रुहेलखण्ड

Rohilkhand


स्थापत्य निर्माण ( स्मारक )

रुहेलखण्ड क्षेत्र में स्थापत्य निर्माण के अवशेष अनेक स्थानों से प्रकाश में आये हैं। पुरातात्विक परिप्रेक्ष्य से ज्ञात होता है कि इस क्षेत्र में अत्यंत प्राचीन काल से ही स्थापत्य निर्माण प्रारम्भ हो गया, जिसके प्राचीनतम अवशेष बरेली जिले के अहिच्छत्रा में एवं शाहजहाँपुर, बदायुँ पीलीभीत जनपदों में ईंटों व नीवों के रुप में प्रमुख रुप से प्रकाश में आये हैं, जिनसे ज्ञात होता है, इस क्षेत्र में लगभग 2000 वर्ष पूर्व से ही स्थापत्य निर्माण का प्रारम्भ हो गया था, परंतु वह भवन, स्मारक काल के प्रवाह के कारण ध्वस्त हो गये तथा अब वर्तमान समय में उनके अवशेष ही शेष हैं।

कालांतर में भी यहाँ भवन- निर्माण सम्बन्धी कार्य हुये, जिनमें धार्मिक स्थल ( मंदिर, मस्जिद आदि ) व स्मारक प्रमुख हैं। यह स्मारक आज भी अवशिष्ट स्थानों पर खड़े इस क्षेत्र के समृद्ध इतिहास की गाथा गा रहे हैं।

रुहेलखण्ड क्षेत्र के बरेली, बदाँयू, शाहजहाँपुर, मुरादाबाद, रामपुर एवं पीलीभीत जनपदों में स्थित शेष प्राचीन स्मारकों / भवनों का अध्ययन निम्नलिखित शीषर्कों के द्वारा किया जा सकता है--

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1. ) बरेली के स्मारक

प्राचीन काल के महत्वपूर्ण अस्तित्व में बरेली जिला सबसे आगे है। यहाँ से
40 कि. मी. दूर राम नगर ग्राम के पास पुराने पंचाल राज्य की राजधानी के खण्डहर मीलों में फैले हुए हैं। यहाँ प्रारंभ से ही अहिच्छत्र नगर रहा, जहाँ हजारों वर्षों तक विभिन्न राजवंशों ने राज्य किया। इस पुराने स्थान के अतिरिक्त अन्य अनेक स्थान एवं स्मारक मौजूद हैं। कांवर ( शेरगढ़ ) पुराना स्थान है। यहाँ राजा वेन की राजधानी थी। इसके खण्डहर मौजूद हैं। बाद में शेरशाह सूरी ने इसका नाम शेरगढ़ रख दिया। मुगल काल में बरेली में सूबा बनने के बाद रुहेला एवं अवध राज्य एवं अंग्रेजों के काल में यहाँ बहुत सी इमारतों का निर्माण हुआ। इनमें मिरजई मस्जिद, जामा मस्जिद, बीबी जी की मस्जिद, नौमहला एवं शिया मस्जिद प्रमुख हैं।

बरेली में रुहेलों के काल में जो भवन निर्मित हुए, वह समाप्त हो गए। हाफिज रहमत खाँ की मृत्यु के बाद उनका मकबरा बनवाया गया था। वह
50- 55 फुट ऊँचा बनाया था। इसमें पीतल की बुर्ज तथा डिजाइनदार छतें थी। यह कुछ वर्ष पूर्व 1989 में बरसात में गिर गया। बरेली कमिश्नरी में 1857 ई. के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों की स्मृति का विशाल बरगद का एक वृक्ष था, जिस पर अंग्रेजों ने खान बहादुर खान के 257 साथियों को फाँसी पर लटकाया था। उस वृक्ष के धराशायी हो जाने के बाद वहाँ चबूतरा बना दिया गया है। खान बहादुर को पुरानी कोतवाली ( शास्री मार्केट ) में फाँसी दी गई, उनकी कब्र जिला जेल में बनी है।

बरेली के आंवला नगर में अली मोहम्मद खाँ का मकबरा, बारहबुर्जी मस्जिद तथा त्रिबुर्जी मस्जिद, फूटे दरवाजे की मस्जिद, हौजबाली मस्जिद तथा लाल मकबरा, पक्का तालाब तथा टूटी हुई हालत में बेगम वाली मस्जिद तथा अन्य मस्जिदों के अवशेष मौजूद हैं। फतेहगंज पश्चिमी में स्तम्भ स्मारक है, जहाँ नवाब रामपुर तथा अंग्रेजों में युद्ध हुआ था, यह जंग दो जांडा कहलाती है। कैंट में सेंट स्टीफेंस चर्च अंग्रेजों के काल का उल्लेखनीय स्मारक है।

