रुहेलखण्ड

Rohilkhand


रुहेलखण्ड के मेले

नाना प्रकार के मेले प्रारम्भ से ही भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग रहे हैं। वास्तव में एक दूसरे के निकट आने और आपसी सहयोग और सौहार्द की भावना ने मेलों को जन्म दिया जिसकी झलक वर्तमान भारत में भी देखी जा सकती है। यहाँ एक ओर हम विज्ञान, तकनीक और विभिन्न क्षेत्रों में निरन्तर विकास कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हम अपने पारम्परिक मेलों से भी उसी प्रकार आबद्ध हैं जैसे कि दूर के अतीत में थे।

"मेला" शब्द का अर्थ है "मिलन'। विस्तारपूर्वक मेला शब्द को इस प्रकार व्याख्यायित किया जा सकता है - "मेला वह है जहाँ पर विभिन्न समुदाय के लोग एक बड़ी संख्या में एकत्र होते हैं तथा पारस्परिक सद्भाव की भावना से एक दूसरे के सुख-दुख के बारे में जानकारी लेते हुए भारतीय विशेषता-अनेकता में एकता को चरितार्थ करते हैं। मेले में सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी होता है। मेलों का आकार, स्वरुप, प्राणतत्व के आधार पर निम्नवत् वर्गीकृत कर सकते हैं-

1. क्षेत्रीय आधार पर
2. धार्मिक भावनाओं के आधार पर
3. ॠतु और समय के आधार पर

उपरोक्त वर्गीकरण को ध्यान में रखते हुए रुहेलखण्ड में मेंलों की प्रकृति एवं विशेषताओं को समझा जा सकता है।


1 . क्षेत्रीय आधार पर :

(
i ) चौबारी मेला (बरेली) :

मेलो की प्रकृति गाँव से गाँव, जिले से जिले तथा विभिन्न छोटे-बड़े स्तरों पर बदलती रहती है। उदाहरणार्थ बरेली जिले के चौबारी नामक स्थान पर (बरेली से
10 कि.मी. दक्षिण) लगने वाला गंगा स्नान का मेला। यह मेला यद्यपि गंगा स्नान के पावन पर्व पर लगता है लेकिन यह अपनी क्षेत्रीय विशेषताओं के कारण प्रसिद्ध है। इस मेले की क्षेत्रीय विशेषतायें निम्नवत् हैं-

(अ) नखासा (पशुओं की बिक्री का बाजार) :

चौबारी मेले में निकटस्थ एवं दूरस्थ क्षेत्रों से लोग पशुओं की खरीदारी व बिक्री के लिये आते हैं। प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में पशुओं की बिक्री एवं खरीदारी होती है। इन पशुओं में गाय, बैल, भैंस इत्यादि प्रमुख रुप से सम्मिलित होते हैं।

(ब) पशुओं की दौड़ :

पशुओं की दौड़ के अन्तर्गत घुड़दौड़, चौबारी मेले का एक विशिष्ट आकर्षण है। यह प्रतियोगिता कई चरणों में सम्पन्न होती है। दर्शक और प्रतियोगी इन दौड़ों में बड़ी-बड़ी शर्ते लगाते हैं, जिसमें बड़े-बड़े महानगरों में आयोजित होने वाले "रेस कोर्स" प्रथा की झलक मिलती है।

(स) दैनिक उपभोग की वस्तुओं का बाजार :

चौबारी मेले में दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एक विशाल बाजार भी लगता है, जिसमें पशुओं की साज-सज्जा का सामान, पत्थर निर्मित चक्कियाँ एवं सिल, मिट्टी के बर्तन, ढोलक, खाद्य सामग्रियाँ बड़ी मात्रा में उपलब्ध होती हैं।

(
ii ) ककोड़ा मेला (जिला बदायूँ) :

चौबारी के मेले की ही भाँति बदायूँ जिले में स्थित ककोड़ा गंगा-घाट पर भी गंगा स्नान के अवसर पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले का प्रारम्भ लगभग
1770 ई० के आसपास नवाब अब्दुल्ला खाँ (आॅवला के रुहेला परिवार से सम्बन्धित) ने करवाया था। इस मेले का आरम्भ किस प्रकार हुआ, इस सम्बन्ध में एक किंवदन्ति प्रसिद्ध है। एक बार नवाब अब्दुल्ला खाँ शिकार पर गए। शिकार करते-करते वह रास्ता भूल गए और जंगल में भटकने लगे। तभी उन्हें जुम्मन नामक नाई (जिसकी मृत्यु काफी समय पूर्व हो चुकी थी) की आत्मा दिखाई दी। नाई की आत्मा ने नवाब साहब से कहा - "मैं आपको आज एक प्रेत कन्या के विवाह में ले चलूँगा। आप शाम होने तक एक पेड़ पर बैठे रहिए। रात्रि होने पर आप इस शादी को देख सकेंगे। नवाब साहब रात्रि होने तक पेड़ पर बैठे रहे। शाम होने पर नाई की आत्मा नवाब साहब के पास आई और बोली कि अब प्रेत लड़की का विवाह नहीं हो सकता क्योंकि जिस व्यक्ति की आत्मा से उसका विवाह होना था, वह व्यक्ति मृत्यु होते ही गंगा के जल में गिर गया और उसे मुक्ति प्राप्त हो गई। इस बात को सुनकर नवाब साहब के हृदय में गंगा के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई। इस श्रद्धा को व्यक्त करने के लिए नवाब अब्दुल्ला खाँ ने ककोड़ा घाट पर गंगा स्नान के पर्व पर प्रतिवर्ष मेले का आयोजन प्रारम्भ कराया। तब से आज तक इस मेले की परम्परा बरकरार है।

इस मेले के अवसर पर
10-12 दिन के लिए ककोड़ा घाट एक शहर के रुप में परिवर्तित हो जाता है। लोग कई-कई दिनों तक अस्थाई आवास बनाकर यहाँ निवास करते हैं। इस मेले में दैनिक आवश्यकता की समस्त वस्तुओं की बिक्री होती है। गंगा-स्नान वाले दिन हजारों श्रद्धालु गंगा के जल में स्नान करते हैं। इस मेले की एक अन्य विशेषता यह है कि इस अवसर पर लोग बड़ी मात्रा में द्युत क्रीड़ा में भाग लेते हैं।

(
iii ) दशहरा मेला (बहेड़ी, जिला-बरेली) :

बहेड़ी, बरेली जिले की एक तहसील है, जो कि बरेली से
48 किमी दूर नैनीताल मार्ग पर स्थित है। यहाँ प्रतिवर्ष दशहरे का भव्य मेला आयोजित किया जाता है। यह मेला लगभग 1 महीने तक चलता है। इस मेले की विशेषता यह है कि यहाँ भी चौबारी मेले की भाँति नरवासा (पशुओं की बिक्री का बाजार) लगता है। इसमें गाय, बैल, भैस इत्यादि जानवरों की बिक्री होती है। यह नखासा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नखासा में सर्वोच्च स्थान पर है।


(
iv ) धौराटांडा का रामनवमी मेला (जिला-बरेली):

धौराटांडा नामक स्थान बरेली शहर से लगभग
30 किमी उत्तर की ओर नैनीताल मार्ग पर स्थित है। यहाँ रामनवमी के अवसर पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। यद्यपि यह मेला धार्मिक पर्व के अवसर पर लगता है, लेकिन यह अपनी कुछ क्षेत्रीय विशेषताओं के कारण प्रसिद्ध है। इस मेले की क्षेत्रीय विशेषताओं में पशुओं का बाजार तथा दंगल प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है। यहाँ की दंगल प्रतियोगिताओं में दूर-दूर के पहलवान भाग लेने आते हैं। विजेताओं को नाना प्रकार के पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं।


2 . धार्मिक आधार पर

देवी-देवताओं, महापुरुषों, धार्मिक मिथकों और धार्मिक भावनाओं के आधार पर आयोजित किये जाने वाले मेलों तथा उसाç का अपना एक पृथक वर्ग है। इनमें अधिकांश उर्स तथा मेले देवी-देवताओं तथा महापुरुषों से माँगी जाने वाली मनौतियों के उद्देश्य से लगते हैं। इनमें निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं-


(
i ) गुलहड़िया गौरीशंकर मेला (जिला बरेली):

बरेली से
43 किमी पश्चिम में स्थित गुलहड़िया गौरी शंकर मन्दिर मे अत्यन्त प्राचीन शिवलिंग स्थापित है जिस पर पार्वती की प्रतिमा भी अंकित है। इस शिवलिंग की यह मान्यता है कि श्रद्धापूर्वक इसकी उपासना करने पर प्रत्येक मनोकामना पूर्ण होती है। शिवरात्रि पर्व के अवसर पर यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालुगण आते हैं। इसके अतिरिक्त सावन के प्रत्येक सोमवार को असंख्य मात्रा में यहाँ श्रद्धालु एकत्र होते हैं।

(ii ) आला हजरत का उर्स (बरेली):

मुस्लिम शिक्षा के केन्द्र के रुप में बरेली का स्थान सर्वोपरि है। मुस्लिम शिक्षा के इस केन्द्र का संस्थापक आला हजरत को माना जाता है। आला हजरत के जन्म दिन के अवसर पर बरेली में विशाल उर्स आयोजित किया जाता है। इस उर्स में विभिन्न धार्मिक तथा शैक्षिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इन कार्यक्रमों में मुशायरा तथा कव्वाली विशेष रुप से प्रसिद्ध हैं। इस उर्स में भाग लेने न केवल भारत देश अपितु विश्व के प्रत्येक कोने से असंख्य मात्रा में लोग आते हैं। यह उर्स प्रतिवर्ष
23,24,25 सफर को मनाया जाता है।


(
iii ) गणेश-चौथ मेला (चन्दौसी):

मुरादाबाद जिले में स्थित चन्दौसी तहसील में प्रत्येक वर्ष गणेश चतुर्थी के अवसर पर गणेश चौथ के मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले की विशेषता है भगवान गणेश की शोभायात्रा। इस शोभा-यात्रा में गणेश जी की विभिन्न शैलियों में असंख्य मूर्तियाँ प्रदर्शित की जाती हैं जिन्हें देखने प्रतिवर्ष विशाल जनसमूह एकत्रित होता है। गणेश चतुर्थी के अवसर पर चन्दौसी में एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जो लगभग
20 दिनों तक चलता है। ज्ञातव्य है कि बम्बई महानगर में श्री गणेश चतुर्थी का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।


(
iv ) रामनगर (बरेली) में लगने वाले जैन मेले:

रामनगर नामक स्थान बरेली जिले की आँवला तहसील के निकट स्थित है। इस स्थान को जैन तीर्थकर पार्श्वनाथ की तपोस्थली माना जाता है। यहाँ एक प्राचीन जैन मन्दिर स्थित है, जिसका वर्तमान में जीर्णोद्वार किया गया है।

रामनगर में प्रतिवर्ष तीन मेलों का आयोजन किया जाता है, जिनमें से प्रथम चैत्र कृष्ण अष्टमी से द्वादशी के अवसर पर, द्वितीय श्रावण शुक्ला सप्तमी पर तथा तृतीय पौष कृष्ण एकादशी के अवसर पर आयोजित किया जाता है। इन मेलों में हजारों की संख्या में भारत वर्ष के कोने-कोने से श्रद्धालुगण आते है और धर्म लाभ प्राप्त कर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते है।


(
v ) श्री काली मन्दिर मेला (मुरादाबाद):

मुरादाबाद नगर के लालबाग नामक स्थान पर श्री काली माता का प्राचीन मन्दिर स्थित है। इस मन्दिर में प्रतिवर्ष रामनवमी तथा नवरात्र के अवसर पर भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है। इन मेलों के अवसर पर असंख्य दुकानें लगाई जाती हैं, जिनमें पूजा की सामग्री के अतिरिक्त बच्चों के खिलौने तथा दैनिक आवश्यकता की वस्तुएं बिक्री के लिए रखी जाती हैं।


(
vi ) खानकाहे अलिया नियाजिया के विभिन्न उर्स (बरेली):

खानकाहे अलिया नियाजिया बरेली नगर में स्थित सूफी सम्प्रदाय की एक शाखा है। इस शाखा से अनेक महापुरुषों का सम्बन्ध रहा है। इन महापुरुषों ने सूफी सम्प्रदाय की इस शाखा को निरन्तरता प्रदान की। इन महापुरुषों को मुस्लिम वर्ग सरकार कहकर सम्बोधित करता है। खानकाहे अलिया नियाजिया में प्रतिवर्ष विभिन्न सरकारों की स्मृति में चार उर्स आयोजित किए जाते हैं। इनमें से प्रथम जन्मादि उस्मानी की तारीख से
10 तारीख तक, द्वितीय बारह बफाद की 25,26,27 तारीख को तृतीय शब्बाल की 15,16,17 तारीख को तथा चौथा शाबान की 4,5,6 तारीख को आयोजित किया जाता है। इन उसाç में देश-विदेश के श्रद्धालु भाग लेने आते हैं ओर अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं।


(
vii ) हजरत हाफिज सैय्यद शाह जमालउल्लाह कादरी का उर्स (रामपुर):

हजरत हाफिज सैय्यद शाह जमालउल्लाह कादरी रामपुर में हुए उन महापुरुषों में से थे, जिन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता का संदेश दिया।

हजरत साहब का उर्स उनकी मजार शरीफ पर प्रतिवर्ष सफर के महीने में आयोजित किया जाता है। इस उर्स में दुनिया के हर हिस्से से सभी सम्प्रदायों के लोग भाग लेने आते हैं। इस उर्स में मुशायरे तथा कव्वालियों का आयोजन किया जाता है।


(
viii ) बड़े सरकार का उर्स (बदायूँ):

हजरत सुल्तान आरफीन साहब रहम उल्लाह अलह उर्फ बड़े सरकार बदायूँ के एक ऐसे महापुरुष थे, जिन्हें विशिष्ट प्रकार की दिव्य शक्ति प्राप्त थी। इस दिव्य शक्ति के बल पर हजरत साहब ने अपने जीवन काल में हजारों लोगों की समस्याओं का समाधान किया। वर्तमान में उनकी मजार शरीफ बदायूँ नगर में स्थित हैं, जहाँ प्रतिदिन असंख्य श्रद्धालु आते हैं और अपनी समस्याओं के समाधान हेतु इबादत करते हैं। बड़े सरकार की जारत पर प्रतिवर्ष रमजान के महीने में
20-25 रमजान तक उर्स का आयोजन किया जाता है। इस भव्य उर्स में कव्वाली, नात मिलाद इत्यादि कार्यक्रमों को सम्मिलित किया जाता है। इस उर्स में देश-विदेश के हजारों लोग भाग लेते हैं।

3 . ॠतु के आधार पर :

कुछ मेलों का आयोजन समय की ताल के आधार पर किया जाता है। पूर्णमासी, विषुवत् संक्रान्ति, मकर संक्रान्ति तथा बसन्त पंचमी एवं अन्य पवाç पर असंख्य मेलों का आयोजन रुहेलखण्ड क्षेत्र में होता है। इनमें भी माघ की पूर्णमासी के अवसर पर कछला घाट (जिला बदायूँ) पर आयोजित मेले का स्थान अग्रगण्य है।

रुहेलखण्ड के कुछ मेलों की सूची

मेला/उत्सव स्थान देव/स्वरुप
नेकपुर देवी का मेला मढ़ीनाथ, नेकपुर, बरेली दुर्गा
नरियावल का मेला नकटिया, नरियावल देवी
नेता का मेला लाल फाटक, बरेली शिव
भगवानपुर पंचोमी का मेला पंचौमी, बरेली शिव
नाग पंचमी गंगापुर, बरेली शिव
गोपाला सिद्ध केन्ट बरेली गणेश/शंकर
गौर पूजन तीज समस्त ग्रामों में पार्वती
सकट समस्त ग्रामों में चन्द्रमा
हनुमान जयन्ती बरेली एवं अन्य सभी स्थानों पर हनुमान
राधाष्टमी बरेली राधा जी
गोवर्धन पूजा समस्त परिक्षेत्र में पशुओं/गोवर्धन पर्वत की पूजा
धोपेश्वर नाथ का मेला बरेली शिव
लिलहार मुड़ईया का मेला लिलहार, मुड़ईया-पीलीभीत शिव
सिद्ध बाबा का मेला हरिपुर, पूरनपुर (पीलीभीत) गाँव की रक्षक देवता
वमियाना देवी का मेला खुदागंज, शाहजहाँपुर गाँव की रक्षिका देवी
ढाई घाट का मेला खुदागंज, शाहजहाँपुर गंगा देवी
खरैनिया बाबा का मेला पीलीभीत सिद्ध बाबा
पिन्नी बरेली, रामपुर, बदायूँ संकटा देवी
झंझिया टेसू बरेली, रामपुर, बदायूँ गौरा पार्वती
नगौरा नगौरिया बदायूँ पीलीभीत गौरा पार्वती
बाला जी की चालीसा बरेली हनुमान का बालरुप
अन्नकूट बरेली हनुमान का बालरुप
अगस्त्य मुनि की शोभायात्रा बरेली अगस्त्य मुनि

बरेली में मनाये जाने वाले उत्सव

1. बाला जी (बरेली शाखा) महोत्सवः

बाला जी हनुमान जी का बाल रुप माने जाते हैंै। तिरुपति के बाला जी-विष्णु भगवान का प्रतिरुप एवं धन का प्रतीक माने जाते है तथा मेहंदीपुर के बाला जी, जो कि हनुमान का प्रतिरुप स्वरुप है, राजस्थान से सम्बन्ध रखते हैं। यहाँ के आराध्य देव भैरो बाबा, बाला जी एवं प्रेत सरकार हैंै। इसी की एक शाखा बरेली में पायी जाती है। इसकी बरेली में स्थापना लगभग
13 मई, 1984 में हुयी थी तथा इससे सम्बन्धित बाला जी की चौकी रामपुर, मिलक, काशीपुर, दिनेशपुर, मुरादाबाद, गाजियाबाद, गदरपुर आदि शहरों में स्थापित है। इसके विशेष अनुष्ठानों में 1. चालीसा, 2. मूर्ति स्थापना दिवस, 3. अन्नकूट हैं। यहाँ साल में चार बार शोभा यात्रायें निकाली जाती हैं। इनमें विभिन्न प्रकार की झांकी स्वरुप इत्यादि भी शामिल हैं।

चालीसा बरेली के बाला जी की शाखा में विशेष अनुष्ठान होता है। इसमें भक्तगण
40 दिन तक व्रत रखते हैं। ये भक्त विशेष पोशाक जैसे - धोती-कुर्ता, कमर में अंगोछा बांधकर एवं माथे पर लाल पट्टी बांध कर लगातार 40 दिन तक विशेष मन्त्र "ऊँ हन्ता हनुमता नमः" का जाप करते हैं। यह जाप लगभग सवा लाख बार किया जाता है। चालीसा के अन्तिम दिन एक उद्यापन हवन होता है, जो कि महन्त द्वारा सम्पन्न करवाया जाता है। तदोपरान्त भण्डारा होता है जिसमें देश एवं परदेश से आये भक्तगण सम्मिलित होते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके पश्चात भजन कीर्तन इत्यादि का कार्यक्रम होता है तथा कार्यक्रम प्रातः चार बजे तक चलता है। पुनः प्रसाद का वितरण किया जाता है जिसमें हलुवे का वितरण किया जाता है। यह चालीसा साल के प्रथम मास में मनाया जाता है।

ठीक इसी प्रकार अन्नकूट का अनुष्ठान किया जाता है। इसमें तरह-तरह कार्यक्रम होते हैं। प्रातः काल से दोपहर
12 बजे तक कीर्तन चलता है। तदोपरान्त मन्दिर के महन्त द्वारा विभिन्न भोज्य पदार्थो को एक साथ मिलाकर भोग लगाया जाता है, जिसे श्रद्धालु लोग प्रसाद के रुप में ग्रहण करते हैं। इसमें भी देश-परदेश से आये भक्तगण अपनी भागीदारी पूर्ण करते हैं।

2. श्री अगस्त्य मुनि महोत्सव :

श्री अगस्त्य मुनि सभा, बरेली महानगर के छोटी बमनपुरी में स्थापित हैं। यहाँ के लोग हर वर्ष श्री अगस्त्य मुनि जी का जन्म दिन मनाते हैं और शोभा यात्रा का आयोजन करते हैं। यह शोभा यात्रा बमनपुरी स्थित श्री अगस्त्य मुनि आश्रम से प्रारम्भ होकर महानगर की प्रमुख सड़कों से होकर पुनः वापस छोटी बमनपुरी आकर समाप्त हो जाती है। श्री अगस्त्य मुनि का यहाँ से कोई विशेष संबंध नहीं जुड़ता है, मात्र जन्म दिन यहाँ मनाया जाता है और उनकी शिक्षाओं का प्रचार किया जाता है। इस संस्था द्वारा प्रकाशित उद्धत श्री अगस्त्य मुनि का संक्षिप्त जीवनी इस प्रकार है-

"एक बार त्रेता युग माहीं। शम्भु गये कुम्भज ॠषि पाहीं।।"

श्री मानस की उपरोक्त अर्द्धाली से प्रकट है कि श्री मुनि जी की तत्कालीन श्रेष्ठ ॠषि-मुनियों में गणना थी और शंकर जी इनके आश्रम में सती - सहित राम भक्ति का रहस्य जानने हेतु गये थे। इन महा तेजस्वी ॠषि की स्वयं उत्पत्ति अनेक ॠषियों के रुधिर से भरे कुम्भ से हुयी। अतः इन्हें कुम्भज कहा गया। इनकी पत्नी का नाम लोपा-मुद्रा था, जो इन्हीं के शिष्य राजॠषि की कन्या थीं।

श्री अगस्त्य मुनि के बारे में प्रसिद्ध है कि "अर्ग पर्वतं स्तम्भयति इति अगस्त्य" अर्थात् जो पर्वत को भी स्तंभित कर दे। अपने नामानुसार उन्होंने विन्ध्य पर्वत को भी नम बना दिया, जो कि अर्द्धगामी होता हुआ सूर्य के मार्ग को रोक रहा था।

इस प्रकार उन्होंने अपना सारा जीवन धर्म् प्रचार एवं मानवता की रक्षा में व्यतीत किया। अगस्त्य जी का सप्त ॠषियों में सर्वश्रेष्ठ स्थान है।

कुछ लोक मान्यताएँ:

एक लम्बी अवधि से हमारे समाज से कुछ ऐसी लोक-मान्यताएं सम्बद्ध हैं, जिनका कोई तार्किक और वैज्ञानिक आधार नहीं है। ऐसी मान्यताओं का आधार मात्र मानवीय विश्वास है। रुहेलखण्ड क्षेत्र में भी कुछ ऐसी लोक मान्यताओं के दर्शन होते हैं जो लोगों की दृढ़ आस्था पर आधारित हैं। ऐसी मान्यताओं में कुछ का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है-

(
i ) ब्रहृम देव बाबा के निवास स्थल के रुप में पीपल के वृक्ष की उपासना:

रुहेलखण्ड क्षेत्र के गाँवों में पीपल के वृक्ष की उपासना की प्रथा अत्यन्त प्रचलित है। ग्रामीण लोगों का विश्वास है कि पीपल के वृक्ष पर ब्रह्म देव बाबा नामक दिव्य पुरुष निवास करते हैं और पीपल-वृक्ष की उपासना करने से यह दिव्य पुरुष प्रसन्न होकर प्रत्येक मनोकामना पूर्ण करते हैं। रुहेलखण्ड के गाँवों में पीपल के ऐसे अनेक वृक्ष देखे जा सकते हैं, जो ग्रामीण लोगों की पूजा के केन्द्र हैं। प्रायः ऐसे वृक्षों के चारों ओर ऊँचा चबूतरा होता है। लोग ब्रह्मदेव बाबा को प्रसन्न करने के लिए पीपल की वृक्ष पर लाल झण्डियाँ तथा लंगोट चढ़ाते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से ब्रह्म देव बाबा प्रसन्न होंगे।

(ii ) परियों का कुँआ (बदायूँ):

वृक्ष-उपासना के साथ-साथ रुहेलखण्ड क्षेत्र में कुँओं की उपासना का प्रचलन भी है। इन कुँओं में बदायूँ नगर के समीप स्थित परियों का कुँआ विशेष रुप से उल्लेखनीय है। इस कुँए के बारे में एक किंवदंति है। इस किवंदति के अनुसार - एक बार मुगल बादशाह अकबर सन्तान प्राप्ति की मन्नत माँगने बदायूँ में स्थित छोटे सरकार की जारत पर आए। उनके साथ उनकी पत्नी जोधाबाई भी थीं। अकबर जोधाबाई के साथ इस कुँए के निकट से गुजरे। कुछ दूर जाकर जोधाबाई ने देखा कि सफेद वस्र धारण किए हुए कुछ स्रियां इस कुंए के जल से स्नान कर रही हैं। यह देखकर जोधाबाई इस कुँए की ओर बढ़ीं।

किन्तु कुँए के निकट आते ही वह स्रियाँ अदृश्य हो गई। कुछ स्थानीय लोगों ने जोधाबाई को बताया कि ये स्रियाँ संभवतः परियाँ थीं। जोधाबाई ने इस कुंए के जल से स्नान किया। इसके उपरान्त वे छोटे सरकार की जारत पर गई। छोटे सरकार ने जोधाबाई को दिव्य रुप से यह संकेत दिया कि उन्हें सन्तान की प्राप्ति होगी। बाद में अकबर के यहाँ सलीम का जन्म हुआ। "तभी से इस कुँए के साथ यह मान्यता जुड़ी हुई है कि इसके जल से स्नान करने पर स्रियों को सन्तान की प्राप्ति अवश्य होती है। आज भी प्रतिदिन ऐसी असंख्य स्रियाँ इस कुँए के जल से स्नान करती हैं जिनको सन्तान प्राप्ति नहीं हो सकी है। स्रियों के मन में यह भावना अत्यन्त प्रबल है कि इस कुँए के जल के स्नान द्वारा मनचाही सन्तान प्राप्त होगी। सन्तान प्राप्ति की इच्छुक स्रियाँ लगातार छः बुधवार को यहाँ आकर स्नान करती हैं।

(iii ) नवाब नौबत राय मन्दिर के चमत्कारी फर्श द्वारा त्वचा-रोगों का इलाजः

बदायूँ नगर में स्थित इस मन्दिर का निर्माण लगभग 150 वर्ष पहले नवाब नौबत राय ने करवाया था। पटियाली सराय में स्थित इस मन्दिर में शिव तथा अन्य देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हैं। परन्तु इस मन्दिर से जुड़ा एक रोचक तथ्य है। यहाँ के एक कक्ष में स्थित सुन्दर तथा बहुरंगी फर्श। लोगों का दृढ़ विश्वास है कि इस फर्श पर लोटने से त्वचा के रोग (विशेषकर पित्थी) स्वतः समाप्त हो जाते हैं। इस मन्दिर में ऐसे असंख्य लोग आते हैं जिनको पित्थी का रोग होता है। ऐसे लोग इस मन्दिर के चमत्कारी फर्श पर अपने शरीर का स्पर्श कराते हैं और स्वयं को निरोग महसूस करते हैं।

(iv ) माती-माफी गाँव (जिला शाहजहाँपुर) से जुड़ी मान्यता:

जिला शाहजहाँपुर में स्थित माती-माफी गाँव के बारे में यह मान्यता प्रचलित है कि हिन्दुओं द्वारा पूुज्य सातों देवियों का जन्म यहाँ हुआ था। यहीं से वे देवियाँ अन्य स्थानों को गईं। आज कल प्रत्येक अमावस्या को इस गाँव में एक मेला लगता है। लोगों का विश्वास है कि इस दिन सातों देवियाँ यहाँ आती हैं। इस मेले में असंख्य श्रद्धालु आते हैं और मनौतियाँ माँगते हैं। माती-माफी में काली देवी तथा उल्कादेवी के मन्दिर स्थित हैं। उल्का देवी के मन्दिर के पास ही भुगनई ताल है। लोगों के हृदय में यह विश्वास अत्यन्त दृढ़ है कि भुगनई ताल में स्नान करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है।

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Content Prepared by Dr. Rajeev Pandey

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