राजस्थान

 

मारवाड़ के उपासना गृह

प्रेम कुमार


मारवाड़ की स्थापत्य कला केवल दुर्गों, राजप्रासादों तथा विभिन्न वर्ग के आवास-गृहों तक ही सीमित नहीं रही। यहां के मंदिरों, मस्जिदों, जलाशयों, विशेष रुप से बावड़ियों तथा विभिन्न प्रकार के बाग बगीचों के निर्माण में भी उसका अलंकृत स्वरुप हमें देखने को मिलता है जो यहां के स्थापत्य के प्रचार-प्रसार एवं विकास का परिचायक है।

 

 

मारवाड़ के मंदिर

मारवाड़ की स्थापत्य कला के विकास में मंदिरों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है और यह यहां की बहुसंख्यक जनता की धार्मिक भावना के केन्द्र भी रहे हैं। मंदिरों में यहां के निवासियों की धार्मिक आस्था, विश्वास, भावना व आराधना की अभिव्यक्ति हेतु स्थापत्य को एक आदर्शस्वरुप में प्रस्तुत किया गया है तथा उनके निर्माण की शैलियों में शासन व काल के अनुरुप बदलाव देखा जा सकता है।

मंदिर - निर्माण का इतिहास

मारवाड़ में नागर शैली के मन्दिरों का बाहुल्य है। यहां के मंदिरों में मुख्य प्रवेशद्वार (तोरणद्वार) के पश्चात् विशाल आंगन या चौक होता है जिसे सभामण्डप कहा जाता है। सभामण्डप के आगे मूल मंदिर होता है जो गर्भगृह कहलाता है। इसमें मुख्य देवता की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की जाती है। गर्भगृह के ऊपर शिखर शिखर बना रहता है, गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा-पथ बना होता है। यहां पर प्रमुख रुप से हिन्दू व जैन मन्दिरों का प्राबल्य है।

मारवाड़ के मंदिरों के स्थापत्य में मूर्ति अंकन का वैशिष्ट्य विशेषरुप से उल्लेखनीय है। मंदिरों में देवी-देवताओं की मूर्तियों के अतिरिक्त नारी, नर्तक मण्डली, व विविध प्रकार के पशु-पक्षियों की आकृतियां भी उत्कीर्ण हैं जिसमें नारी मूर्तियों की बहुलता है। इन मूर्तियों से तत्कालीन वाद्य यंत्रों व वेशभूषा, रहन-सहन आदि की जानकारी मिलती है। मंदिर धार्मिक भावना के केन्द्र, सामाजिक भावना के पोषक व सांस्कृतिक विरासत के मूर्तिमान प्रतीक हैं।

मंदिरों के अतिरिक्त छोटे पूजागृह प्रत्येक ग्राम और घर में इस काल में भी परम्परा के अनुसार बनते रहे, इनमें जूंझार, सती, भोमिया, पितर आदि या कुलदेवी आदि के पूजागृह मुख्य हैं, इनकी बनावट प्रायः सादी होती थी।

मध्यकाल में मंदिरों के स्थापत्य व निर्माण में सुरक्षा का भी ध्यान रखा जाता था। सुरक्षा की दृष्टि से गढ़ों, दुर्गों और शहरपनों आदि का निर्माण किया जाना उस समय सामान्य बात थी, परन्तु मंदिरों की रक्षा के लिए भी इसी प्रकार की व्यवस्था की जाने लगी और कई मंदिरों के चारों ओर सुदृढ़ प्राचीर व बुर्जे आदि आज भी देखने में आती हैं। कस्बों और गांवों में छोटे बड़े मंदिरों का निर्माण इस काल में अवश्य हुआ है, परन्तु शिलालेखों के सुरक्षित न रह पाने के कारण उनके बारे में निश्चित जानकारी देना बड़ा कठिन है।

यहां के शासक मुस्लिम शासकों का विरोध करते हुए अथवा उनके साथ मैत्री संबंध रखते हुए भी अपनी धार्मिक भावनाओं के अनुरुप मंदिरों और मूर्तियों का निर्माण करवाते थे। 

१७वीं और १८वीं शताब्दी में वैष्णव धर्म से संबंधित मंदिर यहां अधिक संख्या में बने। असका कारण यह था कि मुगलों की कट्टर धार्मिक नीति के कारण उत्तर भारत से अनेक मठों व मंदिरों के आचार्य (धर्म एवं सम्प्रदायों के आचार्य) राजस्थान के शासकों से आश्रय पाने के लिए राजस्थान में चले आये। उस समय मारवाड़ के शासकों ने भी जिनके आश्रय में महन्त या आचार्य आये, उन्हें भूमि आदि भेंट की।

कतिपय नरेश हिन्दू धर्म और संस्कृति के रक्षक कहलाने में गर्व का अनुभव करते थे। जोधपुर के महाराजा जसवन्तसिंह को हिन्दूपत कहा जाता था। औरंगजेब की धर्मान्धता का उन्होंने विरोध किया था।

