हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 127


IV/ A-2124

DR.HAZARI PRASAD DWIVEDI, D. LITT.
Prof. and Head of the Deptt. of Hindi,
Dean of University Instruction
Hon. Director, Gandhi Bhawan
Punjab University
Chandigarh

27.9.63

आदरणीय पंडित जी,
प्रणाम!

आपका कृपापत्र मिला है। "साहित्यिक और राजनीति-विषयक" आपका लेख पढ़ने को उत्सुक हूँ। सुना है, इधर दिल्ली के बूढ़े साहित्यकार अब अन्तर्जातिय विवाहों का पौरोहित्य करने लगे हैं। बुढ़ापे का यह लक्षण आप पर भी असर कर गया है, यह जानकर तसल्ली हुई। तसल्ली, इसलिये कि इससे भविष्य में आशंकित घटनाओं के लगभग घट जाने के खतरे से राहत मिली है। बहराल, कालिदास का श्लोक याद आ गया है और औतसुक्य बढ़ गया है। पार्वती शिव को वर रुप में प्राप्त करने का प्रयत्न कर रही थी (जैसा कि राजनीति सदा साहित्यकों को वर रुप में प्राप्त करने का प्रयत्न किया करती है और कभी कभी पा भी लेती है) शिवजी ब्रह्ममचारी का भेष बनाकर परीक्षा लेने गए। जब उन्होंने सुना कि पार्वती सचमुच ही बंम भोलानाथ को वरना चाहती है तो ठठाकर ङ्ँस पड़े। बोले, मज़ा आ जाएगा उस दिन जिस दिन सचमुच ऐसी मजेदार घटना घट जाएगी। कहीं सचमुच ऐसा सुयोग घट जाय जब कि वधू की कलहंस कढ़ी चादर का वर के टपकते-खून-वाले हाथी-के-चमड़े की चादर से गठबंधन हो जाय तो क्या कहना।

कदाचिदेते यदि योगमर्हतः
वधुदुकूलं कलहंसलांछितं गजाजिनं शोणित बिंदुवर्षिच।

सो, आप भी यही करने जा रहे हैं। मगर पार्वती और शिव का गठबंधन हो के रहा। कालिदास गवाह हैं कि उससे संसार का भला ही हुआ।

आपका पौरोहित्य सफल हो।

चकितोत्सुक
हजारी प्रसाद

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली