छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के बीच सामान्य जन का मसीहा "कबीर'

अन्विक्षा


जन-मानस पर कबीर का प्रभाव
एक विवेचन - (परियोजना-विश्लेषण)

 

अध्ययन का क्षेत्र एवं उद्देश्य

विषय का स्वरुप

उत्तरदाताओं का रुझान

१. कबीर के उपदेशों का प्रत्यक्ष प्रभाव

२. कबीर के उपदेशों का अप्रत्यक्ष प्रभाव

निष्कर्ष

 

जन-मानस पर कबीर का प्रभाव : एक विवेचन

"जनसंवाद' के विश्लेषण से यह स्पष्ट हुआ कि आदिवासी क्षेत्रों के जनजीवन पर कबीर एवं उनके विचारों का प्रभाव पड़ा है। यह उनकी सोच एवं व्यवहारों में भी व्यक्त हो रहा है। अत: यह आवश्यकता महसूस की गई कि कबीर के विचारों के प्रभाव का एक विश्लेषणात्मक अध्ययन भी किया जाए। हम जानते हैं, और हमारी मान्यता भी है कि समाज, विशेषकर आदिवासी समाज, के मानस को आंकड़े में अभिव्यक्ति करना एक सही कोशिश नहीं होगी। फिर भी, एक प्रश्नावली तैयार कर जनमानस में प्रतिफलित कबीर के विचारों के प्रभाव को पढ़ने का प्रयास किया गया है।

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अध्ययन का क्षेत्र एवं उद्देश्यः

अध्ययन के लिए बिलासपुर संभाग के आदिवासी क्षेत्रों के १५ गांवों का चयन किया गया। इसके लिये संभाग के ७ जिलों में से ६ जिलों का चयन किया गया। इन आदिवासी जिलों में से आदिवासी विकासखंडों का चुनाव करते हुए आदिवासी बहुल गांवों में प्राथमिकता जानकारी संकलित की गई। ये जानकारियां आंकड़ों में सिमट कर बूरी बेजान न हो, इसका भी ध्यान रखा गया। इसके लिए प्रत्यक्ष में उत्तरदाताओं से अनौपचारिक चर्चा करते हुये समाज व्यवस्था के साथ-साथ उनकी मनोदशा को भी समझने का प्रयास किया गया। अत: उत्तरदाताओं का चयन इस तरह से किया गया जिसमें साक्षर एवं निरक्षर दोनों वर्गों के लोग आ सकें। कबीर को समझने के लिए साक्षर होना जरुरी नहीं है। अत: इस प्रयास में निरक्षरों में कबीर को ढ़ूढ़ना प्राथमिकता रही है।

अध्ययन क्षेत्र का विवरण निन्मानुसार है -

क्रम

चयनित जिला

चयनित विकास खंड

चयनित गांव

उत्तरदाताओं की संख्या

 

साक्षर

निरक्षर

योग

प्राथमिक

प्राथमिक से अधिक

१.

बिलासपुर

१. गौरेला

१. जोगीडोंगरी

१०

 

 

 

२. आमाडांड

१०

 

 

 

३. टीड्डी

०९

 

 

 

४. पतगवां

१०

 

 

२. कोटा

५. बिरगहनी

११

१७

 

 

 

६. करेहापारा

२१

२१

 

 

 

७. खैरा

११

१२

 

 

 

८. कोनचरा

१०

 

 

३. मरवाही

९. गुदुमदेवरी

१३

२.

कोरबा

४. पाली

१०. बख्साही

११

१४

 

 

५. कोरवा

११. कुदुलमाल

१०

१५

३.

रायगढ़

६. धरमजयगढ़

१२. दुर्गापुर

१२

४.

जशपुर

७. दुलदुला

१३. पथराटोली

०७

 

 

८. कुनकुरी

१४. डुगडुगिआ

०५

५.

सरगुजा

९. सीतापुर

१५. देवगढ़

१५

       

४७

१२६

१८०

चयनित इन आदिवासी क्षेत्रों में मरवाही एवं गौरेला वे क्षेत्र हैं जो कबीर चौरा (अमरकंटक) से लगे हुए हैं। कबीर चौरा ही वह जगह है जहां कबीर अपने देशाटन में न केवल आये थे वरन् किवंदती के अनुसार उनकी भेंट गुरुनानक जी से भी हुई थी। अत: यहि हम भौगोलिक संदर्भों में देखें तो जिला बिलासपुर का यह आदिवासी क्षेत्र, छत्तीसगढ़ में कबीर के विचार एवं कबीर-पंथ के प्रचार-प्रसार का सिंह द्वार था।

इस रिसर्च को एक मुकम्मल स्वरुप देने के लिए मैंने यह आवश्यकता भी महसूस की, कि कुछ गैर आदिवासी क्षेत्रों में एवं संभाग मुख्यालय में स्थित पोस्ट मैट्रिक छात्रावास में रहने वाले जनजातीय छात्र/छात्राओं से भी उनके विचार आमंत्रित किये जाएं। अत: बिलासपुर के निम्नानुसार सामान्य क्षेत्रों का भी अध्ययन किया गया -

क्रम

चयनित जिला

चयनित विकास खंड

चयनित गांव

उत्तरदाताओं की संख्या

 

साक्षर

निरक्षर

योग

प्राथमिक

प्राथमिक से अधिक

(१)

जांजगीर चांपा

१. पामगढ़

१. चण्डीपारा

१४

(२)

बिलासपुर

२. बिल्हा

२. सिरगिट्टी

१०

२०

 

 

 

३. उस्लापुर

१५

१५

    बिलासपुर शहर ४. तालापारा

११

११

      ५. अनु. जनजाति बालक छात्रावास

०७

      ६. अनु. जनजाति बालिका छात्रावास

११

११

      ७. अनु. जाति बालिका छात्रावास

१०

१०

      ८. बिलासपुर

१९

१९

    ३. तखतपुर

९. रानीडेरा

१३

      कुल -

२४

९५

१२०

उपर्युक्त क्षेत्रों में अध्ययन का उद्देश्य था, जनमानस पर कबीर के प्रभाव की एक तथ्यात्मक जांच करना। यह बात पहले ही स्पष्ट की जा चुकी है कि ऐसे अध्ययनों की एक सीमा होती है। पर जहां तक संभव हो सका, इस अध्ययन को इन कमियों से दूर रखा गया है। इसके लिए उत्तरदाताओं से व्यापक विचार-विमर्श एवं आत्मीय अनौपचारिक चर्चा के उपरांत ही प्रश्नावलियों को भरने की नीति अपनाई गई।

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विषय का स्वरुपः

इस तथ्यात्मक विश्लेषण को जनमानस पर कबीर के विचारों के पड़ने वाले प्रभाव तक सीमित रखा गया है। सुविधि के लिए यह दो खंडों में विभक्त किया गया है -

१.

कबीर के उपदेशों का प्रत्यक्ष प्रभाव

२.

कबीर के उपदेशों का परोक्ष प्रभाव

विषय की इस सीमा को ध्यान में रखते हुइ प्रश्नावली तैयार की गई। प्रथम खंड के लिए कबीर के १४ (चौदह) उपदेशों पर उत्तरदाताओं का मत चाहा गया। इसी तरह द्वितीय खंड के लिए कुल ४१ (इक्तालीस) प्रश्न निर्धारित किये गये थे। इन दोनों ही खंडों के लिए उत्तरदाताओं से प्राप्त रुझान समेकित रुप में प्रस्तुत की जा रही है। यद्यपि यह दुहराव होगा फिर भी मैं यहां स्पष्ट करना चाहूंगी कि उत्तरदाताओं से प्राप्त रुझानों को गांव वार, विकास खंड वार, जिला वार व्याख्या करने की समाजशास्रीय पद्धति से बचा गया है। क्योंकि मेरी यह बुनियादी मान्यता है कि जीवन मूल्यों की मानवावादी व्याख्या के लिए जब आंकड़ों का सहारा लिया जाता है तब दरअसल जीवन संदर्भ अपना अर्थ खो बैठते हैं। कार्य तो हो जाता है, पर निस्संदेह आत्मा चली जाती है।

