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पद्मावती देवी

खैरागढ़, इंदिरा संगीत विश्वविद्यालय के कारण ही प्रसिद्ध हैं । नहीं तो छत्तीसगढ़ के बाहर खैरागढ़ को जानने वालों की सँख्या बहुत कम है। आज संगीत और ललित कलाओं में रुचि रखने वाले खैरागढ़ का नाम बड़ी श्रद्धा और आदर के साथ लेते है। इस इंदिरा संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना पद्मावती देवी ने की थी। वे खैरागढ़ की रानी थीं। उनके "कमल विलास पैलेस" में इंदिरा संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। संस्कृति के प्रति उनका लगाव इतना गहरा था कि वे एक ऐसे विश्वविद्यालय की स्थापना कर गई जो पूरे विश्व में संगीत एवं ललित कलाओं का अग्रणी विश्व विद्यालय माना जाता है।

पद्मावती देवी थीं, सच्चे अर्थ में, संस्कृति की संरक्षिका। आजकल लोग संस्कृति संरक्षक होने का दावा करते हैं और गन्दगी फैलाते हैं। ये लोग संस्कृति का अर्थ नहीं जानते। पद्मावती देवी बिना किसी आडम्बर के इतना महान कार्य कर गईं कि उनके बारे में सोचने में बहुत अच्छा लगता है।

सन् 1918 में उनका जन्म हुआ था प्रतापगढ़ (उत्तरप्रदेश) में। प्रतापगढ़ के राजा प्रताप बहादुर सिंह की वे छोटी बेटी थीं। राजकुमारी होने के कारण उनकी शिक्षा घर में ही हुई। भारतीय और अँग्रेज शिक्षिकाएँ आती थीं राजमहल में उन्हें पढ़ाने। सोलह वर्ष की थीं पद्मावती जब उनकी शादी खैरागढ़ के राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह के साथ हुई।

खैरागढ़ आने के बाद पद्मावती आरंभ से ही समाज सेवा में रुचि लेने लगीं। शुरु से ही वे लड़कियों को पढ़ाने के बारे में सोचने लगी थीं। राज भवन में पद्मावती पुस्तकालय की स्थापना महिलाओं एवं लडकियों को ध्यान में रखकर की गई थीं। वहाँ की किताबें वे खुद मँगवाती थीं विभिन्न शहरों से। खैरागढ़ का 'राजा लाल बहादुर क्लब' सप्ताह में एक दिन महिलाओं के लिए आरक्षित था। उस क्लब में उनके लिए बैडमिंटन, कैरम, सिलाई-बुनाई, संगीत की व्यवस्था रहती थी।

इसके अलावा लड़कियों को, घुड़सवारी और बन्दूक चलाने का भी प्रशिक्षण दिया जाता था। खाना बनाना भी सिखाया जाता था। शिवेन्द्र संस्कृत पाठशाला की भी स्थापना की पद्मावती देवी ने। इस पाठशाला में काशी की "शास्री" परीक्षा के लिए छात्र तैयार कराये जाते थे। जिन छात्रों के पास पैसे नही थे पढ़ने के लिए, उनके लिए छात्रवृत्ति की व्यवस्था थी वहाँ। इसके उपरान्त खैरागढ़ में उन्होंने प्रयाग की परीक्षाओं के लिए एक शिक्षा केन्द्र की स्थापना की। वहाँ पढ़ाये जाने वाले विषय विद्या, विनोदनी, विशारद के लिए शिक्षा देने के लिए साहित्यकार स्व. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी और दूसरे शिक्षकों की मदद ली जाती थी।

पद्मावती देवी उन लोगों की व्यथा को समझती थीं जिनके पास चिकित्या के लिए पैसे नहीं थे। उनके लिए औषधालय चलाया जाता था। उस औषधालय में उन लोगों के लिए औषधि नि:शुल्क दी जाती थी, चिकित्सा नि:शुल्क की जाती थी।

रानी पद्मावती की सेवा भावना को देखकर बहुत से लोग प्रभावित हुए थे। लोग ये कहने लगे थे कि वे अगर राजनीति के क्षेत्र में आयें, तो लोगों के लिए और भी कार्य कर जायें।

सन् 1948 में प. जवाहरलाल नेहरु और मध्यप्रदेश के मुख्यमन्त्री पं. रविशंकर शुक्ल ने भी पद्मावती देवी के गुणों को देख, उन गुणों से प्रभावित होकर, उन्हें राजनीति के क्षेत्र में आने के लिए उत्साहित किया था। इसके बाद वे मध्यप्रदेश शासन की जनपद सभा खैरागढ़ की प्रथम अध्यक्षा मनोनीत की गई थीं।

पद्मावती देवी प्रदेश की प्रथम महिला मंत्री थीं। वे 1952 से 1967 तक विद्यान सभा और 1967 से 1971 तक सांसद (लोकसभा) रहीं। 1956 से 1967 तक मध्यप्रदेश शासन के लोकस्वास्थ्य, समाज कल्याण, यांत्रिकी और नगर निकाय आदि विभागों में मन्त्री पद पर रहीं थीं। पद्मावती देवी इतनी लोकप्रिय थीं कि 1957 के विधान सभा चुनाव में वे वीरेन्द्र नगर से निर्विरोध निर्वाचित हुई थीं।

पद्मावती देवी को हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, नेपाली और छत्तीसगढ़ी भाषाओं में पारंगतता थी। उत्तरप्रदेश से आई थीं वे छत्तीसगढ़ की बहू बनकर, पर कुछ दिनों के भीतर ही वे छत्तीसगढ़ी बोलने लगी थीं। वे अपनी बोल-चाल के लिए छत्तीसगढी भाषा का ही इस्तेमाल करती थीं।

वे भारत वर्ष के लगभग हर प्रान्त का भ्रमण कर चुकी थीं। वे कई बार अमेरिका, रुस, जर्मनी, फ्रान्स, ब्रिटेन, जापान भी हो आई थीं ।

वे बहुत से विश्वविद्यालयों की आजीवन सदस्या रहीं - जैसे डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, खैरागढ़ विश्वविद्यालय। इसके अलावा वे बोर्ड आॅफ़ गवर्नर्स सिंधिया एजुकेशन सोसायटी (ग्वालियर), लेड़ी अमृत बाई डागा कॉलेज (नागपुर), तानसेन उत्सव समिति (ग्वालियर), मध्यप्रदेश बोर्ड आॅफ़ गवर्नर्स, लेड़ी इर्विन कॉलेज (नई दिल्ली), भारतीय महिला कान्फ्रेन्स की भी सदस्या रहीं।

अन्तर्राष्ट्रीय समाज सम्मेलन जो एथेन्स में आयोजित हुआ था, वहाँ पद्मावती देवी भारत के प्रतिनिधि मंडल की नेता के रुप में गई थीं।

सन् 1987 में 12 अप्रैल को महारानी पद्मावती देवी का निधन हुआ। उस दिन हज़ारों की तादात में लोग उनको श्रद्धा अर्पित करने उपस्थित हुए थे।

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Content Prepared by Ms. Indira Mukherjee

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