मगध

मगध क्षेत्र के शाकाहारी आहार की पौष्टिकता

पूनम मिश्र


आहार का कार्य है कि वह हर समय शरीर के स्वास्थ्य की रक्षा करे और ताजगी दे। स्वस्थ शरीर भोजन के पुष्टिकारक गुणों से पूरा लाभ उठा सकता है। कुछ भोजन तत्त्व स्वास्थ्यप्रद और पौष्टिक दोनो है जबकि अनेक भोजन तत्त्व प्रमुख रुप से एक ही ओर योग देते हैं। विटामिन, खनिज लवण, रेशेदार पदार्थ, पाचक रस व जल मुख्य स्वास्थ्यरक्षक भोजन तत्व है। अत्यावश्यक, पुष्टिकारक तत्व प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट (माड़ी और शक्कर) और चर्बी हैं। प्राकृतिक खाद्य पदार्थ पोषण के लिहाज से संतुलित नहीं है। कुछ में प्रोटीन की अधिकता है, कुछ में माडी और कुछ में चर्बी की। इसलिए शरी की जरुरतों को संतुष्ट करने के लिए अनेक सामग्रियों को मिलाकर खाना चाहिए।

अब मगध क्षेत्र के परम्परागत भोजन के लिए उपयोग में लाये जाने वाले खाद्य-पदार्थों की पौष्टिकता पर दृष्टि डालें कि उनमें कौन-कौन से भोजन तत्त्व विद्यमान है। इस क्षेत्र का प्रमुख आहार चावल है। उसना चावल ही मुख्यत: उपयोग में ७ से १४ प्रतिशत प्रोटीन तथा ७५ प्रतिशत कार्बोहाड्रेट होता है। कुछ मात्रा में सेलुलोज ही होता है। कुछ मात्रा में सेलुलोज भी होता है। उसना चावल बनाना परम्परागत विधि है जो कि पौष्टिकता को बढ़ा देती है। इस विधि में पुष्टिकारक तत्त्व अनाज के भीतरी भाग में चले जाते हैं, जिससे मशीन के द्वारा साफ करने में विटामिन बी तथा खनिजों का दाम काफी कम होता है। गेहूँ का उपयोग खाने में कम किया जाता है। गेहूँ भोजन में विटामिन ए तथा विटामिन बी की आपूर्ति करता है। चोकर में विशेष रुप से विटामिन बी की अधिकता रहती है। अत: गेहूँ के आटे का उपयोग चोकर सहित करना अधिक फायदेमंद है। विटामिन के साथ ही गेहूँ कार्बोहाइड्रेट का मुख्य स्रोत है। तथा प्रोटीन भी लगभग १०-१४ प्रतिशत होता है।

इस क्षेत्र में मक्का का खाने में समावेश सीजनल है। पीली मक्का में यद्यपि कैरोटिन होता है, पर मुख्य प्रोटीन में आवश्यक अमीनो अम्ल लाइसिन तथा ट्रिप्टोफेन की कमी होती है। दैनिक आहार में मसूर, अरहर, खेसाड़ी, मटर, मूंग तथा उड़द दहलन का उपयोग दाल तथा सत्तू के रुप में होता है। सभी दाल प्रोटीन का मुख्य स्रोत हैं जो कोशिकाओं की मरम्मत, नवीनीकरण तथा पुनर्निमाण के लिए आवश्यक है। सबसे सुपाच्य प्रोटीन मूंग की दाल में पाया जाता है, अत: इसका उपयोग रोगियों के देने में भी होता है। मसूर तथा अरहर का प्रोटीन जटिल होता है। प्रोटीन के साथ ही दालें विटामिन, विशेष रुप से विटामिन बी का भी स्रोत है। कुछ दालों का उपयोग किण्वन (क़eद्धथ्रeदःद्यठ्ठेद्यत्दृदः) पदार्थ की सुपाच्य को बढ़ाता है। किण्वन के द्वारा सूक्ष्मजीव पदार्थ की पौष्टिकता को बढ़ाते हैं। बरी, अदौरी आहार का मुख्य अंग है। पेठे को खेसाड़ी या चने के बेसन के मसूर के बेसन को तीसी के तथा चावल के आटे के तिल या पोस्त के साथ मिलाकर इन्हे बनाया जाता है। सत्तू अम्लनाशक का कार्य करता है।

