झारखण्ड

संताल जनजाति में विवाह : एक विस्तृत निबन्ध

पूनम मिश्र


संतालों की नातेदारी और विवाह

 

(क) रामवार बापला

(ख) गोलांटी बापला

(ग) हीरोम चेतान बापला

(घ) ईतयूत बापला

(च) जवाय किरिन बापला

(छ) मुन्डू और आगू बापला

(ज) नीर बोलोक बापला

(झ) सहाय बापला

(त) तून्की दिपिल बापला

(थ) अपानगिर बापला

(द) धरजबाय बापला

(ध) घरदी जवाय बापला

 

 

संताल जनजाति के लोग जिस परिवेश में रहते हैं वहां के हिन्दुओं में विशेषतौर से सगोत्र-विवाह की प्रथा नहीं हैं। ठीक इसी तरह से संताल जनजाति में भी सगोत्र-विवाह नहीं होता। फलत: कोई व्यक्ति अपने परिवार की किसी लड़की से विवाह नहीं कर सकता है। संतालों में सालियों तथा स्वर्गीय भाई की स्रियों से विवाह की प्रथा (Levirate and sorrorate ) है। इस प्रथा के अनुसार एक व्यक्ति को इसका अधिकार है कि वह अपनी पत्नी की छोटी बहनों से विवाह कर सकता है।

संतालों में विवाह के अनेक उपाय है, किन्तु साधारणत: एक व्यक्ति लड़का और लड़की के अभिभावक अथवा माता-पिता से मिलकर किसी की शादी की बातचीत करते हैं। लड़के के माता-पिता अपने पुत्र के अनुकूल भावी वधु की खोज करते हैं। इसलिए जब वह किसी सुन्दर लड़की को देख लेते हैं तो एक अगुआ (Mediater ) के द्वारा बातचीत तय कराते हैं। लड़की को सबसे पहले गांव का सरदार देखता है। वह लड़की अपनी दो सहेलियों के साथ मटकी में पानी भरकर अपने अतिथियों का स्वागत करती है। यदि वह लड़की पसन्द आ जाती है तो लड़के का पिता उसे कुछ मिठाइयां देता है। ऐसे अवसरों पर चावल की शराब "माण्डी' का विशेष व्यवहार किया जाता है। भोजन में उन्हें मांस, चावल (भात), जौ आदि खिलाया जाता है। लड़के की ओर से आनेवाले लोग लड़की की बातचीत, चाल-चलन आदि पर निगाह रखते हैं। यदि लड़की पसन्द आ जाती है तो फिर लड़की के माता-पिता लड़के के घर पर आते हैं। लड़के के घर पर उनका स्वागत भी उसी प्रकार किया जाता है। यदि लड़का पसन्द आ जाता है तो विवाह का कोई दिन नियुक्त कर दिया जाता है। विवाह के समय गांव के सभी व्यक्ति उसमें भाग लेते हैं। गांव का सरदार इस कार्य में आगे रहता है।

संताल जनजाति में कन्या-धन लड़के के माता-पिता देते हैं। इनके समाज में एक से अधिक विवाहिता स्री रखने की परम्परा नहीं है। ऐसा तभी होता है जब किसी की पहली स्री से कोई संतान नहीं होती है। यदि कोई व्यक्ति बिना किसी दोष के अपनी पत्नी का परित्याग कर देता है तो उसे कन्या-धन नहीं लौटाया जाता है। लेकिन यदि लड़की दोषी होती है तो उसका मूल्य लड़के को लौटा दिया जाता है।

मानवशास्रीय शोध से पता चला है कि संताल जनजाति में बारह प्रकार के विवाह प्रचलन में हैं, लेकिन मुख्य रुप से सामाजिक मान्यता प्राप्त चार प्रकार के विवाह होते हैं। संताल जनजाति में प्रयुक्त बारह विवाहों का संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जा रहा है :-

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(क)

रामवार बापला:
इस जनजाति में प्रमुखता से इसी प्रकार का विवाह धूम-धाम के साथ सम्पन्न होता है। इस विवाह का विस्तृत विवरण बाद में दिया जाएगा।

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(ख)

गोलांटी बापला:
इस प्रकार के विवाह में दोंनो परिवार से एक-एक लड़के का विवाह एक-एक लड़की से सम्पन्न होता है। अर्थात् एक लड़का अपने जीजा का साला और जीजा दोनों होता है, ठीक इसी तरह एक लड़की अपने ननद की भावज और ननद दोनों होती है।

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(ग)

हीरोम चेतान बापला:
इस प्रकार के विवाह में पुरुष की पहली पत्नी जीवित रहती है तथा वह पति के घर में ही रहती है। दोनों पत्नी पति के घर में ही रहती है। लेकिन इस विवाह को सामाजिक मान्यता प्राप्त नहीं है।

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(घ)

ईतयूत बापला:
इस प्रकार के विवाह में पुरुष द्वारा इच्छित लड़की के ललाट पर बलपूर्वक जबरदस्ती सिन्दूर लगा दिया जाता है। परिणामस्वरुप वह लड़की उस पुरुष से विवाह करने के लिए बाध्य हो जाती है तथा उसे (लड़की को) उसी पुरुष से विवाह करना पड़ता है। यहां लड़की अपनी इच्छा, पसन्दगी, स्वतन्त्रता आदि का गला घोंटकर उस पुरुष से विवाह करती है।

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(च)

जवाय किरिन बापला:
इस विवाह मे पुरुष उस अविवाहित लड़की से विवाह करता है जिसको (लड़की का) बच्चा होने वाला है। यहां बच्चे को पिता का नाम पाने के लिए पुरुष को विवाह के लिए खरीदना पड़ता है। लड़की वाले को बहुत खर्च करना पड़ता है।

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(छ)

मुन्डू और आगू बापला:
इस प्रकार के विवाह में पुरुष तथा महिला के मध्य अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध पूर्व में ही रहता है।

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(ज)

नीर बोलोक बापला:
इस प्रकार के विवाह में वह लड़की पुरुष के यहां बलपूर्वक प्रवेश करती है, जिसका उस पुरुष के द्वारा अनैतिक रुप से यौन सम्बन्ध हुआ रहता है।

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(झ)

सहाय बापला:
इस प्रकार के विवाह में सिन्दूर के स्थान पर तेल का उपयोग होता है। इस प्रकार का विवाह संताल विद्रोह के पूर्व होता था।

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(त)

तून्की दिपिल बापला:
यह भी संतालों में एक प्रकार का नियमित विवाह होता है। इसके आयोजन में कम अर्थ की आवश्यकता होती है। चूंकि इसका मुख्य उद्देशय विवाह में खर्च का कम करना है, इसीलिए इसे निर्धन संतालों का विवाह भी कहते हैं। इसमें बारात एवं भोज का आयोजन नहीं किया जाता है।

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(थ)

अपानगिर बापला:
जब किसी लड़का-लड़की में आपस में प्रेम हो जाता है, लेकिन दोनों के परिवार विवाह सम्बन्ध स्थापित होने देना नहीं चाहते हैं। ऐसी परिस्थिति में दोनों व्यक्ति समाज और घर वालों से बचने के लिए किसी अन्य स्थान में चले जाते हैं, जहां परिवार वालों को पता नहीं चलता हो। वहां उन दोंनो के बाल-बच्चे पैदा होने पर दोंनो का विवाह हो जाता है।

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(द)

धरजबाय बापला:
इस प्रकार के विवाह में लड़की का कोई भाई नही होता है। यहां लड़की तथा लड़की वाले ही दुल्हा के गांव बराती बनकर जाते हैं और विवाहोपरान्त दुल्हा को दुल्हन के घर ""घर जवाय'' के रुप में लाते हैं।

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(ध)

घरदी जवाय बापला:
इस प्रकार के विवाह में लड़की का नाबालिक भाई होता है, इसलिए दुल्हा को पांच वर्ष के लिए दुल्हन के यहां घर जवाय बनाकर लाते हैं। पांच वर्ष तक घर जवाय अपने ससुराल में रहकर अपने ससुर की गृहस्थी सम्भालता है। फलस्वरुप दुल्हे को एक निश्चित रकम भी ससुराल से प्राप्त होती है। इस विवाह का मुख्य उद्देश्य दुल्हन के माँ-बाप की गृहस्थी पांच वर्षों तक दुल्हे द्वारा सम्भालना है क्योंकि दुल्हन का भाई नाबालिग होता है।

संताल में विधवा विवाह का प्रचलन है। विधवा विवाह तथा तलाक शुदा लड़की के विवाह को सांगा कहते हैं।

बड़े भाई की मृत्यु के पश्चात् उसकी विधवा अपने किसी भी देवर के साथ बड़ी बहु के रुप में पुन: घर संवार सकती है। ऐसा तभी होता है जबकि दोनों (विधवा भाभी तथा देवर) के बीच आपसी रजामन्दी होती है। अगर बड़े भाई की विधवा कष्ट, अपाद्ग्रस्त स्थिति में हो, तब अधिकतर मामलों में वह अपने किसी भी देवर के साथ घर बसा लेती है। किसी-किसी संताल परिवार में देवर अपनी भाभी को माँ के समान इज्जत देते हैं।

चूंकि रायबार बापला संतालों के बीच विवाह के सर्वमान्य तरीके है अत: इनका विस्तृत विवरण जानना अनिवार्य है। रायबार बापला के सम्बन्ध में जानकारी नीचे दी जी रही है :

