अक्षर-अक्षर अमृत

डा० काञ्चीनाथ झा "किरण'


 

हम सी० एम० कालेजक स्टाफ रुममे चुपचाप एसकरे बैसल छी। दूर .... वक्र होइत वाग्मतीक धारा देखाइ पड़ैत रहय। एकटा नाव, मलाहक दल आ जाल.....।

- ""प्रणाम सर ... हम गाम गेल रहिऐक तँ बाबा अपनेक खोज करइत रहथिन।'' हम अनमनस्क भाव सँ पुछलियनि - ""के बाबा?''

- ""हमरा अपने नहि चिन्हलहुँ ? ..... हम किरणजीक पौत्र !'' अन्दाज उन्नैस-बीस बरखक एकटा गोरनार सुदर्शन छात्र.... हमर जेना ध्यान टूटल...  ""ओ... अहाँ हेमन्त ! कहू-कहू, बाबा कुशल छथि ने?''

- ""नहि, दु:खित छथिन। बड्ड कष्ट। चलल-बुलल नहि होइत छनि ।''

- ""तखन हम इन्टरव्यू कोना लेबनि ....... मैथिलीक प्रसंग किछु गप्प करबाक छल।''

- ""ताहि ले'कोनो दिक्कत नहि..... लोककें चिन्हैत छथिन। बजबामे कोनो दिक्कत नहि। .... अपनेक बराबरि खोज करइत रहइत छथिन।''

- ""हम दुर्गापूजा मे गाम आएब.....कहि देबन्हि ।''

हेमन्त चल जाइत रहलाह। ......सी. एम. कालेजक एही स्टाफ रुममे किरणजी बैसैत छलाह। ३१ जनवरी १९७२ धरि। ......मैथिलीक प्राध्यापक-रुपमे एतिहसँ अवकाश ग्रहण कएलनि।

पूजाक छुट्टीमे आवश्यक काजसँ बोकारो आ देवघर चल जाइत रहलहुँ। ओतहि कतहु पता चलल, दरभंगाक हॉस्पिटलमे छथि। फेर भोपाल आ जबलपुर चल गेल रही। घुरलाक बाद पता चलल, किरण जी गाममे छथि। हमर साहित्यिक मन छटपटा उठल-कोना होएत भेट? भेट में विलम्बतँ ने भ' सकत किने ? ......मोन छटपटाइत रहल।

छठिक परना। दिन रहइक बुध। तारिख रहइक १६ नवम्बर १९८८। आइए दरभंगासँ आएल छी। अन्दाज चारि बाजल रहैक। .....हम अपन गोसाउनिकें प्रणाम कए कनकपुर टोल दिस। लोहना रोड गुमती कें पार कए ठाढ़ भ' जाइत छी। ...पहिल घऽर की दोसर घऽर ? कोन मकान ? पहिल की दोसर, पहिल नहि दोसर ! सामनेक दलान खसल। एतहि किरणजीसँ गप्प होइत छल। मकानक रुपरेखा किछु बदलल । दू बरख पर हम गाम आएल छी। साँझ । पीयर-पीयर रौद पसरल। सिहकैत बसात। हम घरक द्वारि लग जाक' बजात छी -

- ""क्यो छी औ ?''

""......... ''

-""क्यो छी औ?''

कोनो उत्तर नहि ......

फेर, कनेक जोरसँ बजैत छी ...  ""क्यो छी .... क्यो छी औ ?''

सामनेक रुमसँ अत्यन्त क्षीण आ रुग्ण स्वर बहराइत अछि - ""के थिकहुँ बाउ ?

कतऽ सँ .... - ""हमर आँखि करुणासँ आर्द्र भ' उठल ... अत्यन्त थाकल स्वर, घबड़ाएल स्वर, हताश स्वर, छटपटाइत स्वर ...... ।

हम बजलहुँ - ""हम थिकहुँ विश्वनाथ ... दरभंगासँ ।''

तावत केदार बाबू (किरणजीक बालक) भीतरसँ दउगल अएलाह । केबाड़ी खोललनि।

हमरा देखितहि किरणजी कहलनि - ""औ, अहाँ उजानक थिकहुँ एही गामक, अहाँ दरभंगा .... दरभंगा जुनि करी .... रहै छी ने .... दरभंगा.... मुदा....''

हमर मोन गह्मवरित भ' उठल - सत्ते, हमर गाम छिक उजान। हमर गाम थिक उजान। हमर पैतृक। कहलियनि - ""अपने आशीर्वाद दिऔ ..... एकटा घऽर उजानमे भ' जाए। डीह खाली पड़ल अइ।''

- ""अवस्स, अवस्स, हम खूब आशीर्वाद दैत छी। ठाढ़ किएक छी  ? ....... बैसू-बैसू ने ..... '' छोटछीन रुम । दूटा खाट जोड़िख' राखल छैक। खाट पर जड़कालाक गरम बिछान। खाटसँ सटि क' द्वारि लग कुर्सी ........ खाट पर किरणजी पड़ल छति। तुराइ ओढ़ने। कुर्सी पर हम बैसि रहलाहुँ । किछु दवाइ, नली। शीशाक गिलास आदि। आदरणीय किरणजी उठिक'  बैसि नहि सकलाह। पयर थरथराय लगलनि। निस्सहाय । ........ केदार बाबू भरि पाँज पकड़ि क'ओरिया क'  बैसि रहलाह आ तखन पुछलनि -

- ""गाम पर सब कुशल किने ?''

- जी .....

- ""अहाँ तँ सी. एम. कालेजमे छी ।''

- जी ......

- ""हेमन्त अहँक विद्यार्थी .... अहाँक कुशल-समाचार कहैत रहैत अछि ।''

- ""आब अपने कोना छिऐक... ? हम बाहर रहिऐक। सुनल,  अपने दरभंगा गेल रहिऐक।''

- ""हँ, हम बड्ड दु:खित भ' गेल रही। एखनहुँ छीहे। आब चलै पर छी। ...मस्तिष्क आब ठीकसँ काज नहि करइत अछि। पहिने गप्प करबामे दिक्कत नहि छल .....मुदा आब आस्ते-आस्ते स्वर मद्धिम भेल जा रहल अछि ।''

लागल, बहुत दूर सफर सँ घूरल कोनो बटोही विश्राम क' रहल होथि, थाकल-थाकल-सन किरणजीक मुखाकृति । ...शब्द किंचित रुकि-रुकि क' बजैत ।.....

हम अत्यन्त सशंकित भ' जेतैक ... अपनेक शब्द एखनहुँ जआन अछि।'' किरण जी उत्साहित होइत कहलनि - ""हँ, से, गप्प करबामे कोनो विशेष दिक्कत नहि। ...मुदा आब हमर नाह किनार नहि लागत। भँवरमे फँसि चुकल अछि। ...फेर दोसर खेप हमरा सँ भेंट होएत की नहि, से नहि कहि सकैत छी। ...एकटा बात कहैत छी ।''

""जी कहल जाए ।''

- ""दु:खित तँ पड़ैत अछि। रोग-ताप सबके होइत छैक। सबक इलाज छैक। सभक दवइ। मुदा बुढ़ारी तँ अपनेमे एकटा रोग छैक। ... एकर कोनो इलाज नहि, मृत्यु सँ मुक्ति। ई रोग छुटैत नहि छैक। .... हमरो बुढ़ारीक रोग थिक ....एकर अहीं कहू, कोन इलाज  ?''

हम मौन, हतप्रभ आ कातर भेल एहि रुममे बैसल छी। सामनेमे मैथिलीक तधीचि किरणजी बैसल छथि। रहि-रहि क" आँखि चमकैत, उड़ल केश, क्षीण काय .... कनेक फूलल शरीर ...रुग्ण। ... हम अत्यन्त संकुचित भेल पुछैत छियनि -""अपनेक जँ अज्ञा होइत तँ मैथिलीक प्रसंग, अपनेक प्रसंग किछु पुछितिऐक ।.....

किरणजी विह्मवल होइत कहलनि - ""एहिमे आज्ञा कोन ? जे पुछबाक हो से पुछु। साहित्य समर दवाइ थिक। साहित्यिक गप्प करब तँ मोन ठीक होएत।''

हम पुछैत छयनि - ""अपनेक उपनाम किरण किएक ? ''

किरणजी प्रश्न सुनि क' मुस्कुराय लगलाह, कहलनि - ""देखू, हम जखन साहित्यमे प्रवेश कएल तँ देखल जे अधिकांश कवि-साहित्यकार लोकनि उपनाम रखने छथि ।''

- ""जेना .....''

- ""जेना, लक्ष्मीनारायण सिंह "सुधांशु', जनार्दन प्रसाद झा "द्विज', केदारनाथ मिश्र "प्रभात', बुद्धिनाथ झा "कैरव', वैद्यनाथ मिश्र "वैदेह' (पाछाँ यात्री) ... तहिना हमहुँ नाम राखल .... कांचीनाथ झा "किरण'। कांचीनाथक संग "किरण' बैसैत छलैक । .... तें किरण, उपनाक किरण !''

- ""अपनकें ई अनुभव कहिया भेलैक जे अपने साहित्यकार भ' गेलिऐक?''

- ""मूलत: बनारस मे। ...बनारसमे एकटा हस्तलिखित पत्रिका बहराइत रहैक। .... नाम रहैक "मैथिली सुधाकर' । कुलानन्द मिश्र एहि पत्रिकाक सम्पादक रहथि। एहि लिखय पड़य । जे वस्तु नहि अबैक, जे बाँकी रहि जाइक, से सबटा हमरा लिखय पड़य। ....हमरा मोन पड़ैत अछि जे ओही समयमे हम साहित्यक प्रति समर्पित भेल रही। ... ओतहि प्रेरणा जागल रहय। ओतहि मोन छटपटायल रहय । वैह चिनगारी एखनहुँ धरि विद्यमान अछि।''

- ""अपने यदि साहित्यकार नहि बनितिऐक तँ अपने की होइतिऐक ?''

- ""तखन हम आयुर्वेदमे नाम करितहुँ-माडर्न आयुर्वेद मे। ओहि समयमे, बनारसमे हम आल इण्डिया आयुर्वेद एशोसियेशनसँ सम्बन्धित भ"गेल रही। पदाधिकारीक रुपमे सक्रिय रही। आयुर्वेदिक जगतमे हमर वेश ना भ"गेल रहय। ....मुदा साहित्य.... तकर बाद मैथिली .... आन्दोलन ... दिशा बदलि गेल ।''

- ""की ताहि लेल अपने कें दु:ख अछि ?''

- ""एक्को रत्ती नहि ।''

- ""से किएक?''

- ""साहित्य हमर प्राण थिक। सम्पूर्ण जीवन मैथिलीमे रमल रहलहुँ हमरा अपन इच्छाक संसार भेटल, तें कहलहुँ ने, कोनो दु:ख नहि। ओना, मैथिलीमे हमरा बड़ संघर्ष करय पड़ल। लोक हमर बड़ विरोध कएलक। अहाँकें रमानाथ बाबू के रहथि ?''

- ""जी, हमर पितामही आ रमानाथ बाबू ममियौत-पिसियौत ....''

किरणजी किछु विलमि क' कहलनि -""रमानाथ बाबू आब नहि छथि। दिवंगत भ" गेल छथि। हमरा लोकनि एक्के गामक ... एक्के टोलक ! मुदा नहि जानि किएक ओ हमर बड़ विरोध कएलनि ।''

- ""केहन विरोध ?''

- ""विरोध कोनो वैयक्तिक नहि, जमीन-जालक नहि, घर-घराड़ीक नहि।''

- ""तखन... ''

- ""देखू, पहिने ओ मैथिली साहित्य परिषद्क दिससँ "पद्यसंग्रह' प्रकाशित केलएनि। ... पाठ्य पुस्तकक हेतु ... ताहिमे मधुप, यात्री आ किरणक काव्य-कृतिक निर्ममता पूर्व तिरस्कार कएने रहथि। ...हमरा एखनो मोन अछि, ओहि संकलनमे छपल रहनि ईशनाथ बाबू, तंत्रनाथ बाबू, सुमनजी आ पं० बलदेव मिश्रक कविता। ... आब अहीं कहू जे बलदेव मिश्र कहियाक कवि कवि ? हँ मे हँ मिलाएब हमर स्वभाव नहि। दरबारी कलामे हमरा रुचि नहि। ....तकर "बाद कविता कुसुम मे सेहो हमर उपेक्षा क' देलनि। .... अपमान, उपेक्षा, अवहेलना आ तिरस्कार सँ किरण जी कें दबाएब संभव नहि। ...तकर बाद एकटा आर घटना घटल ...''

- ""जी से कौन ?''

"" हम परिषद प्रधानमंत्रीक रुपमे निर्वाचित भेलहुँ । ...बड़गोड़िया अधिवेशनमे .... परमाकान्त चौधरीसँ भार ग्रहण कएल। ...हम दरभंगा रमानाथ बाबूक डेरा पर पहुँचलहुँ। कहलियनि - परिषद्क काजमे हमरा अहाँ लोकनिक सहयोग चाही। हम मैथिलीक कार्यकर्त्ता छी। परिषदक विकास-विस्तारक हेतु हमरा सहयोग करु। ...ताहि पर रमानाथ बाबू की कहलनि, से बूझल अछि ?''

- ""जी नहि, कहल जाए .....?''

- ""अति गुरगम्भीर मुद्रा बनाक" रमानाथ बाबू कहलनि जे परिषद्मे दू दल अछि .....एकटा दलक नेतृत्व तन्त्रनाथ,  ईशनाथ, सुभद्र आ परमाकान्त - दोसर दलक नेतृत्व बलदेव मिश्र करैत छथि। एहि खेप, हम पं० बलदेव मिश्रक सहयोग करबनि । बुझलहुँ बाउ, हम तँ हतप्रभ भ" क" चल अबैत रहलहुँ। साफ कहलनि - अहाँकें हमर सहयोग नहि भेटत ?''

- ""एहि प्रकारक असहयोग कारण की ?''

- ""पता नहि''

- ""आ विरोधक ?''

- "" पता नहि''

- ""मैथिलीमे शैलीक प्रसंग अपनेक की विचार अछि ?''

- ""सोझ आ स्पष्ट विचार अछि.....''

""जी, से की ?''

- ""हम रमानाथ बाबूक शैलीकें नहि मानैत छी। हमरा मैथिलीकें व्यापक बनएबाक अछि। शैलीक कोन बन्धन ? हिन्दी मे "है' ठीक तँ मैथिली मे "हैत' किएक नहि ? बंगलामे सेहो छैक एहिना । .... ई गोलैसी हमरा पसिन्न नहि ।''

खिड़की द "क'अन्हार घऽर मे पसरि गेल रहैक। खूब साफ ... चमकैत लालटेनक संग केदार बाबू प्रवेश कएलनि। हमर कुर्सीक सोझाँ लालटेन राखि देलनि आ चल जाइत रहलाह। .... .हम देखि रहल छी जे किरणजी क्रमिक मुखर भेल जा रहल छथि। बजबाक आलस्य टूटल जा रहल छनि। मुखमंडल क्रमिक सतेज भ" उठलनि अछि।

- ""मैथिली कें अष्टम अनुसूची मे स्थान नहि भेटलैक .... तकर की कारण ?''

- ""तकर अनेको कारण ... पहिल तँ ई जे स्वतंत्रता आन्दोलनक समय मैथिलीक "मुद्दा' पछुआ  गलैक। हिन्दू मुसलमानक बीच भेदक राजनीति आरम्भ भ"' गेल रहइक। देश-विभाजन समस्या । हिन्दी आ हिन्दूक प्रश्न। एहन परिस्थिति मे मैथिली भाषाक प्रसंग लोककें ध्यान नहि गलैक। असलमे मैथिली कहियो राजनितिक दृष्टिकोणसँ महत्त्वपूर्ण नहि बूझल गेल। चुनावक राजनीतिमे, संविधान-सभा मे, संसदमे अथवा विधानमंडलमे मैथिली पछुआ गेल।''

किरणजी १९३३ क इतिहास, ईस्ट इण्डिया कम्पनीक प्रवेश, विश्वयुद्ध आदिक प्रसंग उठा लैत छथि। गप्पक क्रम बउआइत रहल किछु क्षण। हम मुदा साकांक्ष। एहन महत्त्वपूर्ण समय फेर भेटक कि नहि  ! ...

गप्पक सूत्र पकड़ैत पुछैत छियनि - ""मैथिली विकासमे अवरोधक तत्व के ? .... अपनेक की अनुभव ?''

- ""देखू, मैथिलीक विकासमे सबसँ पैघ अवरोधक तत्व दरभंगा राज आ तकर बाद बड़का-बड़का जमीन्दार सब....। दरभंगा राजमे सब दि मैथिलीक अपमान तिरस्काक कएल गेल। राज-काजक भाषा मैथिली यदि बनल रहइत दरभंगाराजमे तँ आइ मैथिलीक एहन दुर्दशा नहि रहैत। खाली दरभंगे राज नहि, छोटको छोटको जमीन्दार बाबू साहेब सभक यैह हाल। ..... एकटा संस्मरण मोन पड़ल ।''

- ""जी, कहल जाए .....''

- ""एक बेरि हमरा लोकनि मैथिलीक विकासक लेल बनारससँ किछु मैथिली प्रेमीक संग गाम अएलहुँ - लोक-जागरण हेतु। मित्रवर श्यामानन्द झा जीक (लालगंज) विचार भेलनि जे किछु बबुआन-जमीन्दार लोकनिसँ सहयोग लेल जाए ..... हम कहलियनि - चलू, अवश्य चलू ..... .मुदा बुझलहुँ, बड्ड दु:खद अनुभव भेल। .....एकटा बबुआनक ओत' गेलहुँ। इतलाए कर' पड़ल। कतेक प्रतीक्षा। तखन भेट भेल। बाबू साहेब सबटा गप्प सुनलनि आ तखन कहलनि जे फेर भेंट करब। चाय-पान पर्यन्त नहि। ....जलखै-भोजनक कोन गप्प ! पत्रिकाक चन्दाक कोन कथा ! .... दोसर बबुआनक ओत'  सँ घुरल चल अबैत रही तँ रास्तामे हुनकर अर्दली दुगल आएल - सरकार भोजन हेतु बजबै छथिन। ...हमरा लोकनि अपन गाम दिस विदा भेलहुँ । ...अर्दली कें कहलिऐक - हमरा सब भोजनक हेतु कहाँ गेल रही ? मैथिलीक प्रसंग जागरणक हेतु गेल रही। अर्दली वापस भ'गेल। .. तें कहलहुँ बाउ, मैथिलीक विकास पूजीपति - सेठ सबसँ सम्भव नहि। गामक मजूर किसान .... गरीबक भाषा थिकैक मैथिली । मैथिलीक विकासक लेल आम जनतामे जागरण आवश्यक ।''

- ""मैथिली आन्दोलन हेतु अपनेकँ कत' सँ प्रेरणा भेटल ?''

