देवनारायण फड़ परम्परा  Devnarayan Phad Tradition

पाँचों भाईयों की फौज और रावजी से बदला

रावजी और देवनारायण की गायें


दियाजी और मीरजी दोनों सेना लेकर गुदलिया तालाब पर आते हैं जहां देवनारायण की गायें पानी पीने के लिये आती हैं। वे गायों को पानी भी नहीं पीने देते हैं और उन्हें घेर कर अपने साथ ले जाने लगते हैं तभी नापाजी सामने आ जाते हैं और विनती करते हैं दियाजी आप हिंदू हो और हिंदू धर्म की लाज राखों। गायों को पानी पीने दो और फिर आप घेर कर अपने साथ ले जाये। मीर जी गायों को बिना पानी पिये ही ले जाने को कहते हैं कि गायें पानी पीने के बाद अपने हाथ नहीं आयेगी, इनको तो अभी ले चलों।

फिर नापाजी विनती करते हैं गायें प्यासी हैं और राण तक नहीं जा पायेगी, रास्ते में ही प्यास से मर जायेगी। और दियाजी नापा की बात सुनकर गायों को पानी पीने देते हैं और कहते हैं कि आप सभी घोड़े से नीचे उतर जाओ तब तक गायें पानी पीती हैं।

दियाजी घोड़े से नीये उतर कर अपना तीर कमान नीचे रखते हैं और नापा तीर कमान उठा लेता हैं और दियाजी को निशाना बना कर कहता है कि आप के माथे का टोप हमारे को दे दो। हम आपको जाने देते हैं। तब तक आसपास के सारे ग्वाले वहां आ जाते हैं। नापाजी सभी ग्वालों को आदेश देते हैं कि पहले इनके सारे घोड़े मार दो।

ग्वाले नापाजी की बात सुनकर लड़ाई करने के लिये तैयार हो जाते हैं और आसपास के मंगरे पर चढ़कर तीर चलाते हैं। सारी सेना के घोड़ो को मार गिराते हैं और अपनी गायों को लेकर वापस गोठां में आ जाते हैं।

दियाजी और मीर जी अपने-अपने घोड़ो की जीन्द अपने सिरों पर लाद कर वापस रावजी के पास आते हैं।

रावजी समझ जाते हैं कि इन्होंने घोड़ो को खो दिया है और सरदारों को कहते हैं घोड़ो को मरवा दिया और आप लोग खाली हाथ वापस कैसे आ गये ? एक भील बोल देता है कि हमने तो घोड़े ही गंवाये हैं आपने तो अपनी रानी ही गंवा दी थी। ये बात सुनकर रावजी को गुस्सा आ जाता है और एक लाख फौजों और सभी मीर और उमरावों को साथ लेकर गोठां की ओर चल पड़ते हैं और हियाला का खाल में आकर फौजो को रोकते हैं।

दूसरे दिन सुबह जब नापाजी सो कर उठते हैं तो सोचते हैं कि आज तो जंगल में रावजी की सेना आयेगी और गायों को ले जायेगी। अगर हमें भी मार दिया तो। यह सोचकर नापाजी गऊशाला के दरवाजे पर आकर बैठ जाते है। इतने में भूणाजी आते हैं और कहते हैं दादा नापाजी आज सूरज सिर पर चढ़ आया है। गायों को अभी नहीं हांका। गायों को उछेरो फिर थोड़ी देर बाद सभी भाई आते हैं और कहते हैं कि आज तो काफी दिन उग आया है। गायों को चराने नहीं गये दादा नापाजी। देवनारायण तो सारे अन्तकरण की जानते हैं। उन्हें पता चल जाता है कि रावजी सेना लेकर खाल में डेरा डाले हुए हैं। वो आकर नापाजी से कहते हैं दादा नापाजी आज गायों को नहीं उछेरी क्या बात है ? नापाजी कहते हैं आज गायें उछर ही नहीं रही हैं, मैं क्या कर्रूं ?

देवनारायण सुराह माता गाय के पास जाकर कहते हैं माता उछरो और राता कोट में जा घुसो। यदि आप नही उछरोगे तो हम हमारे बाबा का बैर कैसे लेगें ?ंगा। देवनारायण गायों से विनती करते हैं और कहते हैं, गऊ माता उछरो और राताकोट में जाओ। मैं आपके पीछे-पीछे ही आ रहा हूं। मैं अपने बाप-दादा का बैर लेकर वापस आपको छुड़ा ला गायें वापस देवजी से कहती है कि आप बालक हो देव। आप यदि भूल गये तो हम तो राताकोट में ही रह जायेगी। वहां का तो हमें पानी भी नहीं लगेगा। गायें फिर कहती हैं, आपको याद नहीं रहेगा। आप तो भाटजी से कहो वो ही उछेरेगें। ताकि उन्हें याद रहेगा और वो आपको याद दिला कर हमें लाने की कहेगें।

