छत्तीसगढ़

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श्रीमती बेला बाई

श्रीमती बेला बाई और उनके पति श्री भुजबल सिंह दोनों ही स्वतंत्रता सेनानी थे। पूरे देश में विदेशी वस्तुओं की होली जलाई जा रही थी। सन् था 1932 । उस वक्त दोनों जेल गए। घटना इस प्रकार घटी, उस वक्त बेला बाई थीं बारह या तेरह वर्ष की। कुछ ही दिन पहले उनकी शादी हुई थी। पति के पास गांव तरेसर आई हुई थीं। उस समय परसतराई गांव में रामलीला का आयोजन था। बेला बाई अपने पति के साथ रामलीला देखने गईं। बेला बाई अपनी शादी की पिताम्बरी, जिसे छत्तीसगढ़ में ढ़ट्ठी पिताम्बरी कहते हैं, पहने हुए थीं। रामलीला के वक्त वहां लोग सत्याग्रह के बारे में ज्यादा चर्चा कर रहे थे। असल में उन दिनों रामलीला के माध्यम से आम लोगों में अंग्रेज शासक के बारे में बताया जाता था। रावण को अत्याचारी ब्रिटिश शासक के रुप में पेश किया जाता था। वहां जाकर जैसे ही भुजबल सिंह को पता चला कि रायपुर के सभी नेता सत्याग्रह करते हुए गिरफ्तार कर लिए गए हैं, वैसे ही उन्होंने ठान लिया कि वे भी सत्याग्रह कर जेल जायेंगे। बारह साल की बेला बाई ने भी घोषणा कर दी कि वे भी जेल जायेंगी। भुजबल जी ने बहुत समझाया लेकिन बेला बाई नहीं मानीं। भुजबल जी सत्याग्रह की कठिनाइयों के बारे में इस उम्मीद के साथ बोलते रहे ताकि बेला बाई गांव वापस जाने के लिए तैयार हो जाये। पर बेला बाई दुगुने उत्साह के साथ जेल जाने के लिए तैयार हो गईं।

अंत में भुजबल सिंह बेला बाई को साथ लेकर पथरी की ओर चल पड़े। पथरी में डॉ. बधेल रहते थे, इसलिए पथरी सत्याग्रहियों का केन्द्र था। उस वक्त डॉ. बधेल, उनकी माँ केकती बाई दोनों की गिरफ्तारी हो चुकी थी। नकुल प्रसाद, डॉ. बधेल के चाचा ने बेला बाई के लिए रायपुर जाने के लिए बैलगाड़ी की व्यवस्था कर दी। भुजबल जी के लिए घोड़ा लाया गया।

रायपुर पहुंचकर जब दोनों डॉ. बधेल के घर पहुंचे तो बेला बाई चिन्तित हो उठी। क्या पता वहां उदसिरकर जी उन्हें सत्याग्रह करने की अनुमति देंगे या नहीं? उदसिरकर जी थे वहां के संचालक। उन्होंने जब अनुमति दी तो बेला बाई खुशी से खिल उठीं। लड़कियों, महिलाओं की एक टोली बनी। बेला बाई उस वक्त भी ढ़ट्ठी पिताम्बरी पहने थीं। इसलिये उनके लिए खादी की साड़ी मंगाई गई। खादी की साड़ी बेला बाई ने तुरन्त पहन ली। जिन्दगी में पहली बार उन्होंने खादी की साड़ी पहनी। सभी बहनों को श्रीमती राज कुँवर बाई ने कुंकुंम का टीका लगाकर विदा किया राज कुँवर, डॉ. बधेल की पत्नी, जिन्हें अपने सास और पति के जेल जाने के कारण घर पर ही रहना पड़ा था। राज कुँवर जी और उनकी सास केकती बाई के बीच इस बात के लिए लड़ाई होती थी कि कौन जेल जायेंगी? इस बार केकती बाई ने उन्हें समझाया था कि बच्चों की देखभाल करने के लिए एक जने को तो घर पर रहना ही पड़ेगा और चूंकि केकती बाई उम्र के कारण जेल जाने में समर्थ नहीं रहेगी अत: इस बार उन्हीं को जाना चाहिये। बहू राज कुँवर जी मान गई थी इसी शर्त पर कि अगली बार वे जेल जायेंगी। इसलिए इस बार सभी बहनों को कुंकुम का टीका लगाकर वे विदा कर रही थीं।

सत्याग्रही बहन-भाई सब पिकेटिंग करने लगे। विदेशी वस्तुओं की दुकान पर सत्याग्रह आरम्भ हुआ था। वह दुकान पुलिस चौकी से कुछ ही दूर पर स्थित थी। पहले ही दिन बेला बाई को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। एक दिन बाद भुजबल सिंह जी को गिरफ्तार कर लिया गया। बेला बाई और भुजबल सिंह जी दोनों एक साल जेल में रहे।

इसी तरह बेला बाई छोटी उम्र से ही आजादी के लिए हर काम में भाग लेने लगी। दूसरी महिलाओं के साथ घर-घर जाती थीं खादी बेचने के लिए। अगर कोई इन्कार करता तो उसे समझातीं कि खादी क्यों पहनना चाहिए। सफाई कामगारों की बस्ती में जाकर सफाई करतीं उनके बच्चों को पढ़ातीं। अगर कोई सफाई कामगार बच्चों को पढ़ने नहीं देते तो उसे समझातीं बच्चों को क्यों पढ़ाना चाहिए।

बेला बाई दूसरे सत्याग्रहियों जैसा ही सोचती थीं कि मेरा बेटा भी सत्याग्रही बने। जब बेला बाई जेल में थीं, वही बैठकर उन्होंने संकल्प लिया कि बेटा हो या बेटी, उसे गांधीजी को समर्पित कर दूंगी।

गांधीजी सन् 1933 में रायपुर आए थे। बेला बाई का बेटा महेन्द्र उस वक्त 19 दिन का था। 19 दिन के बेटे महेन्द्र को लेकर बेला बाई गांव तरेसर से रायपुर पहुंची। सन्ध्या का समय था। गांधीजी प्रार्थना कर रहे थे। अनेक लोग बैठे थे उनके सामने। सभी प्रार्थना कर रहे थे। बेला बाई ने अपने 19 दिन के बेटे को गांधीजी की गोद में सुला दिया। गांधीजी ने उस नन्हे-से बच्चे को ढ़ेर सारा आशीर्वाद देकर माँ को लौटा दिया।

बेला बाई जब भी वह दिन याद करतीं, उनकी आंखों की चमक से पता चलता कि वह दिन उनकी जिन्दगी का श्रेष्ठ दिन था।

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Content Prepared by Ms. Indira Mukherjee

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