हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 24


IV/ A-2022

शान्तिनिकेतन

11.8.38

श्रध्देय चतुर्वेदी जी,

प्रणाम!

       मैं कल यहाँ सानन्द पहुँच गया। ग्वालियर में मैंने अपना व्याख्यान थोड़ा-सा ही कर पाया। लेकिन दूसरे दिन विक्टोरिया कालेज में विद्यार्थियों के सामने भाषण दिया। इसका विषय भी रवीन्द्रनाथ और शान्तिनिकेतन है। यह व्याख्यान काफी सफल था। मैं ७० मिनट बोलता रहा, पर कोई ऊबा नहीं। आगरे में नागरी प्रचारिणी सभा में मैं मंगलवार के दिन सभापति था। सौभाग्यवश मुझे थोड़ा ही बोलना पड़ा। नहीं तो उतनी बड़ी सभा को मैं देर तक संभाल सकता कि नहीं, मालूम नहीं। श्री महेन्द्र जी बड़े उत्साही और सज्जन हैं। श्री गुलाब राय जी मुझे बहुत सौम्य और सत्पुरुष मालूम हुए। पं. हरिशंकर शर्मा जी तो सौजन्य की मूर्ति ही हैं। आपको दोनों पुत्रों के सौजन्य से मैं बहुत मुग्ध हुआ। चौबे होस्टल में और भी कई मित्रों ने मेरी बड़ी खातिर की। गुपलेश जी की बातें तो मैंने बड़े चाव से सुनीं। हम लोग उस रात को खूब हँसे। चौबे लोगों के रक्त में शायद हँसी के कीटाणु ही घुस पड़ा है।

       टीकमगढ़ के मित्रों से - श्री द्विवेदी जी, जैन जी तथा अन्य सज्जनों से मेरा प्रणाम कहिये। उनकी कृपाओं को मैं कभी भूल नहीं सकता। श्री इन्द्रायण सिंह जी का मैं अत्यन्त कृतज्ञ हूँ। दुर्भाग्यवश समयाभाव के कारण मैं बनारस नहीं उतर सका। इसलिए उनके लड़के से मिल नहीं सका। उनसे मेरी ओर से क्षमा माँग लीजिये। महाराज साहब की उदारता और सज्जनता का मेरे ऊपर विशेष प्रभाव पड़ा है। शेष फिर।

आपका

हजारी प्रसाद

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली