हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 56


IV/ A-2055

विश्वभारती पत्रिका

साहित्य और संस्कृति सम्बन्धी

हिन्दी त्रैमासिक

हिन्दी भवन

शान्ति निकेतन,बंगाल

22.10.42

श्रध्देय पंडित जी,

                      सादर प्रणाम!

       श्री यशपालजी के पत्र से मालूम हुआ कि आप और आपके अन्य साथी मलेरिया से आक्रान्त हैं। इधर भी कुछ ऐसी ही हवा है। मैं भी इस हवा का शिकार बन गया था। शरीर कुछम्लान हो गया है। वैसे कोई विशेष दुर्बलता नहीं है। पर दिमाग जैसे सूना हो गया है। कुछ लिखने-पढ़ने में उत्साह नहीं पा रहा हूँ। रुटीन का काम किये जा रहा हूँ। नदियों वाला मेरा लेख, सुना है, आप तक नही पहुँचा। दुबारा फिर लिख रहा हूँ, पर ऐसा ही लिखूँगा कि आप उसे अपने ढ़ग से व्यवहार कर सकें-अर्थात् मसाला ही इकट्ठा करके भेज दूँगा। दो-एक दिन में आपको मिल जायेगा। इधर और सब समाचार ठीक है। एक बड़ा भयंकर तूफान (साईक्लोन) तीन-चार दिन पहले यहाँ आया था। उसने आश्रम के पेड़ो को बुरी तरह मसल डाला है। महार्षि के युग के सभी पेड़ गए हैं। छातिम चले अब भी खड़े हैं, पर उनके पास का विशाल वट वृक्ष गिर गया है। कई मकान भी गिर गये हैं। साईक्लोन लगभग चौदह घंटे तक समान वेग से चलता रहा। उस दिन ९ इंच पानी भी बरसा। मेरी छोटी-सी पुदीने वाली बगीची भी बुरी तरह नष्ट हो गई है। आशा करता हूँ, यह तूफान उस तरफ नहीं पहुँचा होगा।

       आपका स्वास्थ्य अब कैसा है? कुनाइन थोड़ा-थोड़ा ज़रुर लेते रहिए। अगर कुनाइन का इन्जेक्शन ले लें तो और भी अच्छा हो।

       साहित्यिक गोष्ठी वाला आपका लेख पढ़ा है। निस्संदेह साहित्यिक स्फूर्ति के लिये ऐसी गोष्ठियों का होना आवश्यक है। आपके लेख पढ़ने के बाद मुझे दो प्रकार की काव्य-गोष्ठियों का स्मरण हुआ। वात्स्यायन की बातई हुई और राज शेखर की बताई हुई। दूसरी विशुद्ध साहित्यिक है। कभी विस्तृत रुप से इनका विवरण आपके पास भेजूँगा। आपको रुचेगा।

आपका

हजारी प्रसाद  

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली