छत्तीसगढ़

Chhattisgarh


छत्तीसगढ़ के जनजाति (रायपुर बिलासपुर क्षेत्रों के)

छत्तीसगढ़ के जनजातियों में परजा जनजाति है जिनके संख्या बहुत ही कम है। अगर हम उड़ीसा और आन्ध्रप्रदेश में इनकी गिनती करेंगे, तो देखेंगे कि उन दोनो राज्यों में उनकी संख्या ज्यादा है।

परजा जनजाति में अनेक गोत्र पाये जाते है जैसे बाघ, बोकरा, गोही, पड़वी, नाग नेताम, कश्चिम आदि। परजा जनजाति के युवक युवतियां खुद अपने जीवन साथी चुनते है उनकी शादी में युवती को युवक के धर में लाया जाता है एवं वहाँ उनकी शादी होती है। दो मंडप बनाये जाते है शादी के लिये परजा जाति के बुजुर्गो हल्दी लगाने और फेरा लगवाने का कार्य करते है।

परजा जनजाती का मानना है कि सूर्य से उनकी उत्पत्ति हुई थी। उनके प्रमुख देवतायें देवियाँ है - बुढ़ा देव, ठाकुर देव, बुढ़ी माई, दन्तेश्वरी माई।

परजा जनजाति के सभी जन नृत्य में कुशल है एवं संगीत इनके रग रग में बसे हुये है। प्रमुख लोक नृत्यों में है कैकसार, परजी।

भैना जनजाति के लोग किसी समय रायपुर के फूलमार जमींदारी में थे। बाद में इनको हराकर इनकी जमींदारी छीन ली थी कंवर और गोंड जनजाति के लोग।

भैना लोगों के आजीविका का साधन था शिकार एवं जंगली कंद मूल इकट्ठे करना।

इनमे अनेक गोत्रों पाये जाते है जैसे नाग, चितवा, बधवा, गिधवा, बेसरा, बेन्दरा, भोधा, मिरचा, बतरिया, दुर्गचिया, मनका, अटेरा, धोबिया आदि।

इनके देवी देवता में है बुढादेव, ठाकुर देव, गोरइंया देव भैसासुर, शीतलमाता।

इनके प्रमुख त्यौहारों में से है दशहरा, दिवाली, होली, कर्मा पुजा नवाखानी।

भैना जनजाति में सभी महिलायें एवं पुरुष लोकगीतों एवं लाकनृत्यों में पारदर्शी है। लोकगीतों जैसे कर्मा, बिहाव, ददरिया, सुआगीत एवं लोकनृत्यों जैसे कर्मा, रीना, बार नृत्य।

विवाह प्रथा में वरपक्ष वधुपक्ष को चावल, दाल, तेल, गुड़, मंद और कुछ नगद रकम देते है। भौना जनजाति में जो विवाही उपजातियाँ पाई जाती है वे है उड़िया लरिया, छलयारा, धटियारा।

बैगा जनजाति के आजीविका का प्रमुख साधन है शिकार करना एवं वन के कंदमूल इत्यादि इकट्ठे करना एवं बेचना। कंदमूल के अलावा तेन्दूपत्ता, गोंद, लाख, शहद, भेलवा, तीखुर इत्यादि इकट्ठे करते है बेचने के लिए छोटे पशु पक्षियों का शिकार करते है आजीविका के लिये, इनके प्रमुख गोत्रों में से है - मरकाम, परतेती, तेकाम, नेताम, धुर्वे, भलावी। शादियों में बहु पक्ष को चावल, दाल, लकड़ी, तेल, गुड़, मंद बकरा दिया जाता है। विवाह के वक्त रस्मे बुर्जुग व्यक्तियों द्वारा कराया जाता है।

इनके प्रमुख देवी देवता हैं बूढ़ा देव, ठाकूर देव, नागदेव, भीमसेन, धरती माता, खैरमाई, रातमाई, बुढ़ीमाई। प्रमुख त्यौहारों में से है हरेली, नवाखानी, दशहरा, दीवाली, करमा पुजा, होली।

बैगा जनजाति नृत्य और गीत में बड़े माहिर है। प्रमुख लोकनृत्य है करमा, बिमला, लंहगी, झटपट, और लोकगीत है - करमा, ददरिया, सुआ, माता गीत, विवाह गीत।

ज़ाफर जी जो छत्तीसगढ़ के संस्कृति पर काम की है, उनके साथ एक साक्षातकार :

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Content Prepared by Ms. Indira Mukherjee 

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