छत्तीसगढ़

Chhattisgarh


छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियों (हाना)

किसी भी प्रदेश की लोकोक्तियां उस प्रदेश के लोक जीवन को समझने में सहायता करती है। वहां के लोग क्या सोचते हैं, किस चीज को महत्व देते हैं, किसे नकारते हैं, ये सब वहां के ""हाना'' प्रकट करती हैं।

छत्तीसगढ़ में खेत को लेकर न जाने कितने ही हाना प्रचलित हैं -

१. खेती रहिके परदेस मां खाय, तेखर जनम अकारथ जाय।

इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति खेती रहने पर भी पैसों के लिए, परदेश जाता है उसका जन्म ही बेकार या निरर्थक है।

२. खेती धान के नास, जब खेले गोसइयां तास

जब किसान तास खेलता रहता है, उसकी खेती स्वाभाविक रुप से नष्ट हो जाती है।

इस हाना के माध्यम से किसान अपने बच्चों को बचपन से तास खेलने से रोकते रहे। तास ही एक ऐसा खेल है जो कि लोगों को आलसी बना देता है। जबकि खेती करने वालों को बहुत ही कर्मठ होना जरुरी है।

३. खेत बिगाड़े सौभना, गांव बिगाड़े बामना।

इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति अपने पोशाख पर ज्यादा ध्यान देता है, अपने पोशाख कि स्वच्छता पर ध्यान देता है वह व्यक्ति खेत को बिगाड़ देते हैं। ठीक उसी तरह जैसे एक ब्राह्मण एक गांव को बिगाड़ता है।

४. बरसा पानी बहे न पावे, तब खेती के मजा देखावे

इस हाना से पता चलता है कि कितने ज्ञानी है हमारे छत्तीसगढ़ के किसान, आजकल औयाटर हारभेेस्टिगं कि बात चारों ओर हो रही है - और ये हाना न जाने कितने पहले से प्रचलित है।

५. आषाढ़ करै गांव - गौतरी, कातिक खेलय जुआं।

   पास-परोसी पूछै लागिन, धान कतका लुआ।

जो किसान आषाढ़ महीने में गांव-गांव घूमता रहा और कार्तिक महीने में जुआ खेलता रहा, उसे उसके पड़ोसी व्यंंग करते हुये पूछते हैं ""कितना धान हुआ।'' यह हाना छत्तीसगढ़ लोक जीवन में शुरु से किसानों के बच्चों को आषाढ़ कार्तिक महीने के बारे में बताते हैं - इस महीनों में क्या नहीं करना चाहिये, उसके बारे में उन्हें शिक्षा देती है।

६. तीन पईत खेती, दू पईत गाय।

इसका अर्थ है कि रोजाना खेत की तीन बार सेवा करनी चाहिए और गाय की दो बार सेवा होनी चाहिये। खेत और गाय जो हमारा सहारा है, उसे हमें सेवा करनी चाहिये।

७. अपन हाथ मां नागर धरे, वो हर जग मां खेती करे।

जो व्यक्ति खुद हल चलाता है, वही व्यक्ति अच्छा खेती कर सकता है।

८. कलजुग के लइका करै कछैरी, बुढ़वा जोतै नागर -

इस हाना में व्यंग, दुख दोनों ही छिपी हैं - कलियुग में लड़का आॅफिस में काम करने जाता है और उसका बूढ़ा बाप खेत मे हल चलाता रहता है।

९. भाठा के खेती, अड़ चेथी के मार

इस हाना में बं भूमि की खेती के साथ गरदन की चोट की तुलना की गई है। इस हाना का अर्थ है कि ये दोनों ही कष्टदायक होता है - बं भूमि की खेती और गरदन की चोट।

१०. जैसन बोही, तैसन लूही

इस हाना में वही सत्य को दोहराया गया है जिसे गीता में महत्व दिया गया है - कर्म के अनुसार फल मिलता है।

११. तेल फूल में लइका बढे, पानी से बाढे धान

    खान पान में सगा कुटुम्ब, कर वैना बढे किसान

इस हाना में बड़े सुन्दर तुलनात्मक रुप में जिन्दगी के हर पहलु को दिखाया गया है। बच्चा बढ़ेगा जब तेल फूल हो। इसी तरह पानी से धान और खाने पीने से कुटम्बी बढ़ते है। उसी तरह किसान तभी बड़ता है जब वे कर्मठ हो।

१२. तेली के बइला ला खरिखा के साथ,

धानी का जो बैल होता है वह चारा घर में जाने वाले बैलों के झुंड को देखता है और उसमें शामिल होना चाहता है। धानी में बन्ध नहीं रहना चाहता।

१३. गेहूं मां बोय राई, जात मां करे सगाई।

गेहूं के साथ बोना चाहिये सरसों और उसी तरह विवाह अपनी जाति में करना चाहिये।

१४. बोड़ी के बइल, घरजिया दमाद

    मरै चाहे बाचै, जोते से काम।

जिस तरह मंगनी के बैल की स्थिति अच्छी नहीं होती है। ठीक उसी तरह घरजवाई की स्थिति अच्छी नहीं होती।

१५. रेंसिग नइ रेंसिग भेड़ फोरत।

    मर-मर मरै बदवा, बांधे खाये तुरंग।

बैल तो मरते दम तक मेहनत करता रहता है। मेहनत करने से ही बैल को खाना दिया जाता। बहुत मेहनत करने के बाद ही बैल खाता है। और उधर धोड़ा-जबकि बंधा रहता है, कुछ नहीं करता है, फिर भी उसे खाना मिलता है।

यह हाना छत्तीसगढ़ की स्थिति को दिखा रहा है जहाँ बैल के कारण ही जिन्दगी चल रही है।

१६. डार के चूके बेंदरा अऊ, असाढ़ के चूके किसान

सही समय में कार्य करने के लिए कहा गया है इस हाना में नहीं तो वही हालत होगी जो एक बन्दर की होती है जो डाल को पकड़ नहीं पाया, या उस किसान की जिसने आषाढ़ में गलती की।

१७. बोवै कुसियार, त रहे हुसियार

जो किसान गन्ना बोता है, उसे बहुत ही होशियार रहना पड़ता है क्योंकि गन्ने को जितनी ज़रुरत है उतना ही पानी देना पड़ता है।

१८. पूख न बइए, कूट के खइए

अगर सही समय धान नहीं बोता है, तो किसान को कूटकर खाना पड़ता है।

१९. एक धाव जब बरसे स्वाति, कुरमिन पहिरे सोने के पाती

यह हाना नक्षत्र सम्बन्धी है। इसका अर्थ है कि अगर स्वाति नक्षत्र में एक बार बारिस हो जाये तो फसल अच्छी होती है।

२०. धान-पान अऊ खीरा, ये तीनों पानी के कीरा

इस हाना के माध्यम से बच्चे भी जान जाते है कि धान पान और खीरे के लिए बहुत मात्रा में पानी ज़रुरी है।

२१. झन मार फुट-फुट, चार चरिहा धान कुटा

छत्तीसगढ़ है धान का कटोरा इसी लिये धान सम्बन्धी अनेक लोकोक्तियाँ यहाँ प्रचलित है। इस हाना में कह रहे हैंै कि धान कूटते वक्त ध्यान दो और बात करके समय मत नष्ट करो।

२२. जौन गरजये, तौन बरसे नहिं।

यह हाना से सभी लोग परिचित है। जो बादल गरजता है, वह बरसता नहीं।

२३. संझा के झरी, बिहनियां के झगरा

सुबह अगर झगड़ा शुरु होता है तो वह दिनभर चलता रहता है। और शाम को अगर बारिस शुरु होती है तो रातभर होती रहती है।

२४. राम बिन दुख कोन हरे, बरखा बिन सागर कौन भरे

भगवान अगर साथ न हो तो दुख कैसे धटेगा। बारिस अगर नहीं होती हैं तो सागर को कौन भरेगा।

२५. पानी मां बस के, मगर ले बैर

ये हाना सभी अंचलो में प्रचलित है। बंगाल में, बिहार में। इसका अर्थ है कि पानी में रहकर मगरमच्छ से लड़ाई मोल लेना।

२६. पानी गये पार बाधंत है।

सही समय अगर कार्य न किया जाये तो उसका परिनाम क्या होता है उसी के बारे में यह हाना प्रचलित है। पानी निकल गया और उसके बाद बाँध बाँधते रहो।

२७. पानी पीए छान के, गुरु बनावै जान के

पानी छानकर अगर नहीं पीया तो बीमारी होती है। उसी तरह किसी को अगर गुरु बनाओ तो पहले अच्छे से जान लो।

२८. आगू के भैंसा पानी पाए, पिछू के चिखला

जो भैंस आगे आगे जाती है, वह भैंस पानी पीती है, पर जो पीछे पीछे आती है, उसे केवल कीचड़ ही मिलता है।

२९. जियत पिता मां दंगी दंगा, मरे पिता पहुंचावै गंगा

इस हाना के माध्यम से बुजुर्गो के साथ कैसे बर्ताव किया जाता, उसे सामने लाया गया है। यह व्यंग के रुप में कहा गया है कि जब पिता जी थे, तब तो उनके साथ बुरी तरह पेश आते थे, उनपर चिल्लाते थे। अब जब वे नहीं रहे, उन्हें गंगा पहुँचाने के लिए व्यवस्था किया जा रहा है। अर्थात पितृभक्त होने का ढोंग या दिखावा किया जा रहा है।

३०. नदिया नहाय त सम्भुक पाय, तरिया नहाय त आधा

    कुआ नहाय त कुछ न पाय, कुरिया नहाय त ब्याधा

अगर नदी में स्नान करो तो पूरा पुण्य मिलेगा। तालाब में स्नान करने से आधा पुण्य मिलेगा। कुएँ में स्नान करने से कुछ नहीं मिलेगा। धर में स्नान करने से तो बीमारी हो जो जाएगी।

३१. धर कथे आ-आ, नदिया कथे जा-जा

धर हमसे आने के लिए कहता है। और नदिया हम से जाने के लिए कहती है।

३२. दहरा के मछरी अब्बर मोठ।

इसका अर्थ है कि गहरे पानी की जो मछली हमें मिल नहीं पाती, वह बड़ी मोटी लगती है। अर्थात जो चीज़ हमें मिल नहीं पाती, वह हमेशा लोभनीय लगती है।

३३. लुवाठी में तरिया, कुनकुन नई होय।

तरिया याने तालाब। तालाब का पानी एक जलती लकड़ी से गर्म नहीं होता है। इसका अर्थ है कि बड़ा काम कोई छोटी वस्तु से नहीं होता।

३४. महानदी के महिमा, सिनाथ के झोल।

    अरपा के बारु अऊ खारुन के सोर।

महानदी की महिमा, शिवनाथ नदी की चौड़ाई, अरपा नदी का रेत और खारुन नदी के पानी का बहुत से स्रोत प्रसिद्ध है।

हर व्यक्ति अपनी कोई खास बात के लिए प्रसिद्ध होता है।

३५. पहार हर दूरिहा, ले सुग्धर दिखथे।

जब हम पहाड़ दूर से देखते है, तो बहुत सुन्दर लगता है। पर नज़दीक जाने से पता चलता है कितना कठिन है पहाड़ पर चढ़ना।

३६. राई के परवत, अउ परवत के राई।

    एदे बूता कौन करे, डौकी के भाई।।

छोटी बात को बढ़ा चढ़ा कर कहने कि आदत साले (स्री के भाई) में ही होती हऐ।

३७. बहारी लगाय, आमा के साध नइ भरइ।

अगर हम बबूल लगाये तो बबूल ही हमें मिलेगा। आम खाने की इच्छा पूरी नहीं होगी।

३८. रुहा बेंदरा बर पीपर अनमोल।

जो बन्दर बहुत लोभी है, उसके लिए पीपल का फल ही बहुत अनमोल है।

३९. का हरदी के जगमग, का टेसू के फूल।

    का बदरी के छइहां, अऊ परदेसी के संग।।

हल्दी का रंग, टेसू फूल की लालिमा, बादल का छाँह और परदेशी का साथ - ये सब बहुत ही कम समय के लिए होता है। अच्छी समय बहुत कम समय के लिए होता है।

४०. हाथ न हथियार, कामा काटे कुसियार।

गन्ने को काटने कि लिए हथियार चाहिये। अगर हथियार ही न हो, तो गन्ना कैसे काटा जाये।

४१. तेंदू के अंगरा, बरे के न बुताय के

तेंदू की लकड़ी ऐसी लकड़ी है जो न तो जलती है, न बुझती है।

४२. केरा कस पान हालत है।

केले के पत्ते के साथ कमज़ोर व्यक्ति की तुलना की गई है। केले के पत्ती जैसै हिलता रहता है, कमजोर व्यक्ति का मन उसी प्रकार अस्थिर होता रहता है। स्थिर नहीं होता है।

४३. तुलसी मां मुतही, तउन किराबे करही।

तुलसी पर अगर कोई पिशाब करता तो उसे कोड़े जरुर लगेंगे। अर्थात अच्छे लोगों को जो सताता है, उसे भोगना पड़ता है।

४४. मंगल छूरा, बिरस्पत तेल, बंस बुड़े जे काटे बेल।

इस हाना में छत्तीसगढ़ी लोगों का अंधविश्वास दिखाया गया है लेकिन बेल का पेड़ काटने के बारे में जो कहा गया है, वह इसीलिए ताकि लोग उसे न काटे। अंधविश्वास किस तरह पेड़ पौधों को रक्षा करता था। यह इससे ज़ाहिर होता है। बाल मंगल को काटने से गुरुवार को तेल लगाने से और बेल का पेड़ काटने से वंश नष्ट हो जाता है।

४५. एक जंगल मां दू ठिन बाध नइ रहैं

यह हाना हमारे देश में हर प्रान्त में प्रचलित है एक ही जंगल में दो बाध नहीं रहते। अर्थात, एक ही जगह में दो शक्तिशाली व्यक्ति नहीं रह सकते।

४६. बाबा घर मां, लईकोरी बन मां।

इस हाना के माध्यम से आलसी पति को व्यंग किया जाता है। आलसी पति घर में आराम कर रहा है जबकि पत्नी निरन्तर काम कर रही है। यहां कहा गया है पत्नी बन मां अर्थात जंगल में। जंगल में लकड़ी काटने के लिए जाती हैं पत्नियां।

४७. हपटे बने के पथरा, फोरे घर के सीला।

जंगल में किसी पत्थर से ठोकर लगी और घर वापस आकर सिल को फोड़ रहा है। किसी का गुस्सा किसी और पर उतार रहा है।

४८. हंडिया के एक ठन सित्था हट् मरे जाथे।

चावल पकाने वक्त हंडी का एक चावल देखकर पता चलता है कि चावल पका है कि नहीं। किसी व्यक्ति की एक ही उदाहरण से पता चलता है वह कैसा व्यक्ति है।

४९. केरा, केकेकरा, बीछी बांज, ए मन के जनमे ले नास।

इसका अर्थ है कि एक बार फल लगने से केला और बांस का पेड़ नष्ट हो जाते हैं। ओर केकड़ा और बिच्छू एक बार जनम देने के बाद मर जाते हैं।

५०. चलनी मां गाय दुहै करम ला दोस दे।

जिस तरह गाय को चलनी में दुहना मुर्खता है उसी तरह कोई काम गलत तरीके से करने के बाद भाग्य को दोष देना मुर्खता है।

५१. जिहां गुर तिहां चाटी।

जो लोग बहुत स्वार्थी है वे वही पहुँच जाते है जहाँ उनका कोई लाभ हो। वह जगह कितनी भी बूरी क्यों न हो।

५२. ठिनिन-ठिनिन घंटी बाजै, सालिक राम के थापना। मालपुवा झलका के, मसक दिए अपना।।

ये हाना उन लोगों के बारे में है जो दूसरो की सहायता लेते है किसी काम को करने के लिए, और जैसे ही काम खत्म हो जाये, वे लाभ को खुद हड़प कर ले जाते है।

५३. कब बबा मरही त कब बरा खावो।

किसी के मृत्यु के पश्चात जब श्राद्ध होना है तो स्वादिष्ट भोजन बनती है। यहाँ इन्तज़ार किया जा रहा है कि कब बबा कि मृत्यु हो, और स्वादिष्ट भोजन खाने को मिले।

५४. थूंके थूंक मां लडुवा बांधे।

लड्डू बनाना थूक के, इसका अर्थ है कि जिस तरह थूक के लड्डू नहीं बनते, उसी तरह कोई काम मेहनत के बिना नहीं होता।

५५. छत्तीसगढ़ के खेड़ा, मथुरा का पेड़ा

जिस तरह मथुरा के पेड़ा प्रसिद्ध है उसी तरह छत्तीसगढ़ के खेड़ा। खेड़ा एक प्रकार की सब्ज़ी है। हर जगह किसी न किसी कारन के लिए प्रसिद्ध है।

५६. फोकट के चिवड़ा, भरि-भरि खाये गला।

जो चीज़ बिना मेहनत करके मिलता है उसका दुरुपयोग करना। जैसे चिवड़ा ज्यादा खाना ठीक नहीं है। पर जब किसी फूकट में चिड़ा मिला तो ज्यादा खाकर तबियत खराब कर दिया।

५७. बड़े बाप के बेटी

    धीव बिन खिचरी न खाय, 

    संगत पड़े भोलानाथ के

    कंडा बिनत दिन जाय।

इसका अर्थ है सब दिन एक जैसा नहीं होता। जैसे अमीर व्यक्ति की बेटी जो धी के बिना खिचड़ी नहीं खाती थी, अगर उसकी शादी शिव जैसे व्यक्ति सो हो, तो उसे हर प्रकार का काम करना पड़ता है।

५८. अपन बेटडा लेड़वे नीक

    गेहुं के रोटी टेड़गे नीक।

अपना बेटा अगर बेवकुफ भी हो, ता भी अच्छा लगता है। जैसै गेहूं की रोटी अगर टेढ़ी भी हो तो स्वादिष्ट लगता है।

५९. बिन रोए दाई दूध नई पियावै।

जब तक हम अपना समस्यायें व्यक्त नहीं करेंते, सहायता नहीं मिलती। मा भी उसी वक्त दुध पिलाती है जब बच्चा रोता है।

६०. ररुहा ला भाते भात।

जो भुखा है, उसे तो चारों ओर भात ही भात दिखता है। जो चीज़ हमें जरुरत है। वह चीज़ हमें चारों ओर दिखता है। अर्थात हम उसी के बारे में जो सोचते रहते है।

६१. थोर खाये बहुत डेकारे।

थोड़ा सा ही खाकर ज़ोर ज़ोर से डकार लेना। अर्थात थोड़ा से ही काम करके उसके बारे में ज्यादा बोलना।

६२. आप रुप भोजन पर रुप सिंगार।

भोजन करे तो अपनी पसन्द के मुताफिक। पर श्रृंगार करे तो दूसरों की रुची के अनुसार।

६३. तोर गारी मोर कार के बारी।

इसका अर्थ कि जब किसी से मोहब्बत होता है। उसका हर चीज़ अच्छा लगता है। उसकी गाली भी अच्छी लगती है। जैसे कि कान की बाली अच्छी लगती है। गाली, कान की बाली जैसे है।

६४. चार ठन बर्तन रइथे तिहां ठिक्की लगावे करथे।

जहाँ कई लोग इकट्ठे रहते है, वहाँं झगड़ा होना स्वाभाविक है। जैसे कुछ बर्तने एक साथ जहाँ रक्खी जाती, वहाँ एक दूसरे से टक्कर हो ही जाती है।

६५. जेखर जइसे दाई ददा

    तेखर तइसे लइका। 

    जेखर जैसे धर दुवार। 

    तेखर तइसे फरिका।

बच्चें अपने माता पिता जैसे होते है। जैसे मा पिता, वैसे ही बच्चें। ठीक उसी तरह, जिस तरह धर का दरवाज़ा धर के संदर्भ में ही बनती है।

६६. पाप ह छान्ही मां चढ़के नाचथे।

अपराध कभी छिपी नहीं रहती। पाप जो है, वह तो छत पर जाकर नाचता रहता है।

६७. खाय तौन ओंठ चबाय नई खाय तौन जीभ चाटय।

कोई खाने की चीज़ जो बहुत ही खराब है स्वाद में, उसे जो खाते है, वे पछताते है। और जो नहीं खाते है, वे भी न खाने के कारण पछताते है।

६८. भागे मछरी जांध असन मोंठा

इसका अर्थ है कि जो चीज़ हमें नहीं मिलती, वह चीज़ हमें ज्यादा मुल्यवान लगती है। जो मछली हम पकड़ नहीं पाते। वह हमें जांध जैसे मोटी लगती है। ये हाना अगुंर खट्टे है के विपरीत भाव व्यक्त करती है।

६९. यहां घर उहाँ घर, पाँव पर विदा कर।

लड़कियों की शादी के वक्त ये कही जाती है - कि ये भी घर है, वह भी घर है जहाँ लड़की जा रही है। इसीलिए प्रणाम करके लड़की को विदा करो और दुखी मत हो।

७०. अंधरी बर दई सहाय

यह हाना अंधे व्यक्तियों के लिए कही जाती है कि उनके लिए भगवान हमेशा सहायह है।

७१. अंधरा खोजै दू आंखी।

अंधे व्यक्ति हमेशा आँखे खोजती है। अर्थात हर कोई अपनी मनचाही चीज़ ढुंडती रहती है।

७२. खाके मूत सूते बाऊँ

    काहे बैद बसावै गाऊँ।

यह हाना स्वास्थ के बारे में है और इससे पता चलता है कि लोग कितने ज्ञानी होते है। खाना खाने के बाद जो व्यक्ति पिशाब करता है और बायी करवट सोता है, वह व्यक्ति हमेशा निरोग रहता है। और निरोग रहने के कारण वैध की जरुरत ही नहीं होती।

७३. रोग बढ़े

    भोग ले

इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति भोग विलास में अपने आप को डुबा देता है वह व्यक्ति का रोग बड़ जाता है। इस हाना के माध्यम से लोगों को भोग विलास से दूर रहने के लिए कहा गया है।

७४. बिहनियां उठि जे रोज नाहय 

    ओला देखि बैद पछताय।

जो व्यक्ति रोज़ नहाता है उसे देखकर बैद पछताता है क्योंकि रोज़ नहाने के कारण उसका स्वास्थ निरोग रहता है।

७५. बासी पानी जे पिये

    ते नित हर्रा खाय।

    मोटी दतुअन जे करे

    ते धर बैद न जाय।

ये हाना भी स्वास्थ के बारे में है इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति रोज सुबह बासी पानी पीता है, हरी खाता है और मोटी दातुन से दन्त मन्जन करता है, उसके घर में कभी बैध को बुलाना नहीं पड़ेगा।

७६. जेवन बिगड़ गे

    तौन दिन बिगड़े गे।

जिस दिन भोजन ठीक से नहीं बनती है, बिगड़ जाती है, वह सारा दिन भी बिगड़ जाता है। मन उस वक्त खुश रहता है जब खाना स्वादिष्ट बनती है।

७७. महतारी के परसे, अऊ मधा के बरसे।

यह हाना माता के ममता के बारे में है। जिस तरह मधा नक्षत्र में जब बारिस होती है, तब पृथ्वी तृप्त होती है, उसी तरह माता जब खाना परोसती है, बच्चे तब तृप्त होते है।

७८. दाई के मन गाय असन बेटा कसाई।

यह हाना मा के स्नेह के बारे में है। संतान अगर कु हो, तब भी मा का स्नेह कम नहीं होता।

७९. महतारी के पेट, कुम्हार के आवा।

यहाँ मा के साथ कूम्हार की तुलना करते हुये कहा गया है मा लड़का या लड़की किसी को भी जन्म दे सकती है। जिस तरह कुम्हार किसी भी तरह का बर्तन बना सकता है।

८०. दाई के कमरछड़ अउ डऊकी के तीजा।

यह हाना स्रीयों के व्रत के बारे में है जो लड़कों के लिए रख जाता है। जैसे माताए कमरछठ का व्रत रखती है ताकि बेटा दीर्घायु हो, स्रियां तीजा का व्रत रखती है ताकि सुहागन बनी रहे।

८१. दाई मेरे घिरा बर

    घिया मरे पिया बर।

माता अपनी बेटी के लिए चिन्ता कर रही है और चिन्ता से मर रही है। उधर बेटी अपने पति के लिए चिन्ता कर रही है।

८२. दाई देखे ठऊरी डऊकी देखे मोटरी।

यह पत्नी पर व्यंग है। माताऐं हमेशा अपने संतान का स्वास्थ के बारे में सोचती है। पत्नी पति का कमाई या धन के बारे में सोचती हैं।

८३. बिआवत दुख

     बिहावत दुख।

यह हाना बेटी के बारे मेंम छत्तीसगढ़ में कहा जाता है। कि जब पैदा होती है तब भी दुख और जब शादी होकर चली चली जाती है, तब भी दुख।

८४. घर देख बहुरिया निखारे।

इस हाना का अर्थ है कि शादी के बाद लड़की जिस घर में जाती है बहु बनकर, इसी घर में ढ़ल जाती है, उसी के जैसे हो जाती है।

८५. घर द्वार तोर बहुरिया

    देहरी मां पांव इन देहा।

इसका अर्थ है कि बहु, यह घर द्वार तुम्हारा है पर घर के दरवाजे पर पैर नहीं रखों। अर्थात बहु के स्वाधीनता को छीन ले रही है।

८६. सास न ननदा घर मां अनन्दा।

सास बहु के जब तनावपुर्ण रिश्ता होता उसी को संकेत देते हुये कह रहे है कि जिस घर में सास ननद नहीं है, उस घर में बहुएं आनन्द से रहती है।

८७. जेखर घर डौकी सियान

    तेखर मरे बिहान।

इस हाना का अर्थ है कि जिस घर में पत्नी चालाकी करती है, उस घर का पति अधमरा सा हो जाता है।

८८. रांड़ी के कुकरी

     राजा के हाथी

     दुनों एक बरोबर।

जब गरीब विधवा औरत एक मुर्गी चोरी करती है और राजा एक हाथी चोरी करता है तो दोनों एक बराबर है।

८९. सऊत के बने मउत।

सौत पर ये हाना है कि सौत मृत्यु का कारण बनती है।

९०. मरे सौत सताये

    काठ के ननद बिजराये।

सौज जो मर चुकी है, वह भी सताती है और काठ की ननद भी जीभ दिखाती है।

९१. माटी के भूत डरवाथे

    काठ के सौत बिजराथे।

यह हाना भी सौत पर है। इसमें कहा गया है कि मिट्टी के भूत से डर लगता है, काठ की बनी सौत भी जीभ दिखाती है।

९२. बर न बहाव

    छट्टी बर धान कुटाय।

अभी तक विवाह ठीक नही हुई, वर नहीं मिला, पर छठी की तैयारी शुरु हो गई।

९३. बड़ पूत बाप के

    छोटे हवे दाई के

    मंझला बिआई के

पुत्रों के बारे में है ये हाना कि बड़ा बेटा जो है वह पिता को सबसे प्रिय होता है, छोटा बेटा माता को और मंझला बेटा जो है वह तो सिर्फ पैदा होने के लिए हुआ है।

९४. गुरु गोसइयां एके च आय।

इस हाना का अर्थ है कि गुरु और ईश्वर एक ही हैं।

९५. राखही राम

    त लेगेही कौन

    लेगेही राम

    त राखही कोन।

इस हाना का अर्थ है कि भगवान जिसे रखेगा, उसे कोई नहीं ले जा सकता और भगवान जिसे ले जायेगा, उसे कोई नहीं रख सकता।

९६. भगवान के घर देर है

    अंधेर नइ ए।

यह हाना सभी भाषाओं में प्रचलित है। भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं है। अर्थात कोई भी व्यक्ति अन्याय करने के बाद दंड से नहीं बच सकता। देर से हो पर अन्यायी को दंड अवश्य मिलता है।

९७. माने त देवता

    नहि त पाथर।

भक्ति श्रद्धा के बारे में है यह हाना कि भक्ति अगर है मन में तो ईश्वर नज़र आते है और अगर भक्ति नहीं है तो पत्थर दिखाई देती है।

९८. जगत कहे भगत बइहा

     भगत कहे जगत बइहा।

भक्त को देखकर संसार के लोग सोचते है कि यह व्यक्ति तो पागल है। और इधर भक्त संसार के लोगो को देखकर सोचता है कि ये लोग तो पागल है।

९९. पढ़े बर गरंथ पोथी

    कीरा परे तोर भीतरी कोठी।

बाहर से कुछ दिखते है, भीतर से कुछ और है। बड़े ग्रंथ पोथी पड़ते है पर अपनी कोठी के भीतर इस तरह गन्दा काम करता है कि शरीर में कीड़े पड़ जाते।

१००. जादा के जोगी

      मठ उजार।

जिस आश्रम में बहुत ज्यादा साधु रहते है, वह उजड़ जाता है। अर्थात बहुत लोग रहने से काम बिगड़ जाता है।

१०१. टुटहा करम के फूटहा दोना।

जिस व्यक्ति का भाग्य खराब हो गया है, उसका दोना भी फट जाता है। दोना, जिसमें कुछ रक्खी जाती है।

१०२. चलनी मां गाय दूहै, करम ला दोसे दे।

चलनी में दुध दुहना है और कहना है कि भाग्य खराब है। अर्थात कोई कार्य ठीक से नहीं करके भाग्य को दोष देना।

१०३. पाप-पुन जे लिखे लिलरा, विधि के लिखा न मेटनहारा।

यह हाना भाग्य पर विश्वास रखने वाला है। पहले से ही पाप पुण्य जो लिखा रहता है हमारे भाग्य में, वही धटती है। भाग्य का लेखन को कोई बदल नहीं सकता।

१०४. बिना करम काम नई होवय।

इस हाना का अर्थ है कि कोई भी काम बिना भाग्य के नहीं होता।

१०५. कहां जाबे भागे करम जाही आगे।

भाग्य से भागकर कहीं भी नहीं जा सकते। भाग्य आगे आगे जाती है।

१०६. अपन मरे बिना सरग नई दिखै।

स्वर्ग तभी देख सकते है जब हम मरते है। अर्थात जब तक हम कार्य न करे तब तक फल नहीं पाते है।

१०७. सुनै सबके

      करै मन के

जब कोई काम करना है, सबसे पुछकर राय लेनी चाहिये पर आखिर में खुद को ही सोच समझकर निर्णय लेनी चाहिये।

१०८. बइठे बिगारी सहीं।

खाली बैठने से अच्छा है कि बिना मजदूरी का काम करना।

१०९. जेला गोठियाय आवै

      तेकर अंकरी बचाय

      जेला गोठियाय नई आवय

      तेखर चना धुनाय।

जो व्यक्ति बात करना जानता है, उसकी हर चीज़ बीक जाती है, निकृषृ अंकरी भी बीक जाती है पर जो व्यक्ति बात करना नहीं जानता, उसका चना भी सड़ जाता है, वह बेच नहीं पाता।

११०. धरम करे मां जउन होय हानि

      तभू न छाड़य धरम के बानी।

धर्म के पथ पर चलने से अगर हानि हो तभी भी धर्म का साथ नहीं छोड़ना चाहिए।

१११. जे खेलेय तास

      तेखर होय नास।

जो जुआ खेलता है, उसका नाश होता है।

११२. दू ठन डोंगा में पांव धरही

      तोन बोहावे करही।

जो व्यक्ति दो नावों में पैर रखता है, वह व्यक्ति बह जाता है।

११३. दु कोतरी के हय 

      डबरा झन बताय।

मछली भले ही दे दो पर मछली कहाँ से मिली ये नहीं बताओ।

११४. खेलिये न जुआं

      झांकिये न कुआं।

जुआं और कुआं दोनों से सावधान रहना चापिये। जुआं नहीं खेलना चाहिये। और कुअं में झांक कर देखना नहीं चाहिये क्योंकि गिरने का सम्भावना है।

११५. कहाई ले कराई नींक।

कहने से करना अच्छा है।

११६. सिकार के बेरा कुतिया गायब।

शिकार के वक्त कुत्ता गायब अर्थात जब जरुरत है, तब गायब हो जाना।

११७. बोकरा के जीव जाय खवइया बर अलोना।

किसी की जिन्दगी जा रही है और उधर किसी को स्वाद के बारे मे चिंता हो रही है।

११८. कुकुर के पूछी जब रहही टेड़गा।

कुत्ते की पूंछ हमेशा टेढ़ी रहेगी। अर्थात बूरा व्यक्ति कभी सुधर नहीं सकता।

११९. जेखर खाय तेखर गाय।

जिसका खाते है, उसी का गुण गाते है।

१२०. जौन पतरी मां खाय

      तउ न मां छेद करे।

जिस बर्तन में खाते है, उसी में छेद करते है। अर्थात जिससे सहायता मिलती है, उसी से विश्वासघात करते है।

१२१. दुध के जरे हा महीं ला फूंक के पीथे।

गरम दुध पीते वक्त जो व्यक्ति जल गया हो, वह मठे को भी फूंक-फूंककर पीता है। इसका अर्थ है जो व्यक्ति चोट खाया हो, वह हर कदम सावधानी से रखता है।

१२२. कबड्डी खेल

      लीम के तेल।

नीम का तेल जैसे रोग निवारक होता है। उसी तरह कबड्डी का खेल भी लाभदायक होता है।

१२३. बैरी बर ऊंच पीढ़ा।

दुश्मन के ऊंचा आसन अर्थात दुश्मन को सम्मान देकर जीता जाता है।

१२४. बाप मारे पूत साखी दे।

इसका अर्थ है कि दोषी को निर्दोष साबित करना। पिता मारता है और पुत्र साक्षी देता है।

१२५. ससुराल सुख के सार

      जब रहे दिन दो चार।

ससुराल में कम दिन रहने से इज्ज़त मिलती है।

१२६. परदेश जमाई राजा बराबेरा गांव जमाई आधा

      घर जमाई गधा बरोबर जब मर्जी तब लादा।

परदेश में जो दमाद रहता है, उसकी बहुत इज्ज़त होती है। एक ही गांव में जो दमाद रहता है। उसकी इज्ज़त आधी हो जाती है। और जो दमाद ससुराल में रहता है। उसे तो हमेशा काम करना पड़ता है जैसे गधे पर हमेशा समान लादा जाता है।

१२७. नाती चढ़य छाती।

नाती के प्रति जो अगाध प्रेम है उसी के बारे में है। नाती को छाती से लगाकर रहना।

१२८. गाय चरावै राउत दूध खाय बिलैया।

गाय मेहनत करती है और बिल्ली दूध पीती है। मेहनत कोई करे और फल किसी और को मिले।

१२९. जेखर लाठी तेखर भैंस।

जिसके पास लाठी है, भैंस उसी की है। इसका अर्थ है कि अधिकार शक्तिशाली व्यक्ति के पास होता है।

१३०. भैंस के आगे बेन बजाये, भैंस बैठ पगुराय।

भैंस के सामने अगर कोई बीन बजाये, भैंस कोई ध्यान नहीं देगा। अर्थात जो व्यक्ति अज्ञानी है, उसके सामने ज्ञान की बात करने से भी कोई लाभ नहीं होगा।

१३१. भैंसा के सींग ह भैंसे ल गरु रथे।

भैंस का सींग भैंस को ही भारी लगता है। इसका अर्थ है कि कोई व्यक्ति अपना ही काम के तले दबे जा रहा है।

१३२. कुकुर के पुछी जब रइही टेड़गा।

जिस तरह कुत्तेकी पूंछ हमेशा टेरा रहता है, उसी तरह बुरा व्यक्ति हमेशा बुरा रहता है।

१३३. कुकूर भुंके हजार हाथी चले बजार।

कुत्ता भौंकता रहता है लगातार पर हाथी अपने ही मार्ग पर चलता जाता है। इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति दृढ़ निश्चय के होते है, उन्हें बेकार बातों की परवाह नहीं होती। वे अपने मार्ग पर चलते जाते है।

१३४. दुलहिन नई देखे, त देख ओखर भाई। बाघ नई देखे, त देख ले बिलाई।

दुल्हन के भाई को देखने से दुल्हन कैसी होगी, पता चलता है जिस तरह बिल्ली को देखने से बाघ का पता चलता है।

१३५. घोड़ी के लातला घोड़ा सदे।

इसका अर्थ है कि अपनो की हर चीज़ हम सहते है।

१३६. बोकरा के जीव छूटै खवइया बर अलोना।

बकरी को मार दिया गया पर खानेवालो को मज़ा नहीं आया और उसकी निन्दा हो गई। अर्थात किसी के लिए किसी की ज़ान क्यों न जाये, वह उसके प्रति क्रतज्ञ नहीं है।

१३७. राजा के अगाड़ी घोड़ा के पिछाड़ी झन रहै।

इसका अर्थ है कि राजा के आगे कभी नहीं रहना चाहिए और धोड़ा के पीछे कभी नहीं रहना चाहिए। अगर रहे तो राजा की डांट खानी पड़ती है और घोड़े की लात सहनी पड़ती है।

१३८. मर मर मरै बदरवा बांधे खाय तुरंग।

बैल जो है, वह मरते दम तक मेहनत करता रहता है, पर धोड़ा जहाँ बंधा रहता है, वही उसके लिए खाना पहुँच जाता है।

१३९. खेत चरे गदहा मार खाय जोलहा।

गधा किसी के खेत में घुसकर चरता रहता है और पिटाई होती है जुल्हे की। कोई और गलती करे और सज़ा किसी और को मिले।

१४०. बाम्हन ले गदहा भले विधि ले भले कुम्हार कायद ले धोबी भले सबसे भले चमार

बाम्हन के लिये गधा अच्छा है क्योंकि गधा बोझ उठाता रहता है। विधि के लिए कुम्हार जो बर्तन बनाता है। धोबी कपड़ा धोने के कारण कायस्थ को भाता है। और चमार जूते बनाने के कारण सबसे बेहतर है, वह सबको मदद करता है।

१४१. बेदरा का जाने आदा के स्वादः।

बंदर क्या जाने अद्रक का स्वाद।

१४२. हारे जुवारे बाघ बरोबर।

जो जुआरी हार जाता है वह बाघ जैसे खतरनाक हो जाता है।

१४३. जेखर बेंदरा तेखर ले नाचे।

जिसका बन्दर, उसी के मतानुसार काम करता है। अर्थात स्वामी के आदेशानुसार चलना।

१४४. एक जंगल मा दू ठन बाघ नई रहे।

एक ही स्थान पर दो शक्तिशाली व्यक्ति नहीं रह सकते।

१४५. मरे बाघ के मेछा उखानत हे।

जो बाघ मर गया हो, उसके पुंछ को उखाड़ने मे कोई बहादूरी नहीं है। अर्थात किसी व्यक्ति, जिसे लोग डरते है, उसके चले जाने के बाद ये कहना " कि मैं उसे देख लुंगा"

१४६. हाथी के पेट सोहारी मां नई भरय।

जो व्यक्ति अधिक खाता है, उसका पेट कम खाने से नहीं भरता। ये हाना Cor ru ption की ओर संकेत करता है।

१४७. हाथी ह कतकोन सुखाही तभी घोड़ा ले मोठ रइही।

हाथी जिनता भी दुबला हो जाये, घोड़ा से फिर भी मोटा ही रहेगा। अर्थात पैसे वालों के पैसे कितना ही कम हो जाये, फिर भी दूसरों से वह संपन्न ही रहेगा।

१४८. एक कोलिहा हुआ-हुआ तो तब कोलिहा हुआ-हुआ।

एक कोलिहा अगर हुआ हुआ करता है तो बाकी सब कोलिहा भी हुआ हुआ करने लगते है। अर्थात किसी एक व्यक्ति को देख बाकी भी सब वैसे ही करते रहते है।

१४९. कोईली अऊ कौआ बोली ले, चिन हाथे।

कोयल और कौआ, अपनी बोली से पहचान जाते है। अर्थात व्यक्ति अपने व्यवहार से पहचान जाते है।

१५०. कुकरी उड़ान।

यह मुर्गी के बारे में है। मुर्गी ज्यादा दूर तक उड़ान नहीं भर सकती। उसी तरह थोड़ी दूर तक जो जा सकता है, उसके बारे में कहा गया है।

१५१. सांप के काटे सोवे बीछी काटे रोबे।

सांप अगर काटे, तो चिरनिद्रा में चले जाते है। बिच्छु अगर काटे, तो बहुत दर्द के कारण रोना पड़ता है।

१५२. परोसी के बूती सांप नई मरै।

परोसी के बलबूते पर सांप को नहीं मारा जा सकता। इसका अर्थ है कि कोई भी कठिन काम खुद करने से होता है। दूसरों के बलबूते पर नहीं होता।

१५३. बिछी के मंतर नई जानै सांप के बिला मां हात डारै।

बिच्छु पकड़ने का मन्त्र तक नहीं जानते पर सांप को पकड़ने के लिए उसके बिल में हाथ डाल रहा है। योग्यता न होने से भी कोई काम करने के लिए जाना।

१५४. सांप के मूंड़ी तिहां बाबू के झुलेना।

जहां सांप का सिर है, वही बच्चे का झुला भी है। अर्थात दुश्मन के पास रहना।

१५५. कुआं के मेचका कुएं के हाल ला जान ही।

कुंएके मेंडक के कुएं के बारे मे ही पता रहता है। उसको बाहर की जिन्दगी के बारे में ज़रा सा भी जानकारी नहीं रहती।

१५६. पानी मां बस के मगर ले बैर।

पानी में रहकर मगरमच्छ से दुश्मनी मोर लेना। अर्थात सत्ताधारीयों से दुश्मनी मोर लेना।

डा. मृनालिका ओझा, जिन्होंने लोक कथाओं पर पि एच डी की है, उनके साथ एक साक्षातकार -

जाफर जी के साथ एक साक्षातकार -

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Content Prepared by Ms. Indira Mukherjee 

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