एक छायाचित्रकार की नज़र में - रबारी

कच्छ का एक पशुचारी समुदाय

७ सितम्बर १९९२ - १३ सितम्बर १९९३

समिति कक्ष, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र

Photographs of Rabaris of Kutch

छायाचित्रण को एक कलारुप मानते हुए और साथ ही इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आई.जी.एन.सी.ए.) के बहु-आयामी क्रियाकलापों में छायाचित्रण माध्यम का प्रयोग किए जाने के फलस्वरुप केन्द्र ने भारत में छायाचित्रण की उन्नति में गंभीर रुचि विकसित की है। राजा दीन दयाल और कार्टियर ब्रेसन के भारत के छायाचित्रों सहित छायाचित्रों के अनेक महत्त्वपूर्ण संग्रह प्राप्त किए गए हैं और उन्हें 'एक छायाचित्रकार की न में' नामक प्रदर्शनी की एक श्रृंखला में प्रदर्शित किए जाने का विचार है।

कच्छ की रबारियों के छायाचित्र, जो कि मौजूदा प्रदर्शनी का विषय है आई.जी.एन.सी.ए. के जनपद सम्पदा प्रभाग के कार्यक्रम से सम्बद्ध हैं; यह प्रभाग भारत में विशिष्ट समुदायों का अध्ययन करता है जिसमें कि समाजिक जीवनशैली और विश्वास प्रणालियों के साथ उनकी कला और सृजनात्मकता के परस्पर सम्बन्धों की जांच की जा सके। जीवनशैली कला की विभिन्न अभिव्यक्तियों के लिए मूलतत्त्व होता है और एक ऐसी मूल प्रेरणा होती है जिसमें सभी कलाएं जन्म लेती हैं, जीवन पाती हैं और अन्तत: अपनी पूर्णता को प्राप्त होती हैं। अत: जीवन शैली अध्ययनों को आई.जी.एन.सी.ए. के शैक्षिक कार्यक्रमों में तर्कोचित प्राथमिकता प्राप्त हुई।

आर्थिक विकास और औद्योगीकरण के फलस्वरुप सांस्कृतिक जीवन शैली की तेज़ी से बदलती हुई गति के चलते इससे पूर्व कि समुदायों की विशिष्ट पहचान लुप्त हो जाए जैसा कि विश्व के कई भागों में पहले ही हो चुका है, उनकी कलात्मक अभिव्यक्तियों का तत्काल प्रलेखन किया जाना ज़रुरी है। एक संवेदनशील छायाचित्रण एक खुली आंख तथा सहानुभूतिपूर्ण हृदय के बल पर कई समुदायों के चरित्र की क्षमता, अटूट निष्ठा, खुशी और गम, रंग और कौशलों को कैमरे में कैद कर सकता है। डॉ. फ्रान्सेसको जी. ओराजी फ्लैवोनी नामक एक वरिष्ठ इताल्वी राजनयिक ने नौ वर्षों तक कच्छ के रबारियों का छायाचित्रण करके यही काम किया था। रबारी सामान्यत: चार समूहों में विभाजित होते हैं जिनका आधार भौगोलिक है : कच्छ, सौराष्ट्र, उत्तरी गुजरात और राजस्थान के रबारी। फ्लैवोनी के छायाचित्र कच्छ के रबारियों से सम्बन्धित हैं। इनके तीन उप-समूह हैं : प्रायद्वीप के पश्चिमी भाग और भुज शहर के निकटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले कच्छी, अंजार और माण्डवी शहरों के इर्द-गिर्द रहने वाले 'ढ़ेबरिया' तथा वगाड़ और रपार ताल्लुकों में मौजूद "वगाडिया'।

छायाचित्र रबारियों के जीवन की गरिमा और उनकी संस्कृति को परिलक्षित करते हैं। फ्लैवोनी द्वारा लिए गए इन हट्टे-कट्टे और उद्यमशील घुमन्तुओं के छायाचित्र, लोगों की मात्र चेष्टाओं और संवेगों को ही नहीं बल्कि उनकी वास्तविक अन्तरात्मा को कैद करने की छायाचित्रण की विशाल क्षमता का परिचय देते हैं। बच्चों के रुप में रबारी कृशकाय, व्यवहार में उत्तम होते हैं, गहरी सुनिर्मित स्थिर आंखों से युक्त, जिनका रंग हरा या नीला होता है उनके अण्डाकार चेहरे अनूठे ढंग से अपनी बात कहते प्रतीत होते हैं। इन लोगों में मोटापा विरल रुप में मिलता है। इनकी मुस्कान अत्यन्त जीवन्त होती है हालांकि जिस धरती पर ये रहते हैं, वह कठोर है। इनके चेहरों का आकृति विज्ञान, यौवन की ताज़गी और बल और बड़ी आयु के चेहरों पर तनावविहीन झुर्रियां उनके उस आन्तरिक सामंजस्य को दर्शाते हैं जो कि सम्पूर्ण जीवन की एक सौगात है।

