हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 135


IV/ A-2132

वाराणसी
१७ जुलाई, ६९

आदरणीय पंडित जी,

आपका कृपापत्र मिला। मुझे सूचना मिली थी कि आप अस्पताल में चिकित्सा करा रहे हैं। मुझे आपके क्षीण होने से बड़ी चिन्ता हुई है। परन्तु मुझे विश्वास है कि डा. राजदान जैसे उच्च कोटि के सर्जन की देखरेख में बहुत शीघ्र ही निरोग हो जायेंगे। आपने संपूर्ण जीवन में लुटाया ही है, संग्रह कुछ नहीं किया। यह आपकी महानता है।

"रिक्तोसी यत् जलद सैव तवान्तमीश्री:"
""हे बादल तुमने अपने को नि:शेष भाव से उड़ेलकर जो खुलकर दिया है वही तुम्हारी सबसे बड़ी शोभा है। ""

आपके संगृहीत पत्र बहुत बड़ी संपत्ति हैं और उनका सदुपयोग अवश्य ही होना चाहिए। आपके मन में कई योजना हो तो उसे लिखकर भेजें। हम यथाशक्ति प्रयत्न करेंगे कि आपकी इच्छा के अनुसार उनका सदुपयोग हो।

आशा करता हूँ कि आप शीघ्र ही स्वस्थ हो जायेंगे और हम लोग इस विषय पर विचार-विमर्श कर सकेंगे। इस समय तो आपके स्वास्थ्य-लाभ की चिन्ता ही अधिक है। परमात्मा आपको स्वस्थ करें हमारी उनसे निरंतर यही प्रार्थना है। हम लोग सकुशल हैं। श्रीमति द्विवेदी आपको प्रणाम कहती हैं और प्रार्थना करती हैं कि आप जल्दी ही स्वस्थ हो जायँ और एक बार उनके घर को फिर पवित्र कर जाँय!

आपका
हजारी प्रसाद द्विवेदी

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली