राजस्थान

मरुस्थलीय सौंदर्यः बाड़मेर

प्रेम कुमार


थार मरुस्थल का एक विशाल भूखण्ड और विस्तृत भू-भाग है -- पश्चिमी राजस्थान का बाड़मेर। मरुस्थलीय सौंदर्य, लोकसंगीत एवं देशभक्ति का ऐसा संगम अन्यत्र नहीं है। बाड़मेर के उत्तर में जैसलमेर, दक्षिण में जालौर, पूर्व में पाली तथा जोधपुर जिलों की सीमाएँ हैं और पश्चिम में २७० किलोमीटर सीमा पाकिस्तान से सटी है। रेत की सोनल लहरों के बीच बिखरा सौंदर्य और संगीत की स्वर लहरियों में जीता लोक-जीवन इसे पर्यटकों का आकर्षण बनाता है, वहीं इस सीमांत जिले के निवासियों की देश भक्ति, वीरता एवं साहस की कीर्ति-कथाएं इसको एक अलग पहचान वाला जिला घोषित करती है। बाड़मेर की प्रेम एवं शौर्य की मिसालें भी अपना वक्त बताती हैं।

बाड़मेर जिले का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है। विक्रम की दसवीं शताब्दी के पूर्व प्रतिहार एवं भाटी राजवंशों से संबद्ध रहा यह क्षेत्र किरात, शिवकूप एवं मेलोरहथ तीन भागों में बंटा था और यहाँ सिंधुराज महाराज का शासन था। तब यह राज्य आबू से किरात कूप और ओसियाँ तक फैला हुआ था। सिंधुराज के बाद यहाँ उत्पल राज, आख्यराज और कृष्ण राव प्रथम भी शासक रहे, किन्तु विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी में यहाँ धरणीधर परमार राजा हुआ जिसके तीन पुत्रों ध्रुव भट्ट, महीपाल एवं बागभ अथवा बाहड़ राव में प्राचीन बाड़मेर बसाया था, जिसकी स्थिति जूना-किराडू के पहाड़ों के निकट थी।

ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार, विक्रम संवत् १६०८ में जोधपुर के राव मालदेव गंगावत ने बाड़मेर और कोटड़ा पर अधिकार जमा लिया। बाद के ख्यातों के अनुसार वर्तमान बाड़मेर को भीमाजी रतनावत ने बसाया जो जगमल की सातवीं पीढ़ी में हुआ था। १९४९ में जोधपुर राज्य के विस्तृत राजस्थान में विलय के पश्चात बाड़मेर को एक स्वतंत्र जिला बनाया गया।

बाड़मेर थार मरुस्थल का हिस्सा होते हुए भी यहाँ आश्चर्यजनक रुप से कला एवं संस्कृति का विकास हुआ। बाड़मेर जिले के दर्शनीय स्थलों में किराडू, जूना, खेड़, नाकोड़ा के जैन मंदिर, कोटड़ा का दुर्ग, कपालेश्वर महादेव, बीरातरा माता का मंदिर, बाड़मेर का जैन मंदिर, बाटाडू का कुँआ, मल्ली नाथ का मंदिर, सिवाना दुर्ग एवं पंच तीर्थ, जसोल, गरीबनाथ का शिव मंदिर, आलम जी का मंदिर, धोरी-मन्ना, देवका और पचपदरा का नागनेची माता का मंदिर प्रमुख हैं। बाड़मेर के रेतीले भागों में ऊँट की सवारी तथा प्राचीन जैन मंदिर तथा इस पर उत्कीर्ण शिलालेख, प्रतिमाएँ एवं सुसज्जा पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।

नाकोड़ा जैन संप्रदाय का एक प्रमुख तीर्थ है जो बोलतारा से ९ किलोमीटर की दूरी पर मेवानगर में नाकोड़ा पार्श्वनाथ मंदिर के रुप में अवस्थित है। मंदिर के परिसर में जैन तीथर्ंकर भगवान पार्श्वनाथ के जन्मोत्सव पर एक विशाल मेला आयोजित होता है। इस तीर्थ में तीथर्ंकर पार्श्वनाथ, शांतिनाथ एवं आदिश्वर नाथ की तीन प्रतिमाएँ तीन मंदिरों में प्रतिष्ठापित हैं।

बाड़मेर में तिलवाड़ा का पशु मेला, वीरातरा माता का ग्रामीण मेला एवं खण्ड का वैष्णव तीर्थ मेला अपनी पहचान रखते हैं। शीतलाष्टमी के दो दिन पूर्व बाड़मेर शहर में बाड़मेर थार समारोह आयोजित किया जाता है जिसमें काफी संख्या में पर्यटक आते हैं।

बाड़मेर जिला अपने हस्तकला उद्योग, लोक संगीत एवं संस्कृति की विशेषता के लिए भी जाना जाता है।

 

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