मालवा

मालवा के व्यापारिक - मार्ग

अमितेश कुमार


मालवा के प्रमुख नगर सभी व्यापारिक भागों से जुड़े थे। "विदिशा' के बारे में कहा गया है --

"विविधा दिशा अन्यत्र इति विदिशा' अर्थात् जहाँ से अनेक दिशाओं में मार्ग जाते हैं, वह विदिशा है।

मालवा से आंतरिक व बाह्य दोनों प्रकार के व्यापारों का प्रमाण मिलता है। "मृच्छकटिक' नाटक में जलमार्ग द्वारा व्यापार होने का भी संकेत मिलता है। आलोच्यकाल में पूर्व शुंगों और सातवानों के युग में वणिक- पथों का विस्तार हुआ तथा दक्षिण के कई नगर उत्तर से जोड़ दिये गये। गुप्तकाल में उज्जयिनी की महत्वपूर्ण केंद्रीय स्थिति होने के कारण यह विभिन्न वाणिक पथों व व्यापारिक मार्गों से जुड़ा हुआ था। 

समकालीन साहित्यों से उस समय के विभिन्न व्यापारिक मार्गों की जानकारी मिलती है, जिनका उल्लेख इस प्रकार है --

बौद्ध साहित्य से पता चलता है कि बुद्ध से मिलने बावरी के शिष्य वहाँ से प्रतिष्ठान (पैठन), महिष्मती, उज्जैन, गोनद्ध, वेदसा (विदिशा) व वनसह्य होते हुए कौशाम्बी पहुँचे।

पेरिप्लस के अनुसार, "बेरीगाजा (भड़ौच), ओजने (उज्जैन) से जुड़ा था। वहाँ से स्थानीय आवश्यकताओं के लिए तथा भारत के अन्य भागों में भेजे जाने के लिए वस्तुएँ लायी जाती थी।

कालिदास के ""मालविकाग्निमित्र'' नाटक से विदिशा से विदर्भ तक के एक व्यापारिक मार्ग का पता चलता है।
जातक से विदित होता है कि बनारस का चेदि तथा उज्जैन के साथ, कौशाम्बी के रास्ते व्यापारिक संबंध था।

विक्रमादित्य के उदयगिरि गुफा अभिलेख में उनके द्वारा मालवा के शकों का पराजय का पता चलता है। इससे पाटलिपुत्र के दक्षिणी नगरों से जुड़े होने का प्रमाण मिलता है।

आंतरिक व्यापार के अतिरिक्त विदेशों से व्यापार का भी प्रमाण मिलता है। संपूर्ण उत्तर भारत के प्रमुख नगरों का माल उज्जैन होते हुए पश्चिमी तटों पर स्थित बंदरगाहों तक जाता था, जहाँ से यह पश्चिमी देशों को निर्यात कर दिया जाता था।

मालवा से आयात- निर्यात

आलोच्यकाल में रचित साहित्यों से मालवा के व्यापार में विस्तार का प्रमाण मिलता है। इस काल में वैदेशिक व्यापार को बहुत बढ़ावा मिला। लेन- देन में मुद्रा तथा वस्तु दोनों में विनिमय के प्रमाण मिलते हैं।

चीन से ""चुनांशुक'' नामक कौशेय वस्र भारत के विभिन्न नगरों में लाकर बेचा जाता था। संभवतः यह रेशमी वस्र था। इसी प्रकार बेरीगाजा (भड़ौच) से कई वस्तुएँ हाथीदाँत, गोमेद, मलमल, रेशम, सुत, धातु, मोटा वस्र आदि विदेशों में भेजे जाते थे।

 

मालवा में व्यापार

विवेच्यकाल में मालवा में व्यापार की विशेष प्रगति हुई। उज्जैन एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था। लोगों में समृद्धि थी। व्यापारिक दृष्टि से अन्य महत्वपूर्ण नगर थे-- दशपुर, विदिशा तथा एरण। इन नगरों का व्यापारिक संबंध कई उत्तरी तथा दक्षिणी नगरों यथा मरुकच्छ (भड़ौच), प्रतिष्ठान (पैठन), प्रयाग, वाराणसी, गया, वैशाली, पाटलीपुत्र, ताम्रलिप्ति, मथुरा, कौशाम्बी, अहिच्छत्र, पुरुषपुर (पेशावर) से जुड़ा हुआ था।

आंतरिक व्यापार ""श्रेष्ठि'' व ""सार्थवाह'' के माध्यम से संचालित होता था। ऐसे व्यापारी जो अपनी वस्तुओं को घोड़ों, बैलों व रथों पर लादकर समूह में एक स्थान से दूसरे स्थान में जाते थे, उन्हें ""सार्थ'' कहा जाता था तथा इन व्यापारियों के नेता को ""सार्थवाह'' कहा जाता था। नगरों के अंदर लगे बाजार को "विपणि' कहा जाता था। सड़कों के दोनों तरफ दैनिक उपयोग की सभी वस्तुएँ विक्रय हेतु रखी जाती थीं।

 

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