सर्वप्रथम लड़के वाले अपने लड़के योग्य एक लड़की का पता लगाते हैं। लड़के के माता-पिता एवं लड़की के माता-पिता के बीच कड़ी का काम एक घटकदार करता है, जिसे ये संताली भाषा में रायवाटीच कहते हैं। शादी तय होने के बाद लड़की के माता-पिता को लड़के के अभिभावक कन्याधन देते हैं। कन्याधन को संताली भाषा में गोलोड़ टाका कहते हैं।

जब तक शादी नहीं होती है तब तक घटकदार का आना-जाना लगा रहता है। विवाह तय हो जाने पर रायवाटीच को लड़के वालों की ओर से पारितोषिक के तौर पर धोती तथा कमीज दी जाती है।

विवाह के पूर्व कुछ खाश रस्मों को अंजाम देना पड़ता है। इन रस्मों का विवरण कुछ इस प्रकार है :

 

एपेल (देखा):

किसी विशेष स्थान पर रायवाटीच की सहायता से लड़की वाले लड़के को तथा लड़के वाले लड़की को देखते हैं। एपेल में दोनों पक्ष से १५-२० के करीब लोग, जिसमें स्री-पुरुष दोनों सम्मिलित होते हैं, आते हैं। रायवाटीच दोनों पक्षों को आमने-सामने एक सीधी कतार में खड़ा करवाता है। लड़के और लड़की भी उसी कतार में खड़े होते हैं, परन्तु उन्हें वस्र-विशेष से पहचान लिया जाता है। रायवाटीच होने वाली दुल्हन को उसकी सहेलियों के साथ लड़के वालों के कतार में ले जाकर सभी को बारी-बारी से अभिवादन करवाता है। इस अभिवादन को संतालों की भाषा में डोबोक जोहार कहते हैं। इसी तरह रायवाटीच लड़के को उसके दोस्तों के साथ ले जाकर लड़की वालों के कतार में एक-एक आदमी को लड़के से अभिवादन करवाता है। इसके बाद रायवाटीच दोनों पक्षों के कतार में जाकर पसन्द होने या न होने के सम्बन्ध में चर्चा करता है। यदि लड़के वालों को लड़की अधिक पसन्द है तो वे प्रसन्नता से लड़की को रुपया या मुढ़ी-मिठाई देते हैं।

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हारोक् चीखना:
एपेल की समाप्ति के बाद इस र की अदायगी अनिवार्य है। इसमें लड़के वाले लड़की के घर जाकर या फिर लड़की वाले लड़के के घर जाकर वस्र-आदि देते हैं, जिसे हारोक् चीखना कहा जाता है। लड़की वालों के घर जाकर कपड़ा-लत्ता देने को बहु बन्दे तथा लड़के वालों के घर जाकर कपड़ा-लत्ता देने को जावोंय दाहड़ी कहते हैं।

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बहु-बन्दे:

रायवाटीच अब लड़के पक्ष के लोगों को लड़की वालों के घर ले जाता है। लड़की पक्ष के लोग सबसे पहले पानी से भरा लोटा ले जाकर सबका अभिवादन करते हैं। फिर देशी शराब पिलायी जाती है और भोजन करवाया जाता है। उसके बाद होने वाली दुल्हन को बीच में चटाई पर बैठा दिया जाता है। वर पक्ष की महिलाएं सर्वप्रथम होने वाली वधु के सिर में तेल लगाती है, उसके बाद जो भी समान लाये हुए होते हैं देती है, सामान्यतया साड़ी, कपड़ा, पैसा, चूड़ी, मुढ़ी और मिठाई आदि देने की परम्परा है।

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जावांय धोती:

इस प्रथा को अंजाम देने के लिए लड़की वाले लड़के वालों के घर जाते हैं। वहां पहुंचने पर अच्छी तरह उनका स्वागत होता है। मेहमानों का पैर पानी से धोया जाता है। हड़िया पिलाया जाता है, खाना खिलाया जाता है। इसके बाद जिस लड़के को धोती वगैरह देना हो उसको अच्छी तरह सजा कर निकाला जाता है। वह लड़का सर्वप्रथम गांव के प्रधान अर्थात् मांझी हराम को प्रणाम प्रेषित करता है। मांझी हराम को अपने हाथ से पोचोय निकालकर पीने के लिए देता है। मांझी हराम लड़के को अपने गोद में आनन्द से बैठा लेता है और कुछ तोहफा भी देता है। इसके बाद वह लड़का सभी मेहमानों के पास एक-एक कर जाता है और पोचोय पिलाता है। सभी अतिथि उसे कुछ-न-कुछ उपहार स्वरुप अवश्य देते हैं। अगर धोती या कपड़ा है तो उसके सिर पर पगड़ी जैसा बान्ध देते हैं। पैसा या अन्य वस्तु हाथ में पकड़ा देते हैं। इस बीच गाने-बजाने का कार्यक्रम भी चलता रहता है।

अब अतिथियों को घर के अन्दर ले जाकर बैठाया जाता है। घटकदार दोनों होने वाले समधि एवं समधनों को एक जगह बैठाता है। वे सभी आपस में एक दूसरे से परिचय लेते हैं। गीतों के माध्यम से सवाल-जवाब भी होता रहता है। अब समधी-समधन को आंगन में लाया जाता है। घटकदार उन सबको मान्दर बजाने के लिये देता है। समधन गा-गाकर नाचती भी है। इसके बाद सभी हाथ में तेल लेकर हाथ-पैर तथा सिर पर लगाते हैं। अन्तत: सभी को विदाई दी जाती है।

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विदाई:

सभी लोग एक वृत बनाकर ख़ड़े हो जाते हैं। आए मेहमान एक तरफ से प्रमाण करते जाते हैं। इसके बाद लड़के की माता जो एक डाली में उबला चावल और तरकारी सजाकर घटकदार के चावल रखकर कहती है कि आप लोग तो खाये-पीये यहां आकर और यह लो हमारे बहु-बेटी के लिये खाना लेते जाना। घटकदार उसे ले लेता है।

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खसी फाड़ी:

जिस बकरे (खसी) या सूअर का मांस मेहमानों को खिलाया गया उसके एक पैर का समूचा हिस्सा रख दिया जाता है और वह विदाई के समय मेहमानों को दिया जाता है। वे लोग उसे घर ले जाकर चावल के साथ खिचड़ी बनाकर खा लेते हैं।

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बालाय शचाक् रुवाड़:

इसका शाबिद्क अर्थ है समधिनों को लौटाना। विदाई लेने के बाद मेहमान लोग द्वारा कुछ दूर जाकर समधिनों को हंसी-मजाक के साथ लौटा कर लाने को ही बालाया राचाक् रुवाड़ कहते हैं। फिर पोचोय पिलाया जाता है। इसके बाद उनको जाने दिया जाता है।

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टाका चाल (गोनोड़ रुपया देना):

अब लड़के के पिता घटकदार को बुलाकर लड़की वालों को रुपया दे आने के लिए भेजता है। यह रुपया गांव के पांच प्रमुख व्यक्तियों के सामने गिन कर दिया जाता है। लड़की को १२ रुपये देकर निश्चित किया जाता है। प्राचीन प्रथा के अनुसार लड़की वाले १२ रुपये को इस तरह बांटते हैं :

(१) लड़की के पिता को धोती खरीदने के लिए तीन रुपये दिये जाते हैं।
(२) लड़की के मां को साड़ी खरीदने हेतु पांच रुपये दिये जाते हैं।
(३) लड़की के दादी के लिये साड़ी हेतु दो रुपये दिये जाते हैं।
(४) लड़की के नानी के लिये कपड़ा खरीदने हेतु दो रुपये दिये जाते हैं।

रायवाटीच इन १२ रुपयों को लेकर लड़की वाले को ५ व्यक्तियों के समक्ष दःे आता है।

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गिरा तोल (शादी का दिन तय करना):

लड़की वालों से घटकदार शादी की तिथि मांगता है। अनपढ़ होने के कारण वे लोग धागे का उपयोग कैलेन्डर के समान करते हैं। एक लम्बा धागा में उस दिन से जितने दिन बाद शादी को दिन निर्णय किया जाता है उतना ही गिरह उस धागे में बांधकर गांठ बनाया जाता है। सामान्यता ५-६ दिन के बाद ही शादी का दिन तय किया जाता है। इस धागे को दोनों पक्ष के लोग अपने-अपने गांव में निमन्त्रण कार्ड के रुप में अन्य धागे प गांठ बनाकर बांट देते हैं। जिनको यह धागा मिलता है वे प्रतिदिन एक गाँठ खोलते जाते हैं और जिस दिन गांठ खत्म होता है तो समझ लिया जाता है कि शादी ठीक उसके बाद वाले दिन होगी। धागा हल्दी से रंगा हुआ होता है।

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शादी (बापला):

अब दोनों पक्षों के लोग विवाह की तैयारी करने लगते हैं। घर-द्वार की अच्छी तरह लिपाई-पुताई करते हैं, दिवालों पर फूल आदि बनाते हैं, वस्र साफ-सुधरे करते हैं। ढ़ोलक आदि की व्यवस्था करते हैं। युवक बजाने के लिए बांसुरी बनाते हैं।

