राजस्थान

मारवाड़ (जोधपुर) राज्य का एक संक्षिप्त परिचय

प्रेम कुमार


पर्वत - श्रेणियाँ
नदियाँ तथा झीलें
जलवायु
वर्षा
जमीन और पैदावार
जंगल
जंगली जानवर और पशु-पक्षी
खानें

 

जातियाँ
पेशा
पहनावा
भाषा तथा लिपि
दस्तकारी
व्यापार
धर्म
त्योहार तथा मेले

संस्कृत शिलालेखों, पुस्तकों आदि में जोधपुर राज्य का नाम मरु, मरुस्थल, मरुमेदिनी, मरुमंडल, मारव, मरुदेश और मरुकांतार मिलते हैं, जिनका अर्थ रेगिस्तान या निर्जल देश होता है तथा स्थानीय भाषा में इसे मारवाड़ और मुरधर (मरुधरा) कहते हैं। जब से जोधपुर नगर बसा है तब से वह जोधपुर राज्य के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ है।

मारवाड़ नाम वैसा ही है, जैसा कि कठियावाड़, झालावाड़ आदि। स्थानीय शब्दों में वाड़ का अर्थ रक्षक होता है अतएव मारवाड़ का अर्थ रेगिस्तान के रक्षित देश है।

जोधपुर राजय राजपुताने (राजस्थान) के दक्षिण-पश्चिम में २४ ३७ड़ और २७ ४२ड़ उत्तरी अक्षांश तथा ७० ५ड़ और ७५ २२ड़ पूर्व देशांतर के मध्य फैला हुआ है। इसका क्षेत्रफल ३५०१६ वर्गमील है।

जोधपुर राज्य के उत्तर में बीकानेर, उत्तर-पश्चिम में जैसलमेर, पश्चिम में थार मरुस्थल, दक्षिण-पश्चिम में कच्छ का रण, दक्षिण में पालनपूर और सि#ोही, दक्षिण-पूर्व में उदयपुर, पूर्व में अजमेर तथा किशनगढ़ और उत्तर-पूर्व में जयपुर राज्य है।

पर्वत - श्रेणियाँ

जोधपुर राज्य में अरावली पर्वत की श्रेणियाँ सांभर झील के पास से प्रारंभ होकर दक्षिण-पूर्व में उदयपुर और सिरोही राज्यों की सीमाओं तक चली गई है। इनके अतिरिक्त और भी कई पहाड़ियाँ हैं, जिनमें मुख्य जसवंतपुरा की सूंघा की पहाड़ी (ऊँचाई ३२५७ फुट), सिवाना के पास छप्पन की पहाड़ी (३१९९ फुट), जालोर के पास सोनगढ़ (२४०८ फुट) है। सबसे ऊँची पहाड़ी, जिसकी ऊँचाई ३६०७ फुट है, नाणा स्टेशन के करीब १३ मील पूर्व में है।

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नदियाँ तथा झीलें

जोधपुर राज्य में सालभर बहनेवाली एक भी नदी नहीं है। यहाँ की मुख्य नदी लूणी है। यह नदी अजमेर के दक्षिण-पश्चिम की पहाड़ियों से निकलती है, जहाँ इसे सागरमती कहते हैं। गोविन्दगढ़ के पास सरस्वती नदी, जो पुष्कर से निकलती है, उसमें मिल जाती है। वहाँ से आगे वह लूणी कहलाती है और जोधपुर राज्य में प्रवेश करती है। वह पश्चिम तथा दक्षिण-पश्चिम में बहती हुई कच्छ के रण में जा गिरती है। जोधपुर राज्य में उसका बहाव २०० मील है। अजमेर से लेकर आबू तक की पहाड़ियों के पश्चिमी ढाल का पानी उसमें मिलता है। यह उष्ण काल में सूख जाती है। बालोतरे तक इसका जल मीठा रहता है तथा वहाँ से आगे खारा होता जाता है। इसके जल को खेती में काम लाने के लिए बीलाड़ा के पास एक बाँध बांधकर जसवंत सागर नाम का एक बड़ा तालाब बनाया गया है, जिससे लगभग २०००० एकड़ से अधिक भूमि पर सिंचाई संभव हो सकती है।

