हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 139


IV/ A-2137

डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी
ऐतिहासिक हिंदी व्याकरण कार्यालय
निदेशक
संस्कृत महाविद्यालय
काशी हिंदू विश्वविद्यालय
२६ जून, ७१

आदरणीय पंडित जी,
सादर प्रणाम!

आपका कृपापत्र मिला। आगरा जाने में कुछ थोड़ा व्यवधान है। अगर आया तो एक बड़ा लाभ यह होगा कि आपके दर्शन जल्दी-जल्दी होते रहेंगे। विद्यापीठ में आपको चाय नहीं मिली इसके लिए दु:ख है। किसी पुरातन पुण्य के प्रभाव से आगरा आया तो आपको चाय की कमी नही रहेगी। "आगरा " तो आग से ही शुरु होता है इसलिए चाय बनाने में कोई बड़ी कठिनाई नहीं होगी। आप थीसिस के लिए पकड़े गए हैं यह बड़ा उत्तम हुआ है। आपकी जो सेवायें हैं उसे इस बहाने कोई संग्रह कर ले जो बड़ा भारी काम होगा। मैं कह नहीं सकता कि जिसने यह थीसिस लिखने का संकल्प किया है वह आपके व्यक्तित्व को कितना उजागर कर सकेगा। परन्तु कुछ नहीं होने की अपेक्षा कुछ होना अच्छा ही होता है। बंगला की कहावत तो आपको याद ही होगी-
ना-पासारचेय काना भामा भालो।

कभी आगरा आने का मौका मिला तो मैं शोध-लेखिका की सहायता कर्रूँगा।
शेष कुशल है। आशा है स्वस्थ और सानंद हैं।

आपका
हजारी प्रसाद द्विवेदी

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली