बुंदेलखंड संस्कृति

खजुराहो प्रतिमाओं का समाज से संबंध

खजुराहो मंदिर और उसकी प्रतिमाओं से यह अभास होता है कि खजुराहो का समाज अपने आप में पूर्ण है। ऐसा प्रतीत होता है कि तत्कालीन खजुराहो वासी वर्तमान में रहते हैं और जीवन को आनंदमय बनाने के पक्ष में हैं। उनका सौंदर्यबोध जीवन के अस्तित्व के साथ मेल खाता है। आनंदमय जीवन के लिए यहाँ के वासियों ने संगीत, नृत्य, चित्रकला, मूर्तिकला तथा अन्य कलाओं का सृजन किया। इसका दृश्य हमको खजुराहो की मूर्तियों में संगीत और नृत्य का भरपूर चित्रण मिलता है। यहाँ के अनेक कलाकारों ने अपनी कलाकृतियों में स्पष्ट किया है कि यहाँ की मूक प्रतिमाएँ संगीत और वाद्ययंत्र के प्रति इतना लगाव रखती है। 

कई प्रतिमाओं में नारी अपने हाथों में बंसी लिए खड़ी हैं। एक प्रतिमा में तो एक नारी अपने दोनों हाथों से बांसुरी पकड़कर, होठों तक ले जाकर श्रोताओं के बीच खड़ी है। लक्ष्मण मंदिर में एक नारी प्रतिमा बांसुरी बजा रही है। अनेक दृश्यों में संगीत का आनंद लेती प्रतिमाएँ अंकित की गई है। वीणा, ढ़ोल तथा मृदंग बजा रही अनेक प्रतिमाएँ वर्तमान हैं। खजुराहों की प्रतिमाओं में प्रायः तबला बजाते हुए दृश्य देखने को मिलते हैं। यहाँ ढ़ोल का भी प्रयोग किया गया है, लेकिन इन ढ़ोलों का प्रयोग अधिकतर धार्मिक उत्सवों में हुआ प्रतीत होता है। दो- तीन प्रतिमाओं में शहनाई भी देखने को मिलती है। शंख, नृसिंह और घंटा जैसे वाद्य भी देखने को मिलते हैं। मंजिरा के दृश्य तो मन को मोह लेने वाले हैं।

खजुराहो की प्रतिमाओं में समाज का इस तरह चित्रण किया है कि यहाँ के लोगों के जीवन के प्रत्येक अंग का अध्ययन इन प्रतिमाओं के अवलोकन से किया जा सकता है। यदि प्रतिमाओं के अलंकरण, सौंदर्य- सज्जा इत्यादि पर विश्वास किया जाए और उन्हें उस युग का प्रतीक माना जाए, तो हमारे सामने एक समृद्ध समाज की एक तस्वीर उभर कर आती है।

खजुराहो समाज में लोग आपसी बातचीत, मेल- मिलाप में समय बिताने के अनेक प्रमाण मिलते हैं। शराब, स्री और पुरुष दोनों वर्गों में पिया जाता था। मूर्तिकारों ने पत्थर में शराबियों के चेहरे के भावों को बड़ी सुंदरता से अंकित किया है। मिथुन दृश्यों में भ्रष्ट मिथुन, तत्कालीन समाज की स्वछंदता और जीवन के आनंद भोगवादी होने का परिचय देते हैं।

 

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Content prepared by Mr. Ajay Kumar

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