हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 23


IV/ A-2024

शान्तिनिकेतन

30.7.38

पूज्यवरेषु,

            सादर प्रणाम!

       कृपा-पत्र मिला। गुरुदेव के संबंध में लिखी जाने वाली पुस्तक के लिये जो पारिश्रमिक आप लिख रहे हैं, उसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है। आप जैसी चाहिये वैसी शर्ते प्रकाशक को लिख सकते हैं। आप न भी लिखते तो भी पुस्तक की भाषा सुधारने का भार मैं आपको देता। पुस्तक का ख़ाका तैयार करके आपको भेजूँगा। उसमें परामर्श तो आपको देना ही पड़ेगा। असल में जीवन चरित्र लिखने के क्षेत्र में मैं एकदम विद्यार्थी हूँ और अगर आपने स्वयं ही इस कार्य के लिये मेरा नाम सुझाया होता तो मुझे इस क्षेत्र में अग्रसर होने का साहस ही न होता। मैंने शुरु में प्रो. इन्द्र जी को सुझाया था कि कवि की जीवनी का प्रधान प्रतिपादन उसके काव्य की अन्तः प्रेरणा और उसके विकास की व्याख्या ही होनी चाहिये। परन्तु वे पुस्तक lay man योग्य चाहते हैं। इस बात को दृष्टि में रख कर ही परामर्श दीजियेगा।

       मेरी चिट्ठी को आपने इतना महत्त्व दिया, यह पढ़कर मुझे आश्चर्य हुआ। अगर आपको मेरे विचार पसंद हैं, तो मैं उन्हें लेखबद्ध कर सकता हूँ। उस चिट्ठी के प्राइवेट अंश को निकाल कर छापने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है, पर छपने को देने के पहले उसे अगर मैं भी देख लूँ तो अच्छा हो वैसे मैं जानता हूँ कि मैं न भी देखूँ तो कोई हर्ज नहीं होगा, क्योंकि आपके हाथ से ऐसे अंश प्रेस में जा ही नहीं सकते जो व्यक्तिगत मामलों से संबंध रखते हों।

       आपका अर्श क्या अब भी कष्ट दे रहा है? सुन कर चिन्ता हो रही है। लौटती डाक से अपने स्वास्थ्य का संवाद दीजियेगा। मलिक जी आपको प्रणाम कहते हैं। पिछली गर्मियों में वे भी इसी रोग से तंग रहे। फिर उनको कुछ हृदय की बीमारी भी रही। क्षिति मोहन बाबू भी आपको प्रणाम कहते हैं। मलिक जी कहते हैं कि उनके घर पर एक ऐसी दवा है, जिससे दो हजार आदमियों का अर्श आराम है। आपकी आज्ञा हो तो भिजवा दें। बिल्कुल harmless . वे स्वयं हृदय दौर्बल्य के कारण व्यवहार नहीं करते।

       हिन्दी भवन बन रहा है। दो महिने में तैयार हो जायेगा। तैयार हो जाने के बाद आप आवें तो कैसा रहे? इस समय गुरुदेव कलकत्ते में हैं। उनके जाने के कारण यह है कि प्रो. मोहलानवीस की पत्नी रानी देवी को टायफायड हो गया है। उन्हें गुरुदेव बहुत प्यार करते हैं। लोगों ने बहुत मना किया पर वे न माने। मन्त्र यह कि जिस दिन जाने का निश्चय किया, उस दिन घंटेभर पहले तक रथी बाबू को भी मालूम नहीं होने पाया कि वे जा रहे हैं!

       गुरुदेव के बारे में जो बातें आप चाह रहे हैं, उन्हें बाद में भेजूँगा।

       पूजा की छुट्टियों में आने की इच्छा तो है, पर समय निकाल सकूँगा या नहीं, यह नहीं कह सकता। असल में आजकल तो क्लास करने से ही फुरसत नहीं मिलती। जिस पुस्तक के लिखने की बात हो रही है, वह छुट्टियों में ही लिखी जा सकती है। बाहर जाने पर उपयुक्त सामग्री नहीं मिल सकेगी।

       आप क्या सचमुच हैजे के डर से फीरोजाबाद आये हुए हैं? मैंने तो समझा था कि भेड़ियों का उपद्रव बढ़ गया है। बरसात में दूर-दूर के भेड़िये जंगल-पहाड़ लांघ कर बस्ती तक आ जाया करते हैं। खैर, यह जान कर आश्वस्त हुआ कि ऐसी कोई बात नहीं है।

       पिताजी को मेरा प्रणाम कहिये। आपके दोनों पुत्र आजकल क्या घर पर हैं?उन्हें मेरा प्रेम कहिये।

       मैं यहाँ सानन्द हूँ। चतुर्वेदी आदि भी अच्छे हैं। हिन्दी समाज की ओर से आगामी मंगलवार को तुलसी जयन्ती धूमधाम से मनाई जा रही है। प्रात:काल तुलसीदास के भजन से ही प्रभातफेरी और वैतालिक गान होंगे। शाम को तुलसीदास के भजन और कविता का पाठ तथा व्याख्यानों का प्रबंध किया गया है। एक दिन के लिये आश्रम में गुरुदेव के स्थान पर तुलसीदास विराजेंगे।

आपका

हजारी प्रसाद द्विवेदी  

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली