्वालियर में कैद कर लिया गया। अमीर खुसरो ने इस घटना का आँखों देखा विवरण करते हुए आगे लिखा है - 'मलिक काफूर' सुल्तान खिलजी को ऐसा सिपहसालार जिसकी कभी मैंने इतनी तारीफें की थी। आज देखो तो अपने बदन की कालिक पर शहजादे के खून की सुर्खी मल रहा है। लो आधी रात गई। ये रेशमी रुमाल अब खाली सामने रखा है। खिज्र खाँ मेरा नौजवान दोस्त, मेरे बचपन का साथी, खबर आई है कि मलिक काफूर ने कैद में उसकी आँखें निकाल लीं। ओफ ओ इतना जुल्म।"

इस बीच अलाउद्दीन खिलजी के दूसरे पुत्र कुतुबुद्दीन ने (१३१६ दिल्ली) मुबारक शाह खिलजी का नकाब इख्तयार कर के तख्ते सल्तनत पर जलवा किया। मुशीरे सलतनत मलिक काफूर का जल्लादों ने बेरहमी से सर उड़ा दिया।

नौजवान बादशाह सलामत ने दरबारी शायर अमीर खुसरो को तलब किया और उनका ओहदा बहाल किया। बादशाह ने खुसरो से कहा "सलामी में कोई ताजा, मनमोहक और दिलकश कसीदा लाओ और हमारे दौर की, हमारे जमाने की तारीख नज्म करके सुनाओ तो शाही खजाने से इतना सोना, हीरे, जवाहरात मिलेगा कि कभी अपनी आँखों न देखा होगा और अपने कानों न कभी सुना होगा। शुद्ध खरा सोना।"

अमीर खुसरो ने बादशाह के कहे अनुसार मसनवी नुह सिपहर (नौ आसमान) (७१८ हिज्री १३१८ उम्र ६५) को लिखा। इसके लिए एक हाथी के बराबर सोना तौल कर खुसरो को बादशाह की तरफ से ईनाम दिया गया। इस ऐतिहासिक मसनवी में मुबारक शाह की जीतों, उसकी बनवाई इमारतों, निजामुद्दीन औलिया, भारतीय नगरों, प्रथाओं, धर्मों, लोगों, संस्कृति आदि की जो खोल कर तारीफ, राज व प्रजा के कर्तव्य और हक, सूफियों की आलौकिक व दिव्य प्रेम पद्धति, शाहजादा मुहम्मद की जन्म कुंडली (इससे अमीर खुसरो के ज्योतिष ज्ञान का पता चलता है।) आदि हैं। आठवें अध्याय में इश्के हकीकी को चौगान और गेंद के प्रतीक द्वारा स्पष्ट किया गया है। मसनवी के हर अध्याय में नए छंद हैं जिनमें कुछ ऐसे हैं जिनका प्रयोग खुसरो के पूर्व किसी ने किया ही नहीं था। जैसे मुतकारिब, मुसम्मन, सालिम आदि। हिन्दवी का जिक्र तथा उसमें लिखने पर गर्व।