- ""देखू,, मैथिली माने माइक भाषा .. हँ, तखन अहाँ पुछलहुँ प्रेरणा, .... तँ से प्रेरणा हमरा काशीमे भेटल। हमरा काशीमे रही.... काशी विश्वविद्यालयक परिसरमे।  ओतए सालमे एक बेरि सब जलसामे जाइ .... कविता, नाटक - संगीत ... हमरा मोनमे क्रमिक कचोट होबए लागल। ... मैथिलीक उपेक्षा किएक ? विद्यापति आ चन्दाक भाषा मैथिली। एतेक समृद्धिशाली इतिहास। हमर मातृभाषाक अपमान किएक ? ओतहि मैथिली-संगठनक स्थापना कएल ... बालकृष्ण बाबू एहि छात्र-संगठनक अध्यक्ष रहथि। ...मिथिला मोद ... कविवर सीताराम झाक सिनेह । ... हमर मोनमे मैथिलीक आगि क्रमिक ज्वलित होइत गेल। ...पछाति काशी विश्वविद्यालयमे मैथिलीकँ स्थान भेटल रहइक। मुदा आब बड्ड दु:ख होइत अछि .... पश्चात्ताप....''

""जी केहन, पश्चात्ताप ''

- ""काशी विश्वविद्यालयमे मैथिली भाषाकें हटा देल गेलैक ... तकरे दु:ख, तकरे पश्चात्ताप । ...हमरा लोकनि चुपचाप रहि गेलहुँ। कोनो विरोध नहि। कोनो आन्दोलन नहि। एहिना कलकत्ता विश्वविद्यालयक हाल .... कतेक विन्दु, कतेक मोड़ पर लड़ाइ लड़' पड़त ।''

- ""अपने अपन आरम्भिक जीवनमे मैथिल छात्र संगठनक स्थापना कएने रहिऐक ... मुदा सम्प्रति मैथिल छात्र संगठनक सर्वथा अभाव अछि। छात्र लोकनि मैथिली आन्दोलनसँ जुड़ल नहि छथि। .... तकर की कारण ?''

""तकर कारण छैक ...हम कहैत छी .....''

केदर बाबू दू कप चाह आगाँमे राखि दैत छथि। छोट-छीन रुम। रुम सँ लागल केबाड़ी। फेर रुम। दूटा रुम कें जोड़ैत एकटा केबाड़ी। एकटा रुममे हमर सामने अति रुग्ण देबाल सँ ओंगठल बैसल छथि किरणजी आ दोसर रुममे खाट पर चुपचाप पड़लि छथिन किरणजीक धर्मपत्नी। श्लछ। अति पीड़ित....आँखिमे पट्टी। ...सद्य: आँखिक इलाज भेल छनि। आमक गाछ, नारिकेर, धानक बोझ आ बीच रुममे इत लालटेम ... लालटेमक इजोत... किरण जी बैसले बैसल बजलाह - ""बउआ, चाह दिअ तँ ... हम ओरिया क' चाहक कप बढ़ा दैत छियनि .... हमहूँ चाह उठा लैत छी। ....  ""मैथिली मे एखन धरि छात्र लोकनि सक्रिय नहि भेल छथि, तकर की कारण ?''

....""तकर मूल कारण जे छात्र लोकनिक अभिभावकमे चेतना नहि छनि। तहिना, शिक्षक लोकनिमे पूर्ण जागरण नहि छनि। जा धरि छात्रशक्ति नहि जागत, छात्रक सक्रिय सहयोग नहि भेटत ता धरि मैथिली आन्दोलन पूर्णत: ज्वलित भ' सकत । शिक्षक लोकनिक दायित्व छनि छात्र कें जगाएब ... प्रोत्साहित करब ... हम अनुभव करै छी जे मैथिलीक विकासक लेल निश्चित रुप सँ छात्र संगठनक स्थापना कएल जाए । .....''

- ""अपनेक दृष्टिमे मैथिलीक विकासक हेतु प्रयत्नशील रहल अछि। अहाँ लोकनिकें बुझले होएत जे पटना विश्वविद्यालय एवं अन्य विश्वविद्यालयमे मैथिलीकें जे मान्यता प्राप्त भेलैक ताहिमे" परिषद' क भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण छैक। .... अहाँ लोकनि तँ परिषदमे छी ....।

- ""जी नहि, परिषदसँ मुक्त भ' गेलहुँ  ।''

किरणजी विस्मित होइत पुछलनि ... ""से किएक?''

- ""हमरा लोकनि कहने रहिऐन परिषद्क अधिकारी लोकनिकें जे जँ भूमि पर भवन बनत अथवा छहरदेबाली पड़त तँ हमरा लोकनि परिषदमे रहब, ... अन्यथा नहि। १९८५ सँ ८८ धरि टाल-मटोल चलैत रहल। ...फलत: हमरा लोकनि परिषदसँ मुक्त भ' गेलहुँ। बिना भवनक परिषद् पाकिट संस्था जकां भ' गेल छैक।''

किरणजी चकित होइत कहलनि - ""से बात नहि बूझल छल। दु:खद बात कहलहुँ। दिग्घी पर गीत भवनक समीप परिषदक भूमि छैक। परिषद् कें साधन छैक ...तें भवन बनाएब अत्यन्त आवश्यक ...भवन बनि गेला सँ परिषद कें स्थायित्व प्राप्त हेतैक .... ।'' फेर हमरा दिस स्नेह भरल आँखिन तकैत कहलनि .... ""देखू, बाहर भ' गेलहुं परिषद् सँ मुदा तइयो नियन्त्रण राखब बड़ आवश्यक ... छोड़ि देला सँ काल नहि चलत ।''

- ""जी, से अवश्य ।''

हमर चाह शेष भ' गेल रहय। .... किरण जी सेहो खाली कप खाट पर राखि देने रहथिन ... केदार बाबू पान दैत कहलनि .... अहाँ जर्दा लेब ?

कहलयनि - नहि, खाली पान आ सुपारी। आदरणीय किरणजी हमर गुरु ... तें सामने मे पान खएबामे असौकर्य भेल। किरजी से बुझि गेलाह - कहलनि ..... खाउ, आब एकर सभक कोन गणना....

हमहुँ पान खएलहुँ, फेर सुपारी आ तकर बाद पुछलियनि - ""मैथिलीक विकासक आन्दोलन मे दोसर संस्था ?''

- ""दोसर संस्था विद्यापति गोष्ठी, सरिसव .... ग्रामीण अंचल मे एहि संस्थाक बड्ड महत्त्व - बहुत काज । हजारो-हजार छात्रक मनमे मैथिली प्रेम जागल। ....

- ""आ चेतना समिति .....?''

