राजस्थान

 

मारवाड़-दरबार द्वारा दी जाने वाली ताजीमों और सरोपावों का विवरण

प्रेम कुमार


मारवाड़ दरबार द्वारा दी जाने वाली ताजीमें दो प्रकार की हैं। इकहरी (इकेवड़ी) दोहरी (दोवड़ी)। जिसे इकहरी ताजीम मिलती है, उसके महाराजा साहब के सामने हाजिर होते समय और जिसे दोहरी ताजीम मिलती है, उसके हाजिर होते और लौटते दोनों समय महाराजा साहब खड़े होकर उसका अभिवादन ग्रहण करते थे।

बाँह-पसाव

जिसको यह ताजीम मिलती है, उसके महाराजा साहब के सामने उपस्थित होकर (और अपनी तलवार को उनके पैरों के पास रखकर) उनके घुटने या अचकन के पल्ले को छूने पर महाराजा साहब उसके कंधे पर हाथ रख देते थे।

हाथ का कुरब

जिसको यह ताजीम मिलती थी, उसके बाँह पसाव वाले की तरह महाराजा साहब का घुटना या दामन छूने पर महाराजा साहब उसके कंधे पर हाथ लगा कर अपने हाथ को अपनी छाती तक ले जाते थे।

ये ताजीमें भी इकहरी और दोहरी दोनों प्रकार की होती थी और उन्हीं के अनुसार महाराजा साहब खड़े होकर आदर करते।

सिरे का कुरब

यह कुछ चुने हुए सरदारों को मिला हुआ था, जो दरबार के समय अन्य सरदारों से ऊपर बैठते थे। इनके भी दो प्रकार थे। दांई मिसल के सिरायत महाराजा साहब के दांई तरफ और बांई मिसल के बांई तरफ बैठते थे।

सोना

मारवाड़ में जिस व्यक्ति को सोना महनने का अधिकार मिलता है, वही पैर में सोना पहन सकता है। पहले इस अधिकार के लिए दरबार की तरफ से पैर में पहनने का सुवर्ण का आभूषण मिलता था।

हाथी-सरोपाव

जिसको यह सरोपाव मिलता है उसे राज्य से कपड़ों वगैरा के सब मिलाकर नकद राशि दी जाती थी। विवाह के मौके पर (चोगे और कमरबंद की कीमत मिलाकर) ८४९ रुपये मिलते हैं। इसके इलावा महाराजा साहब के नजदीकी भाई-बन्धुओं को, जो मारवाड़ में महाराज कहलाते हैं, विशेष कृपा और मान प्रदर्शित करने के लिए, १,००० रुपये दिए जाते थे।

पालकी-सरापाव

जिसको महाराजा साहब की तरफ से यह सरोपाव मिलता है उसे ४७२ रुपए दिए जाते थे। परन्तु विवाह के मौके पर इसकी रकम ५५३ रुपए कर दी जाती थी।

घोड़ा सरोपाव

इसके लिए साधारण तौर पर २४० रुपये और विवाह के मौके पर ३४० रुपये मिलते हैं।

सादा-सरोपाव

इसके प्रथम दरजे में मामूली समय पर १४० रुपये और विवाह के समय २४० रुपये दिए जाते थे। परन्तु इसके दूसरे दर्जे में १०० रुपये और तीसरे दर्जे में ७१ रुपये मिलते थे।

कंठी- दुपट्टा-सरोपाव

इसकी प्रथम श्रेणी में ७५ रुपये, द्वितीय श्रेणी में ६० रुपये और तृतीय दर्जे में ४५ रुपये 
दिए जाते थे।

कड़ा, मोती, दुशाला और मदील (जरीदार पगड़ी)-सरोपाव

इसमें प्रथम श्रेणी वाले को १२१ रुपये, द्वितीय श्रेणी वाले को ८५ रुपये और तृतीय श्रेणी वाले को ६५ रुपये मिलते थे।

कड़ा और दुशाला-सरोपाव

इसमें ३७ रुपए दिये जाते थे।

 

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