बुंदेलखंड संस्कृति

बुन्देलखण्ड में पत्रकारिता की विकास यात्रा

सन् १८५७ के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में बुन्देलखण्ड का एक विशेष योगदान रहा। ब्रिटिश शासन ने इसे शक्तिहीन एवं विखण्डित करने की योजना बनाई। जन असंतोष बढ़ता रहा। इसे मुखर करने हेतु समाचार पत्रों का प्रकाशन हैण्ड प्रेस तथा लिथो प्रेस से प्रारम्भ हुआ। साइक्लोस्टाइल मीशीनें भी यत्र-तत्र उपलब्ध थीं। बुन्देलखण्ड का प्रथम समाचार पत्र कहां से व कब छपा अनिर्णीत है। उपलब्ध जानकारी के आधार पर सन् १८७१ ई. में बुन्देलखण्ड अखबार में "विचार वहन' मासिक सागर से प्रकाशित हुआ। इसके सम्पादक श्री नारायण बालकृष्ण - थियोसफी विचारधारा- से प्रभावित थे। सन् १८९४ ई. में साप्ताहिक पंच झांसी से प्रकाशित हुआ। इसी स्थान से सन् १८९६ ई. में "विचार वेदान्त साप्ताहिक' तथा सन् १८९१ ई में "प्रभात' मासिक छपा। श्री अयोध्या प्रसाद ने "संसार दपंण' समाचार-पत्र निकाला।

बीसवीं सदी के प्रारम्भ से ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रस का स्वरुप बदलने लगा। नरम दल ब्रिटीश शासन की तुष्टिकरनण की राजनीति के साथ लाजपत राय, श्री बालगंगाधर तिलक तथा श्री विपिन चन्द्र पाल की प्रेरणा से गरम दल प्रभावशाली होने लगा। सन् १९२३ ई. में सागर से "दैनिक प्रकाश' का प्रकाशन भगवान प्रिर्जिंन्टग प्रेस से प्रारम्भ हुआ। इसके सम्पादक मास्टर बलदेव प्रसादजी थे तथा संस्थापक एवं प्रकाशक श्री प्रेमनारायण शर्मा थे। मुख्य शीर्ष में निम्न पंक्तियां थीं।

"देश दशा दर्शन देता, यह मनोभाव नित करे विकास।
राष्ट्रप्रेम, स्वतंत्र मानव हित, पढिये दैनिक पत्र प्रकाश।'

लगभग १०० अंक प्रकाशित होने के बाद पत्र हो गया। हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में अग्रगण्य योगदान कोटरा - जालौन - निवासी बाबू मूलचन्द्र अग्रवाल का है। इन्होंने सन् १९११ ई. में कलकत्ता से "दैनिक विश्वामित्र' का प्रकाशन प्रारम्भ किया। यह पत्र विज्ञापन के आधार पर बम्बई, पटना एवं कानपुर से प्रकाशित हुआ। सम्पादकाचार्य श्री अम्बिका प्रसाद वाजपेयी "लिखित समाचार पत्रों के इतिहास' के अनुसार सन् १९१२ ई. कोंच से "सत्यप्रकाश' मासिक प्रकाशित हुआ। अगले वर्ष "भाष्कर' का प्रकाशन श्री कृष्णगोपाल शर्मा - चौबे जी - ने प्रारम्भ किया। यह पत्र केवल दो वर्ष चला। इसी वर्ष सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी श्री वृजविहारी मेहरोत्राने "देहाती' का प्रकाशन साप्ताहिक के रुप में प्रकाशित किया। इसके सम्पादक को तीन वर्ष कारावास दण्ड मिला। क्रान्तिकारियों के जमावड़ा में वृजविहारी मेहरोत्रा के साथ श्री सुरेश चन्द्र भट्टाचार्य तथा चन्दीबाबू भी हो गए। इन्होंने क्रान्तिकारी आन्दोलन के विस्तार हेतु हस्तलिपि से साप्ताहिक "उद्बोधन' पत्र सन् १९१७ ई. में निकाला जो गोपनीय ढंग से वितरित होता था। सन् १९१८ ई. पं. कृष्णगोपाल शर्मा ने कोंच एवं उरई से साप्ताहिक "उत्साह' का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इसके सम्पादक पं. रामेश्वर प्रसाद शर्मा थे। सन् १९२१ ई. में यह पत्र बन्द हो गया। सन् १९२० ई. में बाबू वृजबिहारी मेहरोत्रा ने साप्ताहिक "लोकमत' चन्दी बाबू के सहयोग से निकाला। यह पत्र भी दो वर्ष चला।

