ब्रज-वैभव

पुनीत स्थल ब्रजधाम

प्रसिद्ध धार्मिक स्थलें


सनोरख - यह मुनिश्रेष्ठ सौरभ की तपस्या स्थली हैं।

कालीदह - यमुना किनारे का वह भाग है जहाँ पर कालिया नाग रहता था। उसका मान-मर्दन करने को भगवान श्रीकृष्ण कदम्ब पर से जमुना में कूदे थे।

द्वादस आदित्य टीला - काली नाग का दमन कर जब भगवान जल से निकलकर इस टीले पर आए तो ठण्ड से काँपने लगे। तब सूर्य ने द्वादस कला धारण कर भगवान श्रीकृष्ण को गर्मी पहुँचाकर शीत का निवारण किया। चैतन्य सम्प्रदाय के सनातन गोस्वामी ब्रज में आने पर इसी स्थान पर ठहरे थे और वहीं उनको स्वप्न दिखाई दिया था।

अद्वेैतव - इस स्थान पर अद्वेैत स्वामी तपस्या करते थे। कालान्तर में जब चैतन्य महाप्रभु ब्रज में आए तो उन्होंने भी इसी वट के नीचे निवास किया था।

श्रृंगार व - यहाँ सखाओं ने भगवान का विविध प्रकार से श्रृंगार किया था। तभी से यह स्थान इस नाम से प्रसिद्ध है। चैतन्य वंशीय नित्यानन्द गोस्वामी ने यहाँ वास किया और उनके परिवार जनों का तभी से इस स्थान पर अधिकार चला आ रहा है।

सेवाकुंज

इसको निकुंजवन भी कहते है।अहाते के अन्दर यह छोटा सावन है। यहाँ एक ताल और एक कदम्ब का पेड़ है। कोने में एक छोटा-सा मन्दिर है। कहा जाता है कि रात्रि को यहाँ भगवान श्रीकृष्ण राधाजी के साथ विहार करते हैं। यहाँ रात्रि को रहना वर्जित है।

 

चीरघा - यमुना के किनारे इस घाट का महत्व इसलिए अधिक है कि भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना में नग्न स्नान करती गोपियों के वस्र हरण किए थे।



रास मण्डल - चैतन्य मतावलम्बियों का यह कथन है कि भगवान ने यहाँ रास किया था।

किशोर वन - सेवाकुंज व निधिवन की भाँति है और श्री हरिराम व्याम की साधना स्थली है।

निधि वन

धारणा है कि श्रीकृष्ण और राधा यहाँ विहार करते थे। स्वामी हरिदासजी यहीं पर निवास करते थे और यहीं उनको बाँके बिहारीजी की मूर्ति प्राप्त हुई, जो मन्दिर में है। श्री हरिदास जी की समाधि यहीं हैं।

 


धीर-समीर - भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का पावन स्थल है।

बंशीव - यहाँ पुरातन वट वृक्ष है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण गोपियों को रास के लिए बुलाने को यहाँ खड़े होकर बंसी बजाते थे।



ब्रह्म कुण्ड - इस कुण्ड के ऊपर ब्रह्मजी ने तपस्या की थी। पास ही अशोक का एक वृक्ष है। वैशाख शुक्ल द्वादशी को मध्याह्म के समय उसमें एक फूल खिलता है, लोग उसके दर्शन करते हैं।

वेणुकूप - भगवान श्रीकृष्ण ने राधाजी की प्यास बुझाने के लिए बांसुरी से कूप का निर्माण किया था।

दावानल कुण्ड - कालिया दमन के अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण ने यहाँ दावाग्नि का पान किया था।

ज्ञान गुदड़ी - कहा जाता है कि जब उद्ववजी श्रीकृष्ण का संदेश लेकर आए थे, तब उनकी गोपियों से इसी स्थान पर वह ज्ञान-वार्ता हुई थी।

इमलीतला - पहली बार श्री चैतन्य महाप्रभु वृन्दावन पधारे थे तो इमली के इसी वृक्ष के नीचे ही बैठे थे।

राधा बाग - श्री रंगनाथजी के बगीचे के समीप है जहाँ कत्यायनी देवी का भव्य मन्दिर है।

टटिया स्थान - श्री हरिदासजी की शिष्य परम्परा का स्थान है। राधाष्टमी के दिन यहाँ अच्छा मेला लगता है।



उपरोक्त स्थलों के अतिरिक्त केशी घाट, राधा बावड़ी, बेलवन, मानसरोवर, महाप्रभुजी की बैठक, स्वामी हरिदासजी की बैठक, चौंसठ महन्तों की समाधि, मानस मन्दिर, राम बाग, यमुना मन्दिर, वन चन्द्र जी का डोल, टोपी वाली कुंज आदि अनेक स्थल दर्शनीय है।

 

Top

   अनुक्रम


© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र