मीठे पानी की कृत्रित झीलों में जसवंत सागर, सरदार समंद, एडवर्ड समंद, बाल समंद और कायलाणा है। इनमें जसवंत सागर सबसे बड़ी झील है, जिससको महाराजा जसवंत सिंह (द्वितीय) ने बनवाया था। इनके अतिरिक्त कई छोटे-छोटे तालाब हैं जिनके जल से खेती होती है।

खारे पानी की झीलों में सांभर, डीडवाना और पंचभद्रा की प्राकृतिक झीलें हैं। इन झीलों से नमक बनता है। सांभर झील सबसे बड़ी झील है।

सांभर झील - यह राजस्थान की ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है। इसका अपवाह क्षेत्र लगभग ५०० वर्ग किलोमीटी क्षेत्र में फैला है। यह झील दक्षिण - पूर्व से उत्तर - पश्चिम की ओर लगभग ३२ किलोमीटर लंबी तथा ३ से १२ किलोमीटर चौड़ी है। ग्रीष्म काल में वाष्पीकरण के तीव्र दर के कारण इसका आकार बहुत कम रह जाता है। इस झील में प्रतिवर्ग किलोमीटर क्षेत्र में ६०००० टन नमक होने के अनूमान है। इसका क्षेत्रफल १४५ वर्ग किलोमीटर है। इसके पानी से नमक बनाया जाता है। यहाँ सोडियम सल्फेट संयंत्र स्थापित किया गया है जिससे ५० टन सोडियम सल्फेट प्रतिदिन बनाया गया है।

डीडवाना झील - यह झील वर्तमान नागौर जिले में स्थित है। यह ४ किलोमीटर लम्बी है और इससे भी नमक तैयार किया जाता है। इस झील में चिपचिपी काली कीचड़ है जो सांभर झील के अनुरुप है। डीडवाना नगर से ८ किलोमीटर की दूरी पर सोडियम सल्फेट यंत्र लगाया गया है। इस झील से उत्पादित नमक का प्रयोग वर्तमान जोधपुर तथा बीकानेर जिलों में किया जाता है।

पंचभद्रा झील - वर्तमान बाड़मेर जिले में पंचभद्रा नगर के निकट यह झील स्थित है। यह लगभग २५ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर विस्तृत है। यह झील वर्षा के जल पर निर्भर नहीं है बल्कि नियत वादी जल स्रोतों से इसे पर्याप्त खारा जल मिलता रहता है। इस जल से भी नमक तैयार होता है।

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जलवायु

जलवायु के संबंध में राज्य स्वास्थ्यप्रद समझा जाता है। यहाँ उष्ण काल में गर्मी बहुत पड़ती है। अप्रील, मई और जून महीने में लू चलती है और आँधियाँ आती हैं। राज्य के पश्चिमी भाग में गर्मी अत्यधिक रहती है। गर्मी बहुत पड़ने पर तापमान ४८ डिग्री तक चला जाता है। रेत जल्दी ठंडा हो जाता है, जिससे रात में ठंडक रहती है।

शीतकाल में ठंड बहुत पड़ती है तथा कभी-कभी तापमान ४ डिग्री तक पहुंच जाता है। रेतीले प्रदेश में रेत के जल्दी ठंडे हो जाने के कारण सर्दी की अधिकता रहती है।

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वर्षा

सामान्यतः इस राज्य में कम वर्षा होती है, परन्तु पश्चिमी और उत्तरी हिस्से की अपेक्षा दक्षिणी-पूर्वी और दक्षिणी हिस्से में जहाँ पर्वत श्रेणियां तथा जंगल पाए जाते हैं, वर्षा अधिक होती है। यहाँ की वर्षा का सालाना औसत १५ से २० इंच के बीच है। पहले राज्य में जल की कमी होने के कारण लोग अपने-अपने मकानों में जल संग्रहण के लिए टांके बनवाते थे।

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जमीन और पैदावार

जोधपुर राज्य में दो प्रकार की भूमि है। एक तो वह जिसमें खरीफ और रबी दोनों फसलें होती हैं, दूसरा रेतीला मैदान, जिसमें एक ही फसल (खरीफ) होती है। राज्य के पूर्वी, दक्षिणी और कुछ दक्षिण-पश्चिमी भागों अर्थात सांभर, परबतसर, मेड़ता, बीलाड़ा, कुछ हिस्सा जोधपुर, जैतारण, सोजत, पाली, देसूरी, बाली, जालोर और जसवंत पुरा में दोनों फसलें होती हैं। इन क्षेत्रों में रबी की फसल अधिकतर कूंओं सा तालाब के जल से होती है। उत्तरी, पश्चिमी और कुछ दक्षिणी हिस्सों अर्थात डीडवाना, नागोर, फलोदी, जोधपुर, शेरगढ़, पचपद्रा, सिवाना, शिव, मालानी और सांचोर आदि में केवल खरीफ की फसल होती है, जो चौमासे की दृष्टि पर निर्भर है।

खरीफ की फसल की पैदावार बाजरा, ज्वार, मक्का, मोठ, मूंग, तिल, सूई और सन है। इनमें बाजरा सबसे अधिक पैदा होता है, ज्वार तथा मोठ उससे कम होते हैं तथा शेष वस्तुएँ बहुत कम होती हैं। रबी में गेंहु, जौ, चना, सरसों, अलसी और राई होती हैं। जहाँ कूँओं या तालाब के जल की सुविधा है वहाँ इसकी खेती होती है। कहीं-कहीं गन्ने की खेती भी होती है। कूँओं से जल रहट या चडस के द्वारा निकालकर खेतों में पहुंचाया जाता है।

फलों में मतीरा, खरबूजा, ककड़ी, अमरुद, सिंघाड़ा, आम, नारंगी, केला और अनार तथा शाकों में गोभी, लहसुन, प्याज, आलू, मूली, शकरकंद, शलजम, गाजर, मेथी और बैंगन आदि होते हैं।

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जंगल

जोधपुर राज्य के विशेषकर अरावली के पश्विमी ढाल की ओर के बाली, देसूरी, परबतसर, सोजत तथा सिवाना के परगनों में जंगल है। इनमें सालर, गूलर, कड़ाया, धौ आदि वृक्ष पाए जाते हैं। ढाल के नीचे के हिस्सों में पलाश, बेर, खेर, धामण और धौ के वृक्ष होते हैं। धौ और खेर की लकड़ी इमारतों के काम में आती है। बबूल प्रायः मैदानों में होता है। नीम के पेड़ भी पाए जाते हैं। जंगल की पैदावार में इमारती लकड़ी, जलाने की लकड़ी, बांस, घास, शहद, मोम, गोंद आदि हैं।

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जंगली जानवर और पशु-पक्षी

यहाँ के पालतू पशुओं में ऊँट, गाय, भैंस, घोड़ा, गधा, भेंड़ और बकरी है। घोड़े तथा ऊँट सवारी के काम आते हैं। इस प्रांत में ऊँट बहुत ही उपयोगी जानवर है। इसे रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है। सपारी के अतिरिक्त उससे पानी, लकड़ी तथा पत्थर आदि की ढुलाई और खेतों में हल जोतने का काम भी लिया जाता है। जंगली जानवर में बाघ, चीता, रीछ, सूअर, भेड़िया, लकड़बग्घा, नीलगाय, हिरण, चीतल और खरगोश अरावली पर्वत के जंगलों में पाए जाते हैं। गाँवों के पास मोर, तोते और कबूतर पाए जाते हैं।

