राजस्थान

मेवाड़ राज्य में विकसित उद्योग - धंधे

अमितेश कुमार


मेवाड़ राज्य में जन- जीवन में ज्यादातर कुटीर ग्रामोद्योग का प्रचलन था। इन उद्योगों का विस्तार आत्मनिर्भर आर्थिक- व्यवस्था के अनुरुप राज्य की माँग तथा पूर्ति तक सीमित था। ज्यादातर उद्योग- धंधे जाति समाज की जातियों व वंशानुगत स्थितियों पर आधारित थे। जातिगत उद्योगों में कार्यरत शिल्पियों के दो स्तर थे -

क. ग्राम्य शिल्पी
ख. नगर शिल्पी

ग्राम्य शिल्पी कृषि तथा ग्राम्य- जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कार्य करते थे। इनका आर्थिक जीवन कृषि- आश्रित रहता था। वे अर्द्ध- कृषक हो सकते थे। नगर शिल्पी कुशल शिल्पी की श्रेणी में आते थे। उन्हें दो श्रेणियों में बाँटा गया है -

नगर शिल्पी -- श्रमिक शिल्पी

-- व्यवसायी शिल्पी

श्रमिक शिल्पियों में भवन- निर्माण करने वाले मिस्री व अन्य कारीगर, कपड़ों की सिलाई करने वाले महिदाज, रेजा बुनने वाले बलाई, कपड़ा रंगने वाले रंगरेज, कागज बनाने वाले कागदी, सोना- चाँदी के बरक बनाने वाले, कपड़ो की छपाई करने वाले छीपा, बर्तन गढ़ने वाले कसारा इत्यादि जाति के लोग प्रमुख है। सुनार, लुहार, सुथार, कुम्हार, दर्जी, जीणगर, सिकलीगर, अंतार- गंधी, उस्ता, पटवा, कलाल आदि जातियाँ व्यवसायी शिल्पियों के वर्ग में आते थे।

मेवाड़ राज्य के प्रमुख उद्योग निम्न थे -

१. वस्र उद्योग

प्रत्येक गाँव में चर्खे द्वारा सूत कातने तथा मोटे सूती कपड़े (रेजा ) की बुनाई का काम किया जाता था। एक कहावत के अनुसार -

मोटो खाणों, मोटो पेरणों अर छोटो रेहणों

अर्थात आदर्शवान नम्र व्यक्ति मोटे अनाज (मक्की- धान आदि ) खाते है तथा रेजा पहनते है।

मेवाड़ राज्य के मध्य एवं पूर्वी दक्षिणी भाग में कपास का उत्पादन होने के कारण यह क्षेत्र रेजाकारी का प्रमुख केंद्र था। मुस्लिम जाति के जुलाहे बारीक कपड़े की बुनाई का काम करते थे, लेकिन इन वस्रों का प्रचलन मात्र अभिजात व कुलीन वर्ग में ही होने के कारण मोटे रेजा उद्योग जैसा प्रचलित नहीं हो पाया। वस्र- निर्माण, रंगाई, छपाई व कढ़ाई का काम मुस्लिम जाति के रंगरेजों, छिपाओं तथा हिंदूओं में पटवा लोगों द्वारा किया जाता था। छपाई में लकड़ी के ब्लाकों का प्रयोग होता था, जिसका निर्माण शिल्पी- सुथार करते थे। गोटे- किनारी के व्यवसाय पर पारख जाति के ब्राह्मणों का एकाधिकार था।

२. काष्ठ- उद्योग

मेवाड़ राज्य की तिहाई भूमि वनाच्छादित थी। सीसम, सागवान, आम, बबूल व बाँस के वृक्ष बहुतायत में थे। लकड़ियों का प्रयोग विशेष रुप से कृषि- उपकरण, भवन तथा बरतन बनाने में होता था। लकड़ी में खुदाई व नक्काशी का काम सुथार लोग करते थे।

३. लुहारी व चर्मकारी उद्योग

ग्राम्य लुहार, चमार व गाडूलिया- लुहार (एक घुमक्कड़ व्यवसायी जाति ) कृषि के लिए लौह- उपकरणों, जैसे हल, कुदाल, नीराई- गुड़ाई करने की खाप, चड़स आदि तथा घरेलू- सामानों (चिमटा, दंतुली, सांकल, चाकू आदि) बनाने का कार्य करती थी। नगरों में यह काम सिकलीबर, जीणगर व मोची द्वारा किया जाता था।