गांव का जोगमांझी गांव के सभी लोगों को विवाह की तिथि बतलाता है। विवाह के तीन दिन पहले गांव वाले शादी के लिये मण्डप जोगमांझी की सहायता से बनाते हैं। मण्डप के नीचे आंगन के ठीक बीचों-बीच साल और महुआ की डाल काटकर गाड़ दी जाती है। उसके नीचे एक पत्ते में अरवा चावल के साथ धोबी घास तथा हल्दी पोटली में बांधकर जमीन के नीचे गाड़ दी जाती है। मण्डप बनाने वाले लोगों को पोचोय के साथ-साथ भोजन भी मिलता है। शादी के पश्चात गांव का जो पहला सामाजिक त्योहार आता है उसमें जोगमांझी शादी घर से तीन मुर्गी, अरवा चावल, एक हड़िया पोचोय, तीन पैला चावल, तेल, सिन्दूर, इत्यादि मांग कर गांव के पूजा-पाठ करने वाले नाईकी को देता है, नाईकी ले जाकर उसे बलि चढ़ाता है। मुर्गी मांस की खिचड़ी बनायी जाती है। मुर्गी अण्डे का आटे के साथ रोटी बनायी जाती है और खायी जाती है। पोचोय भी सभी मिलकर पीते हैं। दुल्हा के घर से तीन मुर्गी तथा दुल्हन के घर से एक मुर्गी जमा की जाती है।

मण्डप बनाने वाले दिन गांव के सभी लोग इकत्रित होकर अपने-अपने शरीर में हल्दी लगाते हैं। रात को दुल्हा को मण्डप के नीचे चटाई पर बैठा दिया जाता है। दुल्हे की माँ उसके हाथ-पैर शरीर तथा समस्त बदन पर तेल मालिश करती है। चाची, मामी एवं अन्य महिलायें भी तेल लगाती हैं। कुछ लोग इस क्षण को आनन्ददायक बनाने के लिये इस संस्कार से जुड़े गीत गाते रहते हैं।

इस रीति की समाप्ति पर दुल्हे की माँ एक थाली में अरवा चावल, धान, धोबी घास, तेल, इत्यादि दूल्हा के सामने रख देती है तथा थोड़ा सा लेकर दुल्हा के चारों तरफ फेंकती है और अन्त में सब उसके तरफ फ्ैंक देती है। इस तरह अन्य कई महिलाएं भी आकर धान फेंकती हैं। इस रीति का संतालों की भाषा में दुल्हा चूमावड़ा कहा जाता है।

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बरियातः

बराती जाने के पूर्व तीन-चार लोगों को आगे भेज दिया जाता है। इन्हें आगुवादार कहा जाता है। आगुवादार लड़के के पिता अथवा अभिभावक से चावल आदि लेकर चले जाते हैं और वहां पहुंचकर खाना बनाकर रखते हैं ताकि बारातियों को वहां जाने पर भूके न रहना पड़े उनके साथ चावल, दाल, नमक, तेल, तम्बाकु, इत्यादि एक टोकरी में बांध कर भेज दिया जाता है तथा एक भेड़ या बकरी भी साथ में भेज दिया जाता है। चार हाड़िया पोचाय एक आगुवादार के लिये, एक चाड़ी के लिए, दो दुल्हा के साथी के लिये भी उन्हीं लोगों के साथ भेज दिया जाता है। ये सभी लड़की वाले के गांव पहुंचकर किसी वृक्ष के नीचे गांव के बाहर अपना डेरा डालते हैं। लड़की वालें से भात-तरकारी बनाने के लिए बर्तन, लकड़ी आदि ले आते हैं और खाना बनाना शुरु करते हैं।

लड़के की तरफ से जोगमांझी लड़के के माँ-बाप से दुल्हन के लिये कपड़ा निकलवाता है। लड़के के पिता साढ़े दस हाथ का कपड़ा, चार हाथ मारकीन कपड़ा (जिसको सारी दाहड़ी कहा जाता है) चार हाथ लम्बा कपड़ा घटकदार के लिये, एक पगड़ी का कपड़ा जोगमांझी के लिये निकलता है। ये सारे कपड़े एक साफ कराही में हल्दी में भिगो दिये जाते हैं, जिससे सारे कपड़े हल्दी के रंग के हो जात हैं।

इधर बारातियों के जाने के लिये बिल्कुल तैयार होने पर ढ़ोल चुमावड़ा किया जाता है। इसमें लड़की की माँ तीन औरतों के साथ घर के अन्दर से नाचते हुए निकलती है। उसके हाथ में एक सूप पकड़ा दिया जात है जिसमें थोड़ा धान, धोबी घास, अरवा चावल, एक पत्ते में तेल, सिन्दूर और एक चार हाथ का कपड़ा उसमें सजा रहता है। ढ़ोल बजाने वाले घर के दरवाजे के पास घड़े रहते हैं। नाचते समय ढ़ोल बजाया जाता है और वे औरतें मण्डप के नीचे बीच में गाड़ा गया चॉक खूटा को चारों ओर तीन बार नाचते हुए घूम जाती है। डोम (ढ़ोलकिया) अपना ढ़ोल नीचे रख देते हैं और उस ढ़ोल को कपड़े से ढ़क दिया जाता है, तेल और सिन्दूर लगाकर इसके बाद सूप में रखा हुआ धान, अरवा चावल, धोबी घास इस ढ़ोल के चारों ओर छिड़कते हैं। डोम अपना ढ़ोल पुन: कन्धे पर रखकर बजाते हैं और तीन चक्कर बजाते हुए लगाते हैं और चारों औरतें नाचते-नाचते घर के अन्दर पुन: घुस जाती हैं।

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ढ़ाक् बापला (पानी की शादी करना):

इस रश्म को भी बारात जाने से पूर्व अन्जाम दिया जाता है। दो छोटा कलसी ( सगुन कलसी ) में एक पैला करके मुढ़ी, चुड़ा और दो-दो पैसा रख दिया जाता है। जोगमांझी एक छोटा टोकरी में पोचोय, एक धागा, पैसा, सिन्दूर, तेल, कौड़ी भी साथ में ले लेता है। तीन महिलायें (एक लड़के की माँ साथ में रहेगी) अपने हाथ में तलवार, एक धनुष और चार तीर पकड़े रहती है। दो लड़कियों के सिर पर वह दोनों कलसी रख दी जाती है उसके ऊपर से दुल्हन वाली कपड़ा से ढ़क दिया जाता है। आगे-आगे दोनों लड़की सिर में कलसी लिये एक पंक्ति में जाती है उसके पीछे तीन महिलाएं नाचते हुए तालाब या नदी के किनारे जाती है। डोम ढ़ोल बजाते हुए तथा सभी ये नारा लगाते हुए जाते हैं ""सुबारी हो सुबारी''।

तालाब या नदी जाने के पहले मांझीधान में प्रधान के नाम से पोचोय डाला जाता है। पानी के किनारे जाकर एक स्थान पर गड्ढ़ा किया जाता है, तथा उसकी मिट्टी तीन जगह रख दी जाती है। जोगमांझी उन चारों तीरों में से तीन लेकर तालाब या नदी का जल लेकर उस गड्ढ़ा में डाल देता है। इसके बाद पूर्व की ओर सामने करके तीर को उसमें गाड़ देता है। धागा से तीन बार उसके चारों ओर छुआ कर बांध देता है। पुन: उस तीर में तेल और सिन्दूर लगाता है। उसमें एक-एक ताम्बें का पैसा रख दिया जाता है। इसका अर्थ है घाट खरीदा गया। जलकर के किनारे एक जगह मांझी हराम के नाम से पोचोय शराब डाला जाता है, मन्त्र पाठ किया जाता है। उस मन्त्र का सार यह है कि ""हम लग बरात जा रहे हैं रास्ते में कोई तकलीफ न हो, हम लोग ठीक से जा सके।'' ढ़ोल बजने के साथ-साथ औरतें भी खूब नाचती हैं। गड्ढ़े में दोनों कलश को रख दिया जाता है और उसके चारों तरफ पाँच या सात चक्कर नाचते हुए घूमा जाता है। इस तरह पुन: उसको माथे पर लेकर ही वापस लाया जाता है। वापसी में भी औरतों द्वारा नृत्य किया जाता है। अन्तत: ढ़ाक बापला का र यही समाप्त होता है।

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जांबाच उल साकामः

इसका शाब्दिक अर्थ है दुल्हा को आम पत्ता बांध देना। जोगमांझी आम के पत्ता में ७ चावल के दानें, तीन धोबी घास, हल्दी का पोटली बनाकर दुल्हा के दाहिने हाथ में बांध देता है।

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जवांय कोड़ा उमः

इसका अर्थ है दुल्हे को नहलाने का रस्म। दुल्हा को पीढ़ा पर बैठाकर नहलाया जाता है, फिर उसे नया धोती दिया जाता है, थाली में उसका पैर धोया जाता है। घर के अन्दर ले जाकर उसके शरीर में तेल लगाते हैं। इस तरह दुल्हें के भाई को भी नहलाते और तेल लगाते हैं, जिसे लोमता कोड़ा कहते हैं। यह लड़का शादी के समय दुल्हा के साथ रहता है। दोनों को चटाई में बैठाकर तीन लड़की जिनको तिवरी-कुड़ी कहते हैं, उन दोनों को अच्छी तरह तेल लगाती हैं, इसके बाद दुल्हा के माता, चाची भी उन दोनों के शरीर में तेल लगाती हैं। इसके बाद दोनों को खाना खिलाया जाता है।