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खानें

जोधपुर राज्य के जलोर तथा सोजत की खानों से जस्ता एवं तांबा निकाला जाता है। सांभर, डीडवाना और पंचभद्रा के झीलों में नमक पैदा होता है। सबसे बढिया संगरमरमर मकराने में मिलता है। इसी पत्थर से आगरा का ताजमहल, अजमेर के आना सागर पर की बारादरियाँ, दिल्ली का दीवाने खास और कलकत्ते का विक्टोरिया स्मारक भवन आदि कई सुंदर इमारतें बनी हैं। इस पत्थर के टुकड़े से बना हुआ चूना सफेदी के लिए सर्वोत्तम समझा जाता है। मकान की छतों के लिए काम में आने वाली पत्थर की लम्बी-लम्बी पट्टियाँ जोधपुर, खाँटू आदि में मिलती है। मकानों के चुनाई के काम का पत्थर जोधपुर, पचपद्रा, सोजत, पाली, खाटू, मेड़ता, नागोर आदि में पाया जाता है। कड्डी (जो इमारती पत्थरों को चिपकाने में सीमेंट का काम देती है) नागोर, फलोदी और बाड़मेर में निकलती है। मुलतानी मिट्टी, जिसे राजपुताना में मेट कहते हैं और जो बाल धोने तथा बढिया बर्तन बनाने आदि के काम में आती है, फलोदी तथा बाड़मेर में पाई जाती है।

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जातियाँ

हिन्दुओं में महाजन, ब्राह्मण, राजपूत, जाट, माली, दरोगा, कम्हार, नाई, धोबी, दर्जी, लुहार, सुतार, कोली, गाड़री, मोची, घांची, रेवारी, बलाई, मेहतर आदि अनेक जातियाँ हैं। ब्राह्मण तथा महाजन की कई उप जातियाँ हैं तथा उनमें परस्पर विवाह संबंध नहीं होता है। ब्राह्मणों में तो बहुधा परस्पर भोजन व्यवहार भी नहीं है।

जंगली जातियों में भील, मीणे, गुरासिए आदि हैं। मुसलमानों में शेख, सैयद, मुगल, पठान, रंगरेज, लखारे, धुनियाँ, कुंजड़े, भिश्ती आदि कई भेद हैं। मुसलमानों में ज्यादातर हिन्दु हैं, जिनके पूर्वज समय-समय पर मुसलमान राजाओं द्वारा उस धर्म में परिवर्तन किए गए थे।

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पेशा

जोधपुर के लोगों का मुख्य पेशा कृषि है। पशुपानल तथा व्यापार से भी लोग अपना जीवन यापन करते हैं। व्यापार करने वाली जातियों में महाजल प्रमुख हैं। ब्राह्मण विशेषकर पूजा-पाठ तथा पुरोहिताई और कोई-कोई व्यापार, नौकरी तथा कृषि करते हैं। राजपूत अधिकतर सैनिक सेवा अथवा खेती करते हैं।

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पहनावा

यहाँ के हिन्दुओं का पहनावा धोती, कुरता, अंगरखा तथा पगड़ी पहनते हैं। गाँवों में रहने वाले लोग घुटनों तक की धोती व अंगरखा पहनते हैं और सिर पर मोटा वस्र, जिसे फेंटा कहते हैं, लपेटते हैं। राजकर्मचारी चुस्त पायजामे या ब्रिचिज का प्रयोग करते हैं। पगड़ी में बाँधने की तर्ज में चोंचदार पगड़ी प्रसिद्ध हैं। साफे बाँधने का भी रिवाज है। कोई-कोई कोट, पतलून, ब्रिचिज तथा टोप भी पहनते हैं। जोधपुरी ब्रिचिज देश भर में प्रसिद्ध है। इसका आविष्कार महाराजा सर प्रताप सिंह ने किया था।

स्रियों की पोशाक में लहंगा, कांचली तथा दुपट्टा है। आजकल साड़ियों का प्रयोग काफी बढ़ गया है। मुसलमानों का पहनावा भी हिन्दुओं का सा ही है, किन्तु उनमें पायजामें का प्रचार अधिक है। मुसलमान स्रियाँ पायजामा, लम्बा कुरता तथा दुपट्टा पहनती हैं। कोई-कोई स्रियाँ तिलक का प्रयोग भी करती हैं।

