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गबलादेव का मेला - जनपद पिथौरागढ़


सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ की दारमाघाटी अपने नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध है । तेरह हजार फुट से अधिक की ऊँचाई पर रहने वाले लोग प्रकृति की दुरुहता को झेलते हुए भी किस प्रकार जीते हैं, गबलादेव के मेले में देखा जा सकता है । तिब्बत-नेपाल दारमा घाटी से लगे हुए हैं । इस दारमा घाटी का सबसे बड़ा मेला है - गबलादेव का मेला । गबलादेव चूँकि शौकाओं का इष्टदेव है, इसलिए यह आयोजन धार्मिक जीवन से जुड़ा है । दारमा घाटी के जन-जीवन पर तिब्बत की संस्कृति की गहरी छाप है । इसलिए गबलादेव भी बौद्ध 'शाक्यमुनि' तथा हिन्दू महादेव शिव का समन्वयात्मक रुप हैं । अगस्त के तीसरे सप्ताह में मनाये जाने वाले इस मेले की तिथि का निर्धारण सीमान्त के अन्तिम दाँत और बुगत नामक ग्राम करते हैं । जो गाँव इस मेले में भाग लेते हैं वे हैं - दाँत, गो, बौन, मार्छा, दुग्त, सेला, चल, किंग, सिव, तिदांग, सोन, डाकर, बालिंग तथा नागलिंग ।

परम्परागत वाद्ययन्त्रों से सजे-धजे, छोलिया नर्तकों की अगुवाई में शौका उमंग के साथ इस मेले में भाग लेते हैं ।

 

 

 

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