वाराणसी वैभव

काशी की विभूतियाँ


  1. महर्षि अगस्त्य
  2. श्री धन्वंतरि
  3. महात्मा गौतम बुद्ध
  4. संत कबीर
  5. अघोराचार्य बाबा कानीराम
  6. वीरांगना लक्ष्मीबाई
  7. श्री पाणिनी
  8. श्री पार्श्वनाथ
  9. श्री पतञ्जलि
  10. संत रैदास
  11. स्वामी श्रीरामानन्दाचार्य
  12. श्री शंकराचार्य
  13. गोस्वामी तुलसीदास
  14. महर्षि वेदव्यास
  15. श्री वल्लभाचार्य

 

 

 

श्री पार्श्वनाथ

जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक २३वें तीथर्ंकर पार्श्वनाथ ऐतिहासिक शलाकापुरुष और महावीर के पूर्ववर्ती थे, जिनका जन्म लगभग आठवीं शती ई.पू. में पौष कृष्ण दशमी को वाराणसी के शासक अश्वसेन के घर हुआ।  वामा इनकी माता थीं।  इनका विवाह कुशस्थल के शासक प्रसेनजित की पुत्री प्रभावती से हुआ।  दीक्षा ग्रहणकर गहन साधना द्वारा इन्होंने वाराणसी में कैवल्य प्राप्त किया और जैन धर्म के चातुर्याम (सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह) की शिक्षा दी जो आज भी पूरी तरह प्रासंगिक है।  सिर के ऊपर तीन सात और ग्यारह सपंकणों के छत्रों के आधार पर मूर्तियों में इनकी पहचना होती है।  काशी में भदैनी, भेलूपुर एवं मैदागिन में पार्श्वनाथ के कई जैन मन्दिर हैं।

जैन ग्रंथों के अनुसार पार्श्वनाथ से पहले जैन धर्म के २२ तीथर्ंकर हो चुके थे।  पार्श्वनाथ एवं महावीर स्वामी के पूर्व के किसी तीथर्ंकर के विषय में कोई सूचना नहीं प्राप्त होती है।  जैन धर्म के संत तथा प्रमुख अधिष्ठाता तीथर्ंकर कहलाते हैं।  इन्हें जितेन्द्रिय ज्ञानी माना जाता है।  जैन धर्म के चौबीस तीथर्ंकर हुए जिनमें पार्श्वनाथ तेईसवें तीथर्ंकर थे।  पार्श्वनाथ वास्तव में ऐतिहासिक व्यक्ति थे।  जैकोबी महोदय तो इन्हें जैन धर्म का संस्थापक मानते हैं।  ब्राह्मण परम्परा के अनुसार पार्श्वनाथ की गणना चौबीस अवतारों में की जाती है।  कल्पसूत्र के अनुसार पार्श्वनाथ का जन्म महावीर स्वामी से लगभग २५० वर्ष पूर्व अर्थात ७७७ ई. पूर्व चैत्र कृष्ण चतुर्थी को काशी में हुआ था।  उनके पिता अश्वसेन वाराणसी के राजा थे।  उनकी माता का नाम वामा था।  उनका प्रारंभिक जीवन राजकुमार के रुप में व्यतीत हुआ।  युवावस्था में कुशस्थल देश की राजकुमारी प्रभावती के साथ आपका विवाह हुआ।

तीस वर्ष की आयु में ही आप ने गृह त्याग दिया और संन्यासी हो गये।  ८३ दिन तक कठोर तपस्या और ८४ वें दिन उनके हृदय में ज्ञानज्योति प्रज्वलित हुई।  इनका ज्ञान प्राप्ति का स्थान सम्मेय पर्वत था।  ज्ञान प्राप्ति के उपरांत सत्तर वर्ष तक आपने अपने मत और विचारों का प्रचार-प्रसार किया तथा सौ वर्ष की आयु में देह त्याग दिया।  पार्श्वनाथ ने चार गणों या संघों की स्थापना की।  प्रत्येक गण एक गणधर के अन्तर्गत कार्य करता था।  सारनाथ जैन-आगम ग्रंथों में सिंहपुर के नाम से प्रसिद्ध है।  यहीं पर जैन धर्म के ११ वें तीथर्ंकर श्रेयांसनाथ ने जन्म लिया था और अपने अहिंसा धर्म का प्रचार-प्रसार किया था।  उनके अनुयाइयों में स्री और पुरुष को समान महत्व प्राप्त था।

सुपार्श्व तथा चन्द्रप्रभा का जन्म भी काशी में हुआ था।  पार्श्वनाथ की जन्म भूमि के स्थान पर निर्मित मंदिर भेलुपुरा मुहल्ले में विजय नगरम् के महल के पास स्थित है।

 

 

वाराणसी वैभव


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