बुंदेलखंड संस्कृति

खजुराहो के मंदिर

ए चंदेलों के जमाने के शहर खजुराहो
देवताओं के ए खामोश नगर खजुराहो
ए तिलिस्मात न जामये खजुराहो
पर तवे रौनके इकबाल कमर खजुराहो

तेरा हर नक्श है पत्थर पै जवानी का उभार
तुझमें महफज है अय्यामें गुजिशता की बहार
सनअते संग तराशी के ऐ मशहूर दयार
मंदिरों से तेरी तारीख का कायम है विकास

विश्व विख्यात खजुराहो के मंदिरों का भारतीय मंदिरों में महत्व धार्मिक दृष्टि से नगण्य है, परंतु वास्तुशास्र की नागर शैली में, ये मंदिर विशेष स्थान रखते हैं। इन मंदिरों को भारत अथवा आंचलिक शैली के मंदिरों के रुप में जाना जाता है।

खजुराहो के मंदिर निर्माणकला के सर्वोच्च व पूर्ण आदर्श है। यहाँ के मंदिरों में गर्भगृह, अंतराल, अर्ध- मंडल, महामंडप तथा चतुष्की के लिए अलग- अलग छतें बनायी गई है। इन सभी छतों को सूच्याकार बनाया गया है। इन मंदिरों में देवताओं को सुविधाजनक आवास देने के लिए रधिकाएँ, विश्रांतियां, धर्मशिलाएँ बनाये गये हैं। मंदिरों के शिखर एकाकी न होकर, उनके चारों ओर अनेकानेक शिखरों का जाल बिछाया गया है। इस प्रकार इन मंदिरों में कलात्मकता का आदर्श देखने को मिलता है।

मंदिरों के निर्माण के पीछे, प्रायः कल्पित कहानियाँ पायी जाती है। खजुराहो के मंदिरों के पीछे भी चंद्रदेव के अवैध संबंध की कहानी पाई जाती है, जो न केवल हास्यास्पद है, बल्कि चाटुकार भाटों द्वारा गड़ी गई प्रतीत होती है। भले ही चंदेलों ने अपना नाम चंद्रात्रेय रखा हो, परंतु इसका किसी विधवा ब्राह्मणी या भगवान चंद्रदेव से रिश्ता नहीं जोड़ा जा सकता है। भारत में प्रत्येक कुल के लिए गोत्र की कल्पना की गई है और खजुराहो के प्रसंग में भी चंद्रात्रय गोत्र ही माना जा

सकता है। भारतीय मंदिरों में निर्माण के चमत्कार दर्शनीय है, परंतु यह सभी चमत्कार मानव के हाथों से हुए हैं। खजुराहों के मंदिरों का निर्माण भी ऐसा ही चमत्कार है।

खजुराहो के मंदिर आधुनिक और पुरातन काल के बीच में एक कड़ी है। आर्य शिखर शैली के ये मंदिर गत दस शताब्दियों द्वारा अपने ऋदय में सजाकर रखे परिषकृत एवं विषद्ता के प्रमाण हैं। हजार वर्षों के प्राकृतिक प्रकोपों, धूप और आंधियों के बावजूद, ये मंदिर आज भी एक सुंदर मोती ही तरह भारत की कंठमाला में अपने प्राकृतिक स्वरुप में चमक रहे हैं। खजुराहो के ये मंदिर लगभग १०० साल की अवधि में बनाए गए हैं।

खजुराहो शिल्पकला के इन प्रसिद्ध स्थानों में से हैं, जो विश्व में अंगुलियों पर गिने जा सकते हैं। शिल्प तथा कला का अद्वितीय दर्शन इन मंदिरों में देखने को मिलता है। मंदिर का शिल्पकला एक अद्भुत खजाना है, जिसका मूल्य अपूर्णीय है। कहीं भी प्रस्तरों को धन नहीं माना जाता, परंतु खजुराहो के मूर्तिमान पत्थरों को यदि सोने के साथ तोल दिया जाए, जो भी उनका मूल्य चुकाना असंभव है। इन मंदिरों की भव्यता से एक तरह की शांति एवं संसार में कुछ पा लेने का संतोष झलकता है। कला के इस सम्राज्य में भारतीय और आर्यकला की भव्यता का मिश्रण, एक पूर्णता को जन्म देता है। इन मंदिरों के निर्माण में कोई भी कमी नहीं रही है, बल्कि ये मंदिर अपने आपमें पूर्ण है।

ग्रेनाइट और बलुआ पत्थरों से बने ये मंदिर हजार वर्षों से अपने मटियाले गुलाबी तथा हल्के पीले रंग में उन सभी को मूक आमंत्रण देते हैं :-

-- जिन्होंने कभी किसी तत्व से प्रेम किया है

-- जो, प्रेम की तलाश में भटकते रहे हैं

-- जिनके, स्वरों की प्रतिध्वनियाँ चट्टानों से टकराकर लौट आई है, खाली- स्वरहीन होकर इन मंदिरों के सौंदर्य से किसी की आँखों में प्यार लौट आता है, तो किसी के मूक स्वरों में वाणी।

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Content prepared by Mr. Ajay Kumar

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