राजस्थान

आमेर : एक नाम एक परिचय

राहुल तनेगारिया


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""आमेर'' राजस्थान के ढूंढड़ में बहुत प्राचीन नगर है। भिन्न-भिन्न ग्रंथों में इसके भिन्न भिन्न नाम मिलते हैं। जैसे अंबर, अंबा, अंबरीष, अंविखेश्वर और आम्रिदाद्रि इत्यादि नामों से सम्बन्ध बतलाया है। इनसे इनके  महत्व हालात और प्राचीनता प्रकट होते हैं। "जनश्रुति' में प्रसिद्ध है कि यहां अंबरीय ने तप किया था। "ख्यातों' में विख्यात है कि अंबा भक्त काकिल ने इसे बसाया था। "वंशावली' से सूचित होता है कि पुराने खण्डहरों में से अंबिकेश्वर प्राप्त हुए थे। "वीर विनोद' में लिखा है कि राजदेव ने इसे अंबिकापुर बतलाया था। यहां अंबर अर्थात् आकाश तक पहुंचे हुए पर्वत होने से आंवेर प्रसिद्ध हुई है। अंबिका अधिष्टाता होने से भी आंबेर होना सूचित होता है। एक ग्रंथ के अनुसार किसी जमाने में यहां आम ज्यादा थे इस कारण आम्रदाद्री भी विख्यात हुआ है और "आमेर' तो सर्वत्र प्रसिद्ध है ही। एक ग्रंथ के अनुसार आमेर कछवाहों की प्राचीन राजधानी थी। आमेर ४०० फुल पर्वत पर ४-५ हजार की बस्ती थी। यहां संवत् १९५७ राजा मान सिंह के बनवाये महल, मंदिर, गढ़, किले, परकोटे, तहसील, निजामत, थाणा और राहधारी आदि हैं। मिर्जा जयसिंह ने यहां जयगढ़, धनागार, और जयस्तम्भ स्थापित किए। "जनश्रुति' में विख्यात है कि जयस्तम्भ पर मीणे लोग दीपक रखते थे और रात में पूरे देश से उसी के आधार पर आमेर आते थे। सं. १०२४ के पहले  आमेर उन्नत दशा में था। "मुक्त संग्रह' से मालूम होता है कि संवत् ६६०-७० में आमेर में जैनी अधिक थे। व्यापार बढ़ा हुआ था। व्यापार बढ़ा हुआ था, कटाई, कुदाई, बुनाई, रंगाई, छपाई, ढ़लाई और सिलाई आदि के अनगिनत काम होते थे। सब प्रकार के विचित्र शस्र ढ़लते, बनते और विदेशों को भेजे जाते थे। यहां की सेल, बंदूक और तलवारें विख्यात थे।

आमेर कछवाहों की राजधानी हुआ करती थी। कछवाहे ३६ राजपूत वंश में से एक हिन्दू क्षत्रिय जाति है, जो कि अपने को सूर्ययवंशी मानते थे, उनका मानना था कि वे भगवान श्री राम के पुत्र कुश के वंशज हैं। कछवाहों से पहले आमेर पर मीणों का राज हुआ करता था। कछवाहों ने मीणों को हराकर १२वीं शताब्दी में आमेर पर अधिकार किया। एक ग्रंथ के अनुसार जब कछवाहों ने इस पर अधिकार किया तब महाराज काकिल जी के हाथ से इसका फिर से उद्धार होना आरम्भ हुआ और पुराने खंड़हरों में से अविकेश्वर जी के प्राप्त होने और कछवाहों की राजधानी रहने से फिर विख्यात हुई। काकिल जी के पश्चात् कई राजाओं ने इसमें गढ़, परकोटे, महल, मकान, जलाशय और देव मंदिर आदि बनवाये, जिनसे इसका नाम और महत्व बहुत बढ़ गया था परन्तु जयपुर राजधानी हो जाने से इसको विश्राम मिल गया। इसमें शीशमहल शिलादेवी या मावठे का जलाकर्षण, बाहर का नौलखा बाग और कई कूएं, बावड़ी और हवेलियां बड़े ही भव्य मनोहर सुन्दर ओर अद्भुत हैं, उनकी कारीगरी तथा अनोखापन देखने योग्य है।

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