४. बर्तन - उद्योग

जन- साधारण की स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मिट्टी के बर्तन बनाये जाते थे। बांस की सुलभता के कारण बांस के बर्त्तनों का भी प्रचलन था। बांस का कार्य गांछी तथा हरिजन जाति के लोग करते थे। वे टोकरियाँ, छाब, कुंडया, टाटा आदि बनाने का कार्य करते थे। तांबा, पीतल तथा कांसा के मिश्रित बर्त्तनों का निर्माण कार्य कसारा जाति के लोग करते थे। उदयपुर में पीतल, तांबा आदि के साथ- साथ सोनियों द्वारा सोने- चाँदी के बरतन भी बनाने के कारोबार किया जाता था।

५. आभूषण उद्योग 

कलात्मक आभूषण बनाने तथा जड़ाई करने का कार्य सोनी तथा जड़िया जाति के लोग करते थे। वे तलवारों व कटारियों की मूठों पर भी जड़ाई व खुदाई का काम करते थे। मीनाकारी का काम विशेष रुप से नाथद्वारा में होता था।

६. अन्य उद्योग

उपरोक्त उद्योगों के अलावा यहाँ मूर्ति एवं चित्रकारी, चूड़ी, इत्र, कागज व शराब बनाने के उद्योग विकसित थे। चतारा उद्योग का व्यापक प्रचलन विभिन्न ठिकानों, हवेलियाँ व लोक- शिल्प के रुप में सभी घरों में था। वैसे तो कागज का गुजरात से आयात किया जाता था, लेकित मेवाड़ में भी घास की गुदा, मांस, कपड़ों को सड़ाकर लेप तैयार कर मोटा कागज बनाने का प्रचलन था। बनाने वाले "कागदी' कहलाते थे। बारुद सोनगरों द्वारा तैयार किये जाते थे। क्रलाल जाति के लोग महुआ, केशव व गुलाल से शराब बनाते थे।

राजमहलों में कई कारखाने काम करते थे। वहाँ शिल्पियों को शासन द्वारा बेगार में अथवा वेतन- मजदूरी पर काम करना होता था। यहाँ मुख्यतः पत्थर - नक्काशी, मूर्ति शिल्प, चित्रकारी, वस्र- सिलाई, आभूषण- जड़ाई, डोली, स्वर्णकारी, औषधि व नाव आदि बनाने का काम होता था। कारखाने के उत्पादों का प्रयोग राज्य के मर्दाना महल तथा जनाना महल में रहने वाले लोग करते थे।

मेवाड़ राज्य के उद्योग- धंधे
वस्तु का नाम संबद्ध निर्माण- स्थल
दुपट्टा एवं छींट के वस्र  हम्मीरगढ़
रेजा की जाजम व पछेवड़ा,
वस्र-बंधाई, रंगाई व छपाई
चित्तौड़, अकोला, उदयपुर
पगड़ियां, मोठड़े, चूंदड़ियाँ व लहरियों की छपाई व रंगाई उदयपुर 
बहुमूल्य कपड़ों पर सोने चांदी के तार तथा रेशम के धागों द्वारा कढ़ाई उदयपुर
कपास तथा ऊन ओटने का कारखाना भीलवाड़ा
लकड़ी के कलात्मक खिलौने व चुड़ियाँ उदयपुर, भीलवाड़ा, जहाजपुर, शाहपुर
पावड़ा पर पॉलिश भीलवाड़ा, जहाजपुर, शाहपुर
भवन- निर्माण में उपयुक्त कलात्मक काष्ठ - निर्मित वस्तुएँ सलूम्बर, कुरबड़, भीण्डर
तलवार, खंजर- छूरी, कटारी, भाले ढ़ाल, हाथी, घोड़े तथा ऊँटों की जीण या काठी उदयपुर
मिट्टी के कलात्मक बर्त्तन कुँआरिया, उदयपुर तथा कपासन
लौह- निर्मित हमामदस्ता व तगारियाँ  विगोद
ताँबा, पीतल व कांसा आदि धातुओं के बरतन भीलवाड़ा, उदयपुर
सोने- चाँदी के बरतन उदयपुर
आभूषण निर्माण व नगीना- जड़ाई उदयपुर
मीनाकारी नाथद्वारा
हाथीदाँत, लाख व नारियल की चूड़ियाँ उदयपुर, भीलवाड़ा
मोमबत्ती कोठारिया
गुलाबजल व गुलाब का इत्र खमनोर
कंबल देवगढ़
हरे घीया पत्थर की मूर्तियाँ  ॠषभदेव
भीत्तिचित्र व कलमकारी उद्योग नाथद्वारा, उदयपुर
मोटा कागज उद्योग घुसुन्डा
बारुद केवला, चित्तौड़ व पुर
देशी साबुन उदयपुर, भीण्डर

 

विषय सूची


Top

Copyright IGNCA© 2004