बुंदेलखंड संस्कृति

चन्देलयुगीन ललित कलाएँ

चन्देलों ने लगभग चार शताब्दियों तक बुन्देलखण्ड में शासन किया। वे केवल महान् विजेता तथा सफल शासक ही न थे। अपितु ललित कलाओं के प्रसार तथा संरक्षण में भी वे पूर्ण दक्ष थे। उनकेशान्तिपूर्ण शासन तथा देश की भौगोलिक स्थिति ने भी इस दिशा में पूर्ण योग दिया और खजुराहो के मंदिरों के रुप में कला अपने चरम लक्ष्य तक पहुंच गई थी। चन्देल काल में जनता की समृद्धि ने ललित कलाओं के इतिहास में एक अमिट छाप डाल दी थी। चन्देल युग में वास्तुकला तथा मूर्तिकला उन्नति के चरमबिन्दु पर पहुँच गई थी और उनके उत्कृष्ट नमूनों का बुन्देलखण्ड में बाहुल्य है।

स्थापत्य कला

सुप्रसिद्ध कला मर्मज्ञ परसी ब्राउन का मत है कि कला में भारतीयों के आदर्श विशिष्ट रुप से प्रतिस्फुटित होते हैं और चन्देल ललित कलायें इसकी अपवाद नहीं हैं। स्थापत्य कला के प्रत्येक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक विकास में कोई-न-कोई महत्वपूर्ण अनुभूत सिद्धान्त निहित है। ग्रीक के लोग उसके सौष्ठवपूर्ण पूर्ति पर अधिक बल देते हैं। रोमन वैज्ञानिक कौशल तथा इटैलियन, विद्वत्ता पर अधिक जोर देते हैं। किन्तु भारतीय आध्यात्मिक तुष्टि पर विशेष बल देते हैं। भारतीय कलाकृतियाँ भारतीयों की धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोप हैं। भारतीय स्थापत्य कला की इस विशेषता के कारण भारत में असंख्य मंदिरों का निर्माण हुआ और इसी कारण बुन्देलखण्ड में भी मंदिरों का बाहुल्य है।

चन्देल नरेश निर्माण की ओर विशेष ध्यान देते थे और उनके अधिकारी तथा जनता भी उनके आदर्शों का अनुसरण करती थी। किन्तु चन्देलों का निर्माण केवल मंदिरों तक ही सीमित न था। भवनों, तड़ागों तथा सैनिक-स्थापत्य कला की ओर भी उनकी विशेष रुचि थी। अध्ययन की सुगमता की दृष्टि से चन्देल स्थापत्य कला के निम्नलिखित विभाग किये जाते हैं--

क. धार्मिक स्थापत्य कला

ख. नागरिक स्थापत्यकला

ग. सैनिक स्थापत्य कला

 

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र

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