जोगमांझी बारात में जाने वाले सभी लोगों को बुलाकर मण्डप में नीचे बैठाता है और खाना खिला देता है। इसी बीच, दुल्हा को पुन: मण्डप के नीचे लाया जाता है और उसे तेल लगाया जाता है। उसकी बहनें भी उसको तेल लगाती हैं तथा आंख में काजल लगा देती हैं, और कजरोटा जिसमें काजल हो उसके हाथ में पकड़ा देती हैं। कजरोटी वह तब तक पकड़े रहता है जब तक वह दुल्हन के घर से वापस नहीं आता है। बहने अपना-अपना माला खोलकर दुल्हा को पहना देती हैं। इसी बीच गांव की युवतियां नाचते हुए बारात जाने वाली गीत गाती हैं।

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बारीयातोक् सापड़ावाक् (बारात जाने की तैयारी):

दुल्हा को लगाये गये तेल में से बचा तेल, एक टुकड़ा हल्दी, एक कंघी रायवारीच के जिम्में दे दिया जाता है। लड़के की माँ एक मुट्ठी अरवा चावल, तीन साल का पत्ता, जिसकी तीन सिरायें एक जगह मिली हुई हों, बाबड़े अर्थात् दुल्हा को तैयार करने वाला, को दे देती हैं। लड़के के पिता लड़की को सिन्दूर लगाने के लिए एक पुड़िया सिन्दूर, दुल्हा के धोती में बांध देता है। दुल्हन को उठाने के लिए दौउरा (बांस की टोकरी) में दुल्हन के लिए कपड़ा, साश दाहड़ी (दुल्हन के भाई को देने वाला कपड़ा) एक नया कंघी, मिट्टी बर्तन में लगाया गया बचा तेल और आरण्डी का पत्ता भर दिया जाता है। ये सब चीजें रायवारीच को सुपुर्द कर कहा जाता है कि अच्छी तरह से इसे पहुंचाना। एक छोटी कलश में भरा एक पैला ( पाई ) धान भी उसी खांची में भर दिया जाता है, इसको सगुन ठिली कहा जाता है। यदि दुल्हा के पिता १२ रुपया अर्थात् गोनोड़ रुपया पहले न देकर भेजता है वो इसी दोउरा (टोकरी) में १२ रुपैया रख दिया जाता है।

बाबड़े लड़की को दो नया कपड़ा का दो पगड़ी बनाकर एक दुल्हा तथा दूसरा  लोमता कोड़ा को पहना देती है। तब दुल्हा के पिता एक बर्तन में थोड़ा पोचोय लेकर घर के अन्दर ले जाकर ओड़ाक बोंगा अर्थात् घऱ का देवता के लिए तथा पूर्वजों के नाम से जमीन पर थोड़ा डालता है और इस तरह कहता है कि प्रणाम हो हमारे ओड़ाक बोंगा को, हम अभी बारात जा रहे हैं, हमें रास्ता घाट में, पहाड़ा-पर्वत में किसी तरह की मुसीबत का सामना नहीं करना पड़े, वहां पहुंचकर मेहमानों के साथ कोई झगड़ा न हो, एवं हम ठीक से वापस आ सकें। इसके बाद वह चारों ओर पानी छिड़क देता है तथा उस जगह प्रणाम करके घर के अन्दर से बाहर निकल आता है। दुल्हा का पिता दुल्हा के हाथ में एक रुपैया पकड़ा देता है, जबकि माता एक थाली में गुड़ और लोटा में पानी सजाकर मांझीथान की ओर जाती है, उस समय दुल्हा एक लोमता लड़का को भी मांझीथान तक उठा कर ले जाया जाता है, डोम ढ़ोल बजाते जाते हैं। मांझीथान पहुंचने के पहले ही जोगमांझी वहां जाकर थोड़ा पोचोय मांझीथान में पूर्वजों के नाम डाल देता है।

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मांझीथानरे बारियातोक बादीकः

इसका अर्थ है मांझीथान में बरात की विदाई। लड़का एवं लोमता मांझीथान पहुंचकर मांझीथान को प्रणाम करते हैं। लड़के की माँ चटाई पर बैठकर दुल्हा को अपनी गोद में ले लेती है और मुंह धोकर थाली में ले गई गुड़ उसके मुंह में थोड़ा-थोड़ा करके तीन बार उसे तथा लोमता को भी खिलाती है। अन्य औरतें भी इस क्रिया को एक-एक कर दुहराती हैं।

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नुनु टाका (दुल्हा द्वारा माता को दूध पिलाने का रुपया देना):

दुल्हा माँ के समीप जाकर उसके गोद में इस तरह बैठ जाता है कि वह माँ का दूध पी रहा हो। वह उस समय पिता का दिया हुए एक रुपया मुंह में लिया रहता है और चुपके से माँ के हाथ में उड़ेल देताहै। इसे संताली भाषा में नुनु टाका कहते हैं। इसके बाद दोनों को गोद में उठाकर गांव के बाहर सड़क पर ले जाते हैं। वहां खुड़खुड़ी में दोनों को बैठा दिया जाता है। उसके बाद बारात निकर जाती है। आगे-आगे रायवारीच दउरा को अपने सिर पर लेकर चलता है, उसके पीछे-पीछे डोम ढ़ोल बजाते एवं अन्य लोग मन्दन मेड (एक प्रकार का बाजा) बजाते जाते हैं और अगर आतिशबाजी की तैयारी रहती है तो रास्ते में पटाखे भी छोड़ते जाते हैं। बराती में मांझीहराम, प्राणिक, जोगमांझी, नाईकी गोड़ैत सभी प्रमुख व्यक्ति होते हैं।

बाराती का दुल्हन के गांव में आने पर रायवारीच उन्हें एक जगह बैठाकर दुल्हन के घर जाकर इसकी खबर देता है। गांव का जोगमांझी एक लोटा जल लेकर बारात के नजदीक पहुंचता है। लोटा भर जल किसी #ेक बाराती को देकर फिर उसका अभिवादन करता है। तत्पश्चात जोगमांझी बारातियों को तम्बाकू एवं बीड़ी इत्यादि से भी स्वागत करता है। अब वह बरातियों को किसी छायादार विशाल वृक्ष के नीचे कुछ देर रहने के लिए डेरा दिखा देता है। बाराती डेरा में चले जाते हैं। सामान्यतया अगुवादार (जो पहले पहुंचा हुआ होता है) पूर्व में ही भोजन तैयार करके रखता है, जिसे सभी लोग खा लेते हैं।

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कुड़ी औतो रे दाक् बापला:

कुड़ी ओतो रे दाक् बापला का अर्थ है लड़की के घर पर पानी की शादी करना। लड़की के गांव के जोगमांझी घर पहुंचकर बाराती पहुंचने की जानकारी देता है। इस सूचना को पाते ही लड़की के घऱ वाले पानी की शादी करने के लिए किसी नदी या तालाब (जलकर) के किनारे चले जाते हैं तथा जिस तरह लड़का के घर में यह र हुई है उसी तरह से यहां भी पानी की शादी करते हैं।

दाक बापला से लौटकर जोगमांझी तीतरी कु ड़ी (तीन लड़की) तथा दुल्हन के बायें हाथ की छोटी अंगुली मण्डप खुटा में किसी पवित्र धागे की सहायता से बांध देता है। तीतरी कुड़ी हाथ से तीन-तीन करके चावल बनाती है। इसके बाद चावल, कच्ची हल्दी, तीन धोबी घास, आम के पत्ते में पोटली बनाकर धागा से बांध देती है, इस पोटली को दुल्हन के दाहिने हाथ में बांध दिया जाता है।

जिस तरह दुल्हा को उसके गांव में नहलाया गया है उसी तरह यहां भी लड़की को अराड़ (हल जोतने के समय जिसमें बैल जोड़ा जाता है पर बैठाकर तीतरी कुड़ी उसको पानी से नहलाती है। नहलाकर घर के अन्दर ले जाया जाता है। घर के दरवाजा पर उसका पैर धोया जाता है। इसके बाद उसको खाना खिलाया जाता है।

दाक बापला की समाप्ति के बाद दुल्हन की माता कुछ अन्य महिलाओं के साथ एक थाली में गुड़ तथा लोटा में पानी सजाकर गांव के बाहर आती है। कलश में भी पानी ले जाया जाता है। जोगमांझी गांव के सभी व्यक्तियों को बुलवाता है। गांव की सभी औरतें जमा होकर बाहर जाकर बारातियों का स्वागत करती है। युवक एवं युवतियां मान्दर बजाते एवं गीत गाते रहते हैं। जोगमांझी एक लोटा पानी पत्ता में सजाकर बाराद पार्टी के यहां जाता है और पानी देकर सभी बारातियों को गांव के सड़क के अन्तिम छोर पर ले जाता है। महिलाएं आगे-आगे जाती है, इनके पीछे-पीछे नाचने गाने वाली युवतियां भी नाचती जाती है। गांव के पुरुष धोती पहनकर, सिर पर पगड़ी बांधकर, हाथ में लाठी लेकर जाते हैं। शराबी डोम के साथ नाचते हुए जाते हैं। सबसे आगे पुरुष नाचते जाते हैं जिसको संताली में पलकाहा दोन कहते हैं। उसके पीछे डोम ढ़ोल बजाते हुए उसके पीछे महिलाएं तथा युवतियां मान्दर साथ नाचते हुए जाती हैं।