देवनारायण भाटजी से कहते हैं भाटजी बदरावणी गाओ। आप उछेरोगे तभी गायें जंगल में चरने जायेगी। और भाटजी बदरावणी गाता है, साथ में ढोल भी बजाता है। तब गायें जंगल में चरने जाती हैं। साथ में १४४४ ग्वालें और नापाजी गुदलिया पर आते हैं।

ग्वाले और नापाजी गुदलिया तालाब पर आकर देखते हैं कि रावजी की फौजे खड़ी हुई हैं। सारी गायों और ग्वालों को रावजी के सैनिक घेर लेते हैं। गायों को सेना के साथ घेर कर मीरजी कहते हैं कि रावजी गायों को तो घेर कर ले चलते हैं, ग्वालो को ले जाकर बेकार में क्या खिलायेगें ? इनको यहीं छोड़ देते हैं।

दियाजी कहते हैं सरकार बाकि ग्वालों को तो आप छोड़ दो, लेकिन नापा को जरुर सजा देगें। रावजी पूछते हैं कि कौन है नापा, सामने आये। इतने में गरड़ डांग कहता है ये रहे नापा जी और नापाजी को सामने कर देता है। नापाजी और रावजी के संवाद होता है। नापा कहता है रावजी इतनी सारी सेना लेकर गायों को घेरने आये थे क्या इनके मालिक लोगों को जानते हो ? ग्वाले कहते है नापाजी आदेश करो, अभी इनकी सेना को पीछे हटा देगें। नापाजी ग्वालों को आदेश देते हैं। सारे ग्वाले तीर कमान उठाकर सेना पर चलाना शुरु कर देते हैं। नापा के एक ही तीर से रावजी के हाथी के होदे पर लगा छतर कटकर गिर पड़ता हैं। रावजी तो धक-धक धूजने लग जाते हैं। देवनारायण इधर अपने महल में बैठे सोचते हैं कि अगर रावजी और उसकी सेना को ग्वालों ने ही खत्म कर दिया तो हम अपने बाप-दादा का बैर कैसे निकालेगे। देवनारायण अपनी दिव्य दृष्टि ग्वालों पर डालते हैं। अब नापाजी और ग्वालों के तीर कोई भी निशाने पर नहीं लगते, इधर-उधर निकल जाते हैं। ये सब देखकर नापाजी ग्वालों से कहते हैं गायों को छोड़ कर यहां से जान बचा कर भागो।

सारे ग्वाले तो अपनी जान बचाकर वहां से भागकर शिखरानी के मंगरे पर इकट्ठे हो जाते हैं, देखते हैं कि सब आ गये मगर एक ग्वाला न नहीं आ रहा है। उसको रावजी अपने होदे के पीछे बैठकर हाथ में झण्डी देकर गायों को हांक कर ले जाते हैं। और गायों के पीछे-पीछे रावजी की सेना जाती है।

रावजी गायों को राताकोट में लाकर बंद कर देते हैं और युद्ध का मोर्चा बांधना शुरु कर देते हैं। उन्हें पता था कि अब देवनारायण अपनी गायें छुड़ाने जरुर आयेगें। वह राताकोट के चारो ओर तोपें तैनात कर गोला बारुद का ढेर लगवा देते हैं और एक लाख सेना को सुरक्षा के लिये तैनात कर देते हैं।

इधर ग्वाल वापस गांव की ओर लौट आते हैं। ग्वालों को बिना गायों के आते देखकर पीपलदेजी सा माता से कहती है माताजी ग्वाले तो खाली हाथ वापस आ रहे हैं। गायों को तो कोई घेरकर ले गया है। माता साडू देखती है नापाजी और ग्वाले खाली हाथ वापस आ रहे हैं। गायें साथ में नहीं हैं तो साडू माता नापाजी से पूछती है नापाजी गायें कहां गयी है। नापाजी कहते हैं गायों को तो रावजी की फौजें घेर कर ले गई हैं और राताकोट में बंद कर दी है। इतना कह कर नापाजी अपनी गद्दी-आसन सब साडू माता के सामने डाल देते हैं।

ं*

उधर दियाजी रावजी से कहते हैं रावजी देवनारायण तो आपसे डर कर वापस अपने ननीहाल मालवा भाग गये है। आपका आदेश हो तो मैं गोठां जाकर जो माल हाथ लगे लूट कर ला रावजी कहते हैं जाओ।   दियाजी और मीरजी ५०० सैनिको को साथ लेकर गोठां में आते हैं। देवनारायण तो साढे तीन दिनों से नींद में सो रहे होते है पीछे से आकर भाले की चोट से गढ के कांगरे तोड़ देते हैं।

पीपलदेजी सामने आकर कहती है, ऐसे वीर हो तो जब तुम्हारे दांत तोड़े तब बैर लेते। अभी देव सो रहे हैं, सोये हुए शेर को मत जगाओ और मेदूजी और भूणाजी दरबार में बैठे है उनकों खबर हो गयी तो मारे जाओगे। ये बात सुनकर दियाजी वहां से देवनारायण का हाथी अपने साथ लेकर वापस लौट जाते हैं।

 

 
 

पिछला पृष्ठ   ::  अनुक्रम   ::  अगला पृष्ठ