बरेली में शहीदों की याद में कुछ पार्क उनके नाम से प्रसिद्ध है, जिनमें गाँधी उद्यान तथा दामोदर स्वरुप सेठ पार्क विशेष उल्लेखनीय है। शहीद कैप्टन सेफाली का कीर्ति स्तंभ तथा कैंट क्षेत्र में बने हुए विजय द्वार भी बरेली की शान को बढ़ा रहे हैं।

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2. ) बदायूँ के स्मारक :-

ईदगाह - यह बदायूँ की सबसे पुरानी मुस्लिम इमारत है। इसको इल्तुतमिश ने अपनी सूबेदारी के समय में बनवाया था। यह लगभग तीन सौ फुट लंबी है।

जामा मस्जिद - यह मस्जिद उस समय की भारत की बड़ी मस्जिदों में से एक है। यह मौलवी टोला मोहल्ला में स्थित है। इसको इल्तुतमिश ने
1223 ई. में बनवाया था तथा तुगलक एवं मुगल काल में इसका पुनर्निर्माण कराया गया।

मखदूम- ए- आलम मस्जिद, जंगी मस्जिद मकबरा एवं मस्जिद मीरान मुलहिम शहीद मकबरा, इसी तुर्क काल के बने हुए हैं।

बदरुद्दीन शाह विलायती के मकबरे का निर्माण
1390 ई. में नजरुल्ला के बेटे खिज्र ने करवाया था, जो कि उस समय बदायूँ का कोतवाल था। अकबर के शासन काल में इस इमारत का पुनर्निर्माण कराया गया तथा इसको सुंदर बनाया गया।

खान की मस्जिद एवं हाफिज असादुल्ला की कब्र का निर्माण सुल्तान मुबारक शाह सय्यद के समय में हुआ था।

सुल्तान सय्यद अलाउद्दीन का रौजा का भी निर्माण सल्तनत काल में ही हुआ था, तथा आगे के समय में कई बार पुनर्निर्माण कराया गया।

मलिक- उल- शर्क इमादुलमुल्क का मकबरा दिल्ली के लोदी सुल्तानों के काल में निर्मित कराया गया। यह बदायूँ के बड़े मकबरों में से एक है।

चिमनी का मकबरा अखलास खाँ की बहन का षठकोणीय मकबरा है।

रौजा जफर खाँ ऊर्फ शेख बुद्दन कुरेशी सिद्दीकी का निर्माण सूरी वंश के इस्लाम शाह के काल में
1550 ई. के लगभग कराया गया था।

इनके अतिरिक्त और भी पुराने स्मारक एवं अवशेष बदायूँ में मौजूद हैं। बरेली रोड पर खेड़ा के निकट की मस्जिद रुकुनुद्दीन के समय की लगभग
1236 ई. में बनी थी। दादा हमीद की मस्जिद नासिरउद्दीन के काल की 1250- 51 ई. की बनी हुई है। शेख फरीद, शेख उजाला, सैयद अहमद शाह एवं शेख जलाल के मकबरे मुगल बादशाह जहाँगीर के काल में बने। इखलास खाँ का रौजा शाहजहाँ के काल में तथा खुर्मा ( कादरी ) मस्जिद मोहम्मद शाह (1726- 28) के काल में निर्मित हुए। औरंगजेब के काल में अलापुर में भी मस्जिद बनवाई गई। यामहा खाँ की दरगाह इस्लाम शाह के समय तथा हैदर शाह की मस्जिद आदिल शाह के समय में बनीं। नासिरशाह का बाडा भी पुरानी इमारतों में है।

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3. ) शाहजहाँपुर के स्मारक :-

शाहजहाँपुर की स्थापना के बाद जो भवन यहाँ निर्मित किए गए, उनमें कुछ अच्छी स्थिति में मौजूद हैं। कुछ जीर्ण- शीर्ण तथा कुछ नष्ट हो गए हैं। जो मौजूद हैं, उनमें निम्न प्रमुख उल्लेखनीय हैं --

कांच की मस्जिद:-

कोतवाली के निकट इस मस्जिद का निर्माण
1057 हिजरी सन् 1647 ई. में किया गया था। शाहजहाँपुर का नवाब इस समय बहादुर खाँ था तथा दिल्ली का बादशाह शाहजहाँ था। इस मस्जिद का निर्माण ख्वाजा बुलंद ने किया था।

