राजस्थान

राजस्थान में शैव मूर्तियों का रुपांकन

अमितेश कुमार


उत्तर भारत के अन्य प्रान्तों के समान ही राजस्थान में भी वैष्णव मंदिरों की तुलना में शैव मंदिरों की संख्या कम है। राजाश्रय का अभाव इसका प्रमुख कारण माना जा सकता है।

शैव धर्म के अस्तित्व का साक्ष्य हमें अपने सम्यता और संस्कृति के शुरुआती दौर से ही मिलना शुरु हो जाता है। शिवपूजा दो रुपों मे पचलित रही है:-

क. लिंग रुप में प्रस्तुतीकरण
ख. मानव रुप में प्रस्तुतीकरण

१. शिव की प्रकृति का सौम्य पक्ष
२. शिव की प्रकृति का घोर स्वरुप
३. मानव रुप में शिव की अन्य मूर्तियाँ

आधौतिहासिक काल में भी शिव लिंग तथा मानव दोनो रुपों में पूज्य थे। मानव रुप में इसका साक्ष्य हमें पशुओं से घिरे हुए, योगमुद्रा में मिलता है। इस रुप की विशेषता वैदिक साहित्य में वर्णित रुद्र से पर्याप्त साम्य रखती है। कालान्तर में पौराणिक शिव महादेव के रुप में परिणत हो गये। पुरातात्विक अवशेष यह प्रमाणित करते हैं कि शिवपूजा का प्रारंभिक प्रतीक लिंग था जो वैदिक काल आते आते रुद्र या ईशान के प्रतीको में अन्तर्निहित हो गया।

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