राजस्थान

मरुप्रदेश के परिप्रेक्ष्य में ऊँट का परिचय

प्रेम कुमार


ऊँट की विशेषताएँ
न रखे जाने योग्य ऊँट
ऊँट की कुछ मुख्य बीमारियाँ
ऊँट की चाल
ऊँट के खास रंग
ऊँट की कुछ खास किस्में
ऊँटों का भोजन
ऊँटों से सम्बन्धित कुछ खास बातें
मारवा में ऊँट की सवारी तथा परंपराएँ

मरुप्रदेश में ऊँट अपनी पहचान अलग से रखता है। रेगिस्तान के लेखन में अगर इस पशुधन का नाम न लिया जाय तो मारवा का परिचय अधूरा रह जाएगा। मारवाङ् में ऊँट का संबंध जनजीतवन के प्रत्येक ताने-बाने से जु हुआ है। इस पशु ने अपना स्थान इतिहास में भी बनाया है तथा मरुप्रदेश में उपयोगिता की दृष्टि से इसका महत्वपूर्ण स्थान रहा है।

ऊँट ने मारवा के लोगो के जीवन में एक अहम् भूमिका निभाई है। साहित्य में विशेषकर कथा, कहानी, वात, गीत, किस्सागोई इत्यादि में ऊँटों के संदर्भ बिखरे पङ्े हैं।

सामरिक दृष्टि से ऊँट अत्यन्त उपयोगी जानवर रहा है तथा आज भी है। संवाद-प्रेषण और यातायात में ऊँट ने एक अलग पहचान बनाई है। 

 

 

सामाजिक एवं आर्थिक उपयोगिता की दृष्टि से भी मारवाङ्वासी ऊँट से भली-भांति परिचित है। खेती के कार्य में हल खींचने से लेकर कुएं से पानी निकालने तक ऊँट का कुधा काम आता रहा है। मणोंबन्द भार लादना हो या रातों रात सौ कोस की दूरी तय करनी हो, चाहे भले-बुरे संदेश पहुँचाने हों, प्रारंभ से ऊँच ही इन कार्यों में उपयोगी रहा है। ऐतिहासिक संदर्भ में मिला है कि जब महाराजा जसवंत सिंह जी प्रथम का देहान्त काबुल में हो गया था तब रबारी रोधादास को इस दु:खद समाचार के साथ पाग लेकर जोधपुर भेजा गया। वह अट्टारह दिन में पेशावर से जोधपुर पहुँचा। उसका संदर्भ निम्न प्रकार से उपलब्ध है :-

"रबारी राधौ राधौदास रो, हकीकत पोस वद १० गुरु पेसोर था, श्री महाराजा देवलोक हुआ तरै पाग लै ने जोधपुर गयो पोस खुद १३ पोहतो।"

उसी प्रकार जब महाराजा अजीत सिंह जी का जन्म लाहौर में हुआ तब उसी राधों ने उसकी बधाई का संदेश ऊँट से आठ दिन में जोधपुर पहुँचकर दिया था। इस संदर्भ का जिक्र जोधपुर कहीकत की वही में उपलब्ध है:-

"चैत वदि १२ रबारी राधौ चैत वदि ५ रो हालियो। लाहौर सुदिन ८ में आयो। श्री महाराजा जी रे बेटा २ हुआरी खबर ल्यायो।"

ऊँट की गति के विषय मे भी इतिहास में अनेक संदर्भ मिलते हैं। एक अच्छा ऊँट एक राम में सौ कोस चलता था। वह पचास को जाता और पचास को वापिस आता था। यह बात "रतन मंजरी" के संदर्भ में उपलब्ध है:-

"इतरि कहि नै कूँवर एकै वडै ऊँट चढ़ने रतन मंजरी नै वासै चढ़ाय नै हालिया। सु ऊँठ एसौ, जिको रात पहुँचे वासै सौ कोस जावै।"

एक अन्य संदर्भ भी इसी प्रकार उपलब्ध है :-

"तरै जखङ्ै उण सांढ नै सारणी माँङ्ी। तिका मास एक माँहै सझाई। तिका कोस पचास जाय नै एकै ढाण पाछी आवै।"