ईदगाह :-

इसका निर्माण औरंगजेब के शासन काल में हुआ था। सन्
1688-89 में इसका पुनर्निमाण कराया गया। इसको निर्मित करने वाले का नाम मोहम्मद काजिम था।

मस्जिद- ए- मुजफ्फर खाँ :-

किले के पास के खण्डहरों के निकट, इस मस्जिद का निर्माण भी औरंगजेब के काल में हुआ था। शिलालेख के अनुसार यह
1108 हिजरी सन् 1696- 97 इसका निर्माण समय था, लेकिन इसका नाम मुजफ्फर खाँ के नाम पर ही पड़ा, इसकी जानकारी प्राप्त नहीं हो पाई है।

बहादुर खाँ का मकबरा :-

शाहजहाँपुर के संस्थापक नवाब बहादुर खाँ के मकबरे का निर्माण उनके बेटे नवाब अब्दुल अजीज खाँ ने कराया था। यह बहादुरगंज में स्थित है। वर्तमान में इसकी स्थिति जीर्ण- शीर्ण है।

जामा मस्जिद तथा किले के निकट बक्सरिया में मस्जिद का निर्माण नवाब अजीज खाँ के काल में ही हुआ था।

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4. ) मुरादाबाद के स्मारक :-

मुरादाबाद में ऐतिहासिक भवन / स्मारक वर्तमान में काफी कम ही उपलब्ध है। शेष स्मारक काल के प्रवाह में ध्वस्त हो चुके हैं। शेष बचे हुए स्मारक निम्नलिखित हैं --

रुस्तमखानी मस्जिद :-

सन्
1632 में जब मुरादाबाद की स्थापना यहाँ के तत्कालीन सूबेदार रुस्तम खान ने की, तब उसने यहाँ रुस्तमखानी मस्जिद का निर्माण कराया, जो अब सुंदर भवन में परिवर्तित हो गया है।

अन्य स्मारक :-

यहाँ के अन्य स्थापत्य निर्माण में स्मारकों के रुप में "नवाब अजमत उल्ला खाँ का मकबरा', "असालत खाँ का मकबरा', "शाह बुलाकी शाह का मकबरा' एवं "हाफिज साहब की मजार' आदि प्रमुख शेष बचे प्राचीन भवन- स्मारक हैं।

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5. ) रामपुर के स्मारक :-

नवाब फैजउल्ला खाँ के समय से ही रामपुर में भवन निर्माण प्रारम्भ हो गया। उन्होंने शाहबाद एवं रामपुर दोनों जगहों पर मस्जिद एवं मदरसों का निर्माण कराया। नवाब अहमद अली खाँ को इमारतें बनवाने का बहुत शौक था। बाग बेनजीर में कोठी बेनजीर व बद्रे मुनीर (
1816 ई. ) उनकी पूर्ण स्मृतियाँ हैं। रामपुर के संस्थापक नवाब फैजउल्ला खाँ, जिस हवेली में रहते थे, उसको बहुत आलीशान कोठी में त्रिपोलिया ( जो अब फर्राशखाना है ) दरे दौलत ( जो मोती मस्जिद के पास था ) तथा अपना मकबरा ( ग्राम नानकार ) खुद बनवाया था। नवाब कल्बे अली खाँ ने जामा मस्जिद को दोबारा तोड़कर बनवाया। सरकारी इमारतें अस्तबल, फील खाना ( हाथी खाना ) गऊखाना तथा फर्राशखाना व कई बाजार तामीर करवाये। रामपुर की पहली नुमायश बेनजीर बाग में मार्च 1866 ई. ( जो बाद में गणेश घाट तथा फिर रामपुर- बरेली रोड पर ) में लगवाई। बाग बेनजीर के पास कदम शरीफ नाम की इमारत बनवाई ( यहाँ पैगम्बर मोहम्मद साहब के पैर का निशान सुरक्षित है )। आपने खुसरों बाग तामीर करवाया ( यहाँ अब रजा पोस्ट ग्रेजुएट कालिज है )। नवाब हामिद अली खाँ को इमारतें बनवाने का बहुत शौक था। उन्होंने अनेक भवन बनवाए। किले का निर्माण सन् 1902 ई. में करवाया। इन्जीनियर राइट का इन इमारतों को बनाने में बहुत योगदान रहा। राइट का स्टेचू किले के अंदर बना हुआ है। पूर्व की तरफ का गेट राइटगेट तथा पश्चिम की तरफ का गेट हामिद गेट कहलाता है। किले में एक विशेष आकर्षण हामिद गेट के ऊपर लगी परी भी है। यह परी नवाब अली मोहम्मद खाँ की सरहिंद विजय के समय वहाँ से लाई गई थी। किले के अंदर वह जगह भी है, जहाँ रुहेलों का काफिला आकर रुका था, जिसकी यादगार में नवाब अहमद अली खाँ द्वारा निर्मित कराया हुआ दरे-दौलत भी है। नवाब हामिद अली खाँ ने खुर्शीद मन्जिल को दोबारा नए सिरे से बनवाया। यह बाद में हामिद मन्जिल कहलाई। यहाँ अब रजा लाइब्रेरी है। किले में ही एक जनाना व एक मर्दाना इमामबाड़ा बनवाया। जामा मस्जिद का भी पुनर्निर्माण कराया। नवाब हामिद अली खाँ के समय की बनी आलीशान इमारतें आज भी रामपुर शहर की रौनक को चार चाँद लगा रही है।