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पायकाहा ऐनेच (पायकाहा नाच) :

बराती और सराती दोनों आमने-सामने नाचते हैं, बीच में ढ़ोल बजाने वाला ढ़ोल पार्टी रहता है। इसमें यह भी देखा जाता है कि कौन पार्टी सबसे अच्छा नाच सकता है। प्रतियोगिता का माहौल रहता है। अन्त में सब मिलकर नाचते हैं। सरात पार्टी ताली बजा-बजाकर लाठी को रख देता है। सरात पक्ष के आगे पंक्ति वाला व्यक्ति अपना दोनों हाथ हवा में इस तरह घुटने से नीचे जमीन तक बरात पक्ष के सामने करता है मानो कि बरात पक्ष को पैर पानी से धोया गया तथा जमीन से कोई पत्ता या धूला उठाकर इस तरह हवा में दिखाते हैं कि सभी को गुड़ दिया गया, तथा पानी से मुंह धोने की क्रिया भी हवा में दिखाते हैं। इसके बाद दोनों बराती तथा सराती पक्ष हाथ मिला-मिला (हिला-हिलाकर) कर प्रणाम करते हैं और गले से गले लगते हैं।

 

जावायं गुड़ आजो कुड़ी आतो रे (दुल्हा को गुड़ खिलाना लड़की के गांव में) :

दुल्हन की बड़ी बहन दुल्हा, एवं लोमता लड़का को हाथ से पकड़कर महिलाओं की ओर ले आती है। दुल्हा दुल्हन की माँ को प्रणाम करता है। दुल्हन की माँ उसे अपने गोद में बिठाकर लोटा में भरे पानी से उसका मुं धोती है और थाली में रखे गुड़ तीन बार खिलाती है। दुल्हा उठकर फिर प्रणाम करता है। इसके बाद गांव की अन्य औरतें भी बारी-बारी से दुल्हा एवं लोमता लड़का को गुड़ खिलाती है। तीतरी कुड़ी चटाई को समेट लेती है और सब घर की ओर चले आते हैं।

वहां से वापस आते वक्त प्रत्येक घर के दरवाजे पर दुल्हा और लोमता कोड़ा दोनों को गुड़ खिलाया जाता है। बारात पक्ष उसके पीछे पायकाहा नाच नाचते जाते हैं। गांव की अल्हड़ युवतियां दुल्हा के पीछे जा-जाकर दुल्हा को उलाहना, क्रोध भरी गाना सुनाती है। बारात जब दरवाजे पर पहुंच जाती है तो पुन: लड़की की मां दोनों को गुड़ खिलाती है। इस र की समाप्ति के बाद जोगमांझी दुल्हा एवं लोमता दोनों को बारातियों के डेरे में पहुंचा देता है।

इसके पश्चात जोगमांझी सिन्दराधान के लिए मांझीथान में पोचोय बोंगा एवं पूर्वजों के नाम डालता है। अब सभी औरतों को दुल्हा को नहाने के लिये बुलाया जाता है। वह तेल, हल्दी, पानी इत्यादि का इन्तजाम करता है।

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लड़की के घर में दुल्हा को नहलाना :

जोगमांझी एक लोटा पानी लेकर बारातियों के यहां पहुंचा देता है और उससे कहता है कि चलिये अब दुल्हा का नहाना देखने चलना है। दुल्हा अपने जीजा के साथ चल देता है। उसे एक चटाई पर बैठाकर दुल्हन तरफ की लड़कियां उसके कमीज इत्यादि खोल देती हैं। अब दुल्हन की मां लड़का को तेल लगाती है। लड़कियां भी लड़का को तेल लगाती रहती हैं एवं विनोदपूर्ण अंदाज में गाली देती रहती हैं। लड़कियों में से कोई एक नाई बन जाती है और झूठ-मूठ का उसका हजामत करती है, और मजाक करती है। साथ ही साथ किसी फल या फूल के बने भद्दे माला बनाकर दुल्हा को पहना देती है। अब युवतियां दुल्हा को उठाकर अपने बीच नाचने के लिए पकड़ कर ले जाती है। कुछ देर नचाने के बाद दुल्हें को छोड़ दिया जाता है।

इधर जोगमांझी दुल्हा के लिए कपड़ा लाता है। दुल्हा का भीगा वस्र बांबड़े लड़की अर्थात् दुल्हन की ज्येष्ठ सास, बड़ी साली या छोटी साली को दे देने की प्रथा है। अगर वह वस्र पुराना एवं थोड़ा सा भी फटा है तो बरात पक्ष को दो आना पैसा देता है, और नाई के काम के नाम पर भी बारातियों को चार पैसा, एक दोना चूड़ा, मुढ़ी, एक दोना चावल, और दो हाड़िया पोचोय देना पड़ता है। यह सब सामान जोगमांझी को जिम्मा दे दिया जाता है और वह उसे जिसको-जिसको मिलना चाहिये उसे दे देता है। अन्त में दुल्हा महोदय को पुन: बारातियों के डेरा में पहुंचा दिया जाता है।

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सारा दाहड़ी :

सारा दाहड़ी का अर्थ है दुल्हन के भाई को वस्र देना। घर के अन्दर से दुल्हन के छोटे भाई को कन्धे पर उठाकर बाहर निकाला जाता है। उस समय वह लड़का अपने मुंह में एक मुट्ठी अरवा चावल लेकर चबा-चबाकर महीन कर रखता है, जैसे ही उसको निकाला जाता है, दुल्हा भी चुपके से अपने मुंह में अरवा चावल ले लेता है और बारात पक्ष की ओर से दुल्हा के जीजा दुल्हा को कन्धे पर ले लेता है और उसे कन्धे पर बैठाये लड़के के नजदीक पहुंचता है, तब बारात पक्ष दोनों के बीच में एक वस्र पर्दा जैसा ढ़क देता है ताकि दोनों एक दूसरे को छू न सके। दोनों पक्ष के जोगमांझी लोटा में पानी लिये तथा उसमें दो-चार आम का पत्ता लेकर ऊपर की ओर पकड़े रहते हैं। दुल्हा अपने तरफ के जोगमांझी के लोटा से आम का पत्ता भिगोकर उसे लड़का की ओर छिड़क देता है उसी प्रकार वह लड़का भी अपने तरफ के जोगमांझी के लोगों से आम का पत्ता से पानी लेकर दुल्हा की ओर छिड़कता है। अब दुल्हा को एक वस्र दिया जाता है जिसे वह पगड़ी की तरफ बांध लेता है। पगड़ी बांधकर दोनों एक-दूसरे को चूमते हैं, जैसे ही चूमने के लिये दोनों अपना अपना मुंह समीप लाते हैं उसी समय मुंह में पहले से रक्खा हुआ अरवा चावल एक दूसरे के गाल पर फेंक देते हैं। इसके बाद लड़का को घर के अन्दर ले जाया जाता है और दुल्हा को वहीं नीचे उतार दिया जाता है।

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बहू तूल बोलोक्:

इसका शाब्दिक अर्थ है दुल्हन को अन्दर से उठाकर बाहर लाना। जोगमांझी तीन व्यक्तियों को घर के भीतर प्रवेश करने की आज्ञा देता है। रायवारीच तीन व्यक्तियों को लेकर तथा साथ में दौऊरा (टोकरी जिसमें दुल्हन को बैठा दिया जाता है) भी लेकर घर के अन्दर घुसता है। घटकदार ये सब सामग्री दादी को देता है जो दुल्हा के घर से लाया गया हो। तीनों व्यक्तियों को लकड़ी की पीढ़ी पर बैठा कर पोचोय (शराब) पीने के लिये देता है। घर में दुल्हन को चटाई पर बैठा दिया जाता है। तथा दुल्हा के घर से लाया गया तेल निकालकर दुल्हन के सिर, हाथ में लगाते हैं और नया कंघी से उसके बाल के संवारते हैं तथा उस दौऊरा से वस्र निकालकर दुल्हन को पहना देते हैं। दुल्हन का पिता अपने गोद में उसे लेकर पोचोय पीने के लिये देता है । दुल्हन घर के अन्दर वाली कपाट के पास जाकर प्रणाम करती है इसके बाद दौउरा के पास जाकर उसे भी प्रणाम करती है, अब दुल्हन को उसका सहोदर भाई उठाकर दौउरा में बैठा देता है।

जिस वस्र को वह पहनी है उसे सिर पर चढ़ाकर घूंघट बना लेती है। गांव की युवतियां पिसा हुआ हल्दी हाथ में लेकर दरवाजे के पास खड़ी रहती है। बाहर आंगन में युवक डोम के साथ नाचते हैं।