प्रेम कथाओं में मूमल-महेन्द्रा की कथा आज भी जन-जन की जुबान पर है। महेन्द्रा हमेशा रात को चिकल नामक ऊँट को लेकर अमरकोट से लोद्रवा (जैसलमेर) आता और रातों राम वापिस चला जाता था। ढोला मरवण की कथा भी ऊँट के उल्लेख के बिना अधूरी लगती है। ढोला का मुधरों नामक ऊँट उसकी प्रेम कथा का मूक साक्षी रहा है।

ऊँटों की चाल के संबंध में भी साहित्य में कुछ संदर्भ उपलब्ध हैं। मोटे रुप से गाँवों में ऊँटों की चाल के लिए जो शब्द परम्परा से प्रचलित हैं, उनमें मुख्य रुप से मुधरो, ढाण, तबडको, रबङ्को, खग्रे जैसे शब्द प्रमुखता रखते हैं।

ढोला मारु री बात में एक संदर्भ निम्न प्रकार से मिलता है :

"अबै करहौ (ऊँट) थाकौ। भूख पण लागी, तिण सूं मुधरो चालण लागौ।"

ऊँट को संस्कृत में क्रेमलक कहते हैं जो अंग्रेजी के कैमल से मिलता-जुलता शब्द है। इसके अलावा संस्कृत मे उसे उष्ट्, करभ आदि भी कहते हैं। मारवाङ् में ऊँटों के लिए कई प्रकार के अन्य सम्बोधन भी प्रचलित हैं जिनसे सभी लोग परिचित नहीं है। साधारणतया ऊँट के पर्यायवाची शब्दों में तोडीयो, जाकोङो, मईयो, टोड इत्यादि है। इसके अलावा भी डिंगल कोष में उसके अनेक विभिन्न नाम विशेष अर्थों में उपलब्ध हैं।

पाकेट उस ऊँट को कहते हैं जो काफी बूढ़ा हो जाता है। उस ऊँट के संबंध में लोग बात करते हैं तो कहा जाता है कि फलों ऊँट तो पाकेट है अर्थात उम्र में परिप है। बहुत अधिक तीव्र गति से चलने वाले ऊँट को जमीकरवत अर्थात जमीन को गति से काटने वाला कहा जाता है। फीणानाखतो ऊँट जब अपनी गति से चलता है तो उसके मुँह से झाग निकलते रहते हैं जिसके कारण ऐसे ऊँट को फीणानाखतो भी कहा जाता है।

मारवा में डिंगल साहित्य में ऊँट के लिए अन्य जितने भी शब्द प्रचलित हैं, वे मुख्य रुप से गिरङ्, गधराव, जाखोङो, प्रचंड, पांगल, लोहतोङो, अणियाला, उमदा, आंखरातवर, पींडाढाल, करह, काछी, हाथी मोलो, मोलध (अर्थात अत्यंत कीमती ऊँट), सढ्ढो, सुपंथ, सांठियों, टोङ्, गध, मुणकमलो, सल, जूंग, करेलङौ, नसलवंड, कलनास,ए कंटकअसण, गंडण, दुखा, सुतर, करहो, सरठौ, करम, जुमाद, दुंखतक, गय इत्यादि नामों से जाने जाते हैं।

लागट भी ऊँट के लिए ही प्रयुक्त होता हैफ ऐस ऊँट के पाँव चलते समय पेट सये घर्षण करते हैं तो वह अच्छा नहीं समझा जाता है। उसे ऊँट को लागट कहा जाता है, जिसकी कीमत भी ज्यादा नहीं होती।

ऊँट सवार को मारवाङ् में सुतर सवार कहा जाता है। पुराने समय में मादा ऊँटनी की सवारी करने वाले को सांडिया कहा जाता था अथवा ऊँट रो ओठी भी कहा जाता था। इसका सही शब्द ऊँठी से ओठी में परिवर्तित हुआ मालूम पङ्ता है।

जहूर खाँ मेहर ने तो ऊँटों के पर्यायवाची ढूंढने मे कमाल ही कर दिया है। उन्होंने ऊँटो के लिए जो नाम दिए हैं उनमें जकसेस, रातलौ, खपा, करसलौ, जमाद, वैत, मरुद्वीप, बारगौर, मय, बेहरो, मदधर, भूरौ, विडंगक, माकङाझाङ्, भूमिगम, धैधीगर, अणियाल, खणक, अलहैरी, पटाल, मयंद, ओढारु, पांगल, कछौ, आँख, रातबंर, टोरडौ, कटक असण, करसौ, घघ, संडो, करहौ, कुलनारु, सरठौ, हंडबचियौ, सरसैयौ, गधराव, सरभ, करसलियौ, गय, जूंग, नहटू, जमाज, गिडंण, तोई, दुरंतक, मणकमलौ, बरहास, दरक, वास, वासत, लम्बोस्ट, सिन्धु, ओढौ, विडंग, कंढाल, भूणमलौ, सढढौ, दासेरक, सल (सव्वू), लोहनडौ, फफिडालौ, जोडरौ, नसलम्बङ् भेकि, दुरग, भूतहन, ढागौ, करहास, दोयककुत, मरुप्रिय, महाअंग, सिसुनामी, वक्रनामी, वक्रगीव, जंगल तणौ जतो, पट्टाझर, सींधडौ, गिङ्कंधा, गूफलौ, कमाल भड्डौ, महागात, नेसारु, सुतराकस और द्टाल आदि प्रमुख हैं।

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ऊँट की विशेषताएँ

ऊँट में क्या-क्या विशेषताएँ होनी चाहिए इसका उल्लेख भी साहित्य में मिलता है। ऊँट की विशेषताओं के संबंध में लिखा गया है कि ऊँट किण भांत रा छै। थापवी तली रा, नाकेरा, गोडांरा, बीलफल, इरकीर, हथालियै इडर रा, ससा सरी बगलारा, घाट बाजोटरा, बाध में कांधै रा, कैस्तूरिया पंटारा, ससा सरी बगलारा, घाट बाजोटरा, बाध में कांधै रा, कस्तूरिया पंटारा, कौखै कानरा, टापकसै, माथैरा, लोकवै नाकरा, तजियै हौथरा, कवाडिंया दाँता रा, ऊपरै पींडरा, फांग र री थूबरा, मोटे पूढैरे, छोटै पींडारा झामरै पूंछ रा, भुवंरियै रु रा, चौह में रंग रा, लाधियै सिंह ज्यू लंका चढिया थका, भागा गाङा ज्यू बढढाट करना थका, बेस्या ज्यू झाला करता थका, माते हाथी ज्यूं हुंकारा करता थका आदि। उपर्युक्त विशेषताओं वाला ऊँट ही रखने या पालने योग्य माना जाता है।

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न रखे जाने योग्य ऊँट

"ऊँट री खो ऊँट खोङावै, चांचियों ऊँट धणी ने खावै।"

चांचियै : जिस ऊँट के होठ ओछे हों और दाँत बाहर निकले हों, वह चांचिया या चांपलौ ऊँट कहलाता है। ऐसा ऊँट धणीमार (मालिक के मरने वाला) के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार के ऊँट मौका पङ्ने पर जंगल में जहाँ आसपास पे न हों, अपने सवार को पटक कर नीचे गिरा कर अपने दोनों घुटनों के बल पर बैठ जाता है और तब तक उसे दबाए रखता है जब तक धणी के प्राण न निकल जाएं। ऐसे ऊँट खरीदना तो दूर, लोग अपने पङौस में भी देखना नहीं चाहते हैं। ऐसा चांचिया ऊँट तो हजारों में एक होता है।

छापरी : यह ऊँट काँपता रहता है।

डोलण : जैसे नाम से प्रतीत होता है, इस प्रकार का ऊँट दाहिने-बाएँ डोलता रहता है।

जङो ऊँट : ऐसा ऊँट सवारी व भार ढोले की आदत नहीं रखता है।

झूलण ऊँ : ऐसा ऊँट हमेशा झूलता रहता है, जिसे बङा दोष माना जाता है।

तिसालौ ऊँट : इस प्रकार के ऊँट को तिबरसौ भी कहते हैं। ऐसा ऊँट पन्द्रह दिन ठीक रहता है तथा पन्द्रह दिन बीमार रहता है। ये रोग तीन बरस बीतने के बाद ज्यादातर ठीक हो जाता है।

डागरौ ऊँट : ऐसा ऊँट बूढ़ा, मरियल तथा निकम्मा होता है।

गोङामार ऊँट : जो ऊँट रात में घुटने ठोकता रहता है।

नैणझर ऊँट : ऐसे ऊँट की आँख से हमेशा पानी टपकता रहता है और उसे रात को कुछ भी न नहीं आता है।

नेसालौ (नेसालौ) : ऐसा ऊँट जिसके सभी अंगों पर काणेरा (आइठाण) आ गए हों अर्थात वे पक गए हों और दर्द करते हों, नेसाला कहलाता है।