कुछ शासकों ने मंदिरों का निर्माण व उनके जीर्णोद्धार में विशेष रुचि दिखाई। इनका संक्षेप में उल्लेख किया जा रहा है -

- महाराजा अजीतसिंह ने नगर में कुछ नये मंदिरों का निर्माण करवाया तथा पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार किया। जोधपुर के शूंदी मोहल्ले में स्थित ठाकुर मूलनायक जी का मंदिर औरंगजेब के राज्यकाल में नष्ट कर दिया गया था उसका सन् १७१८-१९ में पुनरुद्धार किया। जोधपुर की जूनी धानमण्डी के निकट घनश्यामजी के मंदिर का निर्माण भी महाराजा अजीतसिंह ने करवाया इसे पंचदेवरिया भी कहते हैं। राव गांगा द्वारा निर्मित गंगश्यामजी का मंदिर जो जसवंतसिंह की मृत्यु के पश्चात् नष्ट कर दिया गया था और उसके स्थान पर मस्जिद बनवा दी गयी थी। अजीत सिंह ने जोधपुर पर जब अपना प्रभुत्व स्थापित किया तो यहां पुनः मंदिर बनवाया।

- महाराजा विजयसिंह वैष्णव धर्म के अनुयायी थे और अपनी धर्मपरायण नीति के कारण उन्होंने यहां कई मंदिरों का निर्माण व जीर्णोद्धार करवाया। मंडोर में देवताओं की साल बनवाकर उसके अंदर बड़े आकार की देवताओं की मूर्तियाँ उत्कीर्ण करवायी। यहीं वि० सं० १७७६ में भैरुजी की बावड़ी के पास जो भैरुजी का छोटा मंदिर था, उसे बड़ा बनवाया गया। काले गोरे भैरु की तथा गजानन्द जी की बड़ी मूर्ति उत्कीर्ण करवा कर स्थापित की।

- महाराजा सूरसिंह ने वाड़ी के महलों में ठाकुरजी का व नागणेचियां जी का मंदिर बनवाया। हरकबाई इत्यादि जो सतियां हुई उनका सती मंदिर बनवाया।

- महाराजा गजसिंह ने कंवरपदा के महलों के ऊपर आनंदघन जी का मंदिर बनवाया।

- वि० सं० १७१७ में "मचेटिये भाखर' के ऊपर सिकदार सोभावत भगवानदास ने माता जी का मंदिर बनवाया जिसकी कीमत राज्य से लगी।

- महाराजा जसवन्तसिंह ने ठाकुरजी श्री मुरली मनोहरी, श्री आणंदघन जी व श्री माताजी हींगलाज की चांदी की खड़ी मूर्तियाँ बनवाई।

- महाराजा अभयसिंह ने देवकुण्ड के ऊपर माताजी श्री हिंगलाज जी के लिए चबूतरा बनवाया जो पूरा नहीं करवा पाये। महाराजा अभयसिंह के धाय भाई रावत ने रावत बावड़ी के ऊपर माताजी का मंदिर बनवाया।

- महाराजा बखतसिंह ने नागौर दुर्ग में जिस महल में राव अमरसिंह रहते थे वहां ठाकुरजी का मंदिर, नागौर शहर में मुरली मनाहरजी का मंदि व गांव मूंडवा में तालाब के किनारे ठाकुरजी का मंदिर बनवाया और वहां बगीचा भी लगवाया।

- महाराजा विजयसिंह के काल में जोधपुर में मंदिरों के निर्माण व जीर्णोद्धार का कार्य सर्वाधिक हुआ। गंगश्यामजी के मंदिर को उखेड़कर पुनः बनवाया। शिखरबंद (गुम्बज वाली) पोल, सूर्य व महादेव के मंदिरों का निर्माण करवाकर उसके चारों ओर परकोटा बनवाया। तलहटी के महलों के नीचे बल्लभकुल के, बालकिशन जी व श्यामजी के मंदिर निर्मित करवाये। जोशी की हवेली के पास ठाकुरजी श्री महाप्रभु, खैरवा की हवेली के पास नटवरजी का मंदिर व श्री कुंजबिहारी जी का मंदिर बनवाया। दाऊजी का मंदिर जिसका निर्माण महाराजा अभयसिंह ने करवाया और वि० सं० १७८६ में कोटा से गुंसाई को लाकर यहां विट्ठलराय को प्रतिष्ठित किया था। इसका महाराजा विजयसिंह ने विस्तार करके निर्माण कार्य सम्पन्न करवाया।

विवेच्य काल में मारवाड़ के शासकों द्वारा ही नहीं अन्य जागीरदारों व धर्मप्राण लोगों द्वारा भी मारवाड़ के विभिन्न स्थानों पर मन्दिरों का निर्माण व जीर्णोद्धार का कार्य होता रहा।

- जालोर के चौहान शासन चाचिगदेव ने सूंधा पर्वत पर जो चामुण्डा देवी का मन्दिर बनवाया उसमें समय-समय पर निर्माण-कार्य होता रहा। मन्दिर पर लिखे शिलालेख के अनुसार इस मन्दिर में वि.सं. १७२७ आषाढ़ कृष्ण ३ के दिन श्री जैतनाथ जी ने कलश चढ़ाया व झरोखा बनाया।