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सिन्दराधानः

शादी या मांग में सिन्दूर के लिये दुल्हन उस दौऊरा में बैठ जाती है तो वे तीनों व्यक्ति (जो दुल्हन के देवर जेठ लगते  हैं) उसे अपने कन्धे के सहारे उठाते हैं। जोगमांझी लोटा में पानी और पत्ता पकड़कर आगे-आगे निकलता है तथा उसके पीछे तीनों व्यक्ति अपने कन्धे के सहारे उठाये दुल्हन को निकालते हैं। जैसे ही तीनों व्यक्ति दरवाजे पर आते हैं वहां हाथ में हल्दी लिये युवतियां उन तीनों व्यक्यितों को धक्का मारते हैं ताकि उनके कन्धे से दुल्हन गिर जाये, गिराने के ताक में सभी लगे रहते हैं। वे तीनों भी अपनी शक्ति भर जोर लगाकर किसी तरह बाहर लाने की कोशिश करते हैं और अन्त में किसी तरह बाहर निकाल ही लेते हैं। तब दुल्हा का बहनोई दुल्हा को कन्धे पर लेकर उन तीनों के नजदीक पहुंचता है। दोनों के बीच कपड़े का पर्दा लगाते हैं ताकि एक दूसरे को छू न सकें। जोगमांझी के हाथ में पानी से भरा लोटा रहता है दुल्हा उस लोटा में आम का पत्ता भिगोकर दुल्हन पर छिड़क देता है उसी तरह दुल्हन भी दुल्हा पर छिड़क देती है। तब दुल्हा अपने पिता से सिन्दूर का एक पुड़िया लेता है एवं उसे खोलकर दाहिने हाथ से छोटा तथा बड़ी अंगुली से सिन्दूर लेकर तीन बार जमीन की ओर फेंक देता है। तत्पश्चात वह सिन्दूर पुड़िया दुल्हन की घूंघट उठाकर दाहिने हाथ के छोटा तथा बड़ा अंगुली से सिन्दूर लेकर दुल्हन की मांग में तीन या पांच बार भर देता है। इसके बाद पुड़िया में बचा सिन्दूर उसके सम्पूर्ण शरीर में रगड़ देता है। जैसे ही उसके मांग में सिन्दूर पड़ता है सभी लोग ""हरिबोल सिन्धरारान'' के नारे से वातावरण को गुंजायमान कर देते हैं। तब दुल्हा वह सिन्दूर पुड़िया उसी तरह लपेट कर अपने पिता को दे देता है। उसके पिता उस सिन्दूर की पुड़िया को अच्छी तरह अपने धोती से बांध लेता है। दुल्हा को कन्धे से जमीन पर उतार दिया जाता है तथा दुल्हन को भी कन्धे से नीचे कमर तक उतारते हैं। तब दुल्हा अपने होने वाली दुल्हन को दौऊरा (टोकरी) से उठाकर धरती पर बैठा देता है। बाद में लड़की की बड़ी बहन आकर दोनों के आंचल को बांधकर जोड़ देती है।

इस र की समाप्ति के उपरान्त घर के दरवाजे पर दोनों के पैर पानी से धायो जाता है। दुल्हन की माँ तेल और सिन्दूर लेकर दोनों के चेहरे पर लगाती है तथा कान और कपाल पर सिन्दूर का टीका लगाती है।

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पाड़छावः

एक थाली में चावल आटे की तीन गोली, तीन गोबर की गोली, धोबी घास, धान और अरवा चावल लिया जाता है। पहले दुल्हन की माँ दोनों को चुमावड़ा करती है। धोबी घास, धान इत्यादि उसके सिर तथा चारों ओर छिड़कना को ही चुमावड़ा कहते हैं। माँ आटे की तीनों गोलियों को दुल्हा-दुल्हन के सिर के ऊपर से होते हुए तीन तरफ फेंस देती है। एक गोबर की गोली को घर के अन्दर की ओर फेकती है और दो गोली बाहर की ओर फेंक देती है। एक कच्चा साल के पत्ते में आग लाया जाता है। एक मोटा लाठी तीन महिलाएं पकड़े रहती है और उसे रखा हुआ आग के ऊपर रखती है तथा तीनों महिलाएं उसे प्रणाम करती हैं। विवाह के वक्त दुल्हा-दुल्हन को छोड़कर और दो व्यक्ति उसके साथ रहते हैं। दुल्हा के बगल में रहने वाले लड़का को लोमता तथा दुल्हन के बगल में रहने वाली को लोमती कहते हैं। अब चारों घर के अन्दर प्रवेश करते हैं। उसी समय दुल्हा की साली दरवाजे पर खड़ी रहती है। जैसे ही लोग अन्दर प्रवेश करते हैं तो सालियां दुल्हा का अन्दर घुसने नहीं देती है, बाकि सभी को प्रवेश करने देती है और दरवाजा को अन्दर से बन्द कर लेती है। दुल्हा ठेलते हुए घुसने का प्रयास करता है मगर सफल नहीं होता है, वो चार आना देकर उसे खुलवाता है तथा अन्दर घुस जाता है। अन्दर चारों को चटाई पर बैठाते हैं और दुल्हन की माता चारों के हाथ, पैर, शरीर में तेल लगा देती है। बाद में चारों को हाथ धुलाकर खाना खिलाया जाता है।

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बारात पार्टी को मण्डप के नीचे लाकर बैठाना एवं पोचोक देना:

दुल्हा-दुल्हन को घर के अन्दर चले जाने के बाद जोगमांझी सभी बारातियों को लाकर मण्डप के नीचे बैठाता है। प्रधान, परानीक, गोड़ैत तथा जोगमांझी को भी साथ में लेता है। उन सब का पैर धोया जाता है इसके बाद दातुन और लोटा में पानी सभी को मुंह हाथ धोने के लिए दिया जाता है। दुल्हा-दुल्हन के माता-पिता विवाह के दिन उपवास किये हुए रहते हैं जब तक सिन्दूरदान नहीं होता है, इसलि#े वे भी दातुन कर लेते हैं। इसके बाद सभी को दो-दो बारी पोचोय (शराब) पीने के लिए देते हैं, तत्पश्चात् भोजन दिया जाता है। भोजन के तुरन्त बाद ही फिर पोचोय दिया जाता है। अब वे बारात दल में जाकर मण्डप के नीचे बैठ जाते हैं।

इस तरह मण्डप के नीचे सभी बाराती तथा सरियाती दल एक जगह बैठकर सुख-दुख या हालचाल एक दूसरे से पूछते हैं। यदि गोनोड़ टका दुल्हा के पिता द्वारा बाकि है; तो वह इसी समय दे देता है।

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चाडी ऐपेम (चाड़ी देना):

एक टोकरी में एक हड़िया पोचोय, १२ पाई चावल, तीन टुकड़ा हल्दी, थोड़ा नमक, थोड़ा तेल, थोड़ा तम्बाकू भर दिया जाता है और एक बकरी भी आगे भेज दी जाती है, उसी को चोड़ी कहते हैं।

एक नया सूप में एक पाई चावल, एक पत्ते में थोड़ा गोबर, एक छोटे दोने में तेल सजाकर मण्डप के नीचे आंगन में रख दिया जाता है।

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मण्डा लातार खासी माक्:

इसका अर्थ है मण्डप के नीचे खसी करना। जोगमांझी एक बर्तन में पोचोय , काटने वाला फरसा मण्डप के नीचे लाकर खसी के साथ रखता है। दुल्हन का पिता मण्डप के नीचे एक जगह गोबर के लीप देता है और उस जगह पन्ना वाला चावल भी रख देता है। खसी को लाकर (पत्ते पर रखा हुआ चावल खिलाया जाता है) अब उसके शरीर पर पानी छिड़क दिया जाता है। साथ में तेल भी लगाया जाता है। इसके बाद बरातियों से काटने के लिये कहा जाता है। बारात में से एक व्यक्ति उठकर फरसा हाथ में लेकर खसी पर काटने का नाटक दिखाकर फरसा को रख देता है, उसे काटता नहीं है। तब सरियाता का कोई व्यक्ति आकर उस खसी को काट देता है। दुल्हन का पिता कटे हुए सिर को लेकर चारों ओर घुमाता है और उसे पत्ते पर रख हुए चावल के ऊपर रख देता है और पूर्वजों के नाम पर थोड़ा पोचोय जमीन पर डालता है। दोनों पक्षों से काटने वाले दोनों व्यक्ति मण्डप के नीचे सभी उपस्थित व्यक्ति को प्रणाम करते हैं। इसके बाद पुन: बारात दल को एक हड़िया पोचोय लोकर दिया जाता है।

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मण्डप के नीचे खसी फाड़ी:

मण्डप के नीचे जो खसी काटा गया उसका सिर, अगले पैर का समुचा हिस्सा तथा पांच पंजटी के हड्डी अलग काटकर रख दिया जाता है, शेष भाग दुल्हन के घर में ही काट कर पकाते हैं। जोगमांझी दुल्हन की मां से पांच पाई (ढ़ाई किलो) चावल मांगकर तथा जो फाड़ी मांस रखा हुआ रहता है, लेकर बारात दल को जिम्मा दे देता है। बारात दल उसे लेकर उस चावल के साथ खिचड़ी बनाते हैं और सारे बाराती बांटकर खाते हैं।

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बारीयात भोज (बारात भोज):

