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अमीर ख़ुसरो दहलवी



संगीत के क्षेत्र में भी अमीर खुसरो का योगदान अविस्मरणीय है। सितार, ढोलक और तबला का अविष्कार अमीर ने ही किया। हिन्दुस्तानी संगीत में तराना का अविष्कार भी खुसरो ने किया। खुसरो ने ईरानी और हिन्दुस्तानी रागों के मिश्रण से कई हजार राग बनाए। जैसे - कौल, कल्बाना, साजगिरी, फरगाना, इशाक, तवाफिक, नौरोज कबीर, जिलफ, सनम-गनम, शहाना, अडाना, आदि। उन्होंने अपने कई सांगीतिक शिष्य तैयार किए जैसे तुमर्ती खातून, नुसरत नर्तकी, आदि। ध्रपद गायकी की जगह अमीर खुसरो ने ख्याल गायन शैली का अविष्कार किया। खुसरो ने पूर्व प्रचलित कव्वाली और गजल को एक नया गाने का अंदाज दिया। पुस्तकों में प्राक्कथन या प्रस्तावना लिखने का चलन भी खुसरो ने शुरु किया। अमीर खुसरो ने फारसी-हिन्दवी का प्रथम शब्द कोष 'खालिक बारी' लिखा और वो भी कविता के रुप में।

 

हयात खान कव्वाल  (निज़ामी खुसरवी)
यह दिल्ली के मशहूर खानदानी कव्वालों में से हैं जो गली कोताना सुईवालान दरियागंज, दिल्ली - २ के निवासी हैं। इनकी खासियत यह है कि इन्हें अमीर खुसरो के कई दुर्लभ फारसी, अरबी, खड़ी बोली, बृज भाषा एवं अवधी के गीत व बंदिशें उनके रागों समेत जुबानी स्मरण हैं। इनके पुत्र हमसर हयास नए उभरते कव्वालों में श्रेष्ठ हैं। इनके दूसरे पुत्र मोहम्मद जफर निज़ामी उर्फ खुसरो रागी कव्वाल भी बेहतरीन गाते हैं।

 

जमील अहमद (शास्रीय एवं उपशास्रीय गायक व कव्वाल)
जमील अहमद रामपुरी का जन्म १९४८ में रामपुर के संगीत घराने में हुआ। आपने १५ साल की उम्र में अपने पिता उस्ताद कल्लन खां से जो कि भारतीय शास्रीय संगीत के मर्मज्ञ थे, शिक्षा हासिल की। आप छोटे वजीर हुसैन खां के शागिर्द भी रहे। श्याम बेनेगल की फिल्म जुनून में अमीर खुसरो की कव्वाली गायी। अमीर खुसरो के गीतों को क्लासिकल, सेमी क्लासिकल और कव्वाली तीनों अंदाजों में गाने में निपुण हैं।

 

हयात अहमद कव्वाल अपने पुत्र मोहम्मद ज़फर निजामी के साथ
मौका है
हजरत अमीर खुसरो के साढ़े सात सौवें जन्म शती वर्ष के उपलक्ष्य में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, लोदी रोड़ में एक दिवसीय सेमीनार व संगीत समारोह। कार्यक्रम के आयोजक थे अमीर खुसरो अकादमी, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, साहित्य अकादमी, आई.सी.सी.आर। हयात खान कव्वाल खुसरो का एक विदाई गीत - बहुत रही बाबुल घर दुल्हन।

 

अमीर खुसरो के साढ़े सात सौवें जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित सेमिनार व संगीत कार्यक्रम। स्थान इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, लोदी रोड़, नई दिल्ली। चित्र में विभिन्न शोधकर्ता बैठे हैं।

 

फारसी विद्वान प्रो. अख्तर उल वासै, जामिया मिलिया

 

फारसी विद्वान प्रो. शरीफ हुसैन कास्मी, दिल्ली विश्वविद्यालय

 

प्रो. कैलाश चंद्र भाटिया, हिन्दी विद्वान, अलीगढ़

 

प्रो. यूनुस जाफरी, फारसी विद्वान, दिल्ली विश्वविद्यालय

 

प्रो. चन्द्रशेखर, फारसी विद्वान, दिल्ली विश्वविद्यालय
प्रो. वारिस किरमानी, फारसी विद्वान, अलीगढ़

 

 

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अमीर खुसरो द्वारा लिखित फारसी ग्रंथ | कव्वाली


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