देवनारायण फड़ परम्परा  Devnarayan Phad Tradition

बगड़ावतों और रावजी का युद्ध

सवाई भोज और रानी जयमती  


रानी जयमती ने सवाई भोज को अपने पास महल में ही चौपड़ में उलझाए रखा और युद्ध भूमि में जाने नहीं दिया। सारे भाईयों की मौत के बाद सवाई भोज खुद रण क्षेत्र में जाने की तैयारी करते हैं। रानी जयमती से अपने अस्र-शस्र मांगते हैं तो रानी वहां पर भी एक वर मांगती है कि मैं भी आपके साथ युद्ध में चलूंगी और आपके पीछे बुंली घोड़ी पर सवार रहूंगी मगर आप पीछे मुड़कर मेरी ओर नहीं देखना, नहीं तो मैं आपका सिर उतार लूंगी।

यह वचन देने के बाद रानी सवाई भोज को उनके अस्र-शस्र देती है।

सवाई भोज अपनी सेना को साथ लेकर युद्ध करने के लिये राठोला की पाल पर पहुंच जाते हैं। रावजी के सामने जाकर उनके ऊपर तलवार से हमला करते हैं। रानी जयमती अपना हाथ आगे कर देती हैं, जिससे उसके हाथों की चूड़ियां कट जाती है। सवाई भोज पीछे मुड़ कर कहते है ये क्या करती हो रानी सा अभी आप का हाथ कट जाता। रानी कहती है की लाओ मेरा वचन पूरा करो, आपने वचन दिया था कि पीछे मुड़कर नहीं देखूंगा इतना सुनते ही सवाई भोज खुद अपना सिर काट कर रानी को दे देते हैं।

रानी जयमती का विराट रुप

सवाई भोज की मौत की खबर सुनकर सवाई भोज की दूसरी रानियाँ भी वहाँ आ जाती हैं और हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती हैं। मगर पदःमादे, जो मेहन्दु जी की माँ थी उन्होने, साडू माता को हाथ जोड़ने से मना कर दिया। वहीं भवानी, चौबीस भाईयों की मुण्ड माला बना रही थी।

इधर रावजी कहते हैं भाई राणी कहां है, राणी के लिये ही तो युद्ध किया है। रावजी के इतना कहते ही पेड़ पर बैठी भवानी बोलती है राजाजी ऊपर देखो, रावजी देखकर घबरा जाते है। रानी जयमती भवानी का रुप धारण कर गले में मुण्ड माला धारण कर २० भुजाओं युक्त सिंह पर सवार बड़ के पेड़ पर बैठी हुई है। यह रुप देख रावजी और नीमदःेव घबरा जाते हैं। रावजी को रानी के विराट रुप के दर्शन करने के बाद रावजी पछताते हैं कि हमने ऐसे ही अपने भाईयों को खत्म कर दिया है।

 

 
 

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