छत्तीसगढ़

Chhattisgarh


सुआ गीत

छत्तीसगढ़ में सुआ गीत प्रमुख लोकप्रिय गीतों में से है। सुआ गीत का अर्थ है सुआ याने मिट्ठु के माध्यम से स्रियां सन्देश भेज रही हैं। सुआ ही है एक पक्षी जो रटी हुई चीज बोलता रहता है। इसीलिए सुआ को स्रियां अपने मन की बात बताती है इस विश्वास के साथ कि वह उनकी व्यथा को उनके प्रिय तक जरुर पहुंचायेगा। सुआ गीत इसीलिये वियोग गीत है। प्रेमिका बड़े सहज रुप से अपनी व्यथा को व्यक्त करती है। इसीलिये ये गीत मार्मिक होते हैं। छत्तीसगढ़ की प्रेमिकायें कितने बड़े कवि हैं, ये गीत सुनने से पता चलता है। न जाने कितने सालों से ये गीत चले आ रहे हैं। ये गीत भी मौखिक ही चले आ रहे हैं।

सुआ गीत हमेशा एक ही बोल से शुरु होता है और वह बोल हैं -

""तरी नरी नहा नरी नहा नरी ना ना रे सुअना''

और गीत के बीच-बीच में ये दुहराई जाती हैं। गीत की गति तालियों के साथ आगे बढ़ती है।

१.     तरी नरी नहा नरी नहा नरी ना ना रे सुअना

कइसे के बन गे वो ह निरमोही

रे सुअना

कोन बैरी राखे बिलमाय

चोंगी अस झोइला में जर- झर गेंव

रे सुअना

मन के लहर लहराय

देवारी के दिया म बरि-बरि जाहंव

रे सुअना

बाती संग जाहंव लपटाय

ंगी

इस गीत में प्रेमिका बहुत ही कातर है कि उसका प्रेमी वापस नहीं आ रहा है। कह रही है प्रेमिका कि क्या मेरा प्रेमी निर्मोही बन गया है? पर मन इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है। इसीलिये प्रेमिका सुआ से पूछती है क्या उसे किसी शत्रु ने रोक रखा है? शत्रु का अर्थ यहां यह भी हो सकता है कि किसी और स्री ने उसे रोक रखा है। इसके बाद कहती है प्रेमिका कि जैसे राख, चोंगी की राख जल जल कर झर जाती है, उसी तरह मैं भी इन्तजार करते करते झर गई हूं पर फिर भी मन उस प्रेमी के लिये ही बेकरार है। इसके बाद कहती है प्रेमिका सुआ से कि इस बार भी अगर वे नहीं आये, मैं दीपावली के वक्त दिये की आग से लिपट जा और अपनो प्राण त्याग दूंगी।

२.     तरी नरी नहा नरी नहा नरी ना ना रे सुअना

तिरिया जनम झन देव

तिरिया जनम मोर गऊ के बरोबर

रे सुअना

तिरिया जनम झन देव

बिनती करंव मय चन्दा सुरुज के

रे सुअना

तिरिया जनम झन देव

चोंच तो दिखत हवय लाले ला कुदंरु

रे सुअना

आंखी मसूर कस दार...

सास मोला मारय ननद गारी देवय

रे सुअना

मोर पिया गिये परदेस

तरी नरी नना मोर नहा नारी ना ना

रे सुअना

तिरिया जनम झन देव.........

इस गीत में प्रेमिका भगवान से प्रार्थना कर रही है कि अगले जनम में वह स्री बनकर न जनम ले। सुआ से कहती है प्रेमिका बड़े व्याकुलता से कि अगले जनम में वे स्री बनकर जनम नही लेना चाहती, चांद सूरज से विनती करती है कि अगले जनम में वे स्री न बने। उसका प्रिय परदेश चला गया है। प्रिय परदेश जाने के बाद सास उसे मारती है, ननद गाली देती है। इस तरह की जिन्दगी से वह बहुत ही परेशान हो गई है। और इसीलिये प्रेमिका बार-बार विनती करती है भगवान से कि अगले जनम में उसे स्री जनम न मिले।

३.     तरी नरी नहा नरी नही नरी ना ना रे सुअना

तुलसी के बिरवा करै सुगबुग-सुगबुग

रे सुअना

नयना के दिया रे जलांव

नयनन के नीर झरै जस औरवांती

रे सुअना

अंचरा म लेहव लुकाय

कांसे पीतल के अदली रे बदली

रे सुअना

जोड़ी बदल नहि जाय

इस गीत में प्रेमिका इंतजार कर रही है प्रेमी का। तुलसी के नीचे अपने नयनों के दीप जलाकर इन्तजार कर रही है कब प्रेमी लौटे। प्रेमिका के आंखों से आंसू निरन्तर बह रही हैं। सुआ से कह रही है प्रेमिका कि आंसू के निरन्तर बहने के कारण नयनों का दीप न बुझ जाये। उसे छिपाकर रखती है अपने आंचल में। सुआ से कहती है कि कांसा या पीतल को तो अदला-बदली कर सकते हैं पर प्रिय को तो बदला नहीं जा सकता। कितना ही कठोर क्यों न हो, प्रिय को तो बदला नहीं जा सकता।

४.     तरी नरी नहा नरी नही नरी ना ना रे सुअना

मोर नयना जोगी, लेतेंव पांव ल पखार

रे सुअना तुलसी में दियना बार

अग्धन महीना अगम भइये

रे सुअना बादर रोवय ओस डार

पूस सलाफा धुकत हवह

रे सुअना किट-किट करय मोर दांत

माध कोइलिया आमा रुख कुहके

रे सुअना मारत मदन के मार

फागुन फीका जोड़ी बिन लागय

रे सुअना काला देवय रंग डार

चइत जंवारा के जात जलायेंव

रे सुअना सुरता में धनी के हमार

बइसाख........ आती में मंडवा गड़ियायेव

रे सुअना छाती में पथरा-मढ़ाय

जेठ महीना में छुटय पछीना

रे सुअना जइसे बोहय नदी धार

लागिस असाढ़ बोलन लागिस मेचका

रे सुआना कोन मोला लेवरा उबार

सावन रिमझिम बरसय पानी

रे सुअना कोन सउत रखिस बिलमाय

भादों खमरछठ तीजा अऊ पोरा

रे सुआना कइसे के देईस बिसार

कुआंर कल्पना ल कोन मोर देखय

रे सुखना पानी पियय पीतर दुआर

कातिक महीना धरम के कहाइस

रे सुअना आइस सुरुत्ती के तिहार

अपन अपन बर सब झन पूछंय

रे सुअना कहां हवय धनी रे तुंहार

रुपान्तर से चन्द्रिकाजी और उनके साथी गा रही है -  

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Content Prepared by Ms. Indira Mukherjee 

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