- ""चेतना समितिक योगदान छैक .... मुदा एम्हर आबि कच बड्ड बाद मे ।''

- ""मैथिलीक आन्दोलनमे आन भाषा-भाषीमे सर्वाधिक सहयोग ककर भेटल?''

किरणजी साकांक्ष होइत कहलनि ... ""मुसलमान लोकनिक ... बंगाली सबहक। ...देखू #ेकटा संस्मरण सुनबैत छी। सच्चिदानन्द सिन्हा रहथिन मैथिलीक बड़का विरोधी। हुनकर साफ कहब रहनि - "मैथिली को स्वीकृती देना मिथिला को जिलाना है, हमने बिहारर को लिया है, अपने लिए, आप मिथिलावासियों के लिए नही ।'

जखन महाराज कामेश्वर सिंह मैथिलीक स्वीकृतिक प्रस्ताव सिनेटमे प्रस्तुत कएलनि तँ सच्चिदान्द सिन्हा चुनौती दैत कहलथिन जे राजा साहेब ... विद्यापतिक एकटा गीत सुनाबथि। राजा सकपकाय लगलाह । मुदा ओतहि बैसल सर खाजा मोहम्मद नूर ललकारा दैत कहने रहथिन - मिस्टर सिन्हा, आप क्या मजाक करते हैं ? महाराजा साहब के पास एक से एक गायक और नर्तक है। राग-रागिनी के जानकार - इनसे आप क्या पूछते हैं ? एहन ललकारा पर सिन्हा साहेब झेपि गेलाह। मैथिली कें स्वीकृतति प्राप्त भेलैक।'' तकर बाद किछु काल धरि मैथिली आन्दोलनक पुरान गप्प आ पुरान लोकक क्रमहीन चर्चा चलैत रहल। हम अवसर पाबि पुछलियनि - ""अपनेकें कवि, कथाकार, उपन्यासकार, निबन्धकार, आलोकच आदि रुपमे आदर देल जाइत अछि - मुदा अपने स्वयंकँ की मानैत छी?''

- ""हम अपना कें मात्र मैथिल मानैत छी ।''

- ""कोन महल नाम राखबै एकर' कथाक प्रेरणा अपने कें कतऽसँ प्राप्त भेल ?''

- ""अहाँ एकटा विसरल मधुर स्मृतिकें मोन पाड़ि देलहुँ। कोर्थ लग सीताराम झा वैद्य रहथि। मैथिलीक अनन्य भक्त। हमहूँ वैद्य, तें सीताराम बाबूसँ अत्यन्त आनिष्ठता। ओतहि ओ मैथिली समितिक स्थापना कएलनि। विद्यापति स्मृति पर्वक आयोजन कएने रहथि। जित्तू बाबू हुनकर जमाय। विद्यापति-गोष्ठी सरिसवक सब सदस्य कें निमन्त्रण। हमरा विशेष आग्रह कएने रहथि। फगुआक सातम दिन। चैत। एगारह बजे। क्लास खतम भेल। जित्तू बाबू कहलनि, हम नहि जाएब। विड़रो रहैक। उष्ण । क्यो नहि गेलाह। मुदा हम तँ शपथ खयने रही। वचन दः' विद्यापति पर्वमे नहि जाएब, से भ' नहि सकैत अछि। तहिया विदेसरसँ कच्ची सड़क रहैक। मुदा तें की ? हम साइकिल पर विदा भ' गेलहुँ। अन्दाज चारि बजे सभा-स्थलक समीप पहुँचलहुँ। आयोजक सीताराम झा हताश। क्यो नहि अएलाह। हमरा देखि क' प्राणमे प्राण अएलनि। मधुपजी आ बहेड़ जी सेहो आएल रहथि पछाति। विदेसर सँ कोर्थक बाटक बीचक कथा थिकैक .... ओही बाटक कथा थिकैक - ओही बाटक कथा थिकैक - "कोन महल नाम राखबै एकर ?' बीच बाटमे छिड़िआयल कथाक कड़ी भेटल रहय। ओतहिसँ आपस अएलहुँ तँ भरि राति जागि क' कथा पूरा कएल। हम स्वयं जाहि वर्ग सँ आएल छी, जाहि वर्गमे जन्म भेल अछि, ओही वर्गक-नेह-छोहक कथा थिक - कोन महल नाम राखबै एकर?''

- ""आ "मधुरमनि' ? ... मधुरमनिक की पृष्ठभूमि ?''

- ""शेखर जीक .... सुधांशुशेखर चौधरीक आग्रह भेल कथाक हेतु ... हुनकहि आग्रह पर मधुरमनि कथा लिखलहुँ। .... देखू, हम सव दिन साहित्य अथवा व्यकितगत जीवनमे यथार्थवादी रहलहुँ। कल्पना-कुसुमक चमत्कारमे हमरा विश्वास नहि। तें साहित्यमे, हम जे जीवनमे अनुभव कएल सैह लिखलिऐ .... मधुरमनि हमर विराट जीवनक अनेको यथार्थ अनुभवक एकटा कड़ी थिक। .... देखू अपन गाममे, सब ठाँ जतऽ रहलहुँ -  कतहु जाति-पाँतिक भाव हमरा नहि रहल। अहाँकें एकटा बात सुनिक' आश्चर्य होएत?''

- "जी, से की ?'- "" ।''

- ""हम दुसाधोक घऽरमे हकार पुरबाक हेतु जाइत रहलहुँ। दुसाधोक बेटीक विदागरीक काल-सोहाग आ दूर्वाक्षत देबाक लेल कए बेर गेल होएब। ...हम मनुष्य मे विश्वास करैत छी .... जाति धर्ममे नहि। .... हमर तँ दावा अछि जे मैथिलीमे तथाकथित प्रगतिवादी साहित्यकार लोकनि अपन जीवनमे कहियो दुसाधक घऽर मे हकार पुरबाक हेतु नहि गेल होएताह ... अहाँकें हमरा सन मैथिल कवि एहि रुपमे दोसर क्यो नहि भेटताह । यैह कारण रहल जे हम "मधुरमनि' लिखि सकलहुँ ।''

- ""अपने हेमन्तकें ॠतुराज मानल ? एहि सम्बन्ध मे अपनेक विचार मे कोनो परिवर्तन एम्हर भेल ?''

- ""एको रती नहि''

- ""तकर की कारण?''

- ""कारण यैर जे हम लोकशक्तिमे विश्वास करैत छी ... राग-रंग आ विलासमे नहि। किसान आ मजदूरक बीचमे रहलहुँ ... आ आब तँ हमर विश्वास दृढ़ भ' गेल अछि जे हमरा लोकनिक हेतु ॠतुराज हेमन्त छथि ।''

- ""विदेसरक शिवलिंगक प्रसंग अपनेक की प्रतिक्रिया ?''

- ""विदेसर हमरा लेल जीवनक एकटा अंग छथि। परिवारक। एकटा सदस्य जकाँ लगैत छथि। मन्दिरसँ आत्मीयता जकाँ भ' गेल अछि। ....जखन सरिसव स्कूल मे शिक्षक रही तँ सब दिन विदेसर होइत जाइ, स्कूलक बाटमे पड़य। दु:खमे, सुखमे... पराती गबैत लोकक दल .... कखन हरब दुख मोर हे भोलानाथ ? .... परिसर ... गुञ्जित रहैत अछि ।''

- ""की अपने विदेसरक शिवलिंगकें ईश्वरक रुप मे आराधना करैत छियनि ?''

किरणजी अत्यन्त भाव विह्मवल होइत कहलनि -

- ""छात्र अवस्थामे अवस्से शिवलिंगक आराधना ईश्वर रुप मे करैत रही ... मन्दिर मे भक्तिपूर्वक पूजा करी । मुदा ... आब कहलहुँ ने, परिवारक सदस्य भ' गेल छथि ।''

- ""की अपने विदेसरक विरोधमे सेहो कविता लिखने छियैक?''

- "नहि - कहाँ ... एहन कविता तहम कहियो नहि लीखल !''

तकर बाद प्रसंग उठि गेलैक मैथिलीमे शोध-अनुसंधानक । ... हम अवसर पाबि पुछलियनि - "अपनेक शोधक विषय की छल ?''

- ""हम ज्योतिरीश्वर सँ बड़बेशी प्रभावित रही। मैथिलीक इतिहासमे ज्योतिरीश्वरक योगदान अप्रतिम अछि। तें हम ज्योतिरीश्वरक प्रसंग अनुसंधान कएल। हमर शोधक विषय रहए - ""वर्णरत्नाकरक काव्यशास्रीय अध्ययन ।''  एहि अनुसंधानक क्रममे हम काव्यशास्र सेहो नवीन दृष्टिएँ व्याख्या कएल अछि। किछु गोटे कहलनि जे ई शोध - ग्रन्थ पढ़लासँ लोककें काव्य-शास्रक ज्ञान सेहो भेटतैक ।''

अन्हार रहइक । बीतल चल जाइत कातिक। हमर सामने खाट पर इत लालटेन .... रुमसँ सटल रुम। दोसर रुममे किरणजीक धर्मपत्नीक आकुल स्वर ... बउआ, केदार, सौसे अन्हार छै, घऽरमे इजोत क'दिऔ। केदार बाबू दउगल अएलाह, बजलाह - आँखिपर पट्टी छै से सबतरि अन्हारे-अन्हार बुझा पड़ैत छै।

किरणजी ओंगठल बैसल छलाह, से पड़ि रहलाह । .. हमरा दिस अभिमुख होइत कहलनि - ""एक्के बेरि दुनू गोटे खाट पकड़ि लेलिऐक । ओहो बड्ड दु:खिताहि छथि । पता नहि, की भवितव्य ? ... मोन बड़ अबल लगैत रहैत अछि। ... अन्दाज दस एगारह बरखक ऐकटा बच्चा किरणजीक माथकें दबबय लगलनि। ..... किरणजी कहलनि - ""बुझलहुं, ई हमर पौत्र थिक राजीव ... आइ तीन महिनासं हमरा संगे रहैत अछि। एक पल ले' कात नहि, बड्ड सेवा करैत अछि ।....''

हम पुन: साकांक्ष होइत पुछनियनि - ""कहल जाए, समकालीन साहित्यमे अपनेकें संग के सब देलनि?''

- ""हमरा मैथिली आन्दोलनक क्रममे बहुत गोटेक सहयोग प्राप्त भेल। सभक नाम एखन मोन नहि पड़ैत अछि ... मुदा तैयो कहैत छी ... भ' सकैत अछि क्यों छुटि जाथि ...''

- "जी, कहल जाए ।'

- ""हमर जीवन विभिन्न क्षेत्रमे बीतल । ... बनारसमे, कलकत्तामे, सरिसब-परिसरमे आ दरभंगामे। काशीमे अभिन्न रुपमे सहयोगी रहलाह प्रबोधनारायण चौधरी (कुसों), वैद्यनाथ मिश्र "वैदेह' (पाछाँ यात्री अथवा नागार्जुन भ' गेलाह:, उपेन्द्रनाछ झा (मिथिला मोद) आ आनन्द झा पण्डित। सरिसब परिसरमे लालगंजक श्यामानन्दझाजी सँ घनिष्ठ सम्बन्ध रहय । बड़ प्रतिभाशाली लोक रहथि। तहिना नरुआरक सीतानाथझासँ सेहो सहयोग भेटल ।''

गप्पक क्रम बदलि गेलैक । किरणजी कहलनि - ""हमरा सभक पीढ़ी रहइक संघर्षरत पीढ़ी । ... तहिया मैथिलीमे बाजब लाजक विषय बूझल जाइक । ... आब से स्थिति नहि छैक ।''

- ""मैथिली कवितामे नवीनता के अनलनि ?''

- ""एहि प्रसंग हमर स्पष्ट धारणा अछि ... सूक्ष्म विश्लेषणक आधार पर हम अपन विचार एहि प्रसंग कहब ।''

- ""जी अवश्य - केहन धारणा ?''

- ""यैह जे छन्दमे नीवनता अनलनि चन्दा झा । विचारमे नवीनता भेटत भोलालाल दासक कवितामे, मुक्तबन्ध अतुकान्त काव्यरचनामे नवीनता अनलनि तंत्रनाथबाबू । ओना काव्यशास्रीय योगदानक दृष्टिएँ सुमनजीक प्रशंसा कविशेखरजी सेहो कएने रहथिन - हमरा समक्ष - हमरा सूनल अछि। अलंकार क्षेत्रमे मधुपजी बेजोड़ रहलाह ।''

- ""आ यात्री जी ?''

- ""ओ हमर बड़ पैघ सहयोगी-एकनिष्ठ। किसान आन्दोलक क्रममे चल गेल रहथि हजारीबाग जहल। हुनक एक गोट कविता मिथिला मोदमे प्रकाशित भेल रहनि - हमरे सहयोगसँ - हम ओ अंक जहलमे पठा देलियनि। जहलसं छुटलाह तँ काशी आएल रहथि। हम कतहु बाहर गेल रही। घर अएलहुँ तँ कैलास हमर जेठ बालक तहिया मात्र चारि बरखक रहथि - कहलनि - एक गोटे आएल छलाह, एकटा पुर्जी द' गेल छथि।''

- ""जी तकर बाद ......''

