महाकवि विद्यापति ठाकुर

मैथिली में महाकवि विद्यापति ठाकुर की रचना

पूनम मिश्र


 

विद्यापति ने क्या नहीं लिखा! किस विषय पर नहीं लिखा। एक साथ संस्कृत, अवहट्ठ और मातृभाषा या देसिल वचना मैथिली पर समान प्रवाह से रचना करते रहे। काव्य, संगीत, तंत्र, धर्मशास्र, कर्मकाण्ड आदि पर लिखा, परन्तु मातृभाषा मैथिली में रचित चन्द लोकगीत विद्यापति को अमरत्व प्रदान कर दिया। बच्चे के गर्भ में स्थान प्राप्त करने से लेकर लोक संस्कार (जन्म, नामकरण, मुण्डन, उपनयन, विवाह, पूजा-पाठ, लोग-उत्सव) का कोई भी अवसर महाकवे के गीत के बिना मिथिला में सम्पूर्ण नहीं हो सकता। कवि विद्यापति के ये लोकगीत किसी एक काल में नहीं रचे गये हैं, वरन् उनके जीवन के प्रारंभिक काल से मरण-पर्यन्त इनकी रचना हुई हैं। ओइनवार राजवंश के विभिन्न आश्रयदाताओं के संरक्षण में तो ये गीत रचे गये ही हैं, साथ ही कई भवन बादशारों एवं उनके सरकारों की प्रसन्नता के लिए भी कुछ गीत रचे गये है। महाकवि की विभिन्न मन:स्थितियों का परिचय इन गीतों में है और श्रृंगार, भक्ति एवं विविध विषयों के ये गीत हैं। इन गीतों के भाव एवं भाषा माधुर्य से न केवल मिथिला, अपितु सम्पूर्ण पूर्वाञ्चल आप्लावित रहा है। बंगाल, असम एवं उड़ीसा में बैष्णव साहीत्य के विकास में विषापति पदावली का अपूर्व योगदान रहा है। बंगाल के वैष्णव लोगों ने तो इन गीतों का प्रचार-प्रसार मथुरा-वृन्दावन तक किया। इन गीतों के भाव-वैशिष्ट्य एवं माधुर्य से प्रभावित होकर ही औइनवारकुलशिरोमणि महाराजा का शिवसिंह ने महाकवि विद्यापति को 'अभिनव जयदेव' की उपाधइ प्रदान की। इन लोकगीतों के समुच्चय को ही पदावली कहते हैं। पदैवली की कविकृत हस्तलिपि प्रति या समकालीन सम्पूर्ण पदावली की प्रति उपलब्ध नहीं होने के कारण निश्चितरुपेण नहीं कहा जा सकता कि विद्यापति ने कुल कितने गीतों की रचना की थी।

 

 

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