इकलासिया ऊँ : ऐसे ऊँट पर एक से ज्यादा सवारी नहीं की जा सकती है।

रतियोङो ऊँट : ऊँट की यह सबसे भारी खोट मानी जा सकती है क्योंकि ऐसे ऊँट को पेशाब के स्थान पर सूजन रहती है।

लागत ऊँट : वह ऊँट जिसके अगले पाँव ईडर से रगङ् खाते हैं।

बगली ऊँट : बैठते वक्त ऐसे ऊँट की खाल पेट से रगङ्ती हो और जिससे धाव पङ् जाते हैं।

रैनणौ ऊँट : यदि बैठा हुआ ऊँट रेत में लोटने लग जाए तथा जिसका वीर्य झ जाता हो और जो मरियल हो, उसे रैनणौ ऊँट कहते हैं।

वत्रृगीव : टेढ़ा-मेढ़ चलने वाला ऊँट।

राफौ ऊँट : ऐसे ऊँट की पगथली में रस्सी (पीप) पङ् जाती है और सूजन रहती है।

रबङो ऊँ : बूढ़ा और बदशक्ल ऊँट

गोङाफो ऊँट : ऐसा ऊँट घुटनों को जमीन पर पटकता रहता है।

रंदो ऊँट : ऐसे ऊँट जिसके पिछले पाँव के ऊपर की तरफ खो होती है।

इरकियौ ऊँट : ऐसे ऊँट की इरकी उसकी छाती से रगङ् खाकर घाव बना लेती है।

कामङ्ीकसौ ऊँट : ऐसे ऊँट जो बेतों से मार खा-खाकर चलता हो। यह रखने अथवा पाले योग्य नही होता है।

रगटल ऊँट : पिछले पाँव की नाङ्ी चढ़ जाने के कारण उसकी चाल में उसके पाँव सही नहीं पङ्ते हों, वह रगटल ऊँट कहलाता है।

खोयलो ऊँ : जिस ऊँट की जट (बाल) उङ्ने लगती है।

सियाल ऊँट : चलते वक्त ऐसे ऊँट अगले पाँव के ऊपर जो के स्थान पर रग खाते हैं।

इडरियों ऊँट : जिस ऊँट के इडर (अंग विशेष) में गङ्ब हो।

उखङ्योडौ ऊँट : घुटनों में कसर होने वाला ऊँट।

कमरी ऊँ : पित्त पङा हुआ ऊँट जिसके उठने व बैठने में तकलीफ रहती है।

कासलको ऊँट : वह ऊँट जो अपने दांत रगङ्ता रहता है।

रसपेङ्यों ऊँट : इस प्रकार के ऊँट के पाँव से जहरीला पानी निकलता रहता है।

ढूसियौ ऊँट : इस तरह का ऊँट बीमारी में खाँसता रहता है।

उपर्युक्त प्रकार के ऊँट दोषयुक्त माने जाते हैं जिन्हें खरीदते समय इन सभी लक्षणों का पूरा ध्यान रखना चाहिए।

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ऊँट की कुछ मुख्य बीमारियाँ

मारवाङ्ी भाषा में ऊँटों की मुख्य बीमारियों की विगत मिलती है जिसमें मुख्य रुप से हाङ्ी, हूबी, हुसइको, हिचकी, गांठङौ, खोथ, खंग, कूकङो, कागवाव, कपालोङ्ी, सिमक, ओङ्ी, अचर, पोटी, लीलङ्, रसरोग, ढूढी, ढूंसियों, कमरी राफो आदि बीमारियाँ प्रमुख हैं।

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ऊँट की चाल

ऊँट अपने चाल के लिए पूरे मरुस्थल में प्रसिद्ध रहा है। ऊँट की एक खास चाल को झुरको कहते हैं। ऊँट की तेज चाल को ढाण कहते हैं तथा विशेष रुप से सिखाई हुई चाल को ठिरियों कहते हैं। चारों पाँव उठाकर भागने को तबङ्कौ कहते हैं। पिछले पाँव से लात निकालने को ताप कहते हैं तथा चारों पाँव साथ उठालने को तापौ कहते हैं। ऊँट के इधर-उधर फुदकने को तरापणै कहते हैं। रपटक नाम की भी ऊँट की एक खास चाल होती है। ओछीढाण अर्थात खुलकर नहीं चलने वाल भी ऊँट की एक चाल होती है। सूरङ्को, टसरियो लूंरियो, पङ्छ आदि ऊँट की अन्य चालों में से एक है।