सन. १९२० ई. में पन्ना से अनियतिकालिक "पन्ना गजट' छपा। सन् १९२३ ई. में श्री देवेन्द्रनाथ मुखर्जी के सम्पादन में साप्ताहिक पत्र "उदय' प्रकाशित हुआ। भाई अब्दुल गनी ने सांम्प्रदायिक एकतावर्धन हेतु "समालोचक' पत्र निकाला। "उदय' तथा "समालोचक' ने गांधी जी के असहयोग आन्दोलन का समर्थन किया। जातीय पत्रों का अभ्युदय सन् १९१८-१९ ई. के बाद प्रारम्भ हो गया। कोंच के श्री बाबूराम गुप्त ने मासिक पत्र "वैश्य शुभचिंतक' निकाला। मऊरानीपुर - झांसी - से "जुझौतिया प्रभा' तथा झांसी से "सना हितकारी' मासिक पत्र निकले। सन् १९२१ ई. में मोठ - झांसी - "नाई मित्र' पत्रिका निकली। श्री गोविन्द प्रसाद शिलाकारी ने सन् १९२२ में सागर से "भृगु' पत्रिका का सम्पादन किया। जैन समाज ने सागर से "गोलपुर जैन' का प्रकाशन किया। सन् १९२३ ई. में वैद्य नाथूराम शर्मा ने "गृहहस्थ जीवन' तथा कुलपहाड़ - हमीरपुर - से "वैद्य कल्पद्रुम' पत्रिका निकाली। सन् १९१४ में दमोह नगर से मासिक "मोहनी' पत्रिका प्रकाशित हुई। सन् १९२४ ई. में श्री नन्द किशोर वर्मा ने "लोकमान्य' केसरी प्रेस बांदा से प्रकाशित कराया, इसके मालिक मास्टर नारायण प्रसाद थे। श्री बालाप्रसाद वर्मा ने "स्वाधीन' जनजागृति हेतु निकाला। सन् १९२२ में झांसी से "झांसी समाचार' तथा सन् १९२४ ई. में कोंच - जालौन - से श्री बाबूराम गुप्त ने साप्ताहिक "निर्भय' पत्र निकाला। इसके सहयोगी श्री गयाप्रसाद गुप्त "रसाल' थे। पं. मन्नीलाल पाण्डेय ने साप्ताहिक "भारतीय लोकमत' उरई से निकाला जो दस वर्ष तक लगातार छपता रहा।

सन् १९२० ई. में सागर से आठ किमी. पश्चिम "रतौना' ग्राम में अंग्रेजों ने कसाईखाना खोलने का पट्टा कलकत्ता की डेवनपोर्ट कम्पनी को प्रदान किया। १४०० पशु काटने का उन्हें लाइसेन्स मिला। इसी प्रकार का एक कसाईखाना दमोह में भी स्वीकृत हुआ था। इनको बन्द कराने का बीड़ा समाचार पत्रों ने उठाया। साप्ताहिक प९ "कर्मवीर' जबलपुर के सम्पादक पं. माखनलाल चतुर्वेदी, "वन्देमातरम्' के सम्पादक लाल लाजपतराय, उर्दू के समचार पत्र "ताज' के सम्पादक श्री ताजुद्दीन तथा "श्री शारदा' ने आवाज बुलन्द की। पं. मदनमोहन मालवीय, श्री केशवराम चन्द्र खण्डेकर - सागर - स्वामी कृष्णानन्द आदि के संघर्षों से विवश होकर सरकार को कसाईखाना बन्द करना पड़ा। यह पत्राकारिता की महान विजय थी।

चौरी-चौरा हत्याकाण्ड से दु:खी होकर असहयोग आन्दोलन समाप्त हो गया। साइमन कमीशन की वापिसी "नमक कानून का उल्लघन' इन सबका समाचार पत्रों ने सहयोग देकर प्रचार किया। सन् १९३० ई. में पन्ना से श्री वियोगी हरि ने "पतित पावन' साप्ताहिक पत्र निकाला। सन् १९३२ ई. में श्री भगवानदास "बालेन्दु' के निदेर्शन में श्री रामगोपाल गुप्त - मादहा - श्री श्याम बिहाबीर चौबे तथा मास्टर नारायण प्रसाद - बांदा - ने मिलकर "बुन्देलखण्ड केसरी' निकाला, जिसमें जोशीले गीत, राष्ट्रीय समाचार पत्रों की समीक्षा आदि निकलती थी। अधिकतर यह अखबार साइक्लोस्टाइल से छपता था, किन्तु पता नहीं चलता था कि कब ओर कहां से छपता है। इसका वितरण कौन् व किस प्रकार करता है। इसका प्रकाशन उरई से भी होने लगा। सम्पादक पं. रामेश्वर प्रसाद शर्मा, श्री मन्नीलाल जी गुरुदेव आदि थे। पुलिस ने गुरुदेव तथा दीवान घत्रुघ्न आदि को प्रताड़ित किया किन्तु कोई जानकारी नहीं मिली। सन् १९३१ में "गहोई मित्र' झांसी से प्रकाशित हुआ। स्वाधीन प्रेस झांसी से जुलाई १९६२ ई. में "ग्राम सुधारक' पत्रिका छपने लगी। इसके सम्पादक श्री शरदाचरण तथा प्रकाशक श्री अयोध्या प्रसाद शर्मा थे। सागर से सन् १९३८ ई. में श्री अब्दुल गनी ने "देहाती दुनिया' तथा केसरी प्रेस बांदा से साप्ताहिक "मुखिया' का प्रकाशन मास्टर नारायण प्रसाद ने प्रारम्भ किया। इसके सम्पादक श्री देवदत्त शास्री "विरक्त' तथा सह सम्पादक श्री राजाराम श्रीवास्त एडवोकेट थे। इसका मुख्य शीर्ष मानस की पंक्ति 

मुखिया मुख सो चाहिए, खान पान को एक।
पाले पोपे सकल अंग, तुलसी सहित विवेक।।

सन् १९४० ई. में उरई से मासिक पत्र "आनन्द' छपा इसके सम्पादक श्री कैलाश नाथ प्रियदर्शी थे। सन् १९३८६ ई. में श्री गयाप्रसाद गुप्त "रसाल' ने साप्ताहिक "वीरेन्द्र' निकाला जो कालान्तर में लखनऊ से छपने लगा। सन् १९३७ ई. में पं. गोविन्द नारायण तिवारी ने उरई से साप्ताहिक "दर्शक' का प्रकाशन किया। कालान्तर में यह कोच से श्री गया प्रसाद "रसाल' द्वारा प्रकाशित होने लगा। श्री वीरभद्र तिवारी - सहयोगी श्री चन्द्रशेखर आजाद - ने साप्ताहिक पत्र "प्रहरी' निकाला। कोंच से ही सन् १९४४ ई. में हमीरपुर से साप्ताहिक "पुकार' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। इसके सम्पादक श्री परमेश्वरी दयाल निगम थे। आगे चलकर यह पत्र सन्त श्री मेहरबाबा का मुख्य प्रचारक बन गया। झांसी से "देशी राज्य' प्रकाशित हुआ जिसमें बुन्देलखण्ड के रियासतों के राजाओं तथा सामन्तों के अत्याचार की विशद घटनाएं प्रकाशित होती थी। सन् १९४१ ई. में आचार्य प्रभाकर ने साप्ताहिक "जीवन' निकाला जो भारतीय संस्कृति का परम् प्रचारक था।

वीरेन्द्र केशव परिषद टीकमगढ़ की स्थापना १५ अप्रैल सन् १९३० ई. में महाराज वीर सिंह जूदेव के संरक्षण में हुई। इसके तत्वावधान में पाक्षिक "मधुकर' का प्रकाशन पं. बनारसीदास चतुर्वेदी के सम्पादकत्व में १ अक्टूबर १९४० ई. में बुन्देलखण्ड के लोक साहित्य एवं कला के विकास हेतु प्रारम्भ हुआ। इसकी लागत प्रति अंग रुपये १३ आती थी। यह देशी कागज में छपता था, इसका मूल्य मात्र दो रुपए था। मधुकर ने अनेक विशेषांकों के साथ "बुन्देलखण्ड प्रान्त निर्माण' विशेषांक जनवरी १९४३ ई. में निकाला। इस पत्र के सहयोगी सम्पादक साहित्यकार श्री यशपाल जैन भी थे। सन् १९४४-४५ में इसका प्रकाशन बन्द हो गया किन्तु इसका प्रदेय ऐतिहासिक रहा। सन् १९४३ ई. में दतिया से श्री हरिमोहन लाल श्रीवास्तव ने "विजय' मासिक तथा पन्ना से सन् १९४५ में डॉक्टर हरिराम मिश्र ने मासिक "विन्ध्य भूमि' का प्रकाशन प्रारम्भ किया। सागर से सन् १९४६ ई. में श्री ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी ने साप्ताहिक "विन्ध्य केसरी', श्री रामकृष्ण पाण्डेय ने "पराक्रम' तथा दतिया से श्री जर्नादन प्रसाद पाण्डेय ने "किसान पंचायत' प्रकाशित किया।

पत्रों की ग्राहक संख्या कम होने के कारण अधिकांश समचार पत्रों को आर्थिक संकट झेलना पड़ता था। इन पत्रों ने - साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक - स्थानीय रचनाकारों को पर्याप्त प्रोत्साहन प्रदान किया। स्थानीय महत्व के ऐतिहासक स्मारक, पर्यटन स्थल, लोकगीत आदि सार्वजनिक प्रकाश में आए। इन सबका योगदान स्मरणीय है।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद पत्रकारिता शनै:-शनै: प्रगति पथ पर अग्रसर हुई। श्री मन्नीलाल श्रीवास्तव के सम्पादन में साप्ताहिक "दिग्विजय' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। श्री शंभूदयाल "शशांक' ने साप्ताहिक "लोकमत' को प्रकाशित किया जो १९५८ तक प्रकाशित होता रहा। काल्पी के श्री मन्नीलाल अग्रवाल द्वारा सम्पादित "जयहिन्द' तथा श्री चन्द्रभान विद्यार्थी द्वारा "लोकसेवा' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। सन् १९४९ ई. में पं. बेनीमाधव तिवारी ने साप्ताहिक "हलचल' छापा जो सन् १९५२ तक चला। इसका पुनर्प्रकाशन पं. तुलसीराम त्रिपाठी ने प्रारम्भ किया जो सन् १९७९ तक छपता रहा। सन् १९५० ई. में श्री शिवानन्द "बुन्देला' तथा श्री विष्णुदत्त शर्मा द्वारासाप्ताहिक "बुन्देला' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ, जिसने ३० वर्ष की दीर्घायु प्राप्त की। इस पत्र ने जनपदीय साहित्य को पर्याप्त प्रोत्साह प्रदान किया। सन् १९५८ ई. में काल्पी से श्री प्रकाश जैतली ने "संगठन' का प्रकाशन शुरु किया।

बांदा में भी क्रान्तिकारी आन्दोलन का प्रभाव व्यापक था। सन् १९२९-३० ई. में साइक्लोस्टाइल मशीन से "सत्याग्रही' गुप्त रुप से छपता था। इसके सम्पादक सर्व श्री गोकुल भाई तथा रामगोपाल गुप्त थे। इसका मूल्य मात्र एक पैसा था। पं. गोदीन शर्मा ने इसी समय "लोकमान्य' तथा "बुन्देलखण्ड केसरी' सम्पादित कर "केसरी प्रेस' बांदा से छपाया। सन् १९४० में प्रकाशित साप्ताहिक "मुखिया' का प्रकाशन चार वर्ष तक हुआ। श्री रामनाथ गुप्त ने "कान्यकुब्ज वैश्य हितकारी' मासिक पत्रिका निकाली। उर्दू का अखबर श्री रहीम बख्श मुख्त्यार द्वारा लीथो प्रेस में छपा। श्री परमेश्वरी दयाल खरे ने "दुखिया किसान' निकाला तथा अपने प्रेस में छापा। सन् १९५२ ई. में कु. आनन्द सिंह एडवोकेट ने "सत्याग्रही' एवं "दिवाकर' पाक्षिक पत्र निकाले। यह पत्र सत्याग्राही प्रेस में छपते थे। सन् १९५३ ई. में मास्टर नारायण प्रसाद ने अपना पुराना अखबार साप्ताहिक "केसरी' प्रकाशित किया। इसका मुख्य वाक्य था। "क्लैब्यम् मा स्मगमः'। इसके सम्पादक सर्व श्री कैलाश माधव निगम तथा रमेश चन्द्र श्रीवास्तव थे। यह पत्र स्वतन्त्रत विचारों का एवं निर्भीक था। यह पत्र दो वर्ष तक छपा। जिला नियोजन कार्यालय बांदा की ओर से "बांदा पंच' केसरी प्रेस बांदा से छपने लगा। तमन्ना बांदवी ने साप्ताहिक "चित्रकूट सामाचार' छापा। श्री राधाकृष्ण बुन्देली ने "बांदा समाचार' प्रकाशित किया। अनेक पत्र छपे और बन्द हुए।

झांसी में क्रान्ति का शंखनाद फूंकने के लिए श्री रघुनाथ विनायक घुलेकर ने सन् १९२० ई. में "उत्साह' पत्र निकाला। उन्हें कई बार जमानते देनी पड़ी। उन्होंने "दैनिक मातृभूमि' तथा अंग्रेजी में "फ्री इण्डिया' कानपुर से प्रकाशित कराया जो चार वर्ष तक चला। पं. कृष्ण गोपाल शर्मा ने "बुन्देलखण्ड केसरी', साप्ताहिक "क्रान्तिकारी' का सम्पादन किया तथा "श्रमजीवी' और "उत्साह' साप्ताहिक पत्र निकाले। विवेक कटु आलोचक और स्पष्ट वक्ता थे। श्री बेनी प्रसाद श्रीवास्तव ने "दिग्दर्शन', साप्ताहिक "फ्री थिंकर' तथा "बुन्देलखण्ड साप्ताहिक' निकाला। ये स्वतंत्र विचारक थे। मुहम्मद शेर खां ने "हिन्द केसरी' साप्ताहिक निकाला। मि. ऐबट ने "झांसी न्यूज' सरकार के समर्थन में छापा। श्री लखपत राय शर्मा ने "देशी राज्य' साप्ताहिक निकाला जो सन् १९४६ से १९५४ तक छपता रहा। आपने "शहीद' व "जनक्रान्ति' भी छपाए। श्री श्रवण प्रसाद मिश्र ने "प्रजा मित्र' पाक्षिक सन् १९४० में निकाला। जो कालान्तर में दैनिक हो गया। वर्तमान में "दैनिक जागरण' के रुप में मार्च सन् १९४२ ई. से श्री राजेन्द्र गुप्त के सम्पादन में प्रकाशित हो रहा है और अर्द्धशती पूर्ण कर चुका है।