Photographs of Rabaris of Kutch

Photographs of Rabaris of Kutch

रबारी लोग प्रकृति से जिन्दादिल होते हैं और उनके परिधान स्पेक्ट्रम का पूरा वैविध्य दर्शाते हैं। उनकी सौन्दर्यपरक वरीयता का स्तर ही उन्हें अनूठा, अलग और असाधारण बनाता है। उनकी विशिष्ट कलाएं अपने आपको गारे की बनी झोपड़ियों, कांच के काम की किस्मों तथा अत्यन्त खूबसूरती से कढ़ाई किए हुए डिजाइनों में व्यक्त करती है। लाल और काले, बैंगनी और गुलाबी रंग के चुनाव, लड़ीवार टांकों से बनाए गए फूलों के ज्यामितीय और आड़े डिजाइन में उनका सौन्दर्यबोध व्यापक रुप से परिलक्षित होता है। चांदी और सोने के आभूषणों को धारण करके उनका आकर्षक शरीर और भी खिल उठता है। पुरुष भी विशेष रुप से अर्धशंकु आकार का तथा काफी भारी तोलिया नामक कर्णफूल पहनते हैं।

रबारियों को अन्य समुदायों से अलग करने वाली सभी विशेषताओं में सर्वाधिक ध्यातव्य विशेषता उनके परिधानों की होती है-जहां एक ओर महिलाओं के गहरे लाल रंग के शाल होते हैं वहां दूसरी ओर पुरुषों की एकदम सफेद पोशाक होती है।

खुशी के मौकों पर पगड़ी सहित पुरुषों की पूरी पोशाक कढ़ाई की हुई होती है हालांकि उनका स्वरुप और पृष्ठभूमि रंग (सफेद) अपरिवर्तित रहता है। महिलाओं के परिधानों की एक अनूठी विशेषता यह होती है कि जहां युवा महिलाएं मूलत: सफेद रंग का लम्बा ऊनी शाल पहनती हैं वहां बड़ी आयु की महिलाएं गहरे भूरे अथवा काले रंग का लम्बा ऊनी शाल पहने होती हैं। विवाह-योग्य अथवा नवविवाहित युवा महिलाओं का शाल 'बांधनू' विधि से बनाए गए गहरे लाल रंग के वृत्ताकार डिजाइनों से सजा होता है। विधवा का शाल एकदम काले रंग का होता है।

Photographs of Rabaris of KutchPhotographs of Rabaris of Kutch

रबारी गांव की अच्छी देखभाल की जाती है और वे साफ-सुथरे होते हैं; झोंपड़ियां अन्दर से बहुत ही साफ और करीने से सजी होती हैं। कठिन भौतिक वातावरण के चलते रबारियों का जीवन सादा रहता है और वे केवल अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति तक ही सीमित रहते हैं जिनमें उनकी सौन्दर्यपरक आवश्यकताएं शामिल होती हैं। तथापि उनका जीवन सदैव सम्मानयुक्त रहता है। कभी भी ऐसा प्रतीत नहीं होता रबारी समुदाय का व्यक्ति गरीबी से आक्रान्त है या उसका नैतिक अथवा मौलिक पतन हुआ है। रबारी संज्ञानात्मक प्रणाली में पुरुष, पशु और प्रकृति को एक इकाई के रुप में देख जाता है।

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पशु, विशेष रुप से रबारी परिवार के अविभाज्य अंग होते हैं। वन, पर्वत तथा मरुस्थल के कारण उनके जीवन में कोई अन्तर नहीं आता। इसके विपरीत उनके सौन्दर्यपरक बोध, कलात्मक अभिव्यक्ति और आनुष्ठानिक कार्यों में प्रकृति उन्हें संगठित करती है।


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