ऊँट द्वारा खींची जाने वाली तोप को गुराब कहते हैं तथा ऊँट पर लादने वाली तोप को आराबा कहा जाता है। ऊँट पर लदने वाली एक लम्बूतरी बंदूक को जजायल कहते हैं। ऊँट पर बंधने वाली बङ्े मुँह की तोप आठिया कहलाती है। ऊँट के ऊपर रखकर चलाई जाने वाली तोप को सुतरनाल कहते हैं। अगर ऊँट का सवार किसी गाँव की सरहद से निकल रहा है तो उस गाँव के जागीरदार के सम्मान में उसे नीचे उतरकर पैदल चलते हुए उसकी सरहद पार करनी पङ्ती है। उस समय जनाना सवारी ऊँट पर ही सवार रहती है। अगर कोई ऐसा नहीं करता है तो उसको दण्ड दिया जाता है। जब भी किसी की ओठी किसी गाँव से निकले तो पूछने पर उसे अपना पूरा परिचय देना पङ्ता है। कहीं मेहमान बनकर जाने पर ऊँट के चारे-पानी की व्यवस्था अगले को करनी पङ्ती है। घर पर आए मेहमान को सम्मान देने के कलए उसके सामने जाकर ऊँट की मोहरी थामनी चाहिए और पीलाण वगैरह उतारने में मदद करनी चाहिए।

मारवा में कुछ आङ्याँ (पहेलियाँ) ऊँट की सवारी के सम्बन्ध में प्रचलित हैं जो गाँवों में आज भी कही - सुनी जाती है। जैसे :-

ऊँट आला ओठी थारे थकै बैठी,
जका थारी बैन है कै थारी बेटी।
नहीं तो है बैन अर नहीं है बेटी,
इन्नी सासू नै म्हारी सासू सग्गी माँ बेटी।

पुराने जमाने में ऊँट का मोल इस बात से आँका जाता था कि ऊँट किस टोले से सम्बन्ध रखता है। कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं :-

सगलां में ढावको जैसलमेर में नाचणा रे टोलो। नाचना का ऊँट हिम्मती, तेज चलने वाल, देखने में चाबकियों तथा न लगने जैसा खूबसूरत होता है।

फलौदी के गोमठ टोले के ऊँट भी नाचना के टोले से उन्नीस-बीस पङ्ते हैं। गोमठिया टोले के ऊँट (धाणमोला) होते है। यहाँ के ऊँट नाचने-कूदने वाले, खूबसूरत, छोटे कद, मरदानगीयुक्त होते हैं। गोमठ के ऊँट खासकर सवारी के लिए खरीदे जते हैं।

सिंध के ऊँट : चौङ्े पाँव, मजबूत भार उठाने में सबसे आगे, धीमे चलने वाले और ठीक-ठाक होते हैं।

गुंडे के टोले के ऊँट : यह ऊँट खूबसूरत तो होते ही हैं साथ ही साथ वे भार भी अच्छा उठाते हैं, परन्तु स्वामिभक्ति एवं अन्य गुणों में वे नाचना एवं गोमठ के ऊँट से नरम होते हैं।

केस के टोला के ऊँट : सवारी एवं भार उठाने में मजबूत होते हैं। यहाँ के ऊँट ठीक-ठाक गिने जाते हैं।

पाज के टोले के ऊँट : भार ढोने के कलए ठीक-ठाक है परन्तु सवारी योग्य बिल्कुल नहीं होते। जालोर के ऊँट ओछे मोल के एवे घाघस होते हैं तथा चलने में ढीठ होते हैं।

बीकानेर टोले के ऊँट : देखने में खूबसूरत, भार उठाने में मजबूत, परन्तु अत्यन्त गुस्सैल एवं मौका मिलने पर मालिक पर घात करने से भी नही चूकत। इसलिए इन्हें धणीमार ऊँट भी कहा जाता है।

मेवाङ्ी टोला के ऊँट : यह दिखने में गंदे, बदशक्ल, भार उठाने में कमजोर और मरियल होते हैं इसलिए उनके बारे में यह कहावत प्रचलित है कि आछो मेवाङ्ै लायौ रे।

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ऊँट के खास रंग

ऊँट के मुख्य रंग मारवा में जो कहे व सुने जाते हैं, उनमें मुख्य तेला, भंवर, लाल (रातौ) और भूरौ से लो (मटमैला रंग) आदि हैं।

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ऊँट की कुछ खास किस्में

बोदलो, गाजी, बबाल व छापरी नामक ऊँटों की मुख्य किस्में हैं।

ऊँटों का भोजन

ऊँट मुख्य रुप से ग्वार की फलगटी (मोगरी) तथा घास जो जैसलमेर में ही मिलता है, खाता है। वह कंटीले पे को बङ्े स्वाद से खाता है। इसके अलावा ऊँट नीम, जाल, बेरी, खाखला, कंटीली झाङ्याँ इत्यादि भी बङ्े चाव से खाता है तथा उसे सात दिन में एक बार भी पानी मिल जाए तो काफी है।

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ऊँटों से सम्बन्धित कुछ खास बातें

पाँच सौ ऊँटों का मालिक पचसदी कहलाता है। नस पर घनी जटा वाला ऊँट पर्टेल कहलाता है। जिस ऊँट के कानों के पास घुंघराले बाल होते हैं, वह बगरु कहलाता है। छोटी पसली वाला ऊँट पासुमंग कहलाता है। चढ़ाई करने के लिए निश्चित ऊँट चढमों ऊँट कहलाता है तथा पहले से धारा गया ऊँट विशेष प्रयोजन के लिए चढीरौ कहलाता है। छह दाँत वाला ऊँट छठारी हाण कहलाता है। किसी दर्द के अगर ऊँट आवाज करता है तो उसे ऊँट का आडणा कहते हैं। ऊँट को किसी कारणवश सजा धजा कर त्याग दिया जाए तो वह पाख्रणी कहलाता है।

ऊँट को बिठाने के लिए सवार झैझै शब्द बोलता है। ऊँट के बैठने को मारवाङ्ी में झैकणा कहते हैं। ऊँट जिस स्थान पर बैठता है और उससे जमीन पर जो निशान बनता है उसे झौक कहते हैं। ऊँट की चोरी को फोग कहते हैं तथा उसकी तलाश में जाने को नायठ जाना कहते हैं। ऊँट की काटी हुई जट को ओठीजट कहा जाता है तथा सांठ के दूध को ओठा कहा जाता है। ऊँट के सवार को सुत्तर सवार या सारवाण कहा जाता है।

ऊँट पर लादी जाने वाली घास की गांठ को टाली कहते हैं। सवारी के लिए ऊँट की पीठ पर पिलाण बांधा जाता है। ऊँट के द्वारा मजदूरी करके गु बसर करने वाला कतारिया कहलाता है। ऊँट को सजाने के लिए कौङ्यों का गोरबंध पहनाया जाता है।

ऊँट न लीजै दुबला, बदल न लीजै माता।
ऊँचो खेत नीं चाहिजै, नीचो न कीजै नाता।।

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मारवा में ऊँट की सवारी तथा परंपराएँ

मारवा में ऊँट के संबंध में उपयुक्त बातों का ध्यान रखने की सलाह दी जाती है। इनके अलावा भी ऊँट की सवारी करने की भी समाज में परम्पराएँ स्थापित हैं। जैसे अपनी पत्नी को हमेशा ऊँट पर पीछे बिठाया जाता है, बहन-बेटी को सवार हमेशा आगे बैठाता है तथा उसकी मोहरी जनाना सवारी के हाथ में होती है।

ऊँटों की इस चर्चा के साथ उनसे जुङ्े रबारियों की चर्चा न करना उनके साथ अन्याय होगा। ऊँटों का और रबारियों का साथ चोली-दामन जैसा है। पुराने जमाने में रबारी सबसे ज्यादा विश्वासी और सन्देशवाहक माने जाते थे और वे रातों-रात सौ-सौ कोस जाने का जिगर रखते थे। इन्होंने हमेशा राजपूतों की सेवा तन-मन से की है।

ऊँट का मारवा समाज पर बङा एहसान है। दूर दराज ठाणियों मेरहने वाले परिवारों की धन संपत्ति, समाज में इज्जत और आर्थिक क्षमता आदि सब कुछ इस जानवर के बलबूते पर है। साहित्य में ऊँटों के संदर्भ भरे पङ्े हैं, जिनका अध्ययन और अनुशीलन ऊँट के संबंध में हमें अनेक प्रकार की विचारोत्तेजक जानकारियाँ उपलब्ध करा सकता है।

 

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