भोजन में सब्जियों का विशेष महत्त्व है क्योंकि केवल सब्जियाँ ही विटामिन के साथ-साथ खनिज लवणों की आपूर्ति करती हैं। हरी पत्तियों में प्रकृति ने मूल तत्त्वों का समन्वय किया है। खनिज लवण, प्रचुर मात्रा में पाया जाने के कारण हरे पत्तेवाली सब्जियाँ 'संरक्षक भोज्य पदार्थ' कही जाती है। इनकी बनावट में क्षार के खनिज लवण बहुत ही अधिक होते हैं। हरी सब्जियों का सबसे महत्वपूर्ण कार्य दाल के प्रोटीन के पूर्ण पाचन तथा सम्मिश्रण में सहायता करना है। इस क्षेत्र के परम्परागत खाने में एक ही अन्न के विविध उत्पाद के साथ रखने पर ध्यान न देकर सब्जियों की विविधता पर अधिक ध्यान दिया जाता है। अत: सब्जियों की विविधता यहाँ की परम्परा है। नेनुआ, झींगी, सेम, सीमा, कटहल, चिंचिडा, करेला, किंभडी,

गेंधारी (चौलाई) पाई, गोलमा, टमाटर, कोंहडा, कोंहडे का साग, बोडा (लोबिया) सहिजन, पेठा, गोभी, लौकी, मटर आदि प्रमुख साग-सब्जियाँ हैं। आलू प्रचलन नया है। इसके साथ ही प्जाज, लहसु, का उपयोग भी सब्जियों में किया जाता है। अब पालक का उपयोग भी होता है।

साग में चूना (कैल्सियम), सोडियम, क्लोरीन, फास्फोरस, लोहा, विटामिन ए, बी, सी, डी एवं ई तथा अमीनो अम्ल पाये जाते हैं। मधुमेह के रोगी के लिए तथा अन्य रोगों में उपयोगी सब्जी में साग एक पथ्य है। करेला भी मधुमेह में बहुत उपयोगी सब्जी है। टमाटर, करेला, हरा धनिया, फूलगोभी आदि विटामिन सी के अच्छे स्रोत हैं जो पायरिया, अमाशय के घाव, त्वचा पर लाल चकते आदि रोगों को रोकते हैं। बिना पत्तेवाली सब्जियाँ (मूलकन्द) माडी (स्टार्च) के स्रोत हैं। इस क्षेत्र में आलू का उपयोग उबालकर चोखे के रुप में भी होता है। आलू में स्टार्च के साथ ही विटामिन बी तथा सी पाये जाते हैं तथा सोडा और पोटाश जैसे क्षारीय पदार्थ अधिक हैं। इसलिए इनका उपयोग पेट में एसिड के कारण गड़बड़ी के रोग में लाभदायक हैं। आलू के भूनने से उसके पौष्टिक गुणों में कमी आ जाती है। मूली, कच्चू, कन्दा, रतालू व आलू तरकारी के रुप में उपयोग किए जाने वाले अन्य कन्द हैं।

इस क्षेत्र में तेल उपयोग में आने वाला मुख्य वसा पदार्थ है। इसका उपयोग भोजन पकाने तथा चोखा, चटनी में कच्चा डालने में किया जाता है। यहाँ सरसों, राई या लगड़ी तोरी तीसी एवं महुआ या कोइन के तेल व्यवहार में लाये जाते है। तिल का उपयोग तेल के रुप में कम मिठाई के रुप में अधिक होता है। महुआ, तीसी तथा गुड़ को कूटकर लट्टा बनाया जाता है। तेल में असंतृप्त वसा अम्ल पाये जाते हैं। अत: हृदय के लिए घी से अधिक अच्छ हैं। तेल उर्जा के अच्छे स्रोत हैं तता भोजने के स्वाद को बढ़ाते हैं।

मगध क्षेत्र में गुड़ का उपयोग चीनी की अपेक्षा अधिक प्रचलित हैं। गुड़ के प्रति १०० ग्राम में ११.४ मि. ग्राम आयरन, १६८ मि. ग्राम कैरोटिन तथा ८० मि. ग्राम कैल्सियम होता है। इसमें कम मात्रा में विटामिन बी, राइबोफ्लेबिन तथा नियासिन भी विद्यमान रहते हैं जबकि चीनी में ये विटामिन व खनिज नहीं पाये जाते हैं। शर्करा का मुख्य कार्य शरीर को ऊर्जा देना है। कार्य शरीर को ऊर्जा देना है।

मसालों में हल्दी, धनिया, सरसों, अजवाइन, लालमिर्च, सौंफ आदि का प्रयोग होता है। जो यहाँ के स्थानीय उत्पाद हैं। भोजन में सूखे मसालों का उपयोग केवल स्वाद को बढ़ाता है उसकी पौष्टिकता को नहीं। हरी-मिर्च, धनिया, पोदीना, अदरक आदि विटामिन तथा खनिज प्रदान करते हैं। धनिया विटामिन ए तथा सी का अच्छा स्रोत है। यहाँ हरा धनिया पोदीना की चटनी तथा इमली आँवला और अमचूर की चटनी प्रिय भोजन है। आँवला विटामिन तथा खनिज की खान है। इसमें विशेष रुप से विटामिन ए तथा सी तथा लोहा प्रचुर मात्रा में होता है। अत: यह स्वस्थ्यवर्धक व आरोग्य कारक दोनों है।

ककड़ी-खी, अमरुद, बेल, पका कटहल, आम, नींबू सुभनी, शकरकन्द, गाजर-बेर , पपीता आदि भी खाया जाता है। ककड़ी तथा खीरे में एसिड संयोजित करनेवाले तत्त्व पोटाश, सोडियम, चूना, मैग्निशियम, लोहा आदि ६४.०५ प्रतिशत और एसिड बनाने वाले खनिज ३५.९६ प्रतिशत है। अतएव ककड़ी

अति क्षारयुक्त खाद्य है। ककड़ी का रस शरीर से दूषित पदार्थ के त्याग में मदद करता है। नींबू के रस में ७.५ प्रतिशत साइट्रिक अम्ल और २-३ प्रतिशत पोटाश तथा फास्फोरस है। यह विटामिन सी का उत्तम स्रोत है, अत: स्कर्वी रोग, आजीर्ण आदि में लाभदायक है। इसका पोटाश यदि स्वास्थ्यवर्धक है तो फास्फोरस नेय मांस तंतुओं के बढ़ने व विकास में मदद करता है।

अमरुद में संतरे से अधिक विटामिन सी पाया जाता है। आम व पपीता विटामिन ए के अच्छे स्रोत है। केले का प्रचलन कम है। यह कार्बोहाइड्रेट का अच्छा स्रोत है। जामुन लोहा व खनिज तथा शकरकन्द स्टार्च के उत्तम स्रोत है। कैलोरी के अंको में खजूर का पौष्टिक मूल्य बहुत अधिक है। प्रत्येक औंस में ९८.४ कैलोरी स्फूर्तिदायिनी शक्ति है जो इसमें उपस्थित शर्करा के कारण है। पौष्टिक तत्त्व जैसे चूना, लोहा, प्रोटीन और विटामिन आदि विद्यमान है। यह कब्ज के लिए औषधि है।

इस प्रकार हम देखते है कि इस क्षेत्र के परम्परागत भोजन में समावेशित पदार्थ पौष्टिक तत्त्वों से भरपूर है।

पिछला पृष्ठ | विषय सूची |


Top

Copyright IGNCA© 2003