- पीपाड़ में वि.सं. १६४९ में भण्डारी माला के पुत्र रायमल ने उपासरा बनाया। यहाँ के शासक व जागीरदारों के अलावा कई रानियों व ठाकुरानियों ने भी मन्दिर-निर्माण में विशेष रुचि ली

- महाराणा अजीतसिंह की रानी राणावत जी ने गोल में तंवरजी के झालर के पास शिखर बन्द मन्दिर बनवाया।

- ठाकुर सुल्तान सिंह की पुत्री सिरै कुंवर बाई ने सिरै बिहारी जी का मन्दिर बनवाया।

- नींबाज में ही ठाकुर शम्भुसिंह की धर्मपत्नी खगारोत जी ने सीताराम जी का मन्दिर (रघुनाथ जी का मन्दिर) बनवाया।

हिन्दु मन्दिरों के अतिरिक्त यहाँ कई जैन मन्दिरों का भी निर्माण हुआ। विवेच्य काल में नए जैन मन्दिरों का निर्माण भले ही कम हुआ हो उनका पुनर्निर्माण व जीर्णोद्धार का कार्य किसी न किसी रुप में अवश्य होता रहा। इन मन्दिरों में संगमरमर का प्रयोग अधिक मात्रा में हुआ है। इन मन्दिरों की स्थापत्य-कला की बारीकी व अलंकरण की अनुपम छटा का अपना महत्व है। ओसियां, नाकोड़ा, रणकपुर आदि में ये मन्दिर विशेष रुप से बनाए है। रणकपुर के अतिरिक्त मुहाला महावीर जी, नारलाई, नाडोल और बरकाणा के मन्दिर 'जैन पंचतीर्थ' के नाम से पुकारे जाते है।

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मारवाड़ की मस्जिदें

मारवाड़ में मस्जिदों का निर्माण इस्लाम की धार्मिक भावना से प्रेरित था ही साथ ही साथ कहीं न कहीं हिंदु धर्मावलाम्बियों के प्रति विद्वेष व विरोध से भी उत्प्रेरित थी। कई मध्यकालीन मस्जिदें मन्दिरों को तुड़वाकर उसके स्थान पर बनवाई गई। धार्मिक आन्दोलन के पश्चात यह धार्मिक कट्टरता कम हुआ और कुछ हद तक सौहार्द व सामंजस्य स्थापित होने लगा। हिन्दुओं ने भी उन मुस्लिम उपासना-गृहों को पवित्र मानकर उनका आदर करना प्रारंभ किया। इतना ही नही मेड़ता की शाहजहाँ कालीन जामा मस्जिद जो पहले बन्द थी, मेड़ता के 
राजा सुजानसिंह ने नमाज के लिए पुन: खुलवाई। वहाँ स्थित फ़ारसी शिलालेख से पता चलता है कि उन्होंने इसका जीर्णोद्धार भी करवाया था। इस प्रकार कई अवसरों पर हिन्दुओं ने धार्मिक आस्था के साथ कई मस्जिदों को इज़ज़त ही नहीं बख्शी बल्कि उनकी सुरक्षा का भी ध्यान रखा।

मस्जिदों का वास्तुशिल्प मन्दिरों से भिन्न हुआ करता था। ऊँची मीनारे व गुम्बद उन्हें मन्दिरों से बिल्कुल अलग कर देते थे। मुगल शासकों व सूबेदारों द्वारा निर्मित मस्जिदें प्राय: बड़ी हुआ करती थी। विशाल व भव्य आकार वाली मस्जिद को जामा मस्जिद के नाम से पुकारा जाता था। मेड़ता की जामा मस्जिद व नागौर के गिनानी तालाब पर स्थित अकबरी मस्जिदें भी इसी प्रकार की मस्जिदें है। नागौर और मेड़ता की जाति मध्यकाल में मारवाड़ के अन्य स्थानों पर भी अनेक छोटी-बड़ी मस्जिदों का निर्माण हुआ जिनमें जोधपुर, पाली, जालोर, सोजत आदि स्थानो की मस्जिदें प्रमुख हैं। प्राय: जिस मुगल सम्राट के काल में ये मस्जिदें निर्मित हुई प्राय: उसी के आधार पर उनका नामकरण अकबरी, जहाँगीरी आदि मस्जिद रख दिया गया। यहाँ निर्मित कुछ मस्जिदों का उल्लेख किया जा रहा है-

- शाम्सतालाब पर नागौर के सूबेदार शम्सुद्दीन ने शमशीह जामा मस्जिद का निर्माण करवाया। 

- शाहजहाँ काल में, हिजरी सन् १००६ में नागौर के तहसील चौक पर बने शाहजाही मस्जिद का निर्माण शहिर खाँ ने करवाया।

- नागौर दुर्ग में स्थित मस्जिदें किला नागौर बादशाह शाहजहाँ के जमाने में सिपरसाकार खाने खाना महावत खाँ ने हिगही १०४१ में बनवाई।

 

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