नवाबी काल की अन्य मौजूदा इमारतों में रंग महल ( रजा लाइब्रेरी का एक हिस्सा है ) प्रिंसेस पैलेस ( यहाँ अब कचहरी है ) कोठी खास बाग, कोठी बेनजीर रामपुर क्लब, बद्रे मुनीर, बेनजीर गेट, सदर कचहरी, पुरानी तहसील, नवाब हामिद अली खाँ का स्टेचू भी प्रमुख उल्लेखनीय है। रियासत कालीन भवन अपनी वास्तुकला में अलग ही शान रखते हैं। वास्तुकला (फने- तामीर ) के सिद्धांतों के अनुसार ही रामपुर में भवन निर्मित किए गए। यहाँ के भवनों के निर्माण में अष्ट कोणीय ( हस्त पहल ) सिद्धांत कहीं न कहीं अवश्य प्रयोग किया गया है। नवाब हामिद अली खाँ के समय की इमारतें इण्डों योरोपीयन शैली में निर्मित की गई है, जो अपनी शान और रौनक में अलग स्थान रखती है तथा उनके बनवाए हुए भवनों की इतनी प्रतिष्ठा है कि नवाब हामिद अली खाँ को रामपुर का शाहजहाँ कहा जाता है।

इन नवाबी काल के स्मारकों के अतिरिक्त मोती मस्जिद, कोसी पुल मस्जिद, चरखवाली मस्जिद, दरोगा महबूब जान की मस्जिद, नवाब फैजउल्ला खाँ का मकबरा, नवाब मोहम्मद अली खाँ का मकबरा, मदरसा कोहना, मकबरा जनावे आलिया, मकबरा जनरल अलीमुद्दीन खाँ, मजार सय्यद मुश्ताक मियां साहब ( खुरमा वाले मियाँ ), मजार मौलवी मुर्शद अहमद मुजद्ददी साहब, मजार मौलवी जमालउद्दीन साहब, मजार शाहे बली उल्लाह साहब, कोठी सेफनी आदि इमारतें भी उल्लेखनीय है तथा अम्बेडकर पार्क एवं गाँधी समाधि भी रामपुर की शोभा को बढ़ा रहे हैं।

गाँधी जी की समाधि भारत में केवल दो जगह है। एक दिल्ली में तथा दूसरी रामपुर में। गाँधी जी की मृत्यु के बाद उनके पार्थिव शरीर की भस्मी ( राख ) चाँदी के कलश में नवाब रजा अली खाँ रामपुर लाए। यहाँ पूरे नगर में हाथी पर रखकर घुमाया तथा गाँधी समाधि निर्मित कराई। यह रामपुर के किले व नवाब साहब के निवास के ठीक बीच में है। जिस सड़क पर यह निर्मित की गई, उसका नाम भी नवाब साहब के नाम पर राहे रजा है।

परी की शक्ल की मूर्ति यहाँ का आकर्षण है। नवाब फैजउल्ला खाँ के पिता नवाब अली मोहम्मद खाँ जब सरहिंद के सूबेदार रहे, तब यहाँ की विजय में प्राप्त यह स्टेचू लाए थे। यह उनके परिवार के पास सुरक्षित रहा। यह विजय की पहचान का प्रतीक नवाब हामिद अली खाँ ने जब रामपुर के किले का निर्माण कराया, तब हामिद गेट के सबसे ऊपर लगवाया। यह सुनहरी धातु का बना है। लगभग छः फुट लंबा है, जिसका सर सूर्य की तरह तथा शरीर मछली की तरह है।

जनरल अजीम उद्दीन खाँ के मकबरे का गुम्बद रुहेलखण्ड के भवनों में
18 फुट व्यास का सबसे बड़ा गुम्बद है। यह भी अष्ट कोणीय ( हस्त पहल ) वास्तु कला के आधार पर निर्मित कराया गया है।

