देवनारायण फड़ परम्परा  Devnarayan Phad Tradition

बगड़ावतों और रावजी का युद्ध

रावजी द्वारा भूणाजी को मरवाने की कोशिश 


बगड़ावतों के मरने के बाद उनकी सम्पत्ति की लूट मच जाती है। कश्मीरी तम्बू तो मन्दसोर का मियां ले जाता है, जय मंगला और गज मंगला हाथी पीलोदा के कुम्हार ले गये और सवाई भोज की बुंली घोड़ी सावर के ठाकुर दिया जी ले जाते हैं।

सोने का पोरसा पहले ही तेजाजी लेकर चले गयेथे और बगड़ावतों की अच्छी नस्ल की गायें नापा ग्वाल गोसमा डूगंरा में ले गया। रावजी नीमदेव से कहते हैं कि सब सामान तो लोग लूट कर ले गये हैं। उन्हें बगड़ावतों के मारे जाने का अफसोस होता है और कहते हैं कि ऐसे भाई कहां मिलेगें। और यह महसूस करते हैं कि यह सब भवानी की माया है जो बगड़ावत मारे गये।

सारी रानियों के सती होने के साथ पदमादे भी सती हो जाती है और साडू माता को सती होने से मना कर देती है क्योंकि भगवान ने अभी उनके यहाँ जन्म लेना है।

सभी बगड़ावतों की रानियों के सती होने के बाद, सा माता हीरा दासी को साथ लेकर मालासेरी की डूगंरी पर रहने आ जाती है।

अब रावजी कहते हैं कि बगड़ावतों के बालक टाबर हो तो उन्हें मैं पाल-पोस कर बड़ा कर्रूं और वापस बगड़ावत खड़े कर्रूं। यह बात छोछू भाट का मौसेरा भाई गांगा भाट सुन लेता है। उसे पता होता है कि बगड़ावतों के बीसी कुमारों ( १४० कुमार) को छोछू भाट, भाट मगरें में पाल रहा है। रावजी जब अपनी सेना के साथ भाट मंगरे पहुंचते हैं, वहां छोछू भाट मंगरे पर बैठा देखता है कि सेना आ रही है तो सभी बीसी राजकुमारों को मंगरे में छोड़ कर भाग जाता है।

कालूमीर पठान रावजी से कहते हैं कि रावजी इनको पालने की गलती मत करना, इन्हें यहीं मार देते हैं, नहीं तो ये बड़े होकर अपने बाप-दादों का बैर आपसे लेगें। और कालूमीर कहता है कि रावजी २४ बगड़ावतों से युद्ध करते-करते - महीने हो गये, ये तो पूरे १४०ंगा। है इनसे कैसे निपटेगें। रावजी कालूमीर पठान की बात मान जाते है और उन्हें मारने का आदेश दे देते हैं। कालूमीर पठान उन बच्चों को वहीं मार देता है। उनमें से एक बच्चा बच जाता है भूणाजी, उसे पत्थर पर पटक देते हैं लेकिन वह बच्चा नहीं मरता है। (इन्हें लक्ष्मण का अवतार बताया गया है।) जब भूणाजी नहीं मरता हैं तो रावजी उसे अपना पीण्डी पाछ बेटा बना लेते हैं, अपनी पीड़ली के चीरा लगाकर एक दूसरे का खून आपस में मिला कर धरम बेटा बना लेते हैं। भूणाजी को लाकर रावजी अपनी रानी को देते हैं और कहते हैं कि इसे भी राजकुमारी तारादे के साथ-साथ अपना दूध पिलाओ और पाल-पोस कर बड़ा करो। रानी अपने स्थनो के जहर लगाकर भूणाजी को दूध पीलाती है, भूणाजी फिर भी नहीं मरते। आखिर रानी भूणाजी को हाथी के पावों से कुचलवाने को कहती है, हाथी उन्हें अपनी सूण्ड से उठाकर अपनी पीठ पर बैठा लेता है। यह सब देख कर रानी जी के भाई चान्दारुण के रहने वाले सातल-पातल, भूणाजी की चंटी अंगुली काट कर उन्हें खाण्डेराव का नाम देते हैं। सातल-पातल भूणाजी की अंगुली काटते समय यह कहते हैं की भाण्जे जब तू बड़ा हो जावे तब तेरे में ताकत हो तो हमसे बैर ले लेना। ये बात वहां बैठा एक पून्या जाट सुन लेता है और इस बात को गांठ बांध लेता है, वक्त आने पर भूणाजी को बता

इस तरह बगड़ावतों के मारे जाने पर सारा परिवार अलग-अलग हो गया। रावजी ने बगड़ावतों के बीसी कुमारों को भी मरवा दिया। उनके परिवार के बचे हुए कुमार अलग-अलग जगह पर पले बढ़े। जिनमें सबसे बड़े मेहन्दू जी अजमेर में, तेजाजी के बेटे मदनों जी उनके पास पाटन में, भूणा जी राण में और भांगीजी बाबा रुपनाथ के पास ही पले बढ़े।

 

 
 

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