- ""पुर्जी पर लिखल रहइक - "किरण जी कल मिलें - ललिता घाट के खो मे ।" काशीमे ललिता घाटक नाम सुनिकऽ लोकक देह सिहलऽ लगैत छैक । ललिता घाटमे एकटा बडड् पैघ आ विशाल पीपरक गाछ छैक। ओहि पीपरक गाछमे पाँच सय कि छौ सय प्रेतघण्ट टांगल रहइत छैक। ... पुर्जी पढि हम असमंजसमे पड़ि गेलहुँ। .... परोक्षमे के आएल छलाह .... किएक आएल छलाह.... ललिता घाटक खो मे .... अन्तमे निश्चय भेल जे वैद्यनाथ (यात्री) आएल हेताह। एहन उठाकी आन के? ... दू चारि दिन ओहि खेप भेट भेल । ललिता घाट मे । वैद्यनाथक मोन बड्ड बउआएल रहनि। बैद्ध धर्म दिस आकृष्ट भेल रहथि । ..... ओ जीवन्त साहित्यकार छथि। दु:ख अछि ..... मैथिलीकँ हुनकासँ अधिक नहि प्राप्त भैलैक ।''

- ""अपनेक समकालीन साहित्यरकार बन्धुमे बहुत गोटेक देहान्त भ' गेलनि । सबसँ अधिक के मोन पड़ैत छथि ?''

- तीन गोटे अधिक काल मोन पड़ैत रहैत छथि ....

- भोला बाबू अधिक काल मोन पड़ैत छथि । हुनकर मैथिली प्रेम एकनिष्ठ रहनि ...... तकर बाद मोन पड़ैत छथि तंत्रनाथ बाबू । .... ओ हमर बाल-कालक सहचर सखा रहथि । ... हमरालोकनि कलकत्तामे संगे रही - तीन मास धरि । ओतहि बंगला नाटक देखबाक हेतु दुनू गोटे जाइ .. माइलक माइल घूमी । ... मधुप जीक परुकां देहान्त भेलनि तँ समाचार सूनि मह मूर्व्हिच्छत भऽ गेल रही। बड मधुर स्वभाव । मूलत: कोइलख घऽर छलनि। अधिक काल कविसम्मेलनमे भेट होइत छल। ने ओ लोक ने ओ समय-तेहिनो दिवसा गता: ।

- ""आ मणिपद्म ......''

- ""अहा, ओ तँ हमर समक्ष छौड़ा-माड़े छलाह । बच्चा। सदैव संग देलनि।''

- ""अपनेक कोनो एहन इच्छा अछि जकर पूर्कित्त नहि भेल हो?''

- ""देखू हम छी आब पाहुन। ... एक घड़ी ... आध घड़ी .. कखनहुँ सूनब किरण जी नहि रहलाह .... मुदा आइ हमरा पूर्ण संतोष अछि। वैयक्तिक जीवनमे हमर सब इच्छाक पूर्ति भेल। .... गाममे दस विघा जमीन अछि । ओना धनक कामना कहियो नहि कएल । सब दिन स्वाभिमानी रहलहुँ - तें एतबे इच्छा रहय जे अन्नक ग्रासक हेतु हाथ नहि पसारय पड़य - से इच्छाक सदैव पूर्ति भेल। धीया-पूता सब सुशिक्षित - पौत्र पर्यन्त रास्ता ध' लेने छथि। ... मुदा एकटा इच्छाक पूर्ति नहि भेल ।''

- ""जी, से कोन ?''

- ""मैथिलीकें उचित सम्मान नहि भेटब। ... मैथिलीकें अष्टम अनुसूची मे स्थान नहि प्राप्त भेलैक .. यैह एकटा इच्छा हमर अपूर्ण रहि गेल ।''

- ""अपनेक अप्रकाशित ग्रन्थ सब ?''

- ""से बड़ अछि । काव्यशास्रक एकटा ग्रन्थ अछि। किछु नाटक सेहो अप्रकाशित अछि। जेना ... सीता, पलासीक पासा तथा लिच्छवी ... दू गोट हमर महत्त्वपूर्ण काज अछि मैथिलीमे जकर प्रकाशन कोना होएत .. मैथिली शब्दक संग्रह आ फकड़ाक संग्रह - परुकां सालक बाढिमे बहुत रास कागज-पत्र अस्त-व्यस्त भ' गेल। एम्हर, हमर कथासंग्रहक प्रकाशन एहि क्षेत्रक नवयुवक साहित्यकार लोकनिक उत्साह आ प्रयाससँ सम्भव भेल । ...''

- जी, - 'कथा किरण'

- ""हँ, बहुत दिन सँ इच्छा छल जे कथा सभक एकटा हमर संग्रह प्रकाशित हो। से इच्छा पूरा भेल। ताहि ले' हम नवयुवक लोकनिकें धन्यवाद दैत छियनि ।''

- ""आ अपनेक शोध-ग्रन्थ ?''

- ""ओ पड़ल अछि ... छपि जइतैक ... मुदा एखन धरि सम्भव नहि भेल। ... एहिना किछु निबन्ध संग्रह सेहो पड़ल अछि ।''

सीटी दैत इन्जिन आ रेलक डिब्बा लोहना रोड सँ दरभंगा दिस भागल चल जाइत रहैक। बगलक रुममे किरणजीक धर्मपत्नी फेर 'इजोत ... इजोत... बउआ इजोत क' दिऔ-बजैत रहथिन ... हमर सामने लालटेन इत रहय । केदार बाबू अएलाह ... इजोत छैक ... मुदा आँखि पर हरियर का पट्टी। ....

- ""मैथिली जगतक हेतु अपनेक वसीयतनामा ?.....

किरणजी नहुँए-नहुँए मुस्कुराय लगलाह । ... आँखिमे सेहो मृदुल हास्यक लहरि उठैत देखलियनि। पुन: स्थिर भ' गेलाह आ तखन कहलनि - ""हमर एक्केटा वसीयतनामा अछि ।''

- ""से कोन .... ?''