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उत्तरदाताओं का रुझान

१. कबीर के उपदेशों का प्रत्यक्ष प्रभाव

इस संबंध में कबीर के १४ उपदेशों पर उत्तरदाताओं के विचार चाहे गये थे। ये सभी उपदेश प्रश्नावली के प्रश्न क्र. २५ के रुप में अंकित हैं। इन उपदेशों में से १० उपदेशों पर उत्तरदाताओं ने सहमति जतायी। पर, ४ उपदेशों पर सहमति का प्रतिशत ५० से भी कम रहा। इन चार उपदेशों पर सहमति का प्रतिशत कम रहने के कारणों की विवेचना, उत्तरदाताओं से की गई। अनौपचारिक चर्चा एवं उनकी समाज व्यवस्था के संदर्भ में निम्नानुसार निष्कर्ष है।

उपदेशों का विवरण जिन पर पूरी सहमति नहीं मिली -

१.

शराब नहीं पीना।

२.

मांस नहीं खाना।

३.

कबीर के राम का नाम नहीं लेना।

४.

हिंसा नहीं करना।

असहमति के कारण

१.

शराब नहीं पीना चाहिये:

आदिवासी, हरिजन तथा अन्य पिछड़ी जातियों में प्राय: शराब पीने का प्रचलन है। इनके सामाजिक एवं धार्मिक उत्सवों में शराब "सगुन' के रुप में स्वीकार किया गया है। आदिवासियों के निवास क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियां मौसम आदि बातें भी इन्हें शराब पीने के बाध्य करती हैं। इस कारण वे कबीर के इस उपदेश को पूरी तरह से स्वीकार नहीं कर सके हैं। हां, साक्षर लोग, जो आधुनिक जीवन व्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं, जरुर कबीर के इस उपदेश से अपनी सहमति जता गये।

२.

मांस नहीं खाना चाहिए:

उत्तरदाता जिस सामाजिक संवर्ग के हैं, उनमें मांसाहार को सामाजिक मूल्य मिला हुआ है। किन्हीं भी विशिष्ट अवसरों पर यह एक आवश्यकता होती है। फिर, भौगोलिक दुरुहता वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की स्वास्थ्य-रक्षा के लिए यह एक आवश्यकता खाद्य भी माना जाता है। अत: कबीर के उपदेशों को स्वीकार कर लेने के बाद भी वे अपने पारंपरिक खाद्य को पूरी तरह से अस्वीकार नहीं कर सके हैं।

३.

कबीर के राम का नाम नहीं लेना:

इस उपदेश पर मतभेद उभरा है, उसका कारण शायद मनोवैज्ञानिक है। उत्तरदाताओं से चर्चा के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि यदि वे अपने ईष्ट देव का नाम नहीं लेकर कबीर के राम का नाम लेते हैं तो उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। फिर, सामाजिक व्यवस्था के कारण भी ऐसी मान्यता है कि अपने ईष्ट देव का नाम न लेकर यदि अन्य किसी देव का नाम लेते हैं तो अपने देव को छोटा करना होगा। जिससे अपने ईष्ट देव नाराज हो जाएंगे।

इससे स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ के जनपदीय सामाजिक व्यवस्था में स्थानीय देवी, देवता, रीति-रिवाज एवं मान्यताओं का सर्वोपरि महत्व है। अत: पूजा के संदर्भ में राम के बजाय स्थानीय देवी-देवताओं को महत्व मिला हुआ है। यह भारतीय जनपदीय संस्कृति की अभिव्यक्ति है। हमारे यहां सदा ही स्थानीय देवों को महत्व मिलता रहा है। भारत एक गाँव-गणराज्य (Village Republic ) है। यहां स्थानीय विशेषताएं जीवन के हर क्षेत्र में सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, कलात्मक, संगीत आदि सभी में सर्वोपरि होती हैं। उन्हें मानते हुये भी समग्र रुप से एक अखंड-आखिल-भारतीय-चेतना मोती की क्रांति की तरह उद्भासित हो उठती है। गांधी की भी मान्यता ""भारत माँ ग्रामवासिनी'' भारतीय-जनपदीय-राष्ट्रीयता को परिभाषित कर देती है। अत: अपनी स्थानीय बातें जैसे देवों व आचार, विचार, तीज, त्यौहारों आदि को मान्यता देना छत्तीसगढ़ की इस भारतीय चेतना को अभिव्यक्त करती है। वह (लघु भारत) है। अत: अपने देश के स्थानीय देवों को मानना कबीर को अवमूल्यित करना नहीं है। वरन् इसका आशय केवल इतना ही है कि नई चेतना को मानते हुये भी स्थानीयता को प्राथमिकता दी गई है।

४.

हिंसा नहीं करना:

हिंसा का पहला संबंध मांस खाने एवं बलि चढ़ाने से है। जिस समाज व्यवस्था में मांस, मछली आदि खाने की प्रथा है, वहां लोग हिंसा कैसे नहीं करेंगे? इसलिए वे हिंसा नहीं करने के उपदेश को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। पर अन्य किसी भी प्रकार से हिंसा का पथ अपनाना उन्हें मंजूर नहीं है।

कबीर के जिन १० उपदेशों (इन अध्ययन में पूछे गये थे) का पुरजोर समर्थन उत्तरदाताओं से मिला, उसका विवरण निम्नानुसार है -

१.

सच्चाई की जिन्दगी जीना।

२.

ईमानदार बनना।

३.

दूसरों के दु:ख में मदद करना।

४.

नेक और पाक जिन्दगी जीना।

५.

दूसरों को कष्ट नहीं देना।

६.

चोरी-चपाटी नहीं करना।

७.

सभी से मिलजुल कर रहना।

८.

धर्म के नाम पर लड़ना अधर्म है।

९.

साम्प्रदायिक भावना से दूर रहना।

१०.

प्यार से जीयो और जीने दो।

उपर्युक्त विवेचन से यह निष्कर्ष निकलात है कि कबीर के उपदेशों का प्रभाव उत्तरदाताओं पर व्यापक है। चाहे वे कबीरपंथी हो या न हों या किसी भी वर्ग के हों जहां मतभेद है, उसका कारण कबीर के विचारों से विरोध नहीं है। वरन् इसका आशय केवल इतना ही है कि वे अपनी समाज व्यवस्था की बातों को अस्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।

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२. कबीर के उपदेशों का अप्रत्यक्ष प्रभाव

कबीर के उपदेशों के अप्रत्यक्ष प्रभाव को समझने के लिए उत्तरदाताओं से कुल ४१ प्रश्न पूछे गये थे। जिसमें से ३० प्रश्नों में उत्तरदाताओं ने पूरी सहमति जतायी तथा शेष ११ प्रश्नों पर उत्तरदाताओं की सहमति ५०% से भी कम थी। वे प्रश्न, जिन पर उत्तरदाताओं से पूर्ण सहमति मिली उसका विवरण निम्नानुसार है -

१.

आपने कबीर दास जी का नाम सुना है?

२.

क्या शिक्षण संस्थाओं में कबीर दास की साखियां पढ़ाई जाती है।?

३.

क्या घर पर आप भजन गाते हैं?

४.

क्या आपको दामाखेड़ा के बारे में जानकारी है?

५.

क्या आपकों श्री प्रकाशमुनि नाम साहेब के बारे में जानकारी है?

६.

क्या चयन किये गये गांवों में कबीर चौरा या कबीर आश्रम है?

७.

क्या आप लोग कबीर जयन्ती मनाते हैं? कब?

८.

क्या आचार्य एवं महन्त द्वारा कबीर पर प्रवचन होता है?

९.

आप लोग कौन-कौन से तीज या त्यौहार मनाते है? क्या सभी इन त्यौहारों को मनाते हैं?

१०.

आदिवासी, पिछड़ी जाति एवं अन्य वर्गों में कबीर पंथ के बारे में कितनी जानकारी है?

११.

आपके गांव में भजन मंडली है या नहीं?

१२.

"वैष्णव जन तो तेने कहिए, जो पीर पराई जानी रे।'
क्या आपको इस पंक्ति के बारे में जानकारी है?

१३.

ग्राम देवता के पास कबीर चौरा होना चाहिए या नहीं?

१४.

कबीर पंथी एवं गैर कबीर पंथी का रिश्ता कैसा है?

१५.

क्या स्कूल में कबीर, घासीदास, ठाकुरदेव आदि की जयन्ती मनाई जाती है?

१६.

क्या गैर कबीर पंथी भी कबीर को मानते हैं? और क्यों?

१७.

क्या आपको जिला बिलासपुर में कबीर चौरा या कबीर आश्रम के बारे में जानकारी है?

१८.

क्या कबीर जी की पूजा में मुसलमान तथा ईसाई शामिल होते हैं?

१९.

क्या आप लोगों को कबीर पंथी लोग कबीर की वाणी या उपदेश समझाते हैं?

२०.

कबीर, घासीदास एवं ठाकुर देव की वाणी या उपदेशों को एक पुस्तक में प्रकाशित करना चाहिए या नहीं?

२१.

शहर से गांव की दूरी या नजदीक का धर्म, आस्था और विश्वास पर क्या प्रभाव पड़ा है?

२२.

धार्मिक व सामाजिक मान्यताओं पर शिक्षा और अशिक्षा का क्या प्रभाव पड़ा है?

२३.

आपकी दृष्टि से आर्थिक स्थिति का क्या प्रभाव पड़ता है?

२४.

आप कबीरदास को कब से मान रहे हैं?

२५.

क्या आप अपने यहां नाम साहब (पंथ श्री प्रकाशमुनि नाम साहब) को बुलाना चाहेंगे?

२६.

आप स्कूल में प्रात: वंदना में किसका गीत गाना पसंद करेंगे?

२७.

क्या आपके पास लोकगीत या लोककथा है?

२८.

क्या इन गीतों में कबीर, घासीदास, ठाकुरदास एवं नाम साहब का वर्णन है?

२९.

क्या कबीर, घासीदास, ठाकुरदेव आदि पर आधारित कार्यक्रम का आयोजन किया जाए?

३०.

क्या ग्राम उन्नति के लिए आश्रम का निर्माण होना चाहिए?

इन प्रश्नों के अतिरिक्त शेष ११ प्रश्न जिन पर उत्तरदाताओं ने अपनी पूरी सहमति नहीं जताई विवरण निम्नानुसार है -

१.

क्या पारंपरिक देव एवं कबीर एक है?

२.

क्या कबीर, ग्राम देवता की तरह रक्षा करते हैं?

३.

क्या सत्नायरायण एवं सत्यपुरुष एक है?

४.

क्या कबीर पंथ को मुसलमान एवं ईसाई भी स्वीकार करते हैं?

५.

क्या एक विशाल मंदिर बनाया जाए और पारंपरिक देवों के साथ कबीर को भी स्थापित किया जाए?

६.

क्या आप इसमें अपने ईष्ट देवता की पूजा करना चाहेंगे?

७.

क्या इस मंदिर के पास भारतमाता का मंदिर होना चाहिए?

८.

क्या आप इस मंदिर के पास ही मस्जिद और चर्च भई चाहेंगे?

९.

जीवन के आदर्शों एवं मूल्यों पर सर्वाधिक प्रभाव किसका पड़ा है। दूरी? शिक्षा? आर्थिक स्थिति?

१०.

क्या सामाजिक कार्यों में पुरुषों के साथ स्रियों को भाग लेना चाहिए?

११.

आप ग्राम की उन्नति कैसे करना चाहेंगे?

इन ११ प्रश्नों में मतभेद दिखाई पड़ता है। इसका कारण कबीरीय प्रभाव की कमी नहीं है वरन् सामाजिक, आर्थिक स्थिति, धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं का आग्रह है। यहां मतभेद भी सैद्धांतिक रुप से है, व्यवहारिक रुप से नहीं। गांव का सामूहिक जीवन उदारता और मानवीय खुलेपन को लेकर चलता है। अत: उसमें मानने या न मानने का प्रभाव सामूहिक जीवन पर नहीं पड़ता है। सब अलग-अलग है, सभी मिलकर सामूहिक रुप से सभी समाज के पर्वों और त्यौहारों को मनाते हैं। जहां वे ठाकुर देवता, घुरुघासीदास बाबा, कबीर को अलग मानते हैं, इसका अर्थ है सभी अपनी जातीय व स्थानीय परंपरा को मान्यता दे रहे हैं। व्यावहारिक रुप से सभी ठाकुर देवता, कबीर, गरुघासीदास बाबा आदि की जयंती मिलकर मनाते हैं। यहां तक कि क्रिश्चयन तथा मुसलमान भी शामिल होते हैं। जहां मुसलमान तथा क्रिश्चयन है वहां गांव के अन्य लोग मुसलमान तथा क्रिश्चयन के त्यौहारों में शामिल होते हैं। अत: सभी पर कबीर का प्रभाव दिखाई पड़ता है। कबीर ने भारतीय समाज के इस जनपदीय व्यक्तित्व को समझा था। तथा अपने लिये उसका उपयोग किया था। कहना न होगा कि वे ""भारतीय आत्मा के सच्चे चितेरे थे।''

उपर्युक्त असहमति के ११ प्रश्नों का विश्लेषण -

१.

क्या ठाकुर देवता, बूढ़ा देव या कबीर एक हैं या अलग-अलग?

उत्तर : सिद्धांतत: लोग सब को एक मानते हैं पर व्यवहार में अलग। सबी के प्रति समान श्रद्धा और आस्था रखते हैं। तथा सभई देवी-देवता, पर्व या त्यौहारों में पूरी श्रद्धा के साथ शामिल होते हैं। पर व्यवहार में अपनी जातीय परंपरा का पाल उचित मानते हैं। इससे गांव बंटा नहीं है वरन् अधिक संतुलित और समावेशी बना है।

२.

क्या कबीर दास जी ग्राम देवता की तरह रक्षा या भलाई करते हैं?

उत्तर : सभी मानते हैं कि कबीर भई गांव के लिए कल्याणकारी, संरक्षक और वरदायी है। ग्राम देवता और उनमें कोई अंतर नहीं है। दोनों को एक साथ पूजने को वे तैयार हैं। हां एक या दो अपवाद अवश्य हैं। उनकी मान्यता किंचित सम्प्रदायिकता पूर्ण है। पर जिस प्रकार अपवाद के होते हुए भी नियम गलत नहीं होते और न ही बदलते हैं, ठीक उसी प्रकार अपवाद के बावजूद हम मान सकते हैं कि आम ग्रामवासी कबीर को ग्राम देवता की तरह मानते हैं।

३.

सत्यनारायण व सत्यपूरुष क्या एक है?

उत्तर : प्राय: सभी ने दोनों को एक माना है। एक या दो का मत भिन्न है। पर यह भिन्नता सिद्धांत के स्तर पर नहीं, व्यवहार के स्तर पर है। पर जिनका मतभेद है वे लोग भी दोनों को मानते हैं। यही भारत की विवधिता में एकता है। यही भारत की अस्मिता है। मदभेद का कारण है पारंपरिक व सांप्रदायिक मान्यता। हर संप्रदाय अपनी विशेषता सुरक्षित रखते हुये भी विशाल भारत का अविच्छेद्य अंग है।

४.

क्या मुसलमान और क्रिश्चयन भई कबीर पंथी है?

उत्तर : मुसलमान और ईसाई की संख्या काफी कम है। बहुत कम गांव में दोनों मिलते हैं। इसमें कबीर को एक संत, महात्मा तथा समाज-सुधारक के रुप में सभी मानते हैं। श्रद्धा रखते हैं और कबीर जयंती भई मनाते हैं। जहां तक कबीर-पंथ का सवाल है यहां पंथी नहीं हैं, पर कबीर के श्रद्धालु प्रशंसक अवश्य हैं। मुसलमान यहां मानते हैं कि अन्य जगह पर मुसलमान कबीर पंथी हैं।

५.

क्या एक विशाल मंदिर बनाया जाय और पारंपरिक देवों के साथ कबीर को भी स्थापित किया जाए?

उत्तर : एक विशाल मंदिर में सभी देवी-देवताओं की स्थापना व वंदना / धार्मिक सहिष्णुता / सर्वधर्म समन्वय / विविधता में एकता आदि बातें भारतीय जनपदीय-संस्कृति की विशेषताएं हैं। अत: जीवन में भी प्रतिफलित होती हैं। पर असहमित का दूसरा स्तर भी है। कुछ लोगों का कहना है कि बाहर से धार्मिक सहिष्णुता का जो रुप मिलता है - भीतर से सदा वैसा नहीं रहता। भीरत दूरी व अलगाव है। यदि भीतर व बाहर-एक-है अभिन्न है तो उत्तम विचार है। अन्यथा पुनरावलोकन जरुरी है।

हां, यह आवश्यक है। पर ... उस स्थिति में जब विविधता की स्वीकृति भारतीय चेतना न दें। भारतीय संस्कृति तो विविधता को वि जीवन का मूलतत्व मानती है। उसके बिना वह वि का अस्तित्व असंभव मानती है। फिर वह विविधता क्यों मिटाना चाहेगी?

दूसरा भारतीय समाज का जनपदीय स्वरुप है। यहां विविधता जीवन का क्रम है। जीवन की इन्द्रधनुषी आभा है। नीरस व एकतान जीवन असहनीय है। इसके बिना मानवीय गुणों व नागरिक अवधारणाओं की अभिव्यक्ति नहीं हो सकती। अत: इसे वांछित रुप देना चाहिए। दूरी व अलगाव के बावजूद इस प्रकार के प्रयत्न होते जाना चाहिए।

६.

अपने अपने ईष्ट देवता की पूजा इस विशाल मंदिर में करना क्या सुविधजनक होगा?

उत्तर : इस पर अधिकांश लोगों ने हामी भरी है। इस प्रश्न को सराहा है। तथा यह विश्वास जाहिर किया है कि इससे गांव के लोगों के बीच मेल-मिलाप बढ़ेगा और गांव मजबूत होगा।

पर यहाँ पर दुविधा है कि ईष्ट देवता की पूजा में साम्प्रदायिक चेतना विभ्राट न करे और संघर्ष को जन्म न दें। तब गांव का भी मौजूदा संतुलन बिगड़ जाएगा और आगे चलकर इसका दुष्परिणाम दिखाई पड़ेगा।

हां आशंका निराधार नहीं है। पर आशंका के पीछे सद्प्रयास रोकना सही नहीं है। फिर भारत जैसे देश में जहां सदा ही सभी का प्रेमपूर्ण स्वागत होता रहा है वहां आशंका के डर से सह-अस्तित्व को नकारना बहुत बड़ी भूल होगी।

७.

इस मंदिर (विशाल मंदिर) के पास भारतमाता का मंदिर होना चाहिए?

उत्तर : अपवाद के रुप में केवल एक या दो उत्तरदाता ऐसे हैं जिन्होंने असहमति दिखाई है। उनका मानना है कि भारत माता के मंदिर बनाने से देश मजबूत नहीं हो सकता, प्रेम नहीं बढ़ सकता और राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता। इसलिए लोगों में देश प्रेम बढ़े और नागरिक अवबोध आये, इसका प्रयास करना चाहिए।

विचार सही है। यह मंदिर का कार्यक्रम भी उसी के तहत है। बिना काम शुरु किये समाधान नहीं मिलता। मंदिर बनाने से हमारे प्रयासों को बल मिलेगा। इसी महत् कार्य के लिए सभी प्रकार के कार्यक्रम किए जाना चाहिए। यह हमारे राष्ट्रीय-चरित्र की कसौटी है। अत: हर एक को इस पर ध्यान देना पड़ेगा।

८.

क्या आप वहीं पर (विशाल मंदिर) चर्च और मस्जिद चाहेंगे?

उत्तर : इस प्रशन पर अधिकांश लोगों ने सहमति व्यक्त की है। इसे अच्छा विचान माना है और देश के लिए भी हितकारी माना है। पर निषेध का स्वर गंभीर है। उन्हें डर है इस बात का कि इससे अयोध्यावाली घटना की पुनरावृत्ति होगी। उनका कहना है कि जिस उद्देश्य से यह सब किया जा रहा है वह घृणा, संघर्ष और नफरत में दब जाएगा। अत: सबको पहले यह समझना है कि वह हिन्दू, मुसलमान, ईसाई और सिक्ख होने से पहले भारतीय हैं।

सभी जानते हैं कि वे पहले भारतीय हैं, फिर और कुछ। वे इस तथ्य का पालन भी करते हैं। पर किन्हीं असामाजिक तत्वों के कारण आशंका वाली स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसका मतलब यह नहीं कि बुरे अंजाम के से सही काम न शुरु किया जाय? हां सावधानी अवश्य रखी जाय। अन्यथा भारत जैसे विशाल देश में एक प्रबुद्ध, विकसित, स्वस्थ और आधुनिक समाज की स्थापना नहीं हो सकेगी।

उपरोक्त ५, ६, ७ व ८ चारों उत्तरों से यहां स्पष्ट हैै कि सैद्धांतिक रुप से चारों प्रश्नों को लोगों ने स्वीकारा है पर व्यावहारिक रुप से आने वाली प्रत्यक्ष कठिनाइयों की ओर ध्यान खींचा है। दोनों प्रकार के मतों का सार यह है कि देश में अनुकूल वातावरण बनना चाहिए। इससे इस प्रकार के उच्च कोटि के प्रयास संभव हो सकेंगे। सभी यह मानते हैं कि मानव मात्र का लक्ष्य एक है। केवल रास्ते अलग हैं। अत: एक जागरुक समाज और उदार कल्याणकारी राज्य की आवश्यकता है। साथ ही देश के सारे निवासियों को इस महान कार्य में योगदान देना चाहिए।

९.

जीवन के मूल्यों एवं आदर्शों पर इनमें से सबसे अधिक प्रभाव किसका पड़ा है? (दूरी, शिक्षा व आर्थिक स्थिति)

उत्तर : सभी का एक मत है कि दूरी या पास से कोई फर्क नहीं पड़ता है। शिक्षा तथा आर्थिक स्थिति का मूल्यों एवं आदर्शों पर प्रभाव पड़ता है। ९५% से ऊपर उत्तरदाताओं का मत है कि शिक्षा का आर्थिक स्थिति से ज्यादा प्रभाव पड़ता है। क्योंकि शिक्षा का संबंध मानसिक संस्कार और खुली दृष्टि से है।

१०.

क्या सामाजिक कार्यों में पूरुषों के साथ स्रियों को भाग लेना चाहिए?

उत्तर : ७५% लोगों का मत इसके पक्ष में है, अर्थात भाग लेना चाहिए। केवल २५% लोग इसके खिलाभ हैं। इसका कारण शिक्षा, विकास, आर्थिक स्थिति आदि का अंतर है। दिये गये कारणों से लोगों की सामाजिक संचेतना का ज्ञान होता है।

११.

ग्राम की उन्नति आप कैसी करना चाहेंगे?

उत्तर : ग्राम की उन्नति के प्रश्न पर दो मत दिखाई पड़ते हैं। एक भौतिक उन्नति को और दूसरा मानसिक व वैचारिक उन्नति को सच्ची उन्नति मानता है। भौतिक तथा बाहरी उन्नति को मानने वाले गांव में नहर, अस्पताल, शुद्ध-पानी, पशु के लिए चारागाह, बिजली, सिंचाई के साधन, रोजगार, सड़क, बाजार, ग्रामीण उत्पादन की बिक्री आदि सुविधायें चाहतें हैं। उच्च शिक्षा, टेक्नीकल कालेज आदि उनकी मांग है।

और जो मानसिक व वैचारिक उन्नति को मानते हैं - उनका कहना है कि जब तक चरित्र और सोच में परिष्कार नहीं होगा, तब तक किसी बी प्रकार की बाहरी उन्नति से गांव की सच्ची उन्नति नहीं हो सकती। इसलिए उनका कहना है कि कबीर तथा अन्य संतों की तथा हर धर्म की महान विभूतियां की वाणी दीवालों में लिखी जाए, स्कूलों में पढ़ाई जाए, और भजन मंडलियों में गाई जाए। सदाचार, मर्यादित, सादगीपूर्ण नैतिक जीवन, चारित्रिक उत्कर्ष आदि के सहज उपायों पर बल दिया जाना चाहिए।

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निष्कर्षः

अंत में उनका मत है कि गांव की उन्नति से ही वास्तविक रुप से देश की उन्नति होगी, क्योंकि भारत गांवों का देश है। इसलिए देश को मजबूत बनाने का लक्ष्य तभी पूरा होगा जब गांव उन्नत और शक्तिशाली होंगे। दोनों ही मत एक दूसरे के विरोधी नहीं, वरन् संपूरक हैं।

 

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