रामपुर की भूल- भुलैया का भी जबाव नहीं है। यह नवाब अहमद अली खाँ का मकबरा है। इसका उन्होंने अपने पीर सय्यद हसन शाह तिरमिजी के लिए नानकार में बनवाया था तथा खुद भी इसी में दफन हैं। इसमें आठ दरवाजे हैं और हर दरवाजे में चार- चार कमरें हैं। इस तरह
64 दरवाजे हैं तथा यह इमारत अवध मुगल एवं रुहेला तीनों शैलियों की मिश्रित वास्तुकला से बनाई गई है।

रामपुर के दरवाजे अपना अलग महत्व रखते हैं। जब नवाब फैजउल्ला खाँ ने रामपुर आबाद किया था, तब वह दरवाजे बनवाए थे। अधिकतर यह दरवाजे समाप्त हो गए हैं। इनमें चार दरवाजे बरेली गेट, नवाब गेट, खुसरो बाग गेट तथा बेनजीर गेट अब भी ठीक स्थिति में मौजूद हैं। इन गेट ( दरवाजों ) के अतिरिक्त रुहेला नवाबी काल के छोटे गेट मौजूद हैं, जिनमें डूंगरपुर (जेलखाना ) दरवाजा तोपखाना दरवाजा, देहली दरवाजा ( तोपखाने के बिल्कुल आखिर में ) नवाब दरवाजा शाहबाद ( ईदगाह ) दरवाजा प्रमुख है।

रामपुर के कुछ भवन जीर्ण- शीर्ण हो गए हैं। इनकी मरम्मत व देखभाल बहुत जरुरी है।

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6. ) पीलीभीत के स्मारक :-

ऐतिहासिक गुरुद्वारा -

पीलीभीत के मोहल्ला पकड़िया में सिखों का प्रसिद्ध गुरुद्वारा है। इसका निर्माण तो नवीन है, लेकिन धार्मिक रुप से यह लगभग चार सौ वर्षों पुराना स्थान है। मान्यता है कि सिक्खों के गुरु, गुरु गोविंद सिंह जब अमृतसर से नानकमता जा रहे थे, तो उन्होंने पकड़िया मोहल्ले के इसी स्थान पर रात्रि विश्राम किया था। सन्
1983 ई. में सुविख्यात बाबा फौजसिंह ने कार सेवा द्वारा विशाल पाँच मंजिला गुरुद्वारा बनवाया। इस प्रकार गुरु गोविंद सिंह की स्मृति में बना यह ऐतिहासिक गुरुद्वारा है।

जामा मस्जिद -

यह मस्जिद हाफिज रहमत खाँ ने
1181- 82 हिजरी में बनवाई थी। यह दिल्ली की जामा मस्जिद के नमूने की बहुत शानदार वास्तुकला में निर्मित हुई है। इसके पहले इमाम हाफिज नूरुउद्दीन गजनबी थे। वे दर्वेश थे, उनका मजार मस्जिद के प्रवेश द्वार से पहले बना हुआ है। यह मस्जिद पीलीभीत का एक शानदार गौरवशाली धर्मस्थल है।

मंदिर गौरी शंकर -

यह मंदिर लगभग ढ़ाई सौ साल पुराना है। मोहल्ला खकरा में देवहा तथा खकरा नदी के पास स्थित हैं। यहाँ हनुमान जी, भैरोंजी, दुर्गाजी, गणेश जी की मूर्तियाँ स्थापित हैं। मुख्य प्रतिमा गौरीशंकर जी की है। यह बहुत प्रसिद्ध मंदिर है, जिसका द्वार हाफिज रहमत खाँ ने बनवाया था, जो अत्यंत भव्य एवं अवलोकनीय है।

शाहजी मियां का मजार -

आपका जन्म पीलीभीत में हुआ था। मानव कल्याण की भावना उनमें कूट- कूट कर भरी हुई थी। इससे चारों तरफ उनकी प्रसिद्धि बहुत हो गई थी। उनकी मृत्यु
125 वर्ष की आयु में हुई थी। उनके चार दर्जन खलीफा थे। उनके मजार पर सभी धर्मों के लोग मन्नत माँगने आते हैं, चादर चढ़ाते हैं। इनका उर्स प्रत्येक वर्ष होता है, जो कि एक सप्ताह तक चलता है। इसमें हजारों लोग सम्मिलित होते हैं।

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Content Prepared by Dr. Rajeev Pandey

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