राजस्थान

महाराजा सवाईमानसिंह जी द्वितीय

राहुल तोन्गारिया


इनका जन्म भादवा वदी १३ वि. १९३८, अगस्त २१ १९११ ई० को हुआ था। ये ईसरदा के ठाकुर सवाईसिंह जी के द्वितीय पुत्र थे। इनकी भुवा कोटा के महाराव उम्मेदसिंह जी को ब्याही थी जिससे इनकी प्रारम्भिक शिक्षा कोटा के नोबल स्कूल में हुई। उस समय इनका नाम मोरमुकुट सिंह था। महाराजा माधोसिंह जी द्वितीय के उनकी वृद्ध अवस्था तक कोई पुत्र नहीं हुआ था। अत: उनकी इच्छानुसार २४ मार्च १९२१ को मोरमुकुट सिंह को गोद लिया और उनका नाम मानसिंह द्वितीय रखा गया। महाराजा की मृत्यु के पश्चात् ७ सितम्बर १९२२ को सवाई मानसिंह द्वितीय के नाम से राजगद्दी पर बैठे। उस वक्त उनकी अवस्था मात्र ११वर्ष की थी, अत: राजकाज को एक रेजिडेन्सी काउन्सिल के द्वारा किया जाने लगा। इन्हें शिक्षा के लिए मेयो कॉलेज अजमेर भेजा गया, उसके उपरान्त वे सैनिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए वे इंग्लैण्ड की रायल मिलीट्री एकादमी वूलविच गये। वहाँ से लौटने पर उन्हें १४ मार्च १९३१ को पूरे शासनाधिकार सौंप दिये गये। शासन संभालने के प्रथम सप्ताह में ही महाराजा सवाई मानसिंह जी ने शहर की पेयजल व्यवस्था को सुधारने का प्रयत्न किया। उन्होंने एक नगर सुधार समिति गठित की। इसमें अधिकारी एवं नागरिक दोनों लिए गए थे। यह समिति शहर को आवासीय सुविधाओं के लिए योजनाएँ बनाती थी। सन् १९३८ में जयपुर ग्राम पंचायत अधिनियम पारित हुआ। ग्राम उत्थान के लिए विकास समितियों का गठन किया गया। सन् १९३२ और १९३८ के बीच किसानों की लगभग ४ करोड़ की बकाया राशि महाराजा ने माफ कर दी थी। महाराजा मानसिंह जी की इच्छा राज्य की सेना की क्षमता एवं स्तर ब्रिटिश सेना की क्षमता एवं स्तर के बराबर करने की थी। इसकी पूर्ति के लिए आवश्यक कदम उठाये गये। धीरे - धीरे पारम्परिक सेना के स्थान पर आधुनिक हथियारों से युक्त एक अनुशासित सेना तैयार की गई। महाराजा ने द्वितीय विश्व युद्ध में अपनी सेना भेजी थी, तथा स्वयं भी उस लड़ाई में गये थे। जयपुर में पहले दादू पंथी नागों की जमातें थीं जिनको हटा दिया गया।

राजस्थान में जयपुर पहला राज्य था जिसने शिक्षा की सुविधाओं के विस्ता के लिए सर्वप्रथम उच्चस्तर पर प्रयास किया था। इन प्रयत्नों के फलस्वरुप सन् १९३९ के अन्त तक १२०० शिक्षण संस्थाएँ बन गई। छात्रों की संख्या ६४ हजार से भी अधिक थी। महाराजा सवाई मानसिंह जी ने अपने राज्य में प्राथमिक शिक्षा को नि:शुल्क बनाया। उन्होंने कन्या शिक्षा पर भी विशेष ध्यान दिया। इस कार्य में उन्होंने महारानी गायत्री देवी जी से भी पुरे सहयोग को प्राप्त किया। उन्होंने महाराणी गायत्री देवी पब्लिक स्कूल की स्थापना की। जयपुर सरकारने राजस्थान विश्विद्यालय बनवाये। यह राज्य का पहला विश्विद्यालय था। सन् १९३१ -३२ में जयपुर राज्य शिक्षा पर छ: लाख से अधिक राशि का व्यय किया गया। राजकीय संस्थाओं के अतिरिक्त निजी संस्थाओं की संख्या ५२४ थी जिनमें से ३४९ नियमित विद्यालय थे। १७५ संस्थाएँ संस्कृत पाठशालाएँ तथा मदरसे के रुप में थी।

महाराजा सवाई मानसिंह जी ने अपने समय में अनेक भवनों का निर्माण करवाया। इनमें महाराजा कॉलेज, सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज,सवाई मानसिंह अस्पताल, महारानी कॉलेज महारानी गायत्री देवी गल्र्स पब्लिक स्कूल, सवाई मानसिंह गार्डस भवन (अब सचिवालय), अशोक क्लब आदि उनकी परिष्कृत रुचि के परिचायक हैं। उन्होंने रामबाग पैलेस का विस्तार किया, मोतीडूंगरी के किले पर एक सुन्दर महल बनवाया जिसका नाम तख्तेशाही रखा। इसी तरह रेजीडेन्सी को भी सुन्दर पैलेस में परिणित कर दिया गया तथा इसको राजमहल के नाम से पुकारने लगे। इन्होंने डाकघरों का जाल सा बिछा दिया, जयपुर में इसका प्रधान कार्यालय था तथा ३३ अपर कार्यालय राज्य के विभिन्न भागों में खोले गये थे। इनके समय में ४१ शाखा कार्यालय तथा २३ तारघर कार्यरत थे।

सन् १९४५ में विश्व के राजनीतिक स्वरुप में हो रहे परिवर्तन को भांपकर महाराजा मानसिंह ने जयपुर राज्यों की प्रजा को मताधिकार के आधार पर जयपुर राज्य परिषद और विधानसभा गठित करने का अधिकार देकर निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के दो सदन स्थापित किए। इन्हीं निर्वाचित सदनों में से मंत्री लिए गए।

१५ अगस्त १९४७ को भारत स्वतन्त्र हुआ तथा रियासतों के विलयनीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। ३० मार्च १९४९ को वृहत्तर राजस्थान का निर्माण हुआ जिसमें राजस्थान की सभी रियासतों का वलयनीकरण हुआ। महाराजा मानसिंह को राजप्रमुख बनाया गया। मान सिंहजी के राजप्रमुख काल में जागीरदारी उन्मूलन को लेकर राजस्थान में भू - स्वामी आन्दोलन चला , जिसपर ज्वाहर लाल नेहरु ने आन्दोलन के नेताओं को दिल्ली बुलाकर बातचीत की तथा फैसला दिया जो नेहरु एवार्ड कहलाता है। सन् १९५६ में राजप्रमुख पद समाप्त कर दिया गया और गुरुमुखनिहालसिंह पहले राज्यपाल बनकर राजस्थान में आए। इसी समय महारानी गायत्री देवी ने राजनीति में प्रवेश किया। उन्होंने राजगोपालाचार्य द्वारा गठित स्वतन्त्र पार्टी से जयपुर से लोक सभा चुनाव लड़ा तथा भारत में सर्वाधक मत प्राप्त करने का रेकार्ड कायम किया। वे काफी समय तक राजनीति में सक्रिय रहीं। सन् १९६२ में महाराजा मानसिंह स्वतन्त्र उम्मीद्वार के रुप में जीतकर राज्य सभा में गये। २ अक्टूबर १९६५ में सरकार ने उम्हें स्पेन में राजदूत बनाकर भेजा। स्पेन के शासनाध्यक्ष जनरल फ्रुैंकों ने स्पेन का सबसे बड़ा पदक इन्हें प्रदान किया।

महाराजा मानसिंह जी की इच्छा थी कि बिछौने के बजाय पोलो खेलते समय अगर उनकी मृत्यु हो तो ज्यादा अच्छा होगा। आगे चलकर यही हुआ। वे साइरेन सेस्टर पोलो ग्राउन्ड लन्दन पर पोलो खेल रहे थे तो अचानक उनका शरीर शांत हो गया। इस प्रकार इस कर्मठ जीवन का अंत हुआ। इनकी मृत्यु २४ जून १९७० ई०, आशोज वदी २ वि. २०२७ कोहुई। २९ जून को जयपुर में उनकी अन्त्येष्टी की गई।

 

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