खुसरो अलाउद्दीन के दूसरे पुत्र कुतुबुद्दीन मुबारक शाह के विषय में लिखते हैं - 'चलो इस मंचले को भी चलते-चालते देख लेते हैं। इसे भी खुश रखना होगा, बहुत होशियारी से। लड़का है। ऐश पसंद है। अभी से नशे से धुत्त पड़ा रहता है। कहीं दुश्मनों के हाथों में न खेल जाए। मेरे ख्वाजा से खार न खाए। कहीं अपने अंधे भाई खिज्र खाँ को न सताए। मैं उसके करीब रहूँ। उसे फरेब में, आने से होशियार रखूँ। उसे छल-कपट करने से रोकूँ। हुक्म हुआ है दक्खिन में जाने वाली फौज के साथ रहो। देहली में देवगिरी तक, तीन महिने का सफर। गर्मी, सर्दी, बरसात, जंगल, पहाड़, दरिया, बीमारियाँ, बरबादियाँ। घोड़े की पीठ पर बैठकर शेर कहूँगा। इस बार मैं नौजवान बादशाह के कान में घुमा फिरा के काम की बात डालूँगा। ये फौज एक जुनून का सफर है। तरह-तरह की जबानें, उनके तौर-तरीके, जुदा जुदा खाने और गाने। सच पूछो तो ये हिन्दुसातान की रंगारंग सर ज़मीन बड़ी ही मनमोहक है। आदमी यहाँ का जहीन, हुनर मंद, हाथ का काम करने वाले बेमिसाल, एक से एक नाजुक शाल और बावफा नमकीन, क्या कंधार क्या समरकंद। मिठास और नमक की मिलवाट देखनी हो तो यहाँ मिलेगी। सलोने साँवले लोग। दुनिया भर के फल, आम, अंजीर, केले, पान, फूलों में महक, बागों में चहक, हाथी की दानाई और मोर की जेबाई, दिमाग तेज, मिट्टी गुल रेज, सितारों का इल्म, ज्योतिष विद्या, फलसफे का मजा और फिर सिफ्र (शून्य, जीरो)। सिफ्र हमारे हिन्दुस्तानियों ने ईजाद किया, दुनिया को दिया। ये गोरे लोग। ये लोग अपनी खाल के रंग पे क्या अकड़ते हैं। आँख की पुतली मैं तो स्याही होती है। स्याही से रोशनी है। बालों की स्याही से हुस्न है और हाँ हिन्दुस्तान की पुरानी जबान संस्कृत, दुनिया की जबानों से बढ़कर मालामाल और हमारी जो है ग्वालियारी हिन्दवी, मेरी माँ की भाषा बेमिसाल। देवगिरी दक्कन के इस लम्बे सफर में ये सब मैं लिखता जाता हूँ थम थम कर। बादशाह देहली पहुँच कर दरबार करेगा, फतेह का जश्न मानएगा। मेरा कलाम सुना जाएगा। मैं ये अपनी मसनवी 'नुह सिपहर' (नवाँ आसमान) ये पेश कर्रूँगा बादशाह के सम्मुख। दुनिया को अपना वतन हिन्दुस्तान ऐसे दिखा दूँगा कि तीन सौ साल पहले इतिहासकार अल बरुनी ने क्या दिखाया होगा?"

इधर ग्वालियर के किले में विजय मंदिर में खिज्र खाँ व देवल रानी एक साथ कैद हैं, बंदी हैं। कुतुबद्दीन मुबारक शाह भी मलिक काफूर की तरह खिज्र खाँ और देवल देवी के इश्क के सख्त खिलाफ था। उसने कारागार में अपने भाई को डाँटते हुए, एक खत भेज कर कहलवा भेजा - "तुम मेरे बाप के नालायक बड़े बेटे, खिलजी शहजादे हो कर एक कनीज एक बांदी के पांव पर सर रखते हो। उसे बेवजह सर चढ़ाते हो। खानदाने शाही का नाम डुबाते हो। गुजरात को हमने बतौर शमशीर फतह किया था। देवल रानी हमारी कैदी है, कनीज है, बांदी है। तुम उसे सर चढ़ाते हो। शर्मनाक खिज्र खाँ शहजादे, बेहद शर्मनाक। अगर तुम्हें अपना सर अजीज है तो उस बद्तमीज लड़की उस बाँदी उस कनीज को यहाँ भेज दो, फौरन, हमारे आदमियों के साथ, वरना?" इस खत का खिज्र खाँ व देवल देवी पर कोई असर नहीं हुआ। फलत: बादशाह के हुक्म से दोनों का कत्ल कर दिया गया। इस घटना के साथ ही खुसरो की मसनवी देवल रानी खिज्र खाँ, दो प्रेमियों की कहानी दर्दनाक अंजाम के साथ समाप्त हुई। इस इश्किया व ऐतिहासिक मसनवी में पहली बार अमीर खुसरो ने भारतीय नारी का बेहद ही सुन्दर चित्रण किया है। इस विषय पर डॉ. ज्ञान चंद जैन ने लछमी नारायन शफीक के चमनिस्तान-ए-शुअरा (११७५ हिज्री में संकलित) से अमीर खुसरो का एक दोहा उद्घृत किया है। हाशमी दकनी के अनुवाद में हिन्दी में प्रेम की कल्पना का उल्लेख करते हुए 'शफीक' ने अमीर खुसरो का एक फारसी शेर और उसी विषय का उनका दोहा अद्घृत किया है-


"खुसरवा दर इश्क बाजी कम जि हिन्दू जन मबाश कज़
बराए मुर्दा मी सोजंद जान-ए-खेस रा।"

अर्थात ऐ खुसरो यदि प्रेम करना है तो कर पर ऐसा प्रेम कर जैसा हिन्दू नारी करती है जो पति के मरने पर जल जाती है यानि अपना सर्व न्यौछावर कर देती है। इस फारसी शेर का अमीर खुसरो द्वारा लिखित हिन्दवी दोहा -

"खुसरो ऐसी पीत कर जैसे हिन्दू जोय,
पूत पराए कारने जल जल कोयल होय।"

इस दोहे में ऐसी, जैसे, पराए, जल-जल स्पष्टत: खड़ी बोली के तत्व हैं।

 

 

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