मालवा

विदिशा एवं आस- पास के क्षेत्र : दर्शाण क्षेत्र

अमितेश कुमार


एषा पुरी वेत्रवती जलौध
सिक्ता दशार्णाभिधदेशभूषा।
कदम्बरभ्या विदिशाभिधाना
लम्बूफलैस्तोरणराजिरभ्या।।

यस्यां मधमुनिपतंजलिना प्रणीता
ज्ञानार्णवामुतनिभा शुचिभाष्यवाणी।
विद्वत्प्रमोदपरिवर्धन कल्प वल्ली
ज्ञानेन्दुरश्मिनिचयेन जगत् पुनाति।।

नीचैराख्योदयगिरिगुहामंदिरे जृम्भमाणः
क्षोण्युद्धारक्षमपृथुकरोद् भासितो मत्र्यदेहः।
अब्धे पत्न्योर्न वजलभरै: सादरं सिच्यमानः
कल्याणं वो दिशतु सुभगोsसौ वराहावतारः।।

प्राचीन नगर विदिशा तथा उसके आस- पास के क्षेत्र को अपनी भौगोलिक विशिष्टता के कारण एक साथ दशान या दशार्ण (दस किलो वाला ) क्षेत्र की संज्ञा दी गई है। यह नाम छठी शताब्दी ई. पू. से ही चला आ रहा है। इस नाम की स्मृति अब भी बेतवा की सहायक नदी धसान नदी के नाम में अवशिष्ट है। कुछ विद्वान इसका नामाकरण दशार्ण (धसान ) नदी के कारण मानते हैं, जो दस छोटी- बड़ी नदियों के समवाय- रुप में बहती थी। विदिशा इसकी सुसंस्कृत राजधानी हुआ करती थी। यह स्थान कर्क रेखा पर २३#ं३१' अक्षांश तथा ७७"५१' देशान्तर पर देश के मध्य भाग में स्थित है। समुद्रतल से इसकी ऊँचाई १५४६ फीट है।

विदिशा मालवा के उपजाऊ पठारी क्षेत्र के उत्तर- पुरब हिस्से में अवस्थित है तथा पश्चिम में मुख्य पठार से जुड़ा हुआ है। ऐतिहासिक व पुरातात्विक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र मध्यभारत का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जा सकता है। नगर से दो मील उत्तर में जहाँ इस समय बेसनगर नामक एक छोटा- सा गाँव है, प्राचीन विदिशा बसी हुई है। यह नगर पहले दो नदियों के संगम पर बसा हुआ था, जो कालांतर में दक्षिण की ओर बढ़ता जा रहा है। इन प्राचीन नदियों में एक छोटी- सी नदी का नाम वैस है। इसे विदिशा नदी के रुप में भी जाना जाता है।

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