टेसू और साँझी

Part-2

- मुश्ताक खान


मैने जितने भी टेसू गीत सुने वे सभी मजाकिया तुकबन्दियां जान पड़ी, कहीं भी कोई गम्भीरता का एहसास इनमें नहीं होता है। इनके गाने के ढंग में भीन्नता जरुर है। टोली का एक लड़का गीत शुरु कर एक लाइन कहता है और बाकी लड़के उसे दोहराते है।

जहां लड़कों की टोली में एक टेसू होता है वहां लडकियों की टोली में अधिकांश लड़कियों की झांझी होती है सभी अपनी अपनी झांझी भगौनी में रखे रहतीं हैं और कपड़े से उसे ढॉके घर घर घूमती है। जहां टेसू घर के दरवाजे पर ही रुक जाता है वहीं झांझी घर के भीतर आंगन में जा पहुंचती हैं। लड़कियों की टोली एक घेरा बनाकर बैठ जाती है और एक एक लड़की क्रम से घेरे के मध्य आकर अपनी झांझी लेकर नृत्य करती है। अन्य लड़कियां गीत गाती जाती है। झांझी एक छोटी मिट्टी की मटकी होती है जिसमें कील से छेद करके अनेक डिजाइन बनाये जाते हैं। इसमें थोड़ा रेत भर कर दीपक रख दिया जाता है। रात के अन्धेरे में भटकी के छिद्रों से छन छन कर बाहर आता प्रकाश बहुत सुन्दर लगता है। खास कर वह दृश्य तो बहुत ही सुन्दर होता है जब सभी लड़कियां एक साथ नृत्य करती हैं।


१.
टेसू के भई टेसू के
पान पसेरी के
उड़ गए तीतर रह गए मोर
सड़ी डुकरिया लै गए चोर
चोरन के जब खेती भई
खाय डुकटटो मोटी भई।


.मेरा टेसू झंई अड़ा
खाने को मांगे दही बड़ा
दही बड़े में पन्नी
घर दो बेटा अठन्नी
अठन्नी अच्छी होती तो ढोलकी बनवाते
ढोलकी की तान अपने यार को सुनाते
यार का दुपट्टा साड़े सात की निशानी
देखो रे लोगे वो हो गई दिवानी।

३.
आगरे की गैल में छोकरी सुनार की
भूरे भूरे बाल उसकी नथनी हजार की
अपने महल में ढोलकी बजाती
ढोलकी की तान अपने यार को सुनाती
यार का दुपटटा साड़े सात की निशानी
दखो रे लोगो वो हो गई दिवानी।

४.

सेलखड़ी भई सेलखड़ी
नौ सौ डिब्बा रेल खड़ी
एक डिब्बा आरम्पार
उसमें बैठे मियांसाब
मियां साब की काली टोपी
काले हैं कलयान जी
गौरे हैं गुरयान जी
कूद पड़े हनुमान जी
लंका जीते राम जी।

५.
टेसू भैया बड़े कसाई
आंख फोड़ बन्दूक चलाई
सब बच्चन से भीख मंगाई
दौनों मर गए लोग लुगाई। 

 

आमतौर पर टेसू का स्टैण्ड बांस का बनाया जाता है जिसमें मिट्टी की तीन पुतलियां फिट करदी जाती हैं। जो क्रमश: टेसू राजा, दासी और चौकीदार की होती है या टेसू राजा और दो दासियां होती हैं। मध्य में मोमबत्ती या दिया रखने का स्थान होता है।

टेसू

राजसी पोशाक पहने, पगड़ी धारण किये टेसू हुक्का पी रहा है। मिट्टी की बनी आकृति पर चमकदार पावडर रंग किये हुए हैं।

 

टेसू


घोड़े पर सवार टेसू हाथ में तलवार लिये है। एक ओर हाथ में बन्दूक थामे सिपाही और दूसरी ओर हुक्का पिलाने वाली खड़ी है। मिट्टी की बनी इन आकृतियों पर पावडर रंग किये गए हैं।

दासी

दांये हाथ में हुक्का थामे मिट्टी की बनी दासी को पावडर रंगों से सजाया गया है।

क्वांर माह का पितृपक्ष यूं तो सभी शुभ कार्यो के लिये लोक जातियों में अनुपयुक्त माना जाता है परन्तु लोक कला की दृष्टि से यह दिन अत्यन्त महत्वपूर्ण कहे जा सकते है। क्योंकि इन दिनों सदियों पुरानी सांझी खेलने की परम्परा नन्हें नन्हें हाथों से अपने वर्तमान रुप में उद्घटित होती है। वास्तव में यह बाल लोकोत्सव बाल सुलभ रचनात्मक प्रवृतियों का पारम्परिक मूर्त रुप है जिसमें छोटी छोटी बालिकाएं गीत गाती हुई प्रत्येक संध्या को गोबर, रंग बिरेंगे फूल और चमकदार पन्नी के टुकड़ों से दीवार पर सांझी के विभिन्न रुपाकर रचती है, दूसरी सुबह उन्हें मिटाती है और फिर शाम को नये मोटिफ बनाती है। रुपगत स्थानीय विशेषताओं के साथ सांझी बनाने की परम्परा मध्य प्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार, हरियाणा तथा अन्य क्षेत्रों में प्रचलित है।

 

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Content prepared by Mushtak Khan

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