देवनारायण फड़ परम्परा  Devnarayan Phad Tradition

देवनारायण का जन्म एवं मालवा की यात्रा

देवनारायण का अपने भाई भांगी जी से मिलाप 


देवधा से देवनारायण का काफिला आगे चलता है। रास्ते में उन्हें (बनास नदी के किनारे) नागा साधुओं की फौज मिलती है जो आने जाने वाले लोगों से दान मांगते हैं।

आगे-आगे ग्वाले और गायें चल रही हैं और गाड़ियों में काफिले के लोग, सा माता, हीरा दासी, देवनारायण और भैरु काफिले के सबसे पीछे आ रहे हैं।

नागा साधु कहते हैं यहां दान चुकाये बिना नदी के उस पार कोई नहीं जा सकता और सभी नागा साधु अपने अपने चिमटे लेकर रास्ता रोक लेते हैं। देवनारायण के काफिले के ग्वालों और साधुओं के बीच युद्ध शुरु हो जाता है।

इन साधुओं की जमात में भांगी जी भी साधु वेश में होते हैं। हीरा उन्हें पहचान जाती हैं और माता साडू से कहती है माताजी एक साधू की शकल आपकी देवरानी नेतजीु से मिलती है और डीलडौल नियाजी जैसा लगता है।

साडू माता ये बात सुनकर साधुओं के गुरु बाबा रुपनाथ से मिलती है और बाबाजी से बनास नदी के किनारे हो रहे युद्ध को रुकवाने की विनती करती है। बाबा रुपनाथ उनके पूछने पर बताते हैं कि भांगीजी नियाजी और नेतूजी का ही बेटा है। यह सुनकर साडूमाता भांगी जी को उनसे मांग लेती हैं। बाबा रुपनाथ साडू माता को भांगी जी को ले जाने की इजाजत दे देते हैं। साडू माता भांगी जी को बुलाकर उन्हें समझाती हैं कि मैं आपकी बड़ी माताजी हूं। तब तक नारायण वहां आ जाते हैं और सारी बात सुन भांगीजी की हजामत बनवाते हैं, गंगाजल से स्नान करवाते हैं, अपने वस्र पहनाते हैं और उन्हें गले लगाते हैं। बाबा रुपनाथ भांगीजी को साडू माता के साथ जाने की आज्ञा देते हैं।

 

 
 

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