भोजन बन जाने के पश्चात सभी बारातियों को मण्डप के नीचे बैठाकर भोजन कराते हैं। दुल्हन के पिता, जोगमांझी, मांझी हराम, प्रमानिक आदि भी बारात दल के सदस्यों के साथ भोजन करते हैं। भोजन के समय दोनों में नमक और मिरचाई रखते हैं और दोनों दोना को जोड़ दिया जाता है। इसे भोजन करने वालों केे किसी एक पंक्ति में रख दिया जाता है, खाने वाले उसको आगे बढ़ाते जाते हैं, संताली भाषा में इसको जोड़ा लावका (जोड़ा नाव) कहते हैं। किसी को नमक-मिरचाई की जरुरत होती है तो नमक-मिरचाई न बोलकर जोड़ा लावका शब्द का ही प्रयोग करता है। इसी तरह से पानी के लिए रोठे मोड़ोम शब्द का प्रयोग किया जाता हैै। भोजन के बाद सभी को तम्बाकू, बीड़ी आदि दिया जाता है। बारात पक्ष को खिलाने के बाद अगर खाना बच गया तो जगमांझी पांच आदमी का खाना लेकर बारातियों के डेरे में पहुंचा देता है, यहां अगर कोई बा रह जाता है तो उनके लिए अगर और खाना बचता है तो गांव के मुख्य आदमी प्रधान, परानिक, गोड़ित तथा कुछ बुजुर्गों को खिला दिया जाता है।

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बाहु कुड़ी ओड़ाक् रे गीड़ी चुमावड़ा:

दूसरे दिन दुल्हन के माता-पिता तथा जोगमांझी गीड़ी चुमावड़ के लिए तैयार होते हैं। गीड़ी चुमावड़ा का अर्थ लड़की के घर में दान देना होता है। जोगमांझी एक पानी भरा लोटा पत्ते में सजाकर बारातियों के शिविर में ले जाता है। बारात से एक व्यक्ति उसे लेता है और जोगमांझी के साथ सलाम करता है, तब बारात पक्ष वाले पूछते हैं कि वह पानी किस नम से लाया गया है। जोगमांझी उन्हें बताता है कि यह गीड़ी चुमावड़ा के नाम से है। अब बारात दल के लोग अपना ढ़ोल बजाते हुए दुल्हन के घर की ओर चलते हैं। बारात पक्ष एवं गांव के सभी लोग इस तरह मण्डप के नीचे एकत्रित हो जाते हैं। तब तक बाबडे एरा (लड़की की बहन) एक छोटा बर्तन में चावल का आटा पानी में घोल कर लाती है और चॉक खूंटा के पश्चिम तरफ में उत्तर-दक्षिण से दाग बनाती-बनाती अपना हाथ रोक देती है, या अधूरा छोड़ देती है। इस समय जोगमांझी पूछता है : ""दाग बनाना क्यो बन्द कर दिया?'' बाबड़े एरा कहती है कि ""मेरा हाथ नहीं चलता अपने-आप रुक गया।'' जोगमांझी तब बारातियों से कहता है कि ""देखो भाई इनका हाथ रुक गया, आगे बढ़ता नहीं है।'' बारात के लोग भी बाबड़े एरा को प्रयास करने के लिए कहता है। इस पर भी जब वह नहीं लिखती है तो बारात पक्ष के लोग उसे कुछ देने के लिए वचन देता है, तब वह ( बाबड़े एरा ) उसे लिखकर पूरा करती है। चिन्ह जानबूझ कर पूरा नहीं किया जाता है क्योंकि इसमें बारातियों की ओर से कुछ मिलने की आशा रहती है। बारात दल एक चवन्नी देता है, लेकिन आजकल अधिक पैसा मर्जी के अनुसार दिया जाता है। इसको चौक पुरावनी कहते हैं। घर के अन्दर दुल्हा-दुल्हन तथा उनके साथ चटाई पर बैठा लोमता-लोमती को तीतरी कुड़ी इन चारों के हाथ, पैर तथा चेहरे पर तेल लगाती है। इसके बाद बाबड़े एरा उन चारों को तीन चक्कर घुमाकर घर से बाहर निकालती है। दुल्हा-दुल्हन के आंचल को जोड़ दिया जाता है। बाबड़े एरा अपने बांये हाथ से दुल्हे महाराज के दाहिने को पकड़े रहती है और दाहिने हाथ से पानी भरा लोटा पकड़े रहती है। दोनों बाहर आते हैं, इनके पीछे-पीछे लोमता-लोमती दोनों भी आता हैं। तीतरी कुड़ी भी चली आती है। तीनों लड़की तीतरी कुड़ी थाली में तेल, हल्दी तथा चटाई हाथ में लिये रहती है। बाबड़े एरा उन सबको मण्डप के नीचे लाकर तीन चक्कर घुमाती है और दाहिने हाथ से लोटे का पानी थोड़ा-थोड़ा करके गिराती जाती है। तीन चक्कर घुमाने के बाद उस दाग (चिन्ह) के ऊपर बैठ जाते हैं। दुल्हा के दाहिने तरफ लोमता तथा दुल्हन के दाहिने तरफ लोमती बैठती है। अब बाबड़े एरा एक थाली में सभी के पैर रखकर उसे जल से बैठे-बैठे ही धोती है। थाली वाला तेल, हल्दी, चोक खुटा के समीप रख दिया जाता है। दुल्हन की माँ एवं अन्य औरतें इन चारों को तेल, हल्दी (उस थाली से लेकर) हाथ-पैर, चेहरे तथा पीठ पर लगाती है। कंघी से सभी सा बाल संवार दिया जाता है। दुल्हे की सास दुल्हा के दोनों कान तथा कपाल पर सिन्दूर का टीका कर देती है। दुल्हन को भी नाक से लेकर माथे के मांग तक सिन्दूर लगाती है। लोमता के सिर्फ कान में सिन्दूर लगाती है, लोमती को नहीं लगाती है। बाबड़े एरा दो कांसे की थाली लाकर दुल्हा-दुल्हन के सामने रख देती है।

दुल्हन की माँ कुछ विशेष औरतों को बुलाकर घर के अन्दर ले जाती है एवं दोने में पोचोय ग्रहन करने के लिए देती है। एक थाली में अरवा चावल, धोबी घास, तेल और हल्दी रख दिया जाता है। एक दीपक भी जलाकर रख देते हैं। जो सगुन कलश दुल्हा के घर से लाया गया था उसको सादे मिट्टी से पोत दिया जाता है। तब दुल्हन की माँ थाली, दुल्हन की एक मौसी वह दौऊरा में लाया गया कलश (घड़ा) हाथ में लेकर नाचती हुई घर के अन्दर से बाहर निकलती है। डोम दरवाजे पर ढ़ोल बजाते हैं। मौसी नाचते हुए तीन चक्कर लगाती है और हाथ में लिया हुआ सामान चोक खूंटा के सामने रख देती है। कलश में रखा धान उस दौऊरा में डाल दिया जाता है। दुल्हन की माँ चुमावड़ा का काम शुरु करती है। सबसे पहले उस दौऊरा से चौक खूंटा का चुमावड़ा करती है। दौऊरा को जमीन पर रखकर उसको प्रणाम करती है, उसमें से धान तथा धोबी घास लेकर दुल्हा-दुल्हन के ऊपर बायें से दाहिने और तीन बार घुमाती है, तीसरे बार घुमाने के बाद धान और धोबी घास को दोनों के पीठ पीछे फेंक देती है तथा बगल में रखे दीपक को हाथ में लेकर उसकी आंच से दुल्हा-दुल्हन के गाल को तीन बार सेकती है। अब जो भई भेंट देनी है उसे अपने आंचल में से निकालकर दोनों के हाथ में पकड़ा देती है या फिर थाली में रख देती है। इसके बाद दोनों को चुम्मा देकर सलाम करती है। इसी तरह गोतियों (नातेदीरी) वाले भी भेंट देते हैं। अब बाबड़े एरा दुल्हा-दुल्हन दोनों को उठाती है और पहले जैसे ही चोक-खूंटा के चारों ओर तीन चक्कर लगाने के बाद सबको घर के भीतर सम्मान के साथ ले जाती है। अब जोगमांझी बारात के प्रधान, प्रानिक और दो तीन प्रमुख व्यक्तियों को लेकर घर के भीतर प्रवेश करते हैं। लड़की के गांव वाले प्रधान, प्रानिक, दो तीन अन्य प्रमुख व्यक्ति भी साथ में बुला लेते हैं। सभी भीतर प्रवेश कर एक जगह बैठकर पोचोय ग्रहन करते हैं तथा दुल्हा-दुल्हन के नाम से जो भेंट दिया गया है, उसका मुआयना करते हैं एवं गिनती भी करते हैं। बाद में समस्त भेंट को दुल्हन के पिता को रखने के लिए दे दिया जाता है।

दुल्हा-दुल्हन के अलावे लोमता-लोमती को भी पैसा दिय जाता है। अब वर एवं वधु को भोजन दिया जाता है। यदि दुल्हन के पिता ने दोनों को दूध पीने के लिए गाय देने का वचन दिया है तो दुल्हा सामने परोसा खाना  नहीं खाता है, चुपचाप बैठे रहता है। दुल्हन का पिता इसपर उससे कहता है कि जावांय मैं अपना वचन पूरा कर्रूंगा, तुम खाना खा लो। अब रुठा दुल्हा मान जाता है एवं भोजन करना प्रारंभ करता है। ससुर विदाई देने के समय एक गाय भेज देते हैं।