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भाषा तथा लिपि

यहाँ की भाषा मारवाड़ी है, जो राजस्थानी भाषा का एक भेद है और जिसमें डिंगल के शब्दों का प्रयोग होता है। यहाँ की लिपि नागरी है, किन्तु वह घसीट रुप में लिखी जाती है।

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दस्तकारी

मेड़ता तथा पाली में हाथी दांत की चूड़ियाँ, उनकी रंगाई तथा उनकी बनी हुई कई वस्तुएं, जोधपुर तथा मेड़ता शहर में मिट्टी के रंगीन खिलौने, मकराणा में संगमरमर के पत्थर के खिलौने, कूंड़ियां, खरलें, कटोरे, प्याले आदि, बगड़ी जोधपुर और नागौर में लाख के रंगे हुए लकड़ी के खिलौने तथा पलंग के पाये अच्छे बनते हैं। जोधपुर, पाली तथा बाली में कपड़े की तरह-तरह की रंगाई तथा लहरिए, मोठड़े आदि की बंधाई का काम बहुत उत्तम होता है। यहाँ के ये वस्र राजस्थान तथा देश के अन्य भागों में काफी प्रसिद्ध हैं। पाली में लोहे का काम भी होता है। सोजत में घोड़े की लगामें तथा जीन अच्छी बनती है। ऊँटों की काठियॉ बाड़मेर की प्रसिद्ध हैं।

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व्यापार

जोधपुर राज्य में व्यापार के मुख्य केन्द्र जोधपुर, पाली, पीपाड़, सोजत, मेड़ता, कुचामन, मकराना, डीडवाना, नागौर, सांभर आदि हैं। इस राज्य से बाहर जाने वाली चीजों में भेंड़, बकरे, ऊँट, घोड़े, बैल, गाय, ऊन, रुई, तिल, चमड़ा,नमक, संगमरमर का पत्थर, इमारती काम की पट्टियाँ, मुलतानी मिट्टी, आंवल की छाल, अनार और तरह-तरह के रंगीन वस्र हैं। राज्य में बाहर से आने वाली वस्तुओं में मोटरें, पेट्रोल, मिट्टी का तेल, कोयला, कपड़ा, जरदोती वस्र, रंग, मोठी, रत्न, सोना, चांदी, तांगा, पीतल, लोहा आदि धातुएँ, महुआ, तंबाकू, अफीम, भांग आदि मादक वस्तुएँ, मेवा, चावल आदि अन्न, शाक, पान, लोहे के ट्रंक, हाथी दाँत, इमारती काम की लकड़ी, काँच का सामान आदि है।

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धर्म

जोधपुर राज्य के लोगों में मुख्य धर्म वैदिक (ब्राह्मण), जैन और इस्लाम है। वैदिक धर्म के मानने वालों में वैष्णव, शैव, शाक्त आदि अनेक भेद हैं। जैन धर्म में भी श्वेतांबर, दिगम्बर और थानकवासी (ढूंढिया) अनेक भेद हैं। मुसलमानों में सुन्नी और शिया के दो भेद हैं, जिनमें सुन्नियों की संख्या है तथा शिया मत के मानने वालों में दाऊदी बोहरे मुख्य हैं।

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त्योहार तथा मेले

यहाँ के हिन्दुओं के त्योहारों में शील सप्तमी, राखी (रक्षा बंधन), तीज, दशहरा, दिवाली तथा होली मुख्य हैं। गणगौर तथा तीज, दोनों स्रियों के त्योहार हैं। मुसलमानों के मुख्य त्योहार मुहर्रम, ईदुल फितर और ईदुल हैं।

इस राज्य में लगने वाले प्रमुख मेले निम्नलिखित हैं :-

१. शीतलामाता का मेला - यह मेला कागा नामक स्थान पर आयोजित किया जाता है जो जोधपुर शहर में ही स्थित है। यह मेला हर साल चैत्रबादी अष्टमी (मार्च-अप्रैल) में लगता है। शीतला माता के दर्शन हेतु हर साल लगभग ३० से ४० हजार लोग यहाँ आते हैं।

२. चामुण्डा माता का मेला - चामुण्डा माता का मंदिर जोधपुर दुर्ग में स्थित है। चामुण्डा माता राठौड़ों की पारिवारिक देवी हैं। प्रत्येक वर्ष सितम्बर-अक्तूबर मे महीने में एक विशाल मेला लगता है जिसमें पचास हजार से ज्यादा संख्या में लोग यहाँ आते हैं।

३. मंडोर का वीरपुरी मेला - जोधपुर से ८ किलोमीटर दूरी पर स्थित मंडोर में यह मेला हरेक वर्ष राजस्थान के वीर सपूतों की याद में लगता है। यह मेला सावन माह के सोमवार (जुलाई-अगस्त) को लगता है। यहाँ गणेश, भैरों, चामुण्डा और कंकाली आदि देवी-देवताओं को प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस मेले में हर साल लगभग १५-२० हजार लोग इकट्ठा होते हैं।

४. मशोरिया पहाड़ी का दशहरा मेला - मशोरिया पहाड़ी को एक पिकिनिक स्थल के रुप में विकसित किया गया है। मशोरिया पहाड़ी की चोटी जो रावण का चबूतरा के नाम से जाना जाता है, पर प्रत्येक वर्ष सितम्बर-अक्तूबर में एक विशाल मेला आयोजित किया जाता है। इस मेला में लाखों की संख्या में लोग आते हैं।

५. नौ-सती का मेला - बिलारा शहर के बाणगंगा नामक स्थान पर चंत्र बड़ी अमावस्या (मार्च-अप्रैल) में हरेक वर्ष यह मेला आयोजित किया जाता है। यह मेला ९ सतियों की स्मृति में आयोजित किया जाता है जिन्होंने इसी स्थान पर अपने को सती किया था। हजारों की संख्या में लोग यहाँ इकट्ठे होते हैं तथा बाणगंगा नदी में डुबकी लगाते हैं। इस मेले में कई प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम यथा नृत्य, लोक संगीत आदि आयोजित किए जाते हैं।

६. राता भाकर वाला का मेला - यह मेला शेरगढ़ तहसील के बालेसर सातन गाँव से ३ किलोमीटर की दुरी पर आयोजित किया जाता है। यह मेला संत जालंधर नाथ की स्मृति में आयोजित किया जाता है। यह भाद्रपद द्वादशी (अगस्त-सितम्बर) में प्रत्येक वर्ष लगता है। हजारों लोग इस मेले में आते हैं।

७. बाबा रामदेव मेला - जोधपुर शहर के मशोरिया पहाड़ी पर प्रत्येक वर्ष भाद्रपद सुदी २ (अगस्त-सितम्बर) में यह मेला लगता है। इस स्थान पर बाबा रामदेव का मंदिर स्थित है। राज्य के विभिन्न क्षेत्रों से हजारों की संख्या में लोग इस अवसर पर दर्शन हेतु आते हैं। इस मेले को मशोरिया बाबा का मेला के नाम से भी जानते हैं।

८. करपंदा - करपंदा बिलारा तहसील का एक छोटा सा गाँव है। जोधपुर से इसकी दूरी लगभग ५२ किलोमीटर है। यहाँ पर १६२१ ई. में बना पारसनाथ जैन मंदिर है जिसमें कई तीथर्ंकरों की मूर्तियाँ हैं। चैत्र-शुक्ल पंचमी (मार्च-अप्रैल) को हरेक वर्ष यहाँ मेला लगता है।

जोधपुर के अन्य प्रसिद्ध मेलों में नागपंचमी का मेला, मंडलनाथ और परिक्रमा मेला, जो परमवीर मे शैतान सिंह की स्मृति में फलोदी में आयोजित किया जाता है।

राजस्थान के अन्य भागों की तरह यहाँ भी होली, दीपावली, दशहरा, रक्षा-बंधन, गणगौर, मकर-संक्राति, महावीर जयंती, परयुशन, संवत्सरी, मुहर्रम, शबे-बरात, ईद-उल-फितर, ईद-उल-जुहा आदि त्योहारों पर उत्सव का माहौल रहता है।

 

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