उरई में दैनिक पत्रों की परम्परा सन् १९६० में प्रारम्भ हुई पं. यज्ञदत्त त्रिपाठी ने "दैनिक कृष्णा' तथा श्री जगत्नारायण त्रिपाठी ने "बहेलिया' निकाला। ये सब अल्पजीवी रहे। नियमित दैनिक की परम्परा का श्रीगणेश सन् १९७१ ई. में "दैनिक कर्मयुग प्रकाश' द्वारा हुआ। इसके प्रधान सम्पादक श्री रमेश चन्द्र गुप्त थे। इसी नाम से बांदा से भी दैनिक पत्र का प्रकाशन हो रहा है। श्री शम्भूदयाल "शशांक' ने उरई से प्रकाशित "दैनिक जन उत्साह' का सम्पादन किया। बुन्देलखण्ड पत्रकारिता विशेषांक "उड़ान' प्रकाशित किया। श्री जगदीश प्रसाद द्विवेदी ने दिल्ली से "लोकराज' साप्ताहिक का "बुन्देलखण्ड अंक' २४ मई सन् १९६० ई. को छापा। इसके सम्पादक श्री जयराम शर्मा तथा प्रकाशक श्री मन्नू लाल द्विवेदी थे।

पत्रकारिता के इतिहास में श्री कृष्ण बल्देव वर्मा - काल्पी - पितामह के रुप में पूज्य हैं। सन् १९०१ ई. में प्रसिद्ध मासिक पत्रिका "सरस्वती' में "बुन्देलखण्ड पर्यटन' विशेषांक का सम्पादन किया था। "विशाल भारत' में बुन्देलखण्ड विषयक लेख लिखे थे। श्री वृजमोहन वर्मा - जन्म सन् १९०० ई. काल्पी - ने हास्य व्यंग प्रधान "औघड़' का सम्पादन तथा "विशाल भारत' - कलकत्ता - "साहित्य सौरभ' में प्रकाशित हुए हैं। कोटरा में जन्मे श्री मूलचन्द्र अग्रवाल प्रकाशकों के पितामह हैं। इन्होंने सन् १९११ ई. में दैनिक "विश्वमित्र' तथा "एडवांस' - कलकत्ता - से प्रकाशित किया। इसी श्रृंखला में कालपी में जन्म जागरण समूह के संस्थापक सर्व श्री जयचन्द गुप्त, पूरनचन्द्र गुप्त, गुरुदेव गुप्त तथा जगदीश नारायण रुसिया हैं। यह समूह उ.प्र. तथा म.प्र. का प्रमुख अखबार प्रकाशक हैं। अंतराष्ट्रीय स्तरीय एवं श्रमजीवी पत्रकारिता में ख्यातिप्राप्त श्री जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी जगम्मनपुर - जालौन - के मूल निवासी हैं। श्री पन्नालाल श्रीवास्तव - जन्म सन् १९१३ ई. दमोह - ने पत्रकारिता पर एक पुस्तक लिखी तथा "लीडर', "अमृत बाजार पत्रिका', "नार्दन इण्डिया पत्रिका' के सह सम्पादक के रुप में प्रशंसनीय कार्य किया है। श्री बनारसीदास चतुर्वेदी का योगदान बुन्देलखण्ड पत्रकारिता के क्षेत्र में अविस्मरणीय है।

ढारे अभिषेक अंबु मात्र रविजा स्वरुप, रेवा रहि जाके पद पंकज को चूमि है।
उर पे धसान, बेतवा को लासै हार टोंस, चम्बल भुजान भुजबंधन को छूमि है।
प्रातः यह अभिनन्दनीय, पातक निकन्दनीय, वन्दनीय विश्व में बुन्देल भूमि है।
विन्ध्य जैसो अचल न चित्रकूट जैसो कूट, दूसरी दूनी में छवि शीतल अनन्द है।
बेतवा धसान रेवा जमुना पहुज तुल्य सरिता दिखावे नहिं उमगी अनंत ते।
धरती बुन्देल सी धरा न और ठौर कहूं, कर विश्वास देखौ करणी स्वछंद ते।
कर मनुहार देखौ तारन हजारन ते, जांच देखौ सूरज ते पूछ देखौ चंदा ते।
 

 

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