दुल्हें की सास एवं तीन-चार महिलाएं पहले की तरह दौउरा, सगुन कलसी (कलश), दीपक लेकर उस खूंटा के चारों ओर तीन या पांच चक्कर नाचते हुए घूमती है इसके साथ-साथ गांव की अन्य औरतें भी खूब जोर-जोर नाचती हैं, नाचते हुए घर के अन्दर ले जाती है और जितनी औरते घर के अन्दर प्रवेश करती हैं सबको पोचोय दिया जाता है बाकि महिलाएं मण्जप के नीचे ही नाचती है। गांव के अन्य अतिथियों को भी बीच-बीच में पोचोय दिया जाता है। अब बारात के लोग भी वहां से उठ जाते हैं।

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बारात विदाई:

बारातियों के विदाई के पूर्व बाराती और सराती के बीच डोवोक् जोहार (आपस में प्रणाम) होता है। अब बारात के लोग वहां से प्रस्थान करते हैं लेकिन दुल्हा, दुल्हन, दुल्हन के पिता तथा अन्य दो व्यक्ति दुल्हा के यहां ही रह जाते हैं। बाद में दुल्हन के साथ उसके भाई-बहन, आजी (बूढ़ी गो), बाबा (हड़ाम बा), आदि भी उसके ससुराल जाते हैं। दुल्हे की आजी (बूढ़ी गो) को लोमती बूढ़ी कहते हैं।

ये लोग दुल्हे के गांव पहुंचकर सीधे घर में प्रवेश नहीं करते हैं बल्कि गांव के चौराहे पर ही पड़ाव डालते हैं। इन सभी के आगमन की सूचना रायवारीच द्वारा दुल्हे के घर तथा गांव के प्रमुख लोगों के यहां किया जाता है, जिससे ये सभी दुल्हा-दुल्हन तथा लोमती बारात का स्वागत करने आये। इसी चौराहे पर लोमती बारात को खाना खिलाया जाता है। इस रस्म को संताली भाषा में ""घुरेड़ी जनावड़ी'' कहते हैं।

अब दुल्हें की माँ, चाची, मौसी घड़े में पानी, लोटा, थाली, तेल, हल्दी, गुड़ आदि लेकर चौराहे पर प्रसन्न हृदय से स्वागत के लिए पधारती है। पहले दुल्हे की माँ दुल्हे का पैर थाली में रखकर धोती है। चटाई पर अपने गोद में दुल्हे को बैठाकर तेल लगातकर उसके बालों की कंघी करती है, मुंह में गुड़ खिलाती है और स्न्हप्रेम करती है। ऐसा माना जाता है कि इस र के बाद दुल्हा का बचपना समाप्त हुआ तथा वह जवान हो गया। अब वह माँ की गोद में बैठकर प्यार, दुलार करने वाला नहीं रहा। दुल्हन के साथ भी यही प्रक्रिया दुहरायी जाती है। दुल्हे की चाची, मौसी भी बारी-बारी से दोनों का पैर धोकर तेल लगाकर कंघी करती है एवं अपना स्नेह प्रदर्शित करती है। बदले में नव-दम्पति तीनों को प्रणाम करते हैं एवं उनका आर्शीवाद प्राप्त करते हैं।

इसी र के बीच गांव वाले पुरुष ढ़ोल, मांदर, नगारा आदि की थाप पर जमकर नृत्य करते हैं। अब दुल्हा-दुल्हन तथा लोमती बारात के साथ आगे-आगे गांव में प्रवेश करते हैं तता प्रत्येक घर से वर-वधु गुड़ खाने का र पूरा करते हैं। गांव के प्रत्येक घर में इनका स्वागत होता है। अन्तत: वर-वधु एवं लोमती बारात दुल्हा के दरवाजे पर लाये जाते हैं।

यहां इनका परम्परागत रीति से स्वागत किया जाता है, जिसे संताली में पूड़छवआदेर कहते हैं। वर की माँ, चाची, मौसी द्वारा क्रमश: दुल्हा-दुल्हन को पैर धोकर, तेल लगाकर गुड़ खिलाया जाता है। माँ, मौसी चाची द्वारा चुमावड़ा होने के उपरान्त वर-वधु को घर के भीतर लाया जाता है। लोमती बारेत अभी घर के अन्दर प्रवेश नहीं करते। उनसे हास-परिहास चलते रहता है। गांव के चार-पांच नौजवानों द्वारा एक ओखली पर लोमती बारेत पुरुषों का पैर रखकर पानी से पैर धोया जाता है। लोमती बारेत की महिलाओं का गांव की लड़कियों द्वारा पीढ़ी पर पैर रखवाकर पानी से धोया जाता है। यहां हास-परिहास का विलक्ष्ण माहौल देखने को मिलता है।

अब वर-वधु, लोमती बारेत आदि को मण्डप के नीचे बैठाया जाता है तथा दोवोक् जोहर किया जाता है। गांव के प्रधान एवं प्रमुख व्यक्ति लोमती बारेत केलोगों का हाल-चाल या कुशल-क्षेम भी पूछते हैं। यहां भी एक बकरी के बच्चे (खस्सी) की बलि दी जाती है। पर का पिता जोगमांझी के माध्यम से एक खस्सी लोमती बारेत को काटने के लिए देताहै। खस्सी काटने का कार्य लोमती बारेत ही करते हैं।

अब गोड़ी चुमावड़ा की र को यहां भी पूरा किया जाता है। इसके पश्चात मदिरा एवं भोज का आयोजन होता है।

फिर तेन्दार आक्सार की र सम्पन्न होता है। इसका अर्थ है दुल्हन का भाई दुल्हन के ससुर से भेंट पाने का अधिकारी है क्योंकि वह अपनी बहन की देखभाल करता है। यहां दुल्हन का ससुर गांव वालों के साथ दुल्हन के भाई को बैल, गाय तथा उसे जो सामान भेंट में देना है, दिखाता है। यदि दिखाया गया जानवर या वस्तु दुल्हे के पिता द्वारा नहीं दी जाती है या बाद में देने के लिए वायदा किया जाता है, या उसके बदले दूसार सामान, रुपया देने का वायदा करता है तो इस प्रथा को दारि दिखाना कहते हैं, जिसका अर्त है वृक्ष दिखा पर तेन्दार आक्सार दुल्हन के भाई को चुकाता है है।

अब लोमती बारेत तथा गांव के मुख्य लोग भोजन और हड़िया (मदिरा) का लुत्फ लेते हैं।

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अबूक जंगा:

इस र में वधु को बाबड़े एरा (दुल्हे की बड़ी बहन) गली में लेकर आती है। यहां वधु अपने सास-ससुर, चाचा-चाची के पैर धोती है, तेल लगाती है। फिर वधु द्वारा वर के सभी भाई-बहनों के पैर धोकर तेल लगाया जाता है। यहां भी हास-परिहास का अद्भूत माहौल बन जाता है। बाबड़े एरा वधु का परिचय वर के सभी भाई-बहनों से करवाती है, जिससे दुल्हन यह जान ले कि कौन उसका देवर, जेठ, ननद आदि है। यहां जेठ द्वारा दुल्हन को मँहगी भेंट दी जाती है।

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विदाई जोहारः

इस प्रथा को दो प्रकार से किया जाता है। पहला लोमती बारेत (दुल्हन पक्ष के लोग ही अपने गांव जाते हैं तथा दो या तीन दिन के बाद दुल्हा-दुल्हन भी रायवारीच के साथ दुल्हन के घर पधारते हैं। दूसरा लोमती बारेत , वर-वधु तथा रायवारीच सभी का विदाई एक ही साथ होता है। यहां दुल्हा अपने साथ चूड़ा, मुढ़ी, विशेष रुप से ससुराल ले जाता है। ससुराल में मण्डवा ओतोर अर्थात् मण्डप उठाने की प्रथा सम्पन्न होती है। दुल्हा द्वारा लाये गये चूड़ा और मुढ़ी गांव के सभी लोगों को दिया जाता है। वर का परिचय ससुराल के सभी लोगों से करवाया जाता है।

एक या दो दिन के बाद वर-वधु को रायवारीच द्वारा अपने घर के लिए विदाई करवायी जाती है। दुल्हन का पिता चूड़ा-मुढ़ी आदि भेंट में देता है। वर-वधु अपने घर पहुंचते हैं। अब रायवारीच (घटकदार) का कार्य समाप्त होता है तथा उसे उचित पारिश्रमिक भी दिया जाता है। यहां भी दुल्हा दुल्हन का परिचय सभी से करवाया जाता है। ससुराल में तीन दिन पूरा होते ही दुल्हन का भाई अपने बहन को लेने के लिए आ जाता है और इस तरह दुल्हन अपने मायके चली जाती है।

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दाँ घाट किरिनः

इसका मतलब दुल्हन के लिए पानी का घाट घरीदना है। चूंकि दुल्हन ते पिया के घर, गांव, गलियों से अनजान है, लेकिन उसे भोजन बनाना है। भोजन बनाने के लिए पानी लाना होगा और पानी लाने के लिए झरना, कुंआ जाना होगा। यहां दुल्हन गांव की तीन या पांच लड़कियों के साथ घड़ा लेकर झरना या कुंआ पर पानी भरने जाती है। वे अपने साथ पत्ते में सिन्दूर और काजल ले जाती है तथा झरना या कुंआ से पानी निकालने के पूर्व तीन बार सिन्दूर और काजल वहां लगाती है। अब दुल्हन को आजादी है कि वह जब चाहे, जहां से चाहे पानी भर ले। क्योंकि उसने पानी भरने के लिए पानी का घाट खरीद लिया है।

 

 

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