कबीरदास

राम-रहीम सब एक


शिष्य बनने के दूसरे दिन, कबीर साहब सबेरे से ही स्नान तिलक के पश्चात, ध्यान में लग गए। आपने गले में एक माला एवं जनेऊ डाला और द्वादश तिलक करके साक्षात रामानंदियों के समान वेश बना लिया। वैष्णवों के जैसा वेष देखकर माता नीमा ने कहा कि बेटा तुम क्या कर रहे हो ? किसने तुम्हारी बुद्धि ऐसी फेर दी है कि अपने धर्म- कर्म को छोड़कर दूसरे धर्मवालों की राह पर चल पड़े हो ? कबीर साहब ने नीमा ओर नीरु दोनों से अत्यंत नम्र भाव से निवेदन करते हुए कहा कि धर्म को अलग- अलग बाँटना एक भ्रम है। कोई किसी का धर्म नहीं है। सत्य पुरुष सबके लिए एक है। उसका किसी से भेद- भाव नहीं हैं। वही सब का रचने वाला है। उसके सिवाय कोई कर्ता- धर्ता और कोई विधाता नहीं। राम- रहीम सब उसी के नाम हैं। सभी साधु, पीर, फकीर और पैगम्बर अपने- अपने ढ़ंग से उसका नाम लेते हैं।

संत महात्मा की सेवा करना  

कबीर साहब संत एवं महात्मा की सेवा करने में सदैव आगे- आगे रहते। आपके घर में जब कोई संत- महात्मा आते, तो उनके भोजन बनाने के लिए चौका लगवाते। कोरे बरतन में विशुद्ध भोजन का सामान तैयार करके देते। अपने से जहाँ तक संभव हो पाता, उनकी सेवा- चाकरी करते थे। आपकी प्रेम स्नेह रखने वाली माता भी, आपके संत एवं महात्माओं की सेवा करते- करते उकता जाती थी, पर कभी भी ऐसा नहीं होता कि माता कबीर साहब की बात काट दे या फिर आपके मन के विरुद्ध कोई काम कर दे।

कबीर कौन हैं ?

रामानंद स्वामी एक दिन मानसिक ध्यान में मग्न थे। एकाएक ठाकुर की माला छोटी हो गई। रामानंद स्वामी जी को अधिक चिंता हुई कि ठाकुर को माला कैसे पहनाया जाए ? तब कबीर साहब स्वामी जी के मन की बात जानकर बोले कि स्वामी जी माला की गाँठ खोलकर ठाकुर जी को पहनाओ। स्वामी रामानंद जी ने ऐसा ही किया। इस प्रकार के अनेक कौतुकों को देखकर स्वामी जी की इच्छा हुई कि यह कबीर है कौन ? जो ऐसे- ऐसे कौतुक किया करता है। रामानंद स्वामी जी ने इसका उत्तर पाने के लिए ठाकुर का ध्यान किया, तब स्वामी जी ने ध्यान में देखा कि ठाकुर के सिंहासन पर रखी ठाकुर की मूर्ति के सिर पर कबीर साहब का सिंहासन रखा हुआ है।

कबीर साहब की ऐसी बड़ाई एवं इतना प्रताप देखकर स्वामीजी कबीर साहब की बड़ी मर्यादा करने लगे। स्वामी जी,उनकी प्रशंसा अपने मिलने- जुलने वालों में किया करते थे। इस प्रकार कबीर साहब भी अपने गुरु का गुण गाया करते थे।

आपके दर्शन से सिकंदर लोदी सुल्तान के शरीर की जलन दूर होना

बादशाह सिकंदर लोदी के शरीर में जलन का रोग था। इस रोग के कारण बादशाह रात- दिन बेचैन रहता था। संवत् १५४५ विक्रमी में बादशाह काशी नगर पहुँचा। बादशाह ने अपने लोगों से पूछा कि काशी नगरी में कोई ऐसा व्यक्ति है, जो मुझे इस रोग से मुक्ति दिला सके ? कबीर साहब से द्वेष रखने वाले लोगों ने बादशाह को बताया कि कबीर नामक एक फकीर हैं, जो श्रीमान को आरोग्य कर सकता है। उनलोगों ने कबीर साहब का नाम इसलिए बताया कि बादशाह कबीर को देखकर क्रोधित हो जाएगा और मरवा डालेगा। बादशाह ने आज्ञा दी कि तुरंत कबीर को बुलाया जाए।

कुछ लोग कबीर साहब को बुलाने पहुँचे कबीर साहब बादशाह के सामने आए। बादशाह को जैसे ही आपका दर्शन हुआ, बादशाह उसी समय रोग मुक्त हो गया। बादशाह का शरीर ठंढा हो गया और बड़ा सुख मिला। बादशाह आपके सिंहासन से खड़ा हुआ और बड़े ही आदर के साथ कबीर को अपने पास ही बैठा लिया।

बादशाह का कबीर साहब पर विश्वास

बादशाह सिकंदर लोदी के पास कबीर साहब को बैठा देखकर बैरियों के दाँत खट्टे हो गये। कबीर साहब से बैर रखने वाले ब्राह्मण एवं काजी ने बादशाह से फरयाद करने लगे कि यह बहुत बड़ा काफिर है। हिंदू और मुसलमान दोनों धर्म से इनकार करता है और अपने आपको परमेश्वर कहता है। यह अपने आपको समस्त संसार का रचयिता समझता है। ये बातें सुनकर बादशाह ने कबीर से पूछा :-

गरीबदास का वचन :-

शाह सिकंदर बोलता, कह कबीर तू कौन।
गरीब दास गुजरै नहीं, कैसे बैठा मौन।।

कबीर साहब का उत्तर :-

हम ही अलख अल्लाह है, कुतुब गोस गुरु पीर।
गरीबदास मालिक धनी, हमरो नाम कबीर।।
मैं कबीर सर्वजा हूँ, सकल हमारी जात।
गरीबदास पिंडदान में, युगन- युगन सँग साथ।।
शाह सिकंदर देखकर, बहुत भए मिसकीन।
गरीबदास गति शेर की, धरकीं दोनों दीन।।

जब कबीर साहब ने भरे हुए शाही इजलास में यह स्वीकर करते हुए कहा कि मैं समस्त संसार का रचयिता हूँ। तब बादशाह ने एक गाय मँगवायी। उसको अपने सामने हलाल करवाया और कबीर साहब से इस मरी हुई गाय को जिंदा करने के लिए कहा। कबीर साहब गाय को जिंदा करने के लिए तैयार हो गए। आपने गाय को थापी दी तथा चुटकी मारी। गाय उसी समय खड़ी हो गई। उसका सब घाव दर्द मिट गया। इस कौतुक को देखकर बादशाह और उसके सभासद आश्चर्यचकित हो गए। बादशाह को आप पर विशेष विश्वास हुआ।

शेखतकी का कबीर को मरवाने का प्रयत्न :-

बादशाह सिकंदर लोदी के मुंह से, कबीर साहब की प्रशंसा सुनकर शेखतकी को बहुत क्रोध हुआ। वह नहीं चाहता था कि कबीर साहब पर बादशाह इस प्रकार विश्वास करें। अवसर को भांपते हुए आपसे शत्रुता रखने वाले ब्राह्मणों एवं मुसलमानों ने शेखतकी से शिकायत की और आपको मरवाने का सुझाव दिया।

शेखतकी बादशाह के पास गया और कहा कि ऐ ! सुल्तान तू मेरा कहना मानकर कबीर के प्राणघात की आज्ञा दे दे। यदि तूने उसको न मरवाया, तो मैं तुमको शाप दूँगा, जिससे तेरी संपत्ति तथा तेरा प्राण का विनाश हो जाएगा। बादशाह ने शेखतकी को समझाने की कोशिश की। बादशाह ने कहा कि उस फकीर ने आपका किया बिगाड़ा है, क्यों आप उसको मारने के लिए कह रहे हैं ?

कबीर सागर :-

कहो कबीर को मारन ताईं। कुछ न हमारे यहाँ बसाड़े
पीर फकीर जात अल्लाह। मेरो जोर न पहुँचे नाहाज

बादशाह :-

अहो पीर जी तुम वए का। अपने मन में करो विबेका।
इन कुछ तुमरो नाहिं बिगारा। काहे तुमने कुफ्र प्रसारा।
बुजर्ग सबने की फरमावे। जोर जुल्म कुछ ताहि न भावो।

साखी :-

कहा हमारा कीजिए, छोड़ दीजिए शर।
सुलह कुल्ह दे बैठिए, अल्लाह और निहार।।
कहे कती सुल्तान सुन, तुझे नहीं कुछ दुख।
जो मैं कहूँ सो मानिए, का मेरो संतोष।।
कहे सिकंदर पीर सुन, मेरी शिर वरु लहु।
पकड़ कबीर न मारिए, यह माँगे मोहि देहूं।।

रमेनी :-

सुंते भी तकी क्रोध प्रजारा। शिरसे ताज जमींन मारा।
निपट विकल देखा तेही भाई। तब हम शाह से कह बुझाई।।
कहैं कबीर सुनो सुलताना। करो पीर को वचन प्रमाना।।

साखी :-

पीर कहे सो करो तुम, हम नहीं कुछ त्रास।
हमहूं कहें रात नाम बल। कहें कबीर सुदास।।

रमैनी :-

कहे सिकंदर सुनोजी पीरा। मन मानैसो करो कबीरा।।

शेखतकी कबीर को मरवाना चाहता था। बादशाह नहीं चाहता था कि ऐसे फकीर को मरवाया जाए। बादशाह सिकंदर ने यहाँ तक कह दिया था कि चाहे तुम मेरा सिर ले लो, मगर मैं कबीर को मरवाने को नहीं कहूँगा। शेखतकी माना नहीं, तब कबीर साहब ने बादशाह को कहा कि ऐ ! सुल्तान आप पीर का कहा मानें। हमें इससे कुछ भी त्रास नहीं है। यह सुनकर बादशाह ने अपने पीर से कहा, जो चाहो कबीर के साथ करो, मगर देखो, जो फकीर को मारता है, उसका भला नहीं होता है। 

शेखतकी ने वहाँ मौजूद काजी, पंडित को बाँधने के लिए कह दिया। कबीर साहब को हाथ- पाँव बाँधकर गंगाजी में डाल दिया। कबीर साहब गंगाजल पर आसन बांधे दिखाई दिये। यह देखकर बादशाह और दूसरे लोगों ने "धन्य कबीर', "धन्य कबीर' कहना आरंभ कर दिया। शेखतकी शोक से हाथ मलने लगा। बादशाह ने शेखतकी से कहा, यह परमात्मा है, इसको मत मारिए। शेख नहीं माना और कबीर को दुबारा देग में बंद कर दिया। देग के मुंह को भली- भांति बंद अग्नि पर चढ़ा दिया। इतने में बादशाह ने खबर भेजवाया कि आपने किसको बंद किया है ? कबीर साहब तो मेरे पास बैठे हैं। शेख ने देग खोलकर देखा, तो उसे खाली पाया।

अब शेख ने कहा, अगर तुम आग से बच गए हो, तो मैं तुम पर विश्वास ले आऊँगा। कबीर साहब ने कहा कि आपकी जो इच्छा हो करें। शेखजी ने बहुत- सा काष्ठ मँगाया और कबीर साहब का हाथ- पाँव बांधकर उसमें डाल दिया। कबीर को आग में डालते ही वह ठंढ़ी हो गयी। आग के ठंढ़ा होते देख, शेख बहुत क्रोधित हो गया। उसने तलवार निकाल लिया और आपको मारना आरंभ कर दिया। शेख आप पर लगातार वार करता रहा, लेकिन एक भी वार आपके शरीर पर नहीं पड़ा। सभी ऐसे निकल गया, जैसे वायु के मध्य से कृपाण निकल कर पार कर जाती है। इस प्रकार कबीर के शरीर पर तनिक भी चिंह न लगा। शेखजी मारते- मारते थक गए, तो आपको कूँए में डाल दिया। कुँए को ईंट तथा पत्थरों से भरना शुरु कर दिया। यहाँ भी शेख आपका कुछ न बिगाड़ सका। तोप पर बाँधकर उड़वाया, पर तोप में जल भर गया।

कबीर का गंगा में बह रहे मुरदे को जीवित करना

शेखतकी की लाख कोशिशों के बावजूद आपको कुछ न होना और आपकी कई लीलाएँ देखकर सुल्तान सिकंदर बहुत प्रभावित हो गया। शाह ने आपको बड़ा मान- सम्मान दिया। इसी क्रम में वह आपको अपने साथ इलाहाबाद ले गया। शेख भी आपलोगों के साथ गया था। गंगा के तट पर शेख ने आपसे कहा कि अगर मुरदा को जिंदा कर देंगे, तो मैं आप पर विश्वास कर लूँगा। बहते हुए एक मुरदे को देख कबीर ने इशारा किया और कहा ऐ मुरदे ! परमेश्वर के प्रभाव से उठ जा, उसी समय मुरदा उठ खड़ा हुआ। वह मुरदा, एक छोटा लड़के के रुप में जीवित हो गया। आपने उस लड़के का नाम कमाल रखा। बाद में वही लड़का आपका पुत्र कहलाया।

शेखतकी और सिकंदर लोदी ने आपको परमेश्वर माना

शेखतकी और सुल्तान सिकंदर लोदी ने कबीर की कुल बावन ( ५२ ) लीलाएँ देखी। दोनों इन लीलाओं से बहुत प्रभावित हो गए। इनको इतना विश्वास हुआ कि दोनों हाथ जोड़कर खड़े हो गये और निवेदन करते हुए कहा कि ऐ कबीर ! आप सच में परमेश्वर हैं तथा आप ही हमारे गुरु पीर हैं। हमारा अपराध क्षमा करें। हमको शाप मत दीजिए। कबीर ने कहा, आपलोगों ने मेरे साथ कुछ नहीं किया, आपलोगों को मैं कभी शाप नहीं दूँगा।

हम्द साखी :-

ऐ कबीर ! तुम अल्लाह हो, पलक बीच परवाह।
गरीबदास कर जोर के, ऐसे कहता शाह।।
तुम दयालू दरवेश हो, घर आए नर रुप।
गरीब दास शाह यों कहे, बादशाह जहान भूप ।।
उठे कबीर करम किया, बरसे फूल आकाश।
गरीबदास से ली चले, चंवर करे रेदास।।

 

 

| विषय सूची |  

छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के बीच सामान्य जन का मसीहा "कबीर'


Content Prepared by Mehmood Ul Rehman

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