- ""एही ठाम लोहनारोड परिसरक गामक किछु उत्साही साहित्यकार लोकनिक प्रयाससँ मैथिली साहित्य शोध-संस्थानक स्थापना भेलैक। .... मधुकर जी रसीद छपब' दरभंगा गेल रहथि .. सुमनजी मैथिली साहित्य शोध-संस्थानक पाछाँ किरण जोड़ि देलथिन। एहि संस्थाक माध्यमे विद्यापति स्मृति-पर्वक एतऽ आयोजन होइत अछि। किछु रुपैया आजीवन सदस्यता सँ जमा भेल छैक। जँ दसो हजार जमा भ' जाइक तँ इन्टरेस्ट सँ संस्थाक काज चलैत रहतै-शोध-सेमिनार ... प्रकाशन आदि। ''

- ""एहि संस्थामे प्रमुख सहयोगी के सब छथि ?''

- ""सब क्यो छथि। उत्साहि साहित्यकार बन्धु, युवा वर्ग, शिक्षक समुदाय, किसान सब। सभक संक्था छिक। ओना आशीष प्रसाद, बलभद्र जी, प्रदीप जी, कुँवरकान्तत पाठक, रामसेवक राय, मधुकर, कैलास, आदि बहुतो गोटो ... .हे एकटा बात मनक कहैत छी ...''

- ""जी .... ''

- ""होइत रहैए ... हमर दिन आब गनल-गुथल । रहब कि नहि रहब। से यैह इच्छा अछि जे सब क्यो एहि संस्था कें जीवन्थ करथि। केदार कें कहलियनि ... एहि संस्थाक एकाउन्ट अलक क' दिऔक - ओ रुपैयाक एकाउन्ट हेमन्त कुमारक संग क' देने छथिन। ..... ''

- ""मैथिलीक नवीन पीढ़ीक लेल अपनेक की सन्देश अछि ?''

- ""नवीन पीढ़ी पर हमरा बड़ विश्वास अछि। असल मे, गौरव-बोध होएब आवश्यक । हम मैथिल छी .. .हमर मातृभाषा मैथिली अछि - एहि विषयक गौरव बोध । .... एहि हेतु चाही जागरण, आन्दोलन ।''

- ""अपनेक जीवनक सबसँ पैघ उपलब्धि ....''

- ""यैह जे मिथिलीमे अन्य जातिक लोककें मिलयबामे हमरा सफलता भेटल । हम जखन सरिसब स्कूलमे शिक्षक रही तँ विभिन्न जातिक छात्र सबकें मैथिली दिस आकृष्ट कएल ... अपनहुँ गामक कतेक विद्यार्थी कें मैथिलीप्रेमी बनाओल .... ''

- ""जेना ....''

- ""कुशेश्वर बैठा, सत्यदेव खवास, निरसन लाल ... '' गप्पक क्रम फेर पारिवारिक भ' गेल । गाम-घऽरक गप्प ।

- हम पुछलिएनि - ""भोजनमे अपने कें की प्रिय अछि ?''

- ""जे प्रिय अछि, से आब बन्द अछि। डाक्टर दवाइ आ पथ्य ।''

- ""की प्रिय अछि ?''

- ""माँछ ... कविशेखरजीकें कहलियनि .. अहाँ एकादशी-चतुर्दशी करु। हमर तँ यैह इच्छा अछि जे मरबो काल गंगाजलक बदला ... इचना माछक झोर भेटय । शंभू ककाकें बन्दुक रहनि। पक्षीक शिकार करथि। ... चिड़इ - लालसर दिघौंच। तहिना बंशी ल' क' पोखरिक कातमे बैसी - कबइ, मांगुर, रोहूक थर-जैह भेटय - कोनो माछ -तरल माछ .... माछक झोर - हमरा बड्ड पसिन्न ।''

केदार बाबू कुर्सीक कातमे ठाढ़ रहथि, कहलनि ...  "एखनहुँ घऽरमे माछ बनैत अ तँ एक्को चम्मच झोर अबस्से टा देत छियनि ।''

- "अपनेक जीवनक कोनो मार्मिक प्रसंग .... कोनो अनुभव ?'

- ""जीवेदभि: किं .... किं न पश्यति ... .से बुझलहुँ, किछु हितैषी मित्र कहलनि जे सरकार वयोवृद्ध साहित्यकारकें आर्थिक सहायता प्रदान करैत छैक । अहूँ एप्लाई क' दिऔ । हम कहलिएनि - 'कऽ देबैक । 'आवेदन-पत्र ल' क' अबैत गेलाह । ... मुदा आवेदन-पत्रकें देखि सन्न रहि गेलहुँ ।''

- ""से किएक ?'

- ""ओहि मे लिखऽ पड़ैक जे हमर भरण-पोषणक कोनो साधन नहि अछि । हमरा क्यो सहायक नहि अछि । आव अहीं कहू जे हम ई लिखि क' अपन सन्तान सब कें कलंकित करितहुँ ! देखू ... ई राजीव ... (किरणजीक पौत्र) आइ तीन महिनासँ हमर सेवा मे लागल अछि । कैलास .... केदार .. हेमन्त .... सब । सभक स्नेह, सभक आदर ... .तखन हम ओहि आवेदन पर कोना लिखितहुं जे हमर क्यो सहायक नहि  ? आवेदन-पत्रक पन्नाकें टुकड़ी-टुकड़ी क' फाड़ देलिऐक ।....''

रोग सँ अबल भेल किरणजीक अस्थि-पंजरमे चमकैत स्वाभिमानक सूर्य कें देखि हम नत-विनत भ' उठलहुँ । ... कहलिएनि - ""आब, आज्ञा देल जाय ... बस भेटत तँ दरभंगा चल जाएब । .....''

किरणजी अन्दाज लगाक' कहलनि - ""हँ, आब ट्रेन नहि भेटत । ... से राति उजाने मे रहि जाउ ... हे, गाम नहि छो ... गाममे अबस्से रहू । ... '' हम पयर छूबिक' प्रणाम केलियनि आ विदा होब' लगलहुँ ।

बगलक रुम मे खाट । खाट पर किरण जीक धर्मपत्नी । आँखिमे हरियर पट्टी । फेर आकुल स्वर-क्रन्दन .. बउआ, सौंसे अन्हार छै, इजोत क' दिऔ ।

किरणजी भाव-विह्मवल होइत कहलनि-ठीके तं कहैत छथिन, सौंसे अन्हार छै ... इजोत .... मुदा इजोत के करत ?

 

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© Copyright आशुतोष कुमार, राहुल रंजन   2001

प्रकाशक : मैथिली रचना मंच, सोमनाथ निकेतन, शुभंकरपुर, दरभंगा (बिहार) - ८४